प्रिलिम्स फैक्ट: 05 जनवरी, 2021
इंडियन पैंगोलिन
Indian Pangolin
हाल ही में ओडिशा वन विभाग ने पैंगोलिन (Pangolin) के अवैध शिकार और व्यापार की जाँच के लिये सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्मों की सख्त निगरानी की आवश्यकता पर बल दिया है।
पैंगोलिन के संबंध में:
- पैंगोलिन की आठ प्रजातियों में से इंडियन पैंगोलिन और चीनी पैंगोलिन भारत में पाए जाते हैं।
- इंडियन पैंगोलिन एक बड़ा चींटीखोर (Anteater) है जिसकी पीठ पर शल्कनुमा संरचना की 11-13 तक पंक्तियाँ होती हैं।
- इंडियन पैंगोलिन की पूँछ के निचले हिस्से में एक टर्मिनल स्केल मौजूद होता है जो चीनी पैंगोलिन में नहीं मिलता है।
- आहार:
- कीटभक्षी-पैंगोलिन निशाचर होते हैं, और इनका आहार मुख्य रूप से चीटियाँ और दीमक होते हैं, जिन्हें वे अपनी लंबी जीभ का उपयोग कर पकड़ लेते हैं।
- आवास:
- इंडियन पैंगोलिन व्यापक रूप से शुष्क क्षेत्रों, उच्च हिमालय एवं पूर्वोत्तर को छोड़कर शेष भारत में पाया जाता है। यह प्रजाति बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका में भी पाई जाती है।
- चीनी पैंगोलिन पूर्वी नेपाल में हिमालय की तलहटी क्षेत्र में, भूटान, उत्तरी भारत, उत्तर-पूर्वी बांग्लादेश और दक्षिणी चीन में पाया जाता है।
- भारत में पैंगोलिन को खतरा:
- पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, खासकर चीन एवं वियतनाम में इसके मांस का व्यापार तथा स्थानीय उपभोग (जैसे कि प्रोटीन स्रोत और पारंपरिक दवा के रूप में) हेतु अवैध शिकार इसके विलुप्त होने के प्रमुख कारण हैं।
- ऐसा माना जाता है कि ये विश्व के ऐसे स्तनपायी हैं जिनका बड़ी मात्रा में अवैध व्यापार किया जाता है।
- संरक्षण की स्थिति:
- इंडियन पैंगोलिन को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की लाल सूची में संकटग्रस्त (Endangered), जबकि चीनी पैंगोलिन को गंभीर संकटग्रस्त (Critically Endangered) की श्रेणी में रखा गया है।
- इन दोनों प्रजातियों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के भाग-I की अनुसूची-I के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
- CITES: पारीशिष्ट-1।
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 05 जनवरी, 2021
अंटार्कटिका में भारत का 40वाँ वैज्ञानिक अभियान
भारत ने हाल ही में अंटार्कटिका में 40वाँ वैज्ञानिक अभियान शुरू किया है। इसके साथ ही अंटार्कटिका में भारत के वैज्ञानिक अभियान के चार दशक पूरे हो गए हैं। इस नए अभियान के 43 सदस्यों वाले दल को गोवा तट से रवाना किया गया। चार्टर्ड आइस-क्लास पोत एमवी वासिली गोलोवनिन (MV Vasiliy Golovnin) में सवार यह दल 30 दिन में अंटार्कटिका पहुँच जाएगा। 43 में से 40 सदस्यों को वहाँ छोड़ने के बाद यह पोत अप्रैल माह में भारत वापस लौटेगा। साथ ही यह पोत वहाँ पहले से मौजूद वैज्ञानिक दल को भी भारत वापस लाएगा। राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCPOR), जो कि संपूर्ण भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम का प्रबंधन करता है, के अनुसार यह अभियान जलवायु परिवर्तन, भू-विज्ञान, समुद्री अवलोकन, विद्युत एवं चुंबकीय प्रवाह मापन, पर्यावरण की निगरानी आदि से संबंधित वैज्ञानिक परियोजनाओं में सहयोग करने तक ही सीमित है; साथ ही यह वहाँ मौजूद वैज्ञानिकों के लिये भोजन, ईंधन तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं को पहुँचाने में भी मदद करेगा। भारतीय अंटार्कटिक अभियान की शुरुआत वर्ष 1981 में हुई जिसमें डॉ. एस.ज़ेड. कासिम के नेतृत्व में 21 वैज्ञानिकों और सहायक कर्मचारियों का समूह शामिल था। वर्तमान में अंटार्कटिका में भारत के तीन स्थायी अनुसंधान बेस हैं- दक्षिण गंगोत्री, मैत्री और भारती, जिनमें से मैत्री और भारती संचालित हैं।
