असम के मेगालिथ | 12 Apr 2022
हाल ही में पुरातत्वविदों ने 65 बड़े बलुआ पत्थर के कलशों (मेगालिथ) की पहचान की है, जिनके बारे में माना जा रहा है कि इनका इस्तेमाल असम के हसाओ ज़िले में चार स्थलों पर अनुष्ठान के लिये किया जाता है।
- इससे पूर्व वर्ष 2020 में राज्य पुरातत्त्व विभाग' (State Department of Archaeology), चेन्नई ने तमिलनाडु के इरोड ज़िले में कोडुमानल (Kodumanal) खुदाई स्थल से 250 केयर्न-सर्कल (Cairn-Circles) की पहचान की थी।
असम के मेगालिथ:
- कुछ कलश (Jars) लंबे और बेलनाकार हैं, जबकि अन्य आंशिक रूप से या पूरी तरह से ज़मीन में दबे हुए हैं।
- उनमें से कुछ तीन मीटर तक ऊंँचे और दो मीटर चौड़े थे। कुछ कलशों में सजावट के लिये नक्काशी की गई है, जबकि अन्य सादे हैं।
असम में मेगालिथ का इतिहास:
- वर्ष 1929 में असम में पहली बार ब्रिटिश सिविल सेवकों जेम्स फिलिप मिल्स और जॉन हेनरी हटन द्वारा दीमा हसाओ में छह साइट्स डेरेबोर (अब होजई डोबोंगलिंग), कोबाक, कार्तोंग, मोलोंगपा (अब मेलांगे पुरम), नडुंगलो और बोलासन (अब नुचुबंग्लो) पर कलश को देखा गया।
- वर्ष 2016 में दो और स्थलों की खोज की गई थी। वर्ष 2020 में इतिहास व पुरातत्त्व विभाग द्वारा उत्तर-पूर्वी पहाड़ी विश्वविद्यालय, शिलांग, मेघालय में चार और स्थलों की खोज की गई थी।
- एक स्थल नुचुबंग्लो में 546 कलश पाए गए जो विश्व में इस तरह की सबसे बड़ी साइट थी।
निष्कर्षों का महत्त्व:
- यद्यपि ‘कलश’ (Jars) को वैज्ञानिक रूप से दिनांकित किया जाना अभी बाकी है, शोधकर्त्ताओं ने कहा कि लाओस और इंडोनेशिया में पाए जाने वाले पत्थर के ‘कलश’ को एक साथ जोड़कर देखा जा सकता है।
- तीनों स्थलों पर पाए जाने वाले ‘कलश’ के बीच टाइपोलॉजिकल और रूपात्मक समानताएँ हैं।
- पूर्वोत्तर के अलावा भारत में और कहीं भी इसे नहीं देखा गया है, यह इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि एक समय में समान प्रकार की सांस्कृतिक प्रथा वाले लोगों के एक समूह ने लाओस और पूर्वोत्तर भारत के बीच एक ही भौगोलिक क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित किया था।
- लाओस साइट पर किये गए विश्लेषण से पता चलता है कि ‘कलश’ साइटों पर दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के अंत में स्थित थे।
- लाओस में शोधकर्त्ताओं ने कहा था कि पत्थर के ‘कलश’ और मुर्दाघर प्रथाओं के बीच एक "मज़बूत संबंध" था, जिसमें मानव कंकाल के अवशेष पाए गए, जो कि ‘कलश’ के आसपास दबे हुए थे।
- इंडोनेशिया में ‘कलश’ का कार्य अस्पष्ट है, हालाँकि कुछ विद्वान इसी तरह की मुर्दाघर की भूमिका का सुझाव देते हैं।
- असम और लाओस एवं इंडोनेशिया के बीच ‘संभावित सांस्कृतिक संबंध’ को समझने के लिये और अधिक शोध किये जाने की आवश्यकता है।
मेगालिथ/महापाषाण:
- मेगालिथ या ‘महापाषाण’ एक बड़ा प्रागैतिहासिक पत्थर है जिसका उपयोग या तो अकेले या अन्य पत्थरों के साथ संरचना या स्मारक बनाने के लिये किया गया है।
- मेगालिथ का निर्माण शवों को दफन किये जाने वाले स्थलों या स्मारक स्थलों के रूप में किया जाता था।
- पूर्व में वास्तविक दफन अवशेषों वाले स्थल जैसे- डोलमेनोइड सिस्ट (बॉक्स के आकार के पत्थर के दफन कक्ष), केयर्न सर्कल (परिभाषित परिधि वाले पत्थर के घेरे) और कैपस्टोन (मुख्य रूप से केरल में पाए जाने वाले विशिष्ट मशरूम के आकार के दफन कक्ष) है।
- नश्वर अवशेषों से युक्त कलश या ताबूत आमतौर पर टेराकोटा से बना होता था तथा मेगालिथ में मेन्हीर जैसे स्मारक स्थल शामिल हैं।
- भारत में पुरातत्त्वविदों ने लौह युग (1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व) में अधिकांश मेगालिथ का पता लगाया है, हालाँकि कुछ स्थल लौह युग से पहले 2000 ईसा पूर्व तक के हैं।
- मेगालिथ भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। अधिकांश महापाषाण स्थल प्रायद्वीपीय भारत में पाए जाते हैं, जो महाराष्ट्र (मुख्य रूप से विदर्भ में), कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में केंद्रित हैं।
Major Megalithic Sites in India