महापाषाणकालीन पदचिह्न और मानव आकृति | 23 Nov 2024
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल के मडिक्कई में प्रागैतिहासिक महापाषाणकालीन पदचिह्नों के 24 जोड़े और एक मानव आकृति की खोज की गई है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह मेगालिथिक/महापाषाण काल के हैं।
निष्कर्षों की मुख्य बातें क्या हैं?
- सांस्कृतिक महत्त्व: सभी पदचिह्न पश्चिम की ओर इशारा करते हैं, जो संभवतः उनके प्रतीकात्मक महत्त्व को दर्शाते हैं।
- पुरातत्त्वविदों का मानना है कि ये मृत व्यक्तियों की आत्माएँ हैं, जबकि स्थानीय निवासी इन्हें देवी का प्रतीक मानते हैं।
- आयु: अनुमान है कि यह 2,000 वर्ष से अधिक पुराना है, जो केरल के ऐतिहासिक आख्यान को गहराई प्रदान करता है।
- अन्य खोजें: यह कर्नाटक के उडुपी ज़िले के अवलाक्की पेरा में पाई गई प्रागैतिहासिक रॉक कला से मिलती जुलती है।
- केरल में प्रागैतिहासिक खोजों में शामिल हैं:
- कासरगोड में एरिकुलम वलियापारा में मंदिर की सजावट।
- नीलेश्वरम में बाघ की नक्काशी चल रही है।
- चीमेनी अरियित्तापारा में मानव आकृतियाँ।
- कन्नूर में एट्टुकुदुक्का में बैल की आकृतियाँ।
- वायनाड में एडक्कल गुफाओं की नक्काशी।
- केरल में प्रागैतिहासिक खोजों में शामिल हैं:
नोट: प्रागैतिहासिक काल का तात्पर्य लिखित अभिलेखों के अस्तित्व से पहले के मानव इतिहास की अवधि से है। इसमें आरंभिक मानव अस्तित्व से लेकर लेखन प्रणालियों के आगमन तक का समय शामिल है, जो आमतौर पर 3000 ईसा पूर्व से पहले का है।
महापाषाण संस्कृति क्या है?
- महापाषाण संस्कृति के बारे में: महापाषाण संस्कृति एक प्रागैतिहासिक सांस्कृतिक परंपरा को संदर्भित करती है, जिसकी विशेषता बड़े पत्थर की संरचनाओं या स्मारकों का निर्माण है, जिन्हें महापाषाण/मेगालिथ के रूप में जाना जाता है।
- महापाषाणों का कालक्रम: ब्रह्मगिरी उत्खनन से दक्षिण भारत की महापाषाण संस्कृतियों का काल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से पहली शताब्दी ईस्वी के बीच का पता चलता है।
- भौगोलिक वितरण: महापाषाण संस्कृति का मुख्य संकेंद्रण दक्कन में है, विशेष रूप से गोदावरी नदी के दक्षिण में।
- यह पंजाब के मैदानों, सिंधु-गंगा बेसिन, राजस्थान, गुजरात और जम्मू एवं कश्मीर के बुर्जहोम में पाया गया है, जिनमें सेराइकला (बिहार), खेड़ा (उत्तर प्रदेश) और देवसा (राजस्थान) प्रमुख स्थल हैं।
- लोहे का उपयोग: दक्षिण भारत में मेगालिथिक काल एक पूर्ण विकसित लौह युग संस्कृति का प्रतीक है, जहाँ लौह प्रौद्योगिकी का पूर्ण उपयोग किया गया था।
- इसका प्रमाण विदर्भ के जूनापानी से लेकर तमिलनाडु के आदिचनल्लूर तक मिले लौह हथियारों और कृषि उपकरणों से मिलता है।
- शैल चित्र: महापाषाण स्थलों पर पाए गए शैल चित्रों में शिकार, पशु आक्रमण और समूह नृत्य के दृश्य दर्शाए गए हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)Q. निम्नलिखित युग्मों पर विचार करें: (2021) (ऐतिहासिक स्थान) (प्रसिद्ध)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |