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‘परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियाँ’: संभावनाएँ और चुनौतियाँ

  • 23 Nov 2021
  • 14 min read

यह एडिटोरियल 22/11/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Tackling the Problem of Bad Loans” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में ‘बैड लोन्स’ के समाशोधन की बाधाओं और ARCs के प्रदर्शन में सुधार के लिये आवश्यक उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

पिछले पाँच वर्षों में बैंकों के ‘अशोध्य ऋण’ (Bad Debt) के समाधान और वसूली में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। हालाँकि, व्यवस्था में अभी भी लगभग 10 लाख करोड़ रुपए की तनावग्रस्त परिसंपत्ति का समाधान नहीं हो सका है।

‘कंपनी अधिनियम, 2013’ में समाविष्ट ‘राष्ट्रीय परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी’ (National Asset Reconstruction Company- NARCL) उधारदाताओं के बैलेंस शीट के त्वरित समाधान की एक उम्मीद पैदा करती है।  

NARCL का गठन एक स्वागतयोग्य पहल तो है, लेकिन उच्च और आवर्ती गैर-निष्पादित संपत्ति निर्माण के संचय की मूलभूत समस्या को संबोधित करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। 

भारत में परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियाँ (ARCs)

  • ARCs की स्थिति: वर्तमान में परिचालित 28 ARCs (निजी क्षेत्र) में से कई की भूमिका काफी सीमित है। केवल शीर्ष 5 ARCs ही प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति (Asset Under Management- AUM) के 70% से अधिक और पूंजी के 65% से अधिक भाग के लिये उत्तरदायी हैं।  
    • यहाँ तक ​​कि निजी क्षेत्र के ARCs ने भी ‘जॉम्बी एसेट्स’ की बिक्री में बेहतर प्रदर्शन नहीं किया है और अधिग्रहित परिसंपत्तियों में से मात्र 13.9% की बिक्री में सफल हुए हैं।  
      • लगभग एक तिहाई ऋण पुनर्निर्धारित किये गए हैं।
      • यह उतना मूल्यवर्द्धन नहीं है जितना कि उधारदाताओं ने बिना किसी अतिरिक्त लागत के कर लिया होता।
  • ‘अशोध्य ऋणों’ के समाधान के लिये पूर्व में की गई पहलें:
    • पिछले तीन दशकों में अशोध्य ऋणों के समाधान के लिये कई संस्थागत और नीतिगत उपाय किये गए हैं। इन संस्थागत उपायों में शामिल हैं:
    • हालाँकि लोक अदालत, ‘ऋण वसूली न्यायाधिकरण’ और सरफेसी अधिनियम क्रमशः 6.2%, 4.1% और 26.7% समाधान ही दे सके।
    • रिज़र्व बैंक ने भी वर्ष 2013-14 के दौरान तनावग्रस्त संपत्तियों के समाधान, पुनर्निर्माण और पुनर्गठन के लिये कई उपाय शुरू किये।
      • यद्यपि ये उपाय भी उद्देश्य की पूर्ण पूर्ति में सफल नहीं रहे और बाद में उन्हें त्याग दिया गया।   
  • NARCL की स्थापना: राष्ट्रीय परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी (NARCL) को कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत शामिल किया गया है और इसने ‘परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी’ (Asset Reconstruction Company- ARC) के रूप में लाइसेंस के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक को आवेदन किया है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र में नवस्थापित NARCL ऋणदाताओं की बैलेंस शीट के तीव्र ‘क्लीन अप’ की उम्मीदें देता है। 
      • संकटग्रस्त संपत्तियों के समाधान के मामले में यह 30वीं और सार्वजनिक क्षेत्र की पहली ARC है।  
    • इसकी सर्वप्रमुख विशेषता संकटग्रस्त संपत्तियों के तीव्र एकत्रीकरण में निहित है। इसके साथ ही, इसकी प्रतिभूतिकृत रसीदें (Securitised Receipts- SRs) संप्रभु आश्वासन रखती हैं।  
    • यह आरंभ में 500 करोड़ रुपए से अधिक के ऋण वाले बड़े खातों पर ध्यान केंद्रित करेगी और उम्मीद है कि बैंकों को कष्टप्रद वसूली प्रक्रिया से मुक्त करेगी, जिससे उन्हें बेहद आवश्यक क्रेडिट विस्तार पर ध्यान केंद्रित करने के लिये अधिक अवसर मिल सकेगा।  
  • IBC की प्रगति: दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), 2016 एक अभूतपूर्ण अधिनियमन है, जिसमें कानूनी रूप से बाध्य समयबद्ध समाधान प्रक्रिया भी शामिल है।
    • गुणात्मक रूप से, इसने धन की हेराफेरी करने वाले शातिर कॉर्पोरेट उधारकर्त्ताओं के अंदर भय की एक भावना पैदा की और उनके कृत्यों पर अंकुश लगाया। इसने ‘एवरग्रीनिंग’ को लगभग समाप्त कर दिया है।   
    • भले ही इस नई प्रकिया के तहत भी देरी की समस्या विद्यमान है, किंतु यह उतनी अधिक नहीं है, जितनी पूर्व होती थी।

