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रैपिड फायर

किशोर होने का दावा

  • 10 Oct 2024
  • 2 min read

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया की कि आपराधिक कार्यवाही के किसी भी चरण में, जिसमें दोषसिद्धि और सजा के अंतिम होने के बाद भी किशोर होने की दलील दी जा सकती है

  • न्यायालय ने कहा कि किशोरवय एक अधिकार है और इसमें देरी या प्रक्रियागत तकनीकी कारणों से छूट नहीं दी जा सकती।
  • न्यायालय ने कहा कि यदि मामला किशोरवय का है तो अंतिम निर्णय भी मामले के पुनर्मूल्यांकन को नहीं रोकता।
  • किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 94, दोषसिद्धि के बाद भी किशोर होने के दावे को उठाने की अनुमति देती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि प्रक्रियागत देरी के बावजूद किशोरों के अधिकारों की रक्षा की जाती है।
  • इसी प्रकार, अबुजर हुसैन बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले, 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने कानूनी कार्यवाही के किसी भी स्तर पर किशोर होने के दावे को स्वीकार किया था।
  • किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अनुसार किशोर की परिभाषा उस व्यक्ति के रूप में की गई है, जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की हो।
    • यदि 16-18 वर्ष की आयु के किशोरों पर जघन्य अपराध का आरोप लगाया जाता है, तो उन पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जाएगा।

और पढ़ें: किशोर न्याय संशोधन अधिनियम, 2021 से संबंधित मुद्दे

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