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किन अर्थों में महापाषाणयुगीन संस्कृति को प्रायद्वीपीय भारत के इतिहास का आधारात्मक चरण माना जा सकता है?
07 May, 2020उत्तर :
लगभग 1000 ई. पूर्व से ईसवी सन् की आरंभिक सदियों तक प्रायद्वीपीय उच्च भागों में महापाषाणिक संस्कृति के लोगों का समय माना जाता है। इसका पता हमें बड़े-बड़े पत्थरों के टुकड़ों से घेरकर बनाई गई कब्रों यानी महापाषाण से चलता है। चूँकि महापाषाणिक संस्कृति दक्षिण भारत में प्रागैतिहासिक युग से ऐतिहासिक युग में शुरुआत का समय था, जिसके कारण इसे महाद्वीपीय भारत के इतिहास का आधारात्मक चरण भी कहा जा सकता है।
- महापाषाणिक कब्रों में कई तरह के मृदभांडों, विशेषकर काले व लाल मृदभांड मिलना तत्कालीन प्रायद्वीपीय भारत में शिल्प कार्यों की शुरुआत है। इसने आगे चलकर प्रायद्वीपीय भारत की मृदभांड निर्माण तकनीक को प्रोत्साहित किया।
- प्रायद्वीपीय भारत में सबसे पहले महापाषाणिक लोगों ने ही लोहे का उपयोग एवं प्रसार किया। उनके महापाषाणिक हथियारों में लोहे के बाण, बरछे की नोक, फावड़े, हँसिया और त्रिशूल मिले हैं। हालाँकि इनमें शिकार के हथियार अधिक है, फिर भी लोहे के ज्ञान ने आगे चलकर कावेरी डेल्टा एवं अन्य प्रायद्वीपीय भागों में कृषि गतिविधियों और उत्पादन में वृद्धि की।
- महापाषाणिक लोगों ने प्रायद्वीपीय भाग में खेती की शुरुआत की ओर ये लोग धान एवं रागी उपजाते थे। कृषि के कारण ये गाँवों में स्थायी रूप से निवास करने लगे एवं उत्तरी क्षेत्र के लोगों से इनके संपर्क में वृद्धि हुई।
- महापाषाणयुगीन संस्कृति के लोगों ने दक्षिण भारत में नवीन राज्यों के निर्माण और सभ्यता के उदय में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। ईसा सन् के आरंभ के साथ या संभवत: इससे कुछ पहले ये लोग ऊँची भूमि से उतरकर उर्वर नदी घाटियों में आए और कछारी डेल्टा को कृषि योग्य बनाया। कालांतर में उत्तरी भारत से आने वाले व्यापारी, विजेता और धर्मप्रचारक लोगों के साथ आई भौतिक संस्कृति के संगम से अनेक नगरों का निर्माण हुआ तथा उनके बीच भी विभिन्न सामाजिक वर्गों का उदय हुआ।
- इनके अलावा कार्नेलियन मोतियों और लापीस लाजुली, ताँबे तथा कांस्य की वस्तुओं के मिलने से यह संकेत मिलता है कि महापाषाण काल में व्यापार उन्नत स्थिति में था। रोमन सिक्कों और मृदभांडों का मिलना ऐतिहासिक काल की शुरुआत की ओर संकेत करता है।
इस प्रकार महापाषाणयुगीन संस्कृति प्रायद्वीपीय भारत का प्रागैतिहासिक से ऐतिहासिक काल की ओर ले जाने वाली संस्कृति थी। इसने आगे चलकर प्रायद्वीपीय भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक विकास को प्रभावित किया। इसी कारण इसे निस्संदेह प्रायद्वीपीय भारत के इतिहास का आधारात्मक चरण कहा जा सकता है।