वायु स्वतंत्र प्रणोदन प्रौद्योगिकी | 04 May 2022
हाल ही में फ़्रांँस के नेवल ग्रुप ने P-75 इंडिया प्रोजेक्ट के लिये बोली को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि यह अभी तक एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन ( AIP) प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं करता है।
- लगभग 10 देश एआईपी प्रौद्योगिकी विकसित कर चुके हैं या विकसित करने के करीब हैं तथा लगभग 20 देशों के पास एआईपी पनडुब्बियांँ मौजूद हैं।
प्रोजेक्ट-75 इंडिया:
- जून 1999 में कैबिनेट कमेटी ऑफ सिक्योरिटी (CCS) ने 30 वर्षीय पनडुब्बी निर्माण योजना को मंज़ूरी दी थी जिसमें वर्ष 2030 तक 24 पारंपरिक पनडुब्बियों का निर्माण करना शामिल था।
- पहले चरण में उत्पादन की दो श्रृंखलायें स्थापित की जानी थीं- पहली, पी-75; दूसरी, पी-75आई। प्रत्येक श्रृंखला को छह पनडुब्बियों का उत्पादन करना था।
- जबकि छह P-75 पनडुब्बियांँ डीज़ल-इलेक्ट्रिक हैं, उन्हें बाद में AIP तकनीक से सुसज्जित किया जा सकता है।
- पहले चरण में उत्पादन की दो श्रृंखलायें स्थापित की जानी थीं- पहली, पी-75; दूसरी, पी-75आई। प्रत्येक श्रृंखला को छह पनडुब्बियों का उत्पादन करना था।
- इस परियोजना में 43,000 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से अत्याधुनिक वायु-स्वतंत्र प्रणोदन प्रणाली से लैस छह पारंपरिक पनडुब्बियों के स्वदेशी निर्माण की परिकल्पना की गई है।
वायु स्वतंत्र प्रणोदन:
- परिचय:
- AIP पारंपरिक गैर-परमाणु पनडुब्बियों के लिये तकनीक है।
- पनडुब्बियांँ अनिवार्य रूप से दो प्रकार की होती हैं: पारंपरिक और परमाणु।
- पारंपरिक पनडुब्बियांँ डीज़ल-इलेक्ट्रिक इंजन का उपयोग करती हैं, जिससे उन्हें ईंधन के दहन के लिये वायुमंडलीय ऑक्सीजन प्राप्त करने हेतु प्रतिदिन सतह पर आना पड़ता है।
- यदि पनडुब्बी AIP प्रणाली से सुसज्जित है तो इन्हें सप्ताह में केवल एक बार ऑक्सीजन लेने की आवश्यकता होगी।
- स्वदेशी रूप से विकसित AIP नौसेना सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला (NMRL-DRDO) के प्रमुख मिशनों में से एक है, जिसे नौसेना के लिये DRDO (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) की महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक माना जाता है।
- ईंधन सेल आधारित AIP प्रणाली:
- ईंधन सेल आधारित AIP में इलेक्ट्रोलाइटिक ईंधन सेल केवल पानी के साथ हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोजन से ऊर्जा उत्पादन करता है जिससे समुद्री प्रदूषण करने वाले अपशिष्ट उत्पाद कम उत्पन्न होते हैं।
- ये सेल अत्यधिक कुशल होते हैं और इनमें गतिमान पुर्जे नहीं होते हैं, इस प्रकार ये सेल यह सुनिश्चित करते हैं कि पनडुब्बी में ध्वनि का कम उत्सर्जन हो।
AIP के लाभ और हानि:
- लाभ:
- डीज़ल इलेक्ट्रिक पनडुब्बी की मारक क्षमता पर AIP का बल गुणक प्रभाव डालता है क्योंकि यह नाव की पानी के अंदर रहने की क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है।
- ईंधन सेल आधारित AIP अन्य प्रौद्योगिकियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करती है।
- AIP तकनीक एक पारंपरिक पनडुब्बी को सामान्य डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की तुलना में अधिक समय तक जलमग्न रखती है।
- सभी पारंपरिक पनडुब्बियों को अपने जनरेटर चलाने के लिये सतह पर उतरना पड़ता है जो उसकी बैटरी को रिचार्ज करते हैं और नाव को पानी के नीचे कार्य करने में सक्षम बनाते हैं।
- हालँकि जितनी अधिक बार एक पनडुब्बी सतह पर आती है, शत्रुओं द्वारा इसकी निगरानी की संभावना उतनी ही अधिक बढ़ जाती है।
- डीज़ल-इलेक्ट्रिक नौकाओं द्वारा दो से तीन दिनों की तुलना में AIP किसी पनडुब्बी को लगभग 15 दिनों से अधिक समय तक पानी के अंदर रखने में सक्षम है।
- हानि:
- AIP स्थापित करने से नावों की लंबाई और वज़न बढ़ जाता है, इसके लिये जहाज़ पर दबावयुक्त तरल ऑक्सीजन (LOX) भंडारण और तीनों प्रौद्योगिकियों हेतु आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
- MESMA (ऑटोनॉमस सबमरीन एनर्जी मॉड्यूल) और स्टर्लिंग इंजन के गतिमान भागों से कुछ ध्वनिक शोर उत्पन्न होता है जिस कारण पनडुब्बी की इकाई लागत लगभग 10% बढ़ जाती है।
वर्तमान में भारत के पास उपलब्ध पनडुब्बियांँ:
- भारत में 16 पारंपरिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियांँ हैं, जिन्हें एसएसके (SSKs) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पी-75 के तहत अंतिम दो कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियों के चालू होने के बाद यह संख्या बढ़कर 18 हो जाएगी।
- भारत के पास दो परमाणु बैलिस्टिक पनडुब्बी भी हैं जो सबमर्सिबल शिप बैलिस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर (Submersible Ship Ballistic Missile Nuclear-SSBN) के रूप में वर्गीकृत हैं।
- 30 वर्ष की परियोजना के तहत P-75I के पूरा होने तक भारत के पास छह डीज़ल-इलेक्ट्रिक, छह एआईपी-संचालित और छह परमाणु हमले वाली पनडुब्बियांँ होने का अनुमान है।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा 'आईएनएस अस्त्रधारिणी' का सबसे अच्छा वर्णन है, जो हाल ही में खबरों में था? (2016) (a) उभयचर (एम्फिब) युद्ध जहाज़ उत्तर: (c) |