प्रारंभिक परीक्षा
बायो-बिटुमेन
- 25 Jun 2024
- 8 min read
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स
हाल ही में भारत ने बायोमास या कृषि अपशिष्ट से बड़े पैमाने पर बायो-बिटुमेन या जैव-कोलतार का उत्पादन शुरू करने की योजना शुरू की है।
बायो-बिटुमेन क्या है?
- परिचय:
- बायो-बिटुमेन एक जैव-आधारित बाइंडर (बंधक) है, जो वनस्पति तेलों, फसल के ठूंठ, शैवाल, लिग्निन (लकड़ी का एक घटक) या यहाँ तक कि पशु खाद जैसे नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त होता है।
- उत्पत्ति और उत्पादन: बिटुमेन मुख्य रूप से कच्चे तेल के आसवन से प्राप्त होता है। रिफाइनिंग के दौरान, गैसोलीन और डीज़ल जैसे हल्के घटकों को हटाने के बाद भारी बिटुमेन बच जाता है। यह प्राकृतिक रूप से जमाव में भी पाया जा सकता है, जैसे कि तेल रेत में।
- बिटुमेन के गुण और उपयोग:
- यह अपने जलरोधी और चिपकने वाले गुणों के लिये जाना जाता है तथा इसका उपयोग सड़क निर्माण (डामर फर्श) एवं इमारतों व समुद्री संरचनाओं में जलरोधी अनुप्रयोगों में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
- बायो-बिटुमेन का उपयोग के तरीके:
- प्रत्यक्ष प्रतिस्थापन: डामर में पेट्रोलियम बिटुमेन को पूर्णतः बायो-बाइंडर से प्रतिस्थापित करना।
- संशोधक: पारंपरिक बिटुमेन के गुणों में सुधार के लिये उसमें जैव-पदार्थ मिलाना।
- कायाकल्प: पुराने डामर फुटपाथों की गुणवत्ता और कार्यक्षमता को बहाल करना।
- भारत में वर्तमान बिटुमेन परिदृश्य:
- आयात पर निर्भरता: भारत वर्तमान में वित्तीय वर्ष 2023-24 में अपनी वार्षिक बिटुमेन आवश्यकता का लगभग आधा हिस्सा 3.21 मिलियन टन आयात करता है।
- घरेलू उत्पादन: इसी अवधि में बिटुमेन उत्पादन 5.24 मिलियन टन रहा।
- खपत में वृद्धि: बिटुमेन की खपत में लगातार वृद्धि हुई है, जो पिछले पाँच वर्षों में यह औसतन 7.7 मिलियन टन प्रतिवर्ष रही है।
- वर्ष 2023-24 में राष्ट्रीय राजमार्गों (NH) का निर्माण लगभग 12,300 किलोमीटर तक पहुँच जाएगा, जो लगभग 34 किलोमीटर प्रतिदिन है।
- जैव-बिटुमेन उत्पादन पहल के उद्देश्य:
- आयात निर्भरता कम करना: इसका प्राथमिक उद्देश्य आगामी दशक में आयातित बिटुमेन के स्थान पर घरेलू स्तर पर उत्पादित जैव-बिटुमेन का उपयोग करना है, जिससे विदेशी मुद्रा व्यय में कमी आएगी।
- पर्यावरण संबंधी चिंताओं का समाधान: जैव-बिटुमेन उत्पादन का उद्देश्य बायोमास तथा कृषि अपशिष्ट को फीडस्टॉक के रूप में उपयोग करके पराली जलाने से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों को कम करना है।
- सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना: जैव-आधारित सामग्रियों का लाभ उठाकर, यह पहल टिकाऊ सड़क निर्माण प्रथाओं का समर्थन करती है और वैश्विक पर्यावरण मानकों के अनुरूप है।
- तकनीकी विकास एवं प्रायोगिक अध्ययन: केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI) जैव-बिटुमेन का उपयोग करके 1 किलोमीटर की सड़क पर एक पायलट अध्ययन करने के लिये भारतीय पेट्रोलियम संस्थान के साथ सहयोग कर रहा है।
- चुनौतियाँ:
- लागत प्रभावशीलता: वर्तमान में जैव-बिटुमेन उत्पादन पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक महँगा हो सकता है।
- दीर्घकालिक प्रदर्शन: पारंपरिक फुटपाथों की तुलना में जैव-ऐस्फाल्ट के दीर्घकालिक प्रदर्शन और स्थायित्व का आकलन करने के लिये अधिक व्यापक क्षेत्रीय परीक्षणों की आवश्यकता है।
- मानकीकरण: निर्माण उद्योग में बायो-बिटुमेन को व्यापक रूप से अपनाने हेतु इसके लिये स्पष्ट मानक एवं विनिर्देश स्थापित करना आवश्यक है।
सड़क निर्माण की अन्य नवाचार विधियाँ
- स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी स्टील स्लैग, स्टील उत्पादन के दौरान उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट का उपयोग करके अधिक मज़बूत और अधिक टिकाऊ सड़कें बनाने की एक नई विधि है।
- उदाहरण के लिये स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी का सबसे पहले सूरत में इस्तेमाल किया गया था।
- जर्मनी के हैम्बर्ग में कंपनियों ने लागत कम करने, ऊर्जा बचाने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये 100% पुनर्नवीनीकरण डामर फुटपाथ (RAP) विकसित किया।
- भारत ने कुल 2,500 किलोमीटर से अधिक विस्तृत प्लास्टिक सड़कों का निर्माण किया है और वैश्विक स्तर पर भी 15 से अधिक देशों में प्लास्टिक की सड़कों का निर्माण किया जा रहा है।
- उदाहरण के लिये लद्दाख में सड़क निर्माण के लिये कम-से-कम 10% प्लास्टिक कचरे का उपयोग किया जाना अनिवार्य है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. ग्रामीण सड़क निर्माण में, पर्यावरणीय दीर्घोपयोगिता को सुनिश्चित करने अथवा कार्बन पदचिह्न को घटाने के लिये निम्नलिखित में से किसके प्रयोग को अधिक प्राथमिकता दी जाती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न. केंद्रीय बजट 2011-12 में जैव-मूल ऐस्फाल्ट (बायोऐस्फाल्ट) पर मूल सीमा-शुल्क की पूरी छूट प्रदान की गई है। इस पदार्थ का क्या महत्त्व है? (2011)
उपर्युक्त में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (b) |