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प्रारंभिक परीक्षा

हिमालयन ब्राउन बियर

  • 05 Jun 2023
  • 9 min read

कश्मीर में हिमालयन ब्राउन बियर/हिमालयी भूरा भालू (उर्सस आर्कटोस इसाबेलिनस/Ursus arctos isabellinus) की आबादी कई चुनौतियों का सामना कर रही है जिससे उनके अस्तित्व और मानव सुरक्षा दोनों को लेकर खतरा बढ़ गया है।

  • रिहायशी इलाकों में भालुओं के घुसने और कब्रिस्तानों को तोड़ने या क्षतिग्रस्त करने की हाल की घटनाओं ने स्थानीय समुदायों के बीच चिंता बढ़ा दी है।
  • ये घटनाएँ अंतर्निहित कारकों और गंभीर रूप से लुप्तप्राय इस प्रजाति के आवासों की रक्षा करने की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती हैं।

हिमालयन ब्राउन बियर:

  • परिचय: 
    • हिमालयन ब्राउन बियर, ब्राउन बियर की उप-प्रजाति है जो पाकिस्तान से लेकर भूटान तक हिमालय के उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
    • इनके मोटे फर जो प्रायः रेतीले या लाल-भूरे रंग के होते हैं।
    • ये 2.2 मीटर तक लंबे हो सकते हैं जिनका वज़न 250 किलोग्राम तक होता है।

  • स्थिति: 
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) द्वारा हिमालयन ब्राउन बियर को गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered) प्रजाति की सूची में शामिल किया गया है।
      • ब्राउन बियर (उर्सस आर्कटोस/Ursus arctos) को कम चिंतनीय (Least Concern) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
    • CITES - अनुसूची II
      • अनुसूची II में सूचीबद्ध आबादी भूटान, चीन, मैक्सिको और मंगोलिया में पाई जाती है।
    • यह भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध है।
  • भोजन:  
    • सर्वाहारी।
  • व्यवहार:  
    • ये निशाचर या रात्रिचर प्राणी हैं और उनकी घ्राण-शक्ति काफी तीव्र होती है, जो भोजन खोजने का उनका प्रमुख साधन माना जाता है।
  • खतरा:  
    • मानव-पशु संघर्ष, निवास स्थान का तेज़ी से क्षरण, छाल, पंजे और अंगों के लिये अवैध शिकार तथा कुछ दुर्लभ मामलों में भालू के लिये चारे की अनुपलब्धता।
  • क्षेत्र/रेंज:  
    • उत्तर-पश्चिमी और मध्य हिमालय, जिसमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, चीन का तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र और भूटान शामिल हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • अपर्याप्त भोजन स्रोत और परिवर्तित व्यवहार: 
      • भालू का आवासीय क्षेत्रों में भटकना और कब्रों को क्षतिग्रस्त करने का अज़ीब व्यवहार दर्शाता है कि उनके प्राकृतिक आवासों में पर्याप्त भोजन की कमी हो सकती है। 
      • भारत की प्राकृतिक विरासत, जंगलों और जैवविविधता की रक्षा एवं संरक्षण में स्थायी परिवर्तन करने के लक्ष्य के साथ स्थापित संस्था वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस. द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि कश्मीर में भालुओं के आहार में प्लास्टिक की थैलिएँ, चॉकलेट रैपर और अन्य खाद्य अपशिष्ट सहित मैला कचरा शामिल है। 
        • यह भालुओं के भोजन के प्राकृतिक प्रारूप को बाधित करता है और व्यवहार को बदल देता है, जिससे मनुष्यों के साथ संघर्ष होता है।
      • स्थानीय निवासियों और होटल व्यवसायियों द्वारा भालुओं के निवास स्थान के पास रसोई के कचरे का अनुचित निपटान भोजन तक उन्हें आसान पहुँच प्रदान करता है, जिस कारण भालुओं और मनुष्यों के बीच लगातार संघर्ष देखा जाता है।
        • भोजन के लिये शिकार करने के साथ इस बदले हुए व्यवहार ने मानव-निर्मित कचरे पर निर्भरता उत्पन्न कर दी है जिस कारण संघर्ष और बढ़ गया है। 
    • प्रतिबंधित वितरण और घटती जनसंख्या:
      • हिमालय के अल्पाइन घास के मैदानों में हिमालयी भूरे भालू के प्रतिबंधित वितरण ने शोधकर्त्ताओं के लिये प्रजातियों का व्यापक डेटा एकत्र करना चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
      • आवास के अतिक्रमण, पर्यटन और चराई के दबाव जैसे कारकों के कारण आवास विनाश ने भालुओं की घटती आबादी में योगदान दिया है।
        • भारत में लगभग 500-750 भालू बचे हैं, उनके अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिये तत्काल संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता है।
    • आगामी जोखिम एवं संरक्षण अनुशंसाएँ: 
      • हिमालयी भूरे भालू का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है क्योंकि एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि पश्चिमी हिमालय में वर्ष 2050 तक उनका निवास स्थान लगभग 73% कम हो जाएगा।
      • जलवायु परिवर्तन एक गंभीर जोखिम उत्पन्न करता है जिससे प्रजातियों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिये संरक्षित क्षेत्रों की रिक्ति हेतु पूर्व स्थानिक योजना की आवश्यकता होती है।
      • संरक्षण प्रयासों के तहत आवास संरक्षण, जैविक गलियारे बनाने और मानव-भालू संघर्ष को कम करने के लिये ज़िम्मेदार अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
      • वर्ष 2022 के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम और वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन नियमों (CITES Regulations) को लागू करके कानूनी संरक्षण और प्रवर्तन को मज़बूत किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित प्राणीजात पर विचार कीजिये: (2023) 

  1. सिंह-पुच्छी मकाॅक  
  2. मालाबार सिवेट 
  3. सांभर किरण

उपर्युक्त में से कितने आमतौर पर रात्रिचर हैं या सूर्यास्त के बाद अधिक सक्रिय होते हैं?

(a) केवल एक  
(b) केवल दो  
(c) सभी तीन  
(d) कोई भी नहीं  

उत्तर: (b) 

व्याख्या:

  • सिंह-पुच्छी मकाॅक निशाचर/रात्रिचर जानवर नहीं है। यह वृक्षवासी और दिनचर प्राणी है, जो रात में पेड़ों पर सोते हैं (आमतौर पर उच्च वर्षावन कैनोपी में)। ये मकाॅक प्रादेशिक होने के साथ-साथ संचरण शाली जानवर हैं। अतः 1 सही नहीं है।
  • मालाबार सिवेट मुख्य रूप से रात्रिचर जानवर है। यह एक छोटा, माँसाहारी स्तनपायी है जो मूलतः भारत के पश्चिमी घाट क्षेत्र में पाया जाता है।
    • इसकी प्रकृति एकांत और गोपनीय अर्थात् इन्हें वनों में खोजना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसका रात्रिचर व्यवहार शिकारियों से बचने में मदद करता है। अत: 2 सही है।
  • सांभर हिरण निशाचर होते हैं। वे आमतौर पर सुगंध और फुट स्टैम्पिंग द्वारा संवाद करते हैं। ये पर्णपाती झाड़ियों एवं घास के सघन आवरण को पसंद करते हैं। अत: 3 सही है।
  • अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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