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केरल में महापाषाणकालीन स्थल

  • 20 Sep 2024
  • 5 min read

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल में वर्षा जल संचयन परियोजना के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में महापाषाणकालीन कलशों की खोज हुई। 

  • यह खोज नेनमारा वन प्रभाग में कुंडलिक्कड़ पहाड़ी (जिसे मालमपल्ला या मलप्पुरम पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है) पर हुई।
  • कलश दफन में मृत व्यक्ति के अवशेषों को मृद्भांड या कलश में रखकर दफना दिया जाता था

महापषाणकालीन कलशों के दफन स्थल की खोज से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?

  • पारंपरिक कलश अंत्येष्टि: पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित अंत्येष्टि स्थलों में कब्रों के ढेर, कब्रगाह, तथा पाषाणयुक्त अंत्येष्टि स्थल पाए गए हैं ।
    • 2,500 वर्ष से भी अधिक प्राचीन इन कलशों की उपस्थिति, पहाड़ी स्थल के लिये दुर्लभ है। 
  • कलश की विशेषताएँ: इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के मृद्भांडों के टुकड़े पाए गए, जिनमें काले मृद्भांड, लाल मृद्भांड तथा काले और लाल मृद्भांड शामिल हैं
    • हालाँकि एक उल्लेखनीय खोज में उंगलियों के निशान वाला एक कलश, तथा लघु मृद्भांड शामिल हैं जिन पर डोरी के निशान बने हुए हैं, जो मृद्भांडों में प्रयुक्त विशिष्ट सजावटी तकनीकों का संकेत देते हैं।
    • पहाड़ी के शीर्ष पर छेनी के निशान पाए गए, जिनसे यह संकेत मिलता है कि गोलाकार पत्थरों को छेनी का उपयोग करके बनाया गया था। 
      • इससे इस क्षेत्र में दफन स्थल के निर्माण के लिये अधिक संगठित दृष्टिकोण का पता चलता है।
  • खोज का महत्त्व: यह खोज मध्यपाषाण काल ​​(इस स्थल पर सूक्ष्मपाषाण काल ​​की उपस्थिति के कारण) और केरल में लौह युग के बीच संबंधों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है।

महापषाणकालीन संस्कृति क्या है?

  • महापषाण का परिचय: महापषाण से तात्पर्य बड़े पत्थरों से बने स्मारकों से है। अधिकतर मामलों में महापषाण निवास क्षेत्रों से दूर स्थित दफन स्थल हैं।
  • महापषाण का कालक्रम: ब्रह्मगिरी उत्खनन के आधार पर दक्षिण भारत में महापषाणकालीन संस्कृतियों का काल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व और पहली शताब्दी ईस्वी के बीच माना जाता है। 
  • भारत में महापषाण का भौगोलिक वितरण: महापषाणकालीन संस्कृति का मुख्य संकेंद्रण दक्कन में है, विशेष रूप से गोदावरी नदी के दक्षिण में
    • हालाँकि इसके अवशेष पंजाब के मैदानी भाग, सिंधु-गंगा बेसिन, राजस्थान, गुजरात और जम्मू एवं कश्मीर के बुर्ज़होम में भी पाए गए हैं।
    • इसके महत्त्वपूर्ण स्थलों में सरायकला (बिहार), खेड़ा (उत्तर प्रदेश), देवसा (राजस्थान) आदि शामिल हैं।
  • दक्षिण भारत में लौह का उपयोग: दक्षिण भारत में महापषाण काल एक पूर्ण लौह कालीन संस्कृति थी, जहाँ लौह प्रौद्योगिकी के लाभों को पूर्ण रूप से उपयोग किया गया था। 
    • विदर्भ के जूनापानी से लेकर तमिलनाडु के आदिचनल्लूर तक लौह वस्तुएँ जैसे शस्त्रों और कृषि उपकरण पाए गए।
  • निर्वाह पद्धति: वे कृषि, शिकार, मत्स्याग्रह और पशुपालन के संयोजन पर जीवन यापन करते थे ।
  • शैल चित्र: महापाषाण स्थलों पर पाए गए शैल चित्रों में शिकार, पशु आक्रमण और सामूहिक नृत्य के दृश्य दर्शाए गए हैं

नोट: 

  • मध्य पाषाणकाल लगभग 12,000 वर्ष पूर्व से आरंभ होकर लगभग 10,000 वर्ष पूर्व तक चला। इस काल में पाए जाने वाले पत्थर के औज़ार आमतौर पर छोटे होते हैं, इन्हें माइक्रोलिथ अथवा लघुपाषाण कहा जाता है । 
  • लघुपाषाण को संभवतः हड्डी या काष्ठ हैंडल पर आरी और दरांती जैसे उपकरण बनाए जाते थे । 

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