प्रारंभिक परीक्षा
तिरंगे के रंग में चमका मार्तंड सूर्य मंदिर
- 17 Aug 2024
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स्रोत: इकनॉमिक टाइम्स
स्वतंत्रता दिवस समारोह के उपलक्ष्य में जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में स्थित मार्तंड सूर्य मंदिर भारतीय ध्वज के तीन रंगों में प्रकाशित हुआ।
- इस सजावट ने स्थानीय लोगों और पर्यटकों दोनों में गर्व व खुशी की भावना उत्पन्न की है, जिससे बड़ी संख्या में लोग इस ऐतिहासिक आयोजन की ओर आकर्षित हुए हैं।
मार्तंड सूर्य मंदिर के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- निर्माण: मार्तंड मंदिर का निर्माण लगभग 1200 वर्ष पूर्व कार्कोट राजवंश के राजा ललितादित्य मुक्तापीड द्वारा किया गया था, जिन्होंने 725 ई. से 753 ई. तक कश्मीर पर शासन किया था।
- यह मंदिर सूर्य देवता मार्तंड को समर्पित था और इसकी वास्तुकला में मिस्र, यूनानी एवं गांधार शैलियों का प्रभाव देखने को मिलता है।
- मंदिर की दीवारें बड़े-बड़े धूसर पत्थरों से बनी थीं तथा इसके आँगन में नदी का जल भरा जाता था जो कश्मीरी वास्तुकला में इसकी भव्यता और महत्त्व का प्रतीक है।
- ऐतिहासिक संदर्भ: मंदिर का इतिहास 12वीं शताब्दी में कल्हण द्वारा लिखित राजतरंगिणी में वर्णित है।
- वास्तुकला विशेषताएँ: मंदिर में तीन अलग-अलग कक्ष थे अर्थात् मंडप, गर्भगृह और अंतराला, जो इसे कश्मीर के विविध मंदिरों में अद्वितीय बनाते हैं।
- खंडहरों से पता चलता है कि मंदिर 84 स्तंभों के एक समूह से घिरा हुआ था, जो कश्मीरी मंदिर वास्तुकला की एक विशेषता है।
- उस समय असामान्य रूप से निर्माण में चूने के गारे का प्रयोग किया जाता था जो आप्रवासी बीज़ान्टिन वास्तुकारों की संलिप्तता का संकेत देता है।
- सांस्कृतिक समावेशन: मार्तंड मंदिर की वास्तुकला में शास्त्रीय ग्रीको-रोमन, बौद्ध-गांधार और उत्तर भारतीय शैलियों का संगम दिखता है, जो विभिन्न संस्कृतियों एवं साम्राज्यों के साथ कश्मीर के ऐतिहासिक संबंधों को दर्शाता है।
- हर्ष के साथ संबंध: प्रथम लोहारा राजवंश के राजा हर्ष (1089 ई. से 1101 ई.) ने खज़ाने के लिये मंदिरों को लूटा था, लेकिन उन्होंने मार्तंड मंदिर को छोड़ दिया, जबकि अन्य मंदिरों को उन्होंने धन के लिये विकृत कर दिया था।
- विनाश: ऐसा माना जाता है कि मंदिर को आंशिक रूप से सुल्तान सिकंदर शाह मिरी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था, वर्ष जिसने वर्ष 1389 से 1413 तक कश्मीर पर शासन किया था, हालाँकि कुछ इतिहासकार इस तथ्य पर विवाद जताते हैं।
- वर्तमान मंदिर आंशिक रूप से संरक्षित है, इसकी प्रभावशाली धूसर दीवारें तथा इस पर नक्काशी द्वारा बनाई गई देवताओं की आकृतियाँ अभी भी दिखाई देते हैं।
- वर्तमान स्थिति: मंदिर के अवशेषों को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 1990 के दशक के उग्रवाद के दौरान भी “राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक” के रूप में संरक्षित किया गया था।
कश्मीरी मंदिर वास्तुकला
- कश्मीरी मंदिर वास्तुकला की अपनी अनूठी विशेषताएँ हैं जो स्थानीय भौगिलिकी अवस्थिति के अनुरूप हैं तथा अपनी उत्कृष्ट पत्थर की नक्काशी के लिये प्रसिद्ध हैं।
- महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्गों पर स्थित होने के कारण इसकी स्थापत्य शैली कई विदेशी स्रोतों से प्रेरित है।
- कार्कोट राजवंश और उत्पल राजवंश के शासकों के अधीन मंदिर निर्माण का कार्य अत्यधिक उत्कर्ष पर था।
- कश्मीर वास्तुकला शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- तिपतिया/ट्रेफोइल मेहराब (गांधार प्रभाव)
- सेलुलर लेआउट और संलग्न आँगन
- सीधे किनारों वाली पिरामिडनुमा छत
- स्तंभ वाली दीवारें (यूनानी प्रभाव)
- त्रिकोणीय पेडिमेंट (यूनानी प्रभाव)
- अपेक्षाकृत अधिक संख्या में सीढ़ियाँ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा सूर्य मंदिर के लिये प्रसिद्ध है? (2017)
निम्नलिखित का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) |