भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये ऐतिहासिक फैसले | 27 Jan 2025

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950) मामले ने अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत स्वतंत्र भाषण की रक्षा करने, राज्य की मनमानी शक्तियों पर अंकुश लगाने और भारत में प्रेस की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों को आकार देने के लिये एक ऐतिहासिक मिसाल कायम की।

रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य, 1950 मामले के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 1950 में मद्रास सरकार ने पुलिस हिंसा की रिपोर्टिंग करने के कारण साप्ताहिक पत्रिका क्रॉसरोड्स पर मद्रास लोक व्यवस्था अनुरक्षण अधिनियम के तहत प्रतिबंध लगा दिया, जिसके कारण 22 कम्युनिस्ट मारे गए, इस प्रतिबंध को बाद में उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई।
  • उच्चतम न्यायालय का फैसला:
    • मई 1950 में उच्चतम न्यायालय ने मद्रास लोक व्यवस्था अनुरक्षण अधिनियम को असंवैधानिक करार दे दिया, जिसमें कहा गया कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर प्रतिबंधों को संकीर्ण रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये और इसे "राज्य की सुरक्षा" से जोड़ा जाना चाहिये। 
      • न्यायालय ने राज्य की मनमाना रूप से सेंसर करने की शक्ति को सीमित करते हुए स्पष्ट किया कि "लोक व्यवस्था" को "राज्य सुरक्षा" के बराबर नहीं माना जा सकता। 

नोट:

भारत में प्रेस की स्वतंत्रता से संबंधित अन्य महत्त्वपूर्ण मामले कौन-से हैं?

  • बृज भूषण बनाम दिल्ली राज्य, 1950: बृज भूषण मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने ऑर्गनाइज़र पत्रिका पर लगाए गए समाचार पत्र की पूर्व सेंसरशिप की आवश्यकता वाले प्रावधान को अमान्य कर दिया और स्पष्ट किया कि इस प्रकार की सेंसरशिप वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
    • सर्वोच्च न्यायालय अभिनिर्धारित किया कि मूल अधिकार पर प्रतिबंध केवल तभी लगाया जाना चाहिये जब लोक व्यवस्था को स्पष्ट खतरा हो या हिंसा को उकसाया जा रहा हो
    • इस निर्णय ने इस सिद्धांत को पुष्ट किया कि प्रकाशन पर कोई भी पूर्व रोक असंवैधानिक है।
  • सकाल पेपर्स लिमिटेड बनाम भारत संघ, 1961: सर्वोच्च न्यायालय ने समाचार पत्र (मूल्य और पृष्ठ) अधिनियम, 1956 को रद्द कर दिया, जिसके अंतर्गत समाचार पत्रों के मूल्य निर्धारण, विज्ञापन स्थान और सपलिमेंट संबंधी प्रतिबंध लगाए गए थे।
    • न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि ये प्रतिबंध अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन हैं, क्योंकि इनका अनुचित रूप से प्रेस की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है।
  • बेनेट कोलमैन एंड कंपनी बनाम भारत संघ, 1973: इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने उस न्यूज़प्रिंट नियंत्रण आदेश को अमान्य कर दिया, जिसके तहत एक समाचार पत्र द्वारा प्रकाशित किये जाने वाले पृष्ठों की संख्या पर प्रतिबंध लगाया गया था।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि इस तरह के प्रतिबंध अनुच्छेद 19(2) के तहत अनुचित होने के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हैं।
  • इंडियन एक्सप्रेस न्यूज़पेपर्स बनाम भारत संघ, 1985: वर्ष 1981 में भारत सरकार ने न्यूज़प्रिंट पर सीमा शुल्क में भारी वृद्धि की, जिससे छोटे समाचार पत्र और क्षेत्रीय प्रकाशन प्रभावित हुए। 
    • इसे समाचार पत्रों के संचालन को आर्थिक रूप से कठिन बनाकर प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के एक अप्रत्यक्ष प्रयास के रूप में देखा गया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि प्रेस की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक अनिवार्य पहलू है तथा स्वतंत्र अभिव्यक्ति को बाधित करने के साधन के रूप में समाचार पत्रों पर अत्यधिक कराधान को अनुचित ठहराया तथा इस बात पर बल दिया कि कोई भी प्रतिबंध अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित होना चाहिये।
  • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ, 2015: श्रेया सिंघल मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने IT अधिनियम की धारा 66A को असंवैधानिक मानते हुए रद्द कर दिया, क्योंकि यह अस्पष्ट और अत्यधिक व्यापक थी, जिससे अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत स्वतंत्र भाषण के अधिकार का उल्लंघन हुआ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. नौवीं अनुसूची को भारत के संविधान में किसके प्रधानमंत्रित्त्व काल में पेश किया गया था? (2019) 

(a) जवाहरलाल नेहरू
(b) लाल बहादुर शास्त्री
(c) इंदिरा गांधी
(d) मोरारजी देसाई

उत्तर: (a)