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भारतीय नृत्यकला (भाग-1)

  • 06 May 2019
  • 7 min read
  • अंग-प्रत्यंग एवं मनोभावों के साथ की गई नियंत्रित यति-गति को नृत्य कहा जाता है।
  • प्रागैतिहासिक गुफा-चित्रों से लेकर आधुनिक कला मर्मज्ञों, सभी ने गति और भावनाओं के प्रदर्शन को अपनी कलाओं में बाँधने का प्रयास किया है।
  • भरत मुनि (द्वितीय शताब्दी इसा पूर्व) का ‘नाट्यशास्त्र’ शास्त्रीय नृत्य पर प्राचीन ग्रंथ के रूप में उपलब्ध है, जो नाटक, नृत्य और संगीत कला की स्रोत-पुस्तक है।
  • भारतीय नृत्यकला को दो वर्गों में बाँटा जाता है- (i) शास्त्रीय नृत्य (ii) लोक एवं जनजातीय नृत्य।
  • शास्त्रीय नृत्य जहाँ शास्त्र-सम्मत एवं शास्त्रानुशासित होता है, वहीं लोक एवं जनजातीय नृत्य विभिन्न राज्यों के स्थानीय एवं जनजातीय समूहों द्वारा संचालित होते हैं और इनका कोई निर्धारित नियम-व्याकरण या अनुशासन नहीं होता।
  • भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रमुख शैलियाँ 8 हैं- कत्थक, भरतनाट्यम, कत्थकली, मणिपुरी, ओडिसी, कुचीपुड़ी, सत्रीया एवं मोहिनीअट्टम।
  • शास्त्रीय नृत्यों में तांडव (शिव) और लास्य (पार्वती) दो प्रकार के भाव परिलक्षित होते हैं।
शास्त्रीय नृत्य  भाव
भरतनाट्यम (तमिलनाडु) लास्य भाव
कत्थकली (केरल)  तांडव भाव
मणिपुरी (मणिपुर) लास्य तांडव
ओडिसी (ओडिशा)  लास्य भाव
कुचीपुड़ी (आंध्र प्रदेश)  लास्य भाव
मोहिनीअट्टम (केरल) लास्य भाव
सत्रीया (असम)  लास्य भाव
कत्थक (उत्तर प्रदेश, जयपुर ) तांडव लास्य


भरतनाट्यम (तमिलनाडु)

  • भरतमुनि के नाट्यशास्त्र से जन्मी इस नृत्य शैली का विकास तमिलनाडु में हुआ।
  • मंदिरों में देवदासियों द्वारा शुरू किये गए इस नृत्य को 20वीं सदी में रुक्मिणी देवी अरुंडेल और ई. कृष्ण अय्यर के प्रयासों से पर्याप्त सम्मान मिला।
  • नंदिकेश्वर द्वारा रचित ‘अभिनय दर्पण’ भरतनाट्यम के तकनीकी अध्ययन हेतु एक प्रमुख स्रोत है।
  • भरतनाट्यम नृत्य के संगीत वाद्य मंडल में एक गायक, एक बाँसुरी वादक, एक मृदंगम वादक, एक वीणा वादक और एक करताल वादक होता है।
  • भरतनाट्यम नृत्य के कविता पाठ करने वाले व्यक्ति को ‘नडन्न्वनार’ कहते हैं।
  • भरतनाट्यम में शारीरिक क्रियाओं को तीन भागों में बाँटा जाता है-समभंग, अभंग और त्रिभंग।
  • इसमें नृत्य क्रम इस प्रकार होता है- आलारिपु (कली का खिलना), जातीस्वरम् (स्वर जुड़ाव), शब्दम् (शब्द और बोल), वर्णम् (शुद्ध नृत्य और अभिनय का जुड़ाव), पदम् (वंदना एवं सरल नृत्य) तथा तिल्लाना (अंतिम अंश विचित्र भंगिमा के साथ)।
  • भरतनाट्यम एकल स्त्री नृत्य है।
  • इस नृत्य के प्रमुख कलाकारों में पद्म सुब्रह्मण्यम, अलारमेल वल्ली, यामिनी कृष्णमूर्ति, अनिता रत्नम, मृणालिनी साराभाई, मल्लिका साराभाई, मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई, सोनल मानसिंह, वैजयंतीमाला, स्वप्न सुंदरी, रोहिंटन कामा, लीला सैमसन, बाला सरस्वती आदि शामिल हैं।

कत्थकली (केरल)

  • कत्थकली अभिनय, नृत्य और संगीत तीनों का समन्वय है।
  • यह एक मूकाभिनय है जिसमें हाथ के इशारों और चेहरे की भावनाओं के सहारे अभिनेता अपनी प्रस्तुति देता है।
  • इस नृत्य के विषयों को रामायण, महाभारत और हिन्दू पौराणिक कथाओं से लिया जाता है तथा देवताओं या राक्षसों को दर्शाने के लिये अनेक प्रकार के मुखौटे लगाए जाते हैं।
  • केरल के सभी प्रारंभिक नृत्य और नाटक जैसे- चकइरकोथू, कोडियाट्टम, मुडियाअट्टू, थियाट्टम, थेयाम, सस्त्राकली, कृष्णाअट्टम तथा रामाअट्टम आदि कत्थकली की ही देन हैं।
  • इसे मुख्यत: पुरुष नर्तक ही करते हैं, जैसे - मकुंद राज, कोप्पन नायर, शांता राव, गोपीनाथन कृष्णन, वी.एन. मेनन आदि।

कुचीपुड़ी (आंध्र प्रदेश)

  • आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कुचीपुड़ी नामक गाँव है जहाँ के द्रष्टा तेलुगू वैष्णव कवि सिद्धेन्द्र योगी ने यक्षगान के रूप में कुचीपुड़ी शैली की कल्पना की।
  • भामाकल्पम् और गोलाकल्पम् इससे जुड़ी नृत्य नाटिकाएँ हैं।
  • कुचीपुड़ी में स्त्री-पुरुष दोनों नर्तक भाग लेते हैं और कृष्ण-लीला की प्रस्तुति करते हैं।
  • कुचीपुड़ी में पानी भरे मटके को अपने सिर पर रखकर पीतल की थाली में नृत्य करना बेहद लोकप्रिय है।
  • इस नृत्यशैली के प्रमुख नर्तकों में भावना रेड्डी, यामिनी रेड्डी, कौशल्या रेड्डी, राजा एवं राधा रेड्डी आदि शामिल हैं।

मोहिनीअट्टम (केरल)

  • यह एकल महिला द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला ऐसा नृत्य है, जिसमें भरतनाट्यम तथा कत्थकली दोनों के कुछ तत्त्व शामिल हैं।
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने भस्मासुर से शिव की रक्षा हेतु मोहिनी रूप धारण कर यह नृत्य किया था।
  • मोहिनीअट्टम की प्रस्तुति चोलकेतु, वर्णम, पद्म, तिल्लाना, कुमी और स्वर के रूप में होती है।
  • मोहिनीअट्टम नृत्य को पुनर्जीवन प्रदान करने में तीन लोगों की भूमिका महत्त्वपूर्ण मानी जाती है- स्वाति थिरूनल, राम वर्मा, वल्लतोल नारायण मेमन (केरल मंडलम संस्था के संस्थापक) और कलामंडलम कल्याणकुट्टी अम्मा (द मदर ऑफ मोहिनीअट्टम)।
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