मलेरिया से लड़ने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छर | 01 Jun 2024
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
पूर्वी अफ्रीका का एक देश जिबूती आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified- GM) मच्छरों का उपयोग करके मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में एक साहसिक कदम उठा रहा है।
- मई 2024 में शुरू किया गया यह पायलट प्रोजेक्ट इस घातक बीमारी के खिलाफ लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
मलेरिया के नियंत्रण के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified- GM) मच्छर का उपयोग क्यों?
- परिचय:
- GM मच्छरों को प्रयोगशाला में दो जीनों के साथ विकसित किया जाता है: एक स्व-सीमित जीन (Self-Limiting Gene) जो मादा संतानों को वयस्कता तक जीवित रहने से रोकता है और दूसरा है फ्लोरोसेंट मार्कर जीन जो वनों में उनकी पहचान करता है (Identification in the Wild)।
- GM मच्छरों को मादा एनोफिलीज़ स्टेफेंसी मच्छरों की जनसंख्या को कम करने के लिये तैयार किया गया है, जो मलेरिया फैलाने के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- वेक्टर आबादी को लक्ष्य करके, इसका उद्देश्य मलेरिया के संचरण चक्र को बाधित करना है।
- GM मच्छरों की आवश्यकता:
- मलेरिया के मामलों में वृद्धि: पिछले कई वर्षों में जिबूती में मलेरिया के मामलों में अत्यधिक वृद्धि हुई है। एनोफेलीज़ स्टेफेंसी, मच्छर की एक आक्रामक प्रजाति है जो दक्षिण एशिया और अरब प्रायद्वीप से अफ्रीका में आई है। यह विशेष रूप से जिबूती जैसे शहरी क्षेत्रों में जीवित रहने में कुशल है।
- पारंपरिक नियंत्रण विधियों की सीमाएँ: घर के अंदर कीटनाशकों का छिड़काव और मच्छरदानी (Bed Nets) जैसी मौज़ूदा मच्छर नियंत्रण विधियाँ मच्छरों के बढ़ते प्रतिरोध के कारण कम प्रभावी होती जा रही हैं।
- मादा मच्छरों को लक्ष्य बनाना: छोड़े गए मच्छर सभी नर होते हैं और उनमें एक स्व-सीमित जीन होता है। जब वे मादा ए. स्टेफेंसी मच्छरों के साथ सहवास करते हैं, तो उनकी संतान (जो मादा होगी) को यह जीन विरासत में मिलता है और वे वयस्क होने तक जीवित नहीं रह पाते।
- समय के साथ, इस प्रक्रिया का उद्देश्य मादा मच्छरों की कुल जनसंख्या में उल्लेखनीय कमी लाना है, जिससे मलेरिया के संचरण में बाधा उत्पन्न होगी।
- पर्यावरणीय चिंता: कुछ पर्यावरण समूहों ने पारिस्थितिकी तंत्र में GM मच्छरों को वातावरण में छोड़ने के संभावित अनपेक्षित परिणामों के बारे में चिंताएँ व्यक्त की हैं।
- GM मच्छरों में अप्रत्याशित रूप से जीवित रहने के कौशल या अनुकूलन क्षमता विकसित हो सकती है। BT कपास में देखे गए प्रतिरोध की तरह, GM मच्छरों में जीन-संपादन तंत्र के प्रति प्रतिरोध विकसित हो सकता है, जिससे उनकी प्रभावशीलता के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- मच्छर परागण में योगदान देते हैं, क्योंकि वे परागण पर निर्भर पौधों पर भी प्रभाव डाल सकते हैं।
- मच्छरों की आबादी में कमी से स्थानीय खाद्य-जाल और जैवविविधता बाधित हो सकती है।
नोट:
- एडीज़ एज़िप्टी मच्छरों को नियंत्रित करने के लिये ब्राज़ील, केमैन द्वीप, पनामा और भारत के कुछ हिस्सों में GM मच्छरों का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया है। वर्ष 2019 से अब तक 1 बिलियन से ज़्यादा GM मच्छर छोड़े जा चुके हैं।
- जिबूती की यह पहल बुर्किना फासो (एक अफ्रीकन देश) द्वारा पश्चिम अफ्रीका में GM मच्छरों को छोड़े जाने के बाद आई है, जो मलेरिया से निपटने के लिये जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति को उजागर करती है।
मलेरिया:
- मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो प्लास्मोडियम परजीवी के कारण उत्पन्न होती है, जो संक्रमित मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से फैलती है।
- यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सामान्य है, इसके लक्षणों में बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द व थकान शामिल हैं। गंभीर मामलों में अंग विफलता, कोमा तथा मृत्यु तक हो सकते हैं।
- भारत वेक्टर जनित बीमारियों, विशेष तौर पर मलेरिया को नियंत्रित करने के लिये, कई पहल कर रहा है। इन प्रयासों में राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम, राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम, मलेरिया उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय रूपरेखा (वर्ष 2016-2030) शामिल हैं।
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. मलेरिया परजीवी की क्लोरोक्वीन जैसी औषधियों के प्रति व्यापक प्रतिरोधक क्षमता पनपने के कारण मलेरिया से लड़ने के लिये मलेरिया वैक्सीन (रोग निरोधक टीके) विकसित करने के प्रयत्न किये जा रहे हैं। एक प्रभावी मलेरिया वैक्सीन (रोग निरोधक टीके) विकसिंत करने में क्या कठिनाई है? (a) मलेरिया की कारक प्लाज़्समोडियम की विभिन्न जातियाँ (स्पीशीज़) हैं। उत्तर: (b) |