कोच्चि-मंगलुरु प्राकृतिक गैस पाइपलाइन परियोजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोच्चि-मंगलुरु प्राकृतिक गैस पाइपलाइन राष्ट्र को समर्पित की। कोच्चि-मंगलुरु प्राकृतिक गैस पाइपलाइन ‘एक राष्ट्र-एक गैस ग्रिड’ स्थापित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है। 450 किलोमीटर लंबी इस गैस पाइपलाइन का निर्माण ‘गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड’ (GAIL) द्वारा किया गया है। तकरीबन 12 मिलियन मीट्रिक मानक घन मीटर प्रतिदिन परिवहन क्षमता वाली इस प्राकृतिक गैस पाइपलाइन के माध्यम से कोच्चि स्थित तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) रीगैसीफिकेशन टर्मिनल से मंगलुरु में प्राकृतिक गैस ले जाई जाएगी। इस परियोजना की कुल लागत लगभग 3,000 करोड़ रुपए थी और इसके निर्माण के दौरान तकरीबन 1.2 मिलियन लोगों के लिये रोज़गार सृजित किया गया। इस प्राकृतिक गैस पाइपलाइन के माध्यम से घरों के लिये पाइप्ड नेचुरल गैस (PNG) और परिवहन क्षेत्र के लिये संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) के रूप में पर्यावरण-अनुकूल एवं सस्ती ईंधन की आपूर्ति की जाएगी। साथ ही यह वाणिज्यिक एवं औद्योगिक इकाइयों को भी प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करेगा। इस तरह स्वच्छ ईंधन के उपयोग से वायु प्रदूषण को कम कर वायु गुणवत्ता में सुधार लाने में सहायता मिलेगी।
विश्व ब्रेल दिवस
दुनिया भर में ब्रेल (Braille) लिपि के महत्त्व को रेखांकित करने के लिये प्रतिवर्ष 04 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस का आयोजन किया जाता है। ब्रेल (Braille) नेत्रहीन और दृष्टिबाधित लोगों के लिये प्रयोग की जाने वाली एक पद्धति होती है। यह दिवस ब्रेल लिपि के जनक फ्रांँस के लुई ब्रेल की जयंती को चिह्नित करता है, जिन्होंने वर्ष 1824 में ब्रेल लिपि का आविष्कार किया था। लुई ब्रेल का जन्म 4 जनवरी, 1809 को फ्रांँस के एक गाँव में हुआ था और बहुत कम आयु में ही एक दुर्घटना के बाद उनकी आँखों की रोशनी चली गई, जिसके बाद उन्होंने 15 वर्ष की आयु में ब्रेल लिपि का आविष्कार किया। वर्ष 1824 में बनी इस लिपि को वर्तमान में दुनिया के लगभग सभी देशों में मान्यता मिल चुकी है। विश्व ब्रेल दिवस की स्थापना संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा नवंबर 2018 में की गई थी और इसका उद्देश्य आम लोगों के बीच ब्रेल लिपि के बारे में जागरूकता पैदा करना है। विश्व ब्रेल दिवस शिक्षकों, सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों को नेत्रहीन एवं दृष्टिबाधित लोगों के समक्ष मौजूद चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
तमिल अकादमी
तमिल भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये दिल्ली सरकार द्वारा तमिल अकादमी की स्थापना की गई है। दिल्ली सरकार ने पूर्व पार्षद और दिल्ली तमिल संगम के सदस्य एन. राजा को तमिल अकादमी का उपाध्यक्ष नियुक्त किया है। यह अकादमी तमिल भाषा और संस्कृति में लोगों के कार्यों को बढ़ावा देने और उन्हें सम्मानित करने के लिये विभिन्न पुरस्कारों की शुरुआत करेगी। साथ ही अकादमी द्वारा तमिल भाषा सीखने के लिये एक भाषा पाठ्यक्रम भी शुरू किया जाएगा। अकादमी द्वारा तमिलनाडु के सांस्कृतिक उत्सवों का भी आयोजन किया जाएगा। ज्ञात हो कि दिल्ली सांस्कृतिक रूप से एक समृद्ध शहर है, जहाँ देश के सभी हिस्सों के लोग रहते हैं और काम करते हैं। दिल्ली में तमिलनाडु के लोगों की भी एक बड़ी आबादी है और इस अकादमी का उद्देश्य दिल्ली के आम लोगों को तमिलनाडु की कला और संस्कृति से अवगत कराना है।