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भारतीय पैंगोलिन

  • 31 Dec 2021
  • 5 min read

हाल ही में सॉफ्ट रिलीज़ प्रोटोकॉल का पालन और रिलीज के बाद की निगरानी के लिये प्रावधान के बाद नंदनकानन ज़ूलॉजिकल पार्क (ओडिशा) में एक रेडियो टैग भारतीय पैंगोलिन को छोड़ा गया।

  • रेडियो-टैगिंग में एक ट्रांसमीटर द्वारा किसी वन्यजीव की गतिविधियों पर नज़र रखी जाती है। इससे पहले कई वन्यजीवों जैसे- बाघ, तेंदुआ और प्रवासी पक्षियों को भी टैग किया जा चुका है।

Indian-Pangolin

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:

    • पैंगोलिन टेढ़े-मेढ़े एंटीटर स्तनधारी होते हैं और इनकी त्वचा को ढकने के लिये बड़े सुरक्षात्मक केराटिन स्केल्स होते हैं। ये इस विशेषता वाले एकमात्र ज्ञात स्तनधारी हैं।
    • यह इन केराटिन स्केल्स को कवच के रूप में इस्तेमाल करता है ताकि शिकारियों के खिलाफ खुद को एक गेंद की तरह लुढ़क कर खतरों से बचा जा सके है।
  • आहार:

    • कीटभक्षी-पैंगोलिन रात्रिचर होते हैं और इनका आहार मुख्य रूप से चीटियाँ तथा दीमक होते हैं, जिन्हें वे अपनी लंबी जीभ का उपयोग कर पकड़ लेते हैं।
  • प्रकार:

    • पैंगोलिन की आठ प्रजातियों में से भारतीय पैंगोलिन (Manis crassicaudata) और चीनी पैंगोलिन (Manis pentadactyla) भारत में पाए जाते हैं।
    • अंतर:
      • भारतीय पैंगोलिन एक विशाल एंटीटर है जो पीठ पर 11-13 पंक्तियों की धारियो वाले आवरण से ढका होता है।
      • भारतीय पैंगोलिन की पूँछ के निचले हिस्से पर एक टर्मिनल स्केल भी मौज़ूद होता है, जो चीनी पैंगोलिन में अनुपस्थित होता है।
  • प्राकृतिक वास:

    • भारतीय पैंगोलिन:
      • भारतीय पैंगोलिन व्यापक रूप से शुष्क क्षेत्रों, उच्च हिमालय एवं पूर्वोत्तर को छोड़कर शेष भारत में पाया जाता है। यह प्रजाति बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका में भी पाई जाती है।
    • चीनी पैंगोलिन
      • चीनी पैंगोलिन पूर्वी नेपाल में हिमालय की तलहटी क्षेत्र में, भूटान, उत्तरी भारत, उत्तर-पूर्वी बांग्लादेश और दक्षिणी चीन में पाया जाता है।
  • भारत में पैंगोलिन को खतरा

    • पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, खासकर चीन एवं वियतनाम में इसके मांस का व्यापार तथा स्थानीय उपभोग (जैसे कि प्रोटीन स्रोत और पारंपरिक दवा के रूप में) हेतु अवैध शिकार इसके विलुप्त होने के प्रमुख कारण हैं।
    • ऐसा माना जाता है कि ये विश्व के ऐसे स्तनपायी हैं जिनका बड़ी मात्रा में अवैध व्यापार किया जाता है।
  • संरक्षण की स्थिति

    • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की रेड लिस्ट में इंडियन पैंगोलिन को संकटग्रस्त (Endangered), जबकि चीनी पैंगोलिन को गंभीर संकटग्रस्त (Critically Endangered) की श्रेणी में रखा गया है।
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 अनुसूची-I के तहत सूचीबद्ध।
    • CITES: सभी पैंगोलिन प्रजातियों को ‘लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ (CITES) के परिशिष्ट-I में सूचीबद्ध किया गया है।

नंदनकानन ज़ूलॉजिकल पार्क

  • यह ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 15 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका उद्घाटन वर्ष 1960 में किया गया था।
  • यह ‘वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ ज़ू एंड एक्वेरियम’ (WAZA) का सदस्य बनने वाला देश का पहला चिड़ियाघर है।
    • ‘वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ ज़ू एंड एक्वेरियम’ क्षेत्रीय संघों, राष्ट्रीय संघों, चिड़ियाघरों और एक्वेरियम का वैश्विक गठबंधन है, जो दुनिया भर में जानवरों और उनके आवासों की देखभाल और संरक्षण हेतु समर्पित है।
  • इसे भारतीय पैंगोलिन और सफेद बाघ के प्रजनन हेतु एक प्रमुख चिड़ियाघर के रूप में मान्यता प्राप्त है।
    • तेंदुए, माउस डियर, शेर, चूहे और गिद्ध भी यहाँ पाए जाते हैं।
  • यह दुनिया का पहला कैप्टिव मगरमच्छ प्रजनन केंद्र भी था, जहाँ वर्ष 1980 में घड़ियालों को रखा गया था।
  • नंदनकानन का राज्य वनस्पति उद्यान ओडिशा के अग्रणी पौधों के संरक्षण और प्रकृति शिक्षा केंद्रों में से एक है।

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