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प्रारंभिक परीक्षा

ऑसिफिकेशन टेस्ट

  • 17 Oct 2024
  • 7 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, एक राजनीतिक नेता की हत्या के मामले में आरोपी व्यक्तियों में से एक का ऑसिफिकेशन टेस्ट (अस्थिभंग परीक्षण) किया गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वह नाबालिग है या नहीं।  

ऑसिफिकेशन टेस्ट क्या है?

  • परिचय: 
    • ऑसिफिकेशन (अस्थिभंग) हड्डियों के निर्माण की प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो भ्रूण के प्रारंभिक विकासात्मक चरण में शुरू होती है और किशोरावस्था के अंत तक जारी रहती है, तथा यह प्रत्येक व्यक्ति के आधार पर भिन्न होता है। 
    • किसी व्यक्ति की अनुमानित आयु का अनुमान उसकी हड्डियों के विकास के चरण के आधार पर लगाया जा सकता है।
    • इस परीक्षण में कंकाल और जैविक विकास का आकलन करने के लिये विशिष्ट हड्डियों, जैसे हाथ और कलाई आदि का एक्स-रे लिया जाता है।
      • आयु निर्धारित करने में सहायता के लिये एक्स-रे चित्रों की तुलना मानक विकास मानदंडों से की जा सकती है।
      • विश्लेषण में एक स्कोरिंग प्रणाली का भी उपयोग किया जा सकता है जिसमे हाथों और कलाईयों की अलग-अलग हड्डियों का मूल्यांकन, तथा उनकी वृद्धि की तुलना एक विशिष्ट जनसंख्या में स्थापित परिपक्वता मानकों से की जाती है।
  • विश्वसनीयता:
    • अस्थि परिपक्वता के अवलोकन में भिन्नता, ऑसिफिकेशन टेस्ट की सटीकता को प्रभावित कर सकती है।
      • व्यक्तियों के बीच मामूली विकासात्मक अंतर से आयु अनुमान में त्रुटि की संभावना उत्पन्न होती है।
      • ऑसिफिकेशन टेस्ट में आमतौर पर 17-19 वर्ष की आयु सीमा का पता चलता है
    • न्यायालयों ने इस सीमा के भीतर त्रुटि की सीमा के मुद्दे पर विचार किया है तथा इस बात पर ज़ोर दिया है कि सीमा के निम्न या उच्च सीमा को स्वीकार किया जाए।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2024 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम, 2012 के तहत मामलों में ऑसिफिकेशन टेस्ट की उच्च आयु सीमा पर विचार किया जाना चाहिये।
      • न्यायालय ने यह भी कहा कि आयु निर्धारित करते समय दो वर्ष की त्रुटि सीमा लागू की जानी चाहिये।
  •  परीक्षण के बारे में न्यायालय का दृष्टिकोण:
    • किशोर न्याय अधिनियम की धारा 94 के तहत, यदि व्यक्ति की आयु के संबंध में "संदेह के लिये उचित आधार" हैं, तो बोर्ड को आयु निर्धारण की प्रक्रिया शुरू करनी होगी।
    • आयु सत्यापन के लिये प्राथमिक साक्ष्य के रूप में स्कूल द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र या संबंधित परीक्षा बोर्ड से प्राप्त मैट्रिकुलेशन प्रमाण पत्र का उपयोग किया जाना चाहिये।
      • यदि ये दस्तावेज़ उपलब्ध न हों तो नगर निगम, निगम या पंचायत से प्राप्त जन्म प्रमाण पत्र पर विचार किया जा सकता है।
    • अधिनियम में कहा गया है कि इन दस्तावेज़ों के अभाव में ही ऑसिफिकेशन टेस्ट या अन्य आयु निर्धारण चिकित्सा परीक्षण किया जाना चाहिये, जैसा कि समिति या बोर्ड द्वारा निर्धारित किया गया हो।
    • मार्च, 2024 के अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आयु निर्धारण के लिये ऑसिफिकेशन टेस्ट का उपयोग अंतिम उपाय के रूप में किया जाना चाहिये।
    • न्यायालय ने निर्णय दिया कि ऑसिफिकेशन टेस्ट, दस्तावेज़ी साक्ष्य का स्थान नही ले सकते।

आपराधिक न्याय प्रणाली में आयु निर्धारण क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • आपराधिक कानून प्रक्रियाओं, सुधार, पुनर्वास और दंड के संदर्भ में बच्चों और वयस्कों के बीच अंतर करता है।
    • भारत में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को नाबालिगों की श्रेणी में रखा गया है।
  • नाबालिगों पर किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 लागू होता है।
    • कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को वयस्कों के जेल में नहीं भेजा जाता है, बल्कि उसे पर्यवेक्षण गृह (Observation Home) में रखा जाता है और उसे पारंपरिक न्यायालय के बजाय किशोर न्याय बोर्ड (JJB) के समक्ष पेश किया जाता है, जिसमें एक मजिस्ट्रेट और बाल कल्याण में विशेषज्ञता वाले दो सामाजिक कार्यकर्त्ता शामिल होते हैं।
    • जाँच के बाद, JJB अन्य विकल्पों के अलावा, बच्चे को चेतावनी देना, सामुदायिक सेवा सौंपने, या अधिकतम तीन वर्षों के लिये विशेष गृह में रखने का निर्णय ले सकता है।
  • किशोर न्याय संशोधन अधिनियम 2021 के बाद, जघन्य अपराधों (कम-से-कम 7 वर्ष के कारावास से दंडनीय) के लिये हिरासत में लिये गए 16 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिये अपराध करने हेतु JJB को उनकी मानसिक और शारीरिक क्षमता का प्रारंभिक मूल्यांकन करना होगा।
    • मूल्यांकन में अपराध के परिणामों और परिस्थितियों के बारे में बच्चे की समझ का भी मूल्यांकन किया जाता है, ताकि यह निर्णय लिया जा सके कि क्या उन पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  (PYQ)  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न 1. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः

  1. जब कोई कैदी पर्याप्त आधार प्रस्तुत करता है तो ऐसे कैदी को पैरोल से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह उसके अधिकार का मामला बन जाता है। 
  2. कैदी को पैरोल पर छोड़ने के लिये राज्य सरकारों के अपने नियम हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

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