प्रारंभिक परीक्षा
असम के चराइदेव मोईदाम
- 24 Jan 2023
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केंद्र ने इस वर्ष यूनेस्को विश्व विरासत स्थल के लिये असम में चराइदेव मोईदाम को नामित करने का निर्णय लिया है।
- पूर्वोत्तर भारत में सांस्कृतिक विरासत की श्रेणी में फिलहाल कोई विश्व विरासत स्थल नहीं है।
- चराइदेव मोईदाम का नामांकन ऐसे समय में महत्त्वपूर्ण हो गया है जब देश लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती मना रहा है।
चराइदेव मोईदाम:
- चराइदेव मोईदाम/मैदाम , असम में ताई अहोम समुदाय की उत्तर मध्यकालीन (13वीं-19वीं शताब्दी) टीला दफन परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है।
- यह अहोम राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को प्रतिष्ठापित करता है, जिन्हें उनकी सामग्री के साथ दफनाया जाता था।
- 18 वीं शताब्दी के बाद अहोम शासकों ने दाह संस्कार की हिंदू पद्धति को अपनाया और चराईदेव के मोईदाम में दाह संस्कार की हड्डियों एवं राख को दफनाना शुरू कर दिया।
- अब तक खोजे गए 386 मोईदाम में से अहोमों के टीले की दफन परंपरा के चराईदेव में 90 शाही समाधि सुव्यवस्थित ढंग से संरक्षित, सबसे अधिक प्रतिनिधित्त्व वाले और पूर्ण उदाहरण हैं।
अहोम साम्राज्य:
- परिचय:
- वर्ष 1228 में असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में स्थापित, अहोम साम्राज्य ने 600 वर्षों तक अपनी संप्रभुता बरकरार रखी।
- छोलुंग सुकफा (Chaolung Sukapha) 13वीं शताब्दी के अहोम साम्राज्य के संस्थापक थे।
- अहोम ने छह शताब्दियों तक असम पर शासन किया था। अहोम शासकों का इस भूमि पर नियंत्रण वर्ष 1826 की यांडाबू की संधि (Treaty of Yandaboo) होने तक था।
- राजनीतिक व्यवस्था:
- अहोमों ने भुइयाँ (ज़मींदारों) की पुरानी राजनीतिक व्यवस्था को समाप्त कर एक नया राज्य बनाया।
- अहोम राज्य बंधुआ मज़दूरों (Forced Labour) पर निर्भर था। राज्य के लिये इस प्रकार की मज़दूरी करने वालों को पाइक (Paik) कहा जाता था।
- समाज:
- अहोम समाज को कुल/खेल (Clan/Khel) में विभाजित किया गया था। एक कुल/खेल का सामान्यतः कई गाँवों पर नियंत्रण होता था।
- अहोम साम्राज्य के लोग अपने स्वयं के आदिवासी देवताओं की पूजा करते थे, फिर भी उन्होंने हिंदू धर्म और असमिया भाषा को स्वीकार किया।
- हालाँकि अहोम राजाओं ने हिंदू धर्म अपनाने के बाद भी अपनी पारंपरिक मान्यताओं को पूरी तरह से नहीं छोड़ा।
- सैन्य रणनीति:
- अहोम सेना की पूरी टुकड़ी में पैदल सेना, नौसेना, तोपखाने, हाथी, घुड़सवार सेना और जासूस शामिल थे।
- युद्ध में इस्तेमाल किये जाने वाले मुख्य हथियारों में तलवार, भाला, बंदूक, तोप, धनुष और तीर शामिल थे।
- अहोम सैनिकों को गोरिल्ला युद्ध (Guerilla Fighting) में विशेषज्ञता प्राप्त थी। उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी पर नाव का पुल (Boat Bridge) बनाने की तकनीक भी सीखी थी।
- अहोम सेना की पूरी टुकड़ी में पैदल सेना, नौसेना, तोपखाने, हाथी, घुड़सवार सेना और जासूस शामिल थे।
लचित बोरफुकन:
- 24 नवंबर, 1622 को जन्मे बोरफुकन को 1671 में सरायघाट की लड़ाई में उनके नेतृत्व के लिये जाना जाता था, जिसमें मुगल सेना के असम पर कब्ज़ा करने के प्रयास को विफल कर दिया गया था।
- सरायघाट की लड़ाई 1671 में गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के तट पर लड़ी गई थी।
- इसे एक नदी पर सबसे बड़ी नौसैनिक लड़ाइयों में से एक माना जाता है जिसके परिणामस्वरूप मुगलों पर अहोम की जीत हुई।
- उन्हें महान नौसैनिक रणनीतियों से भारत की नौसेना को मज़बूत करने, अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने और इससे जुड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु जाना जाता है।
- लचित बोरफुकन स्वर्ण पदक राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को दिया जाता है।
- इस पदक की स्थापना 1999 में रक्षाकर्मियों को बोरफुकन की वीरता और बलिदान का अनुकरण करने हेतु प्रेरित करने के लिये की गई थी।
- इस पदक की स्थापना 1999 में रक्षाकर्मियों को बोरफुकन की वीरता और बलिदान का अनुकरण करने हेतु प्रेरित करने के लिये की गई थी।