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भारतीय विरासत और संस्कृति

कोडुमानल महापाषाण कालीन स्थल

  • 23 Jun 2020
  • 4 min read

प्रीलिम्स के लिये:

कोडुमानल महापाषाण कालीन स्थल

मेन्स के लिये:

महापाषाण कालीन संस्कृति 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'राज्य पुरातत्त्व विभाग'(State Department of Archaeology), चेन्नई ने तमिलनाडु के इरोड ज़िले में कोडुमानल (Kodumanal) खुदाई स्थल से 250 केयर्न-सर्कल (Cairn-Circles) की पहचान की है।

प्रमुख बिंदु:

  • केयर्न-सर्कल प्रागैतिहासिक पत्थरों की समानांतर रैखिक व्यवस्था होती है।
  • मेगालिथ या ‘महापाषाण’ एक बड़ा प्रागैतिहासिक पत्थर है जिसका उपयोग या तो अकेले या अन्य पत्थरों के साथ संरचना या स्मारक बनाने के लिये किया गया है।
  • महापाषाण या मेगालिथ शब्द का प्रयोग उन बड़ी पत्थर की संरचनाओं का उल्लेख करने के लिये किया जाता है जिनका निर्माण शवों को दफन किये जाने वाले स्थलों या स्मारक स्थलों के रूप में किया जाता था।

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कोडुमनाल (Kodumanal):

  • यह तमिलनाडु के इरोड ज़िले में स्थित एक गाँव है। 
  • यह स्थल एक महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है। 
  • यह कावेरी की सहायक नदी नॉयल नदी (Noyyal River) के उत्तरी तट पर अवस्थित है।

कोडुमनाल से प्राप्त प्रमुख अवशेष:

  • पहली बार किसी कब्र स्थल पर 10 से अधिक बर्तन तथा कटोरे की खोज की गई है। 
  • सामान्य रूप से किसी कब्र स्थल पर तीन या चार बर्तन मिलते हैं। 

खोज का महत्त्व:

  • पत्थरों की अधिक संख्या तथा पत्थरों के बड़े आकार से यह पता चलता है कि यह कब्र एक ग्राम प्रधान या समुदाय के प्रमुख की हो सकती है।
  • इससे मेगालिथिक संस्कृति में दफनाने के बाद अपनाई जाने वाली अनुष्ठान प्रक्रिया तथा मृत्यु के बाद के जीवन संबंधी अवधारणा का पता चलता है।
  • ऐसा हो सकता है कि लोगों का ऐसा विश्वास हो कि व्यक्ति को मृत्यु के बाद एक नया जीवन मिलता है, अत: कक्षों के बाहर अनाज और अनाज से भरे कटोरे रखे गए थे।
  • आयताकार कक्षनुमा ताबूत (एक पत्थर से निर्मित छोटे ताबूत जैसा बॉक्स) पत्थर के फलकों से बना होता है तथा पूरी कब्र को पत्थरों से घेरकर बनाया जाता है।
  • स्थल से प्राप्त अन्य अवशेष:
    •  एक जानवर की खोपड़ी' 
    • मोती; 
    • ताम्र गलाने वाली इकाइयाँ; 
    • एक कार्यशाला की मिट्टी की दीवारें;
    • कुम्हार के बर्तन; 
    • तमिल ब्राह्मी लिपि के लेख।

पूर्व में किये गए उत्खनन कार्य:

  • कोडुमानल के पूर्व में किये गए उत्खनन कार्यों से पता चला है कि इस ग्राम में बहु-जातीय समूह निवास करते थे।
  • यह स्थल 5 वीं शताब्दी पूर्व से प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व तक एक व्यापार-सह-औद्योगिक केंद्र था।

स्रोत: द हिंदू

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