क्षय रोग उन्मूलन हेतु हीरोरैट्स | 03 Mar 2025

स्रोत: द हिंदू 

तंज़ानिया का एक गैर-लाभकारी संगठन, क्षय रोग अथवा ट्यूबरक्लोसिस (TB) का पता लगाने हेतु अफ्रीकी जायंट पाउच्ड रैट्स (HeroRATS) को प्रशिक्षित करने के लिये शोध कर रहा है। 

  • इन चूहों की सटीकता, विशेषकर संसाधन-सीमित क्षेत्रों में, उच्च स्तर की होती है। यह शोध भारत जैसे देशों में TB का पता लगाने में तेज़ी लाने में मदद कर सकता है।

हीरोरैट्स पर किये गए शोध के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • हीरोरैट्स: इन चूहों में गंध की असाधारण संवेद क्षमता होती है, क्योंकि इनमें संवेदनशील घ्राण ग्राही (Olfactory Receptors) होते हैं, जिससे वे TB जैसे रोगों का पता लगा लेते हैं।
    • हीरोरैट्स को प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसके अंतर्गत ये चूहें श्लेष्मा के नमूनों (फेफड़ों से निकलने वाला गाढ़ा श्लेष्मा) में TB का पता लगाने में सक्षम हो जाते हैं। वे मात्र 20 मिनट में 100 नमूनों की जाँच करने में सक्षम होते हैं, जबकि परंपरागत तरीकों में 3 से 4 दिन का समय लगता है।
      • तत्पश्चात् ज़ीहल-नील्सन और फ्लोरोसेंट माइक्रोस्कोपी का उपयोग कर पता लगाए गए नमूनों की पुष्टि की जाती है।
  • रोग का पता लगाने की दर में वृद्धि: हीरोरैट्स ने पारंपरिक परीक्षण की तुलना में दोगुनी दर से बच्चों में TB की पहचान की।
    • ये चूहे, अल्प जीवाणु मात्रा वाले रोगियों में क्षय रोग की पहचान करने में अधिक जीवाणु भार वाले रोगियों की तुलना में छह गुना अधिक प्रभावी थे।
    • उन्होंने पारंपरिक माइक्रोस्कोपी से बेहतर प्रदर्शन किया, जो प्रायः ऐसे मामलों में विफल हो जाती है।

नोट: इससे पहले, मूल रूप से तंज़ानिया में पाए जाने वाले जायंट पाउच्ड रैट मगावा (Magawa) को लैंड माइन का पता लगाने और उन्हें सुरक्षित रूप से हटाने के लिये संचालकों को सचेत करने के लिये प्रशिक्षित किया गया था।

हीरोरैट्स भारत के TB उन्मूलन प्रयासों में किस प्रकार मदद कर सकता है?

  • भारत के लिये संभावित लाभ: हीरोरैट्स, विशेष रूप से बच्चों और स्मीयर-नेगेटिव मामलों में  तीव्र, लागत प्रभावी TB जाँच में सहायता करते हैं, जिससे शीघ्र निदान में सहायता मिलती है और संचरण में कमी आती है, जिससे भारत को देश में TB के मामलों की रोकथाम करने में मदद मिल सकती है।
  • भारत में TB: भारत में TB का बोझ सर्वाधिक है, यहाँ प्रति तीन मिनट में TB से दो मौतें होती हैं।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तत्वावधान में कार्यान्वित NTEP का लक्ष्य वैश्विक लक्ष्य वर्ष 2030 से पूर्व,  वर्ष 2025 तक भारत को TB मुक्त बनाना है।
    • वर्ष 2015 से वर्ष 2023 तक TB के मामलों में 17.7% की कमी आई (प्रति 100,000 पर 237 से 195), जबकि TB से होने वाली मौतों में 21.4% की कमी आई (प्रति लाख पर 28 से 22)।

क्षय रोग के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: TB एक जीवाणु संक्रमण (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस) है जो फेफड़ों को प्रभावित करता है और वायु के माध्यम से संचरित होता है। 
    • एंटीबायोटिक दवाओं से रोकथाम और उपचार संभव है। वैश्विक आबादी का लगभग 25% हिस्सा संक्रमित है, लेकिन केवल 5-10% में ही लक्षण विकसित होते हैं।
  • जोखिम कारक: कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली, मधुमेह, कुपोषण, तंबाकू और मद्यपान।
  • निदान: WHO तीव्र आणविक परीक्षण (Xpert MTB/RIF अल्ट्रा) की सिफारिश करता है। यह पारंपरिक परीक्षणों की तुलना में अधिक प्रभावी है।
  • रोकथाम: TB से बचाव के लिये शिशुओं को बैसिल कैलमेट-ग्यूरिन (BCG) टीका दिया जाता है।
  • उपचार: मानक TB उपचार 4-6 महीने तक चलता है। अपूर्ण उपचार दवा प्रतिरोधी TB का कारण बनता है।
  • बहुऔषधि प्रतिरोधी टीबी (MDR-TB): यह आइसोनियाज़िड और रिफाम्पिसिन (TB के इलाज के लिये प्रयुक्त दवाएँ) के प्रति प्रतिरोधी है, तथा महंगे विकल्पों से इसका इलाज संभव है।
  • व्यापक रूप से दवा प्रतिरोधी TB: यह अधिक गंभीर है, तथा इसके उपचार के विकल्प सीमित हैं।
  • TB और मानव इम्यूनोडिफीसिअन्सी वायरस (HIV): HIV रोगी TB के प्रति 16 गुना अधिक संवेदनशील होते हैं, जो उनकी मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।

Tuberculosis

रोग का पता लगाने के लिये प्रयुक्त मैक्रोमैटिक प्रजातियाँ

  • मैक्रोमैटिक प्रजातियाँ: इन प्रजातियों में गंध की भावना अत्यधिक विकसित होती है, जबकि माइक्रोस्मैटिक प्रजातियों में घ्राण क्षमता कम होती है। कुछ मैक्रोमैटिक प्रजातियाँ हैं:
    • कुत्ते: 125-300 मिलियन घ्राण रिसेप्टर्स और जैकबसन अंग नामक एक विशेष संवेदी अंग के साथ, वे पार्किंसंस और संभावित रूप से फेफड़ों के कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों का पता लगा सकते हैं।
    • चींटियाँ: एक फ्राँसीसी अध्ययन में पाया गया कि चींटियाँ रासायनिक संकेतों का उपयोग करके तीन दिनों के भीतर कैंसर कोशिकाओं का पता लगा सकती हैं, जो पारंपरिक निदान का एक तीव्र, सस्ता विकल्प है।
    • मधुमक्खियाँ: इनमें अत्यधिक संवेदनशील घ्राण एंटीना लोब होते हैं, ये मानव श्वास में सिंथेटिक बायोमार्कर (कृत्रिम मानव श्वास जिसमें कैंसरकारी गंध होती है) का उपयोग करके 88% सटीकता के साथ फेफड़ों के कैंसर का पता लगा सकती हैं।
  • ये जैव-पहचान के बढ़ते क्षेत्र को उजागर करते हैं, जहाँ चिकित्सा प्रगति के लिये प्रकृति की सहज प्रवृत्ति का उपयोग किया जाता है।