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कालाज़ार

  • 28 Feb 2024
  • 8 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

भारत ने कालाज़ार को ख़त्म करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की, पिछले वर्षों की तुलना में वर्ष 2023 में प्रति 10,000 जनसंख्या पर एक से भी कम मामले सामने आए।

नोट:

  • भारत में अभी तक कालाज़ार का उन्मूलन नहीं हुआ है लेकिन अपने उन्मूलन लक्ष्य की दिशा में भारत ने पर्याप्त प्रगति की है।
    • कालाज़ार उन्मूलन के लिये भारत का प्रारंभिक लक्ष्य वर्ष 2010 था, जिसे बाद में वर्ष 2015, 2017 और फिर वर्ष 2020 तक बढ़ा दिया गया था।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत में उप-ज़िला (ब्लॉक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) स्तर पर प्रति 10,000 लोगों पर 1 से कम मामले होने के कारण कालाज़ार के उन्मूलन को परिभाषित करता है। लक्ष्य प्राप्त करने के बाद, कालाज़ार उन्मूलन प्रमाणन के लिये उन्मूलन को 3 वर्षों तक जारी रखा जाना है।
    • यह देखते हुए कि भारत कालाज़ार उन्मूलन के लिये कम-से-कम चार बार समय-सीमा से चूक गया है, भारत को WHO प्रमाणन प्राप्त करने के लिये अगले 3 वर्षों तक इस गति को बनाए रखने की आवश्यकता होगी।
  • वर्ष 2023 में भारत का पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश, सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में कालाज़ार का उन्मूलन करने के लिये WHO द्वारा मान्यता प्राप्त पहला देश था।

कालाज़ार के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • कालाज़ार (विसेरल लीशमैनियासिस), जिसे ब्लैक फीवर भी कहा जाता है, एक घातक बीमारी है जो जीनस लीशमैनिया के प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होती है।
  • लक्षण:
    • इसमें बुखार के अनियमित दौरे, वज़न में कमी, प्लीहा और यकृत का बढ़ना तथा एनीमिया शामिल हैं।
  • प्रसार:
    • अधिकांश मामले ब्राज़ील, पूर्वी अफ्रीका और भारत में होते हैं। अनुमान है कि विश्व में प्रतिवर्ष विसेरल लीशमैनियासिस (VL) के 50,000 से 90,000 नए मामले सामने आते हैं, जिनमें से केवल 25-45% ही WHO को रिपोर्ट किये जाते हैं। यदि समय पर उपचार नहीं किया गया तो यह रोग मृत्यु का कारण बन सकता है।
  • संचरण:
    • लीशमैनिया परजीवी संक्रमित मादा सैंडफ्लाई के काटने से फैलते हैं, जो अंडे के उत्पादन के लिये रक्त का सेवन करती हैं। मनुष्यों सहित 70 से अधिक पशु प्रजातियों में ये परजीवियाँ पाई जाती हैं।
  • प्रमुख जोखिम कारक:
    • गरीबी, खराब आवास और स्वच्छता।
    • आहार में आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी होती है।
    • उच्च-संचरण क्षेत्रों में आवाजाही।
    • शहरीकरण, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन।
  • निदान और उपचार:
    • विसेरल लीशमैनियासिस के संदिग्ध मामलों में तत्काल चिकित्सीय ध्यान देने की आवश्यकता होती है। निदान में पैरासिटोलॉजिकल या सीरोलॉजिकल परीक्षणों के साथ संयुक्त नैदानिक ​​​​संकेत शामिल होते हैं।
      • यदि इसका उपचार न किया जाए तो 95% मामलों में यह घातक हो सकता है।
  • रोकथाम एवं नियंत्रण:
    • रोग की व्यापकता को कम करने के साथ-साथ विकलांगता तथा मृत्यु को रोकने के लिये शीघ्र निदान एवं त्वरित उपचार महत्त्वपूर्ण हैं।
    • वेक्टर नियंत्रण, जैसे कि कीटनाशक स्प्रे एवं कीटनाशक उपचारित जाल का उपयोग करने के साथ सैंडफ्लाई से बचाव आदि के माध्यम से संचरण को कम करने में सहायता प्राप्त होती है।
    • महामारी तथा उच्च मृत्यु दर मामलों एवं रोग पर कार्रवाई के लिये प्रभावी निगरानी महत्त्वपूर्ण है।
    • प्रभावी नियंत्रण के लिये सामुदायिक शिक्षा एवं हितधारकों के साथ सहयोग सहित सामाजिक लामबंदी तथा मज़बूत भागीदारी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • कालाज़ार पर नियंत्रण हेतु भारत के प्रयास:
    • भारत सरकार ने वर्ष 1990-91 में एक केंद्र प्रायोजित कालाज़ार नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया, जिसे बाद में वर्ष 2015 में संशोधित किया गया।
    • राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP), 2003 वेक्टर जनित रोगों जैसे मलेरिया, लिम्फैटिक फाइलेरिया, कालाज़ार एवं चिकनगुनिया की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये एक व्यापक कार्यक्रम है।
    • हालिया प्रयास: 
      • सैंडफ्लाई प्रजनन स्थलों को कम करने के उद्देश्य से कठोर इनडोर अवशिष्ट छिड़काव प्रयास तथा मिट्टी की दीवारों में दरारें बंद करके, सैंडफ्लाई को एकत्रित होने से रोका जा सकता हैं।
      • PMAY-G के तहत, कालाज़ार (KA) प्रभावित गाँवों में पक्के घर बनाए गए हैं, वर्ष  2017-18 में कुल 25,955 आवास बनाए गए (जिनमें से 1371 बिहार में तथा 24584 झारखंड में थे)।
      • PKDL रोगियों के लिये उपचार पूरा करना सुनिश्चित करने के लिये मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता नेटवर्क का नियोजन किया गया जिन्हें मिल्टेफोसिन (एक कालाज़ार-रोधी/एंटीलिशमैनियल एजेंट) के 12-सप्ताह के सेवन की आवश्यकता होती है।

पोस्ट-कालाज़ार त्वचीय लीशमैनियासिस (PKDL):

  • PKDL एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जो आंत के लीशमैनियासिस (कालाज़ार) के बाद उत्पन्न होती है जिससे मुख, बाहों और धड़ भाग पर चकत्ते (Rashes) पड़ जाते हैं।
  • यह मुख्य रूप से सूडान और भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है तथा कालाज़ार के 5-10% रोगियों में यह विकसित होता है।
  • PKDL, कालाज़ार उपचार के 6 माह से एक वर्ष बाद हो सकता है जिससे संभावित रूप से लीशमैनिया संचारित हो सकता है।

  UPSC विसिल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित रोगों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. डिप्थीरिया 
  2. चेचक 
  3. मसूरिका

उपर्युक्त रोगों में से कौन-सा/से रोग का भारत में उन्मूलन किया गया है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं

उत्तर: (b)

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