हरियाणा में अवैध खनन मामले में NGT का दखल | 07 Dec 2023
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने हाल ही में गुड़गाँव के रिठोज गाँव में अवैध खनन संबंधी चिंताओं को दूर करने में विफलता के लिये हरियाणा राज्य के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है।
अवैध खनन क्या है?
- परिचय: सरकारी अधिकारियों से आवश्यक परमिट, लाइसेंस या नियामक अनुमोदन के बिना भूमि या जल निकायों से खनिजों, अयस्कों या अन्य मूल्यवान संसाधनों का निष्कर्षण अवैध खनन है।
- इसमें पर्यावरण, श्रम और सुरक्षा मानकों का उल्लंघन भी शामिल हो सकता है।
- भारत में खनन से संबंधित कानून:
- भारत के संविधान की सूची II (राज्य सूची) के क्रम संख्या 23 की प्रविष्टि राज्य सरकार को उसकी सीमाओं के भीतर स्थित खनिजों का स्वामित्व देने का आदेश देती है।
- सूची I (केंद्रीय सूची) के क्रम संख्या 54 की प्रविष्टि केंद्र सरकार को भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के भीतर खनिजों का मालिकाना अधिकार देती है।
- इसके अनुसरण में वर्ष 1957 का खान और खनिज (विकास एवं विनियमन)/MMDR अधिनियम बनाया गया था।
- लघु खनिजों से संबंधित नीति और कानून बनाने की शक्ति पूरी तरह से राज्य सरकारों को सौंपी गई है, जबकि प्रमुख खनिजों से संबंधित नीति और कानून केंद्र सरकार के तहत खनन मंत्रालय द्वारा निपटाए जाते हैं।
- इसके अनुसरण में वर्ष 1957 का खान और खनिज (विकास एवं विनियमन)/MMDR अधिनियम बनाया गया था।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण क्या है?
- स्थापना: NGT की स्थापना अक्तूबर 2010 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट, 2010 के तहत की गई थी।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, वनों के संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के त्वरित एवं कुशल समाधान की सुविधा प्रदान करना है।
- वर्तमान में NGT की बैठक के लिये नई दिल्ली प्रमुख स्थान है, भोपाल, पुणे, कोलकाता और चेन्नई को ट्रिब्यूनल की बैठक के अन्य चार स्थानों के रूप में नामित किया गया है।
- संरचना:
- ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष इसका प्रमुख होता है जो प्रधान पीठ में बैठता है और इसमें कम-से-कम 10 लेकिन 20 से अधिक न्यायिक सदस्य और विशेषज्ञ सदस्य होते हैं।
- अध्यक्ष की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
- न्यायिक सदस्यों और विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति के लिये केंद्र सरकार द्वारा एक चयन समिति का गठन किया जाएगा।
- ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष इसका प्रमुख होता है जो प्रधान पीठ में बैठता है और इसमें कम-से-कम 10 लेकिन 20 से अधिक न्यायिक सदस्य और विशेषज्ञ सदस्य होते हैं।
- कानूनी आदेश: ट्रिब्यूनल का अधिकार क्षेत्र पर्यावरणीय अधिकारों को लागू करना, व्यक्तियों और संपत्ति को हुए नुकसान के लिये राहत, मुआवज़ा देने, पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी समस्या का समाधान करने तक विस्तृत है।
- यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित नागरिक प्रक्रिया संहिता,1908 में निर्धारित प्रक्रियात्मक नियमों द्वारा स्वतंत्र रूप से संचालित होता है।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 की अनुसूची I में उल्लिखित कानूनों में शामिल विषयों से संबंधित पर्यावरणीय क्षति के लिये राहत और मुआवज़े की मांग करने वाला कोई भी व्यक्ति अधिकरण से संपर्क कर सकता है। अनुसूची I में ये प्रावधान हैं:
- जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974
- जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977
- वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980
- वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
- सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम, 1991
- जैवविविधता अधिनियम, 2002
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी) किस प्रकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी) से भिन्न है? (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 भारत के संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान के अनुरूप बनाया गया था? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021) प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये। (2017) |