प्रारंभिक परीक्षा
कत्थक
- 14 Jan 2022
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हाल ही में मशहूर कत्थक डांसर पंडित मुन्ना शुक्ला का निधन हो गया।
- उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में नृत्य-नाटक शान-ए-मुगल, इंदर सभा, अमीर खुसरो, अंग मुक्ति, अन्वेषा, बहार, त्राटक, क्रौंच बढ़, धुनी शामिल हैं।
- नृत्य की दुनिया में उनके योगदान को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2006), साहित्य कला परिषद पुरस्कार (2003) और सरस्वती सम्मान (2011) से सम्मानित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- कत्थक शब्द का उदभव कथा शब्द से हुआ है जिसका शाब्दिक अर्थ है कथा कहना। यह नृत्य मुख्य रूप से उत्तरी भारत में किया जाता है।
- यह मुख्य रूप से एक मंदिर या गाँव का प्रदर्शन था जिसमें नर्तक प्राचीन ग्रंथों की कहानियाँ सुनाते थे।
- यह भारत के शास्त्रीय नृत्यों में से एक है।
- विकास:
- पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में भक्ति आंदोलन के प्रसार के साथ कत्थक नृत्य एक विशिष्ट विधा के रूप में विकसित हुआ।
- राधा-कृष्ण की किंवदंतियों को सर्वप्रथम ‘रास लीला’ नामक लोक नाटकों में प्रयोग किया गया था, जिसमें बाद में कत्थक कथाकारों के मूल इशारों के साथ लोक नृत्य को भी जोड़ा गया।
- कत्थक को मुगल सम्राटों और उनके रईसों के अधीन दरबार में प्रदर्शित किया जाता था, जहाँ इसने अपनी वर्तमान विशेषताओं को प्राप्त कर लिया और एक विशिष्ट शैली के रूप में विकसित हुआ।
- अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के संरक्षण में यह एक प्रमुख कला रूप में विकसित हुआ।
- नृत्य शैली:
- आमतौर पर एक एकल कथाकार या नर्तक छंदों का पाठ करने हेतु कुछ समय के लिये रुकता है और उसके बाद शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से उनका प्रदर्शन होता है।
- इस दौरान पैरों की गति पर अधिक ध्यान दिया जाता है; ‘एंकल-बेल’ पहने नर्तकियों द्वारा शरीर की गति को कुशलता से नियंत्रित किया जाता है और सीधे पैरों से प्रदर्शन किया जाता है।
- ‘तत्कार’ कत्थक में मूलतः पैरों की गति ही शामिल होती है।
- कत्थक शास्त्रीय नृत्य का एकमात्र रूप है जो हिंदुस्तानी या उत्तर भारतीय संगीत से संबंधित है।
- कुछ प्रमुख नर्तकों में बिरजू महाराज, सितारा देवी शामिल हैं।
- भारत में अन्य शास्त्रीय नृत्य
- तमिलनाडु- भरतनाट्यम
- कथकली- केरल
- कुचिपुड़ी- आंध्रप्रदेश
- ओडिसी- ओडिशा
- सत्रिया- असम
- मणिपुरी- मणिपुर
- मोहिनीअट्टम- केरल
भक्ति आंदोलन:
- भक्ति आंदोलन का विकास सातवीं और नौवीं शताब्दी के बीच तमिलनाडु में हुआ।
- यह नयनार (शिव के भक्त) और अलवर (विष्णु के भक्त) की भावनात्मक कविताओं में परिलक्षित होता था।
- ये संत धर्म को मात्र औपचारिक पूजा के रूप में नहीं बल्कि पूजा करने वाले और उपासक के मध्य प्रेम पर आधारित एक प्रेम बंधन के रूप में देखते थे।
- उन्होंने स्थानीय भाषाओं, तमिल और तेलुगू में लिखा और इसलिये वे कई लोगों तक पहुँचने में सक्षम थे।
- समय के साथ दक्षिण के विचार उत्तर की ओर बढ़े लेकिन यह बहुत धीमी प्रक्रिया थी।
- भक्ति विचारधारा को फैलाने का एक अधिक प्रभावी तरीका स्थानीय भाषाओं का उपयोग था। भक्ति संतों ने अपने छंदों की रचना स्थानीय भाषाओं में की।
- उन्होंने व्यापक स्तर पर दर्शकों के लिये उन्हें समझने योग्य बनाने हेतु संस्कृत में अनुवाद भी किया। उदाहरणतः मराठी में ज्ञानदेव, हिंदी में कबीर, सूरदास और तुलसीदास, असमिया को लोकप्रिय बनाने वाले शंकरदेव, बंगाली में अपना संदेश फैलाने वाले चैतन्य और चंडीदास, हिंदी में मीराबाई और राजस्थानी शामिल हैं।