पैरोल एवं फर्लो | 28 Mar 2023
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि कोविड-19 महामारी के दौरान कारागारों में भीड़भाड़ को रोकने और संक्रमण के प्रसार के जोखिम से बचने के लिये दोषियों को दी गई पैरोल की अवधि को उनकी वास्तविक सज़ा-अवधि के हिस्से के रूप में नहीं गिना जा सकता है।
पैरोल एवं फर्लो:
- पैरोल:
- यह एक कैदी को सज़ा के निलंबन के साथ रिहा करने की व्यवस्था है।
- इसमें कैदी की रिहाई सशर्त होती है जो आमतौर पर कैदी के व्यवहार पर निर्भर करती है, जिसमें समय-समय पर अधिकारियों को रिपोर्टिंग की आवश्यकता होती है।
- पैरोल अधिकार नहीं है और यह कैदी को विशिष्ट परिस्थितियों में दिया जाता है, जैसे कि परिवार में मृत्यु या सगे संबंधी का विवाह।
- किसी कैदी के खिलाफ पर्याप्त वाद की स्थिति में भी उसे मना किया जा सकता है, यदि सक्षम प्राधिकारी यह मानता है कि दोषी को रिहा करना समाज के हित में नहीं होगा।
- यह एक कैदी को सज़ा के निलंबन के साथ रिहा करने की व्यवस्था है।
- फर्लो (थोड़े दिन का अवकाश):
- यह कुछ महत्त्वपूर्ण अंतरों के साथ पैरोल के समान है। फर्लो लंबी अवधि के कारावास के मामलों में दिया जाता है।
- एक कैदी की फर्लो की अवधि को उसकी सज़ा की छूट के रूप में माना जाता है।
- फर्लो कैदी का अधिकार होता है और उसे समय-समय पर प्रदान किया जाता है। कभी-कभी यह बिना किसी कारण के उसके परिवार के साथ संपर्क बनाए रखने एवं लंबी सज़ा के नकारात्मक परिणामों को कम करने के आधार पर भी प्रदान किया जाता है।
नोट:
- पैरोल और फर्लो दोनों को सुधारात्मक प्रक्रिया माना जाता है। ये प्रावधान जेल प्रणाली को मानवीय बनाने की दृष्टि से संदर्भित किये गए थे।
- पैरोल और फर्लो वर्ष 1894 के कारागार अधिनियम के अंतर्गत आते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |