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सगोत्रीय विवाह और अंतःप्रजनन

  • 26 Nov 2024
  • 3 min read

स्रोत: द हिंदू

आंध्र प्रदेश के उप्पाडा तट के गाँवों में सगोत्रीय विवाहों के कारण सेरिब्रल पाल्सी (मस्तिष्क विकार), डेंडी-वाकर मालफॉर्मेशन (DWM), ऐल्बिनिज़्म (रंगहीनता) और अन्य विकार उत्पन्न हो रहे हैं।

  • सगोत्रीय विवाह (रक्त-संबंधी विवाह) का आशय रक्त संबंधियों (जैसे एक-दूसरे के रिश्तेदार, आमतौर पर चचेरे भाई या करीबी रिश्तेदार) के बीच होने वाले विवाह से है। 
    • यह अनाचारपूर्ण  विवाहों (Incestuous Marriages) जैसे- प्रत्यक्ष वंशजों (पिता और पुत्री, माता और पुत्र, भाई और बहन के बीच विवाह) के बीच होने वाले विवाह से भिन्न है। 
  • 'वोनी' प्रॉमिस जैसी प्रथाएँ (जो कि लड़की के जन्म के समय किया जाने वाला एक मौखिक समझौता है) उपरोक्त मामले में रक्त-संबंध को बढ़ावा देती हैं।
  • अंतःप्रजनन, रक्त-संबंधी विवाह का आनुवंशिक परिणाम है। अंतःप्रजनन से संतान में समयुग्मता की संभावना बढ़ने के साथ अप्रभावी लक्षणों की अभिव्यक्ति भी होती है।
    • होमोज़ायगोसिटी के मामले में किसी व्यक्ति को अपने माता-पिता दोनों से एक विशेष जीन के लिये समान एलील विरासत में मिलते हैं, जिसके कारण आनुवंशिक विकार होते हैं।
      • एलील (Alleles) एक ही जीन के विभिन्न संस्करण होते हैं। उदाहरण के लिये आँखों के रंग के जीन में नीली, भूरी या हरी आँखों के लिये एलील हो सकते हैं।
  • अंतःप्रजनन से आनुवंशिक विकार में वृद्धि होती है। आनुवंशिक विकार से आशय लोगों में कुछ हानिकारक या अतिरिक्त जीनों की उपस्थिति के कारण होने वाले विकार से है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हिंदुओं के बीच सपिंड विवाह पर प्रतिबंध (जब तक कि कोई स्थापित प्रथा न हो) लगाया गया है।
    • सपिंड विवाह का आशय पारिवारिक रूप से निकटता से संबंधित लोगों के बीच होने वाले विवाह से है।

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