‘बैड लोन्स’ के समाशोधन के मार्ग की चुनौतियाँ

  • NCLT में पर्याप्त अवसंरचना की कमी: राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLT) ’दिवाला और दिवालियापन संहिता’ का आधार है, लेकिन दुर्भाग्य से यह अवसंरचना की कमी से जूझ रहा है और इसके बेंचों में 50% (63 में से 34) रिक्तियाँ मौजूद हैं।     
    • NCLT के पास 9.2 लाख करोड़ रुपए मूल्य के संकटग्रस्त ऋण से संबद्ध 13,170 से अधिक मामले लंबित पड़े हैं। 
    • पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की कमी के साथ ही इसके निर्णयों की खराब गुणवत्ता IBC की बड़ी कमज़ोरी साबित हुई है।
  • पहचान और समाधान की देरी: IBC को संदर्भित मामलों के 47% (1,349 से अधिक मामले) के परिसमापन/ऋणमुक्ति (Liquidation) के आदेश दिये गए हैं।  
    • इनमें से 70% से अधिक मामले दशकों से ‘औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड’ (अब विघटित) के पास लंबित पड़े थे।  
    • लेनदारों के लगभग 6.9 लाख करोड़ रुपए के कुल दावों के मुकाबले परिसमापन मूल्य (Liquidation Value) केवल 0.49 लाख करोड़ रुपए थी। 
  • ‘एंकरिंग बाएज़’ लगभग ‘लिक्विडेशन वैल्यू’ के बराबर: उपलब्ध जानकारी के आधार पर निर्णय लेने की प्रवृत्ति को ‘एंकरिंग बाएज़’ (Anchoring Bias) कहा जाता है। 
    • संकटग्रस्त संपत्तियों के लिये बोली लगाने में यह जानकारी ARCs के लिये अधिग्रहण की लागत है। 
      • IBC प्रक्रिया के मामले में, यह IBBI (Insolvency and Bankruptcy Board of India) मूल्यांकनकर्त्ताओं द्वारा निर्धारित परिसमापन मूल्य है।  
    • इन संकटग्रस्त संपत्तियों को NARCL द्वारा 20% पर अधिग्रहित किया जा सकता है।
      • अधिग्रहण की यह कम लागत ‘एंकर इफेक्ट एंड बाएज़’ (Anchor Effect and Bias) से ग्रस्त होगी। संभावित बोलीकर्त्ता इसी एंकर के निकटतम कीमतों को कोट करेंगे।

आगे की राह

  • न्यायिक और नियामक सुधार: शीघ्र और अंतिम समाधानों के लिये न्यायिक सुधारों की तत्काल आवश्यकता है।   
    • उधारदाताओं और नियामकों को विलंबित पहचान और समाधान के मुद्दे को संबोधित करना चाहिये।
      • अधिक लचीली प्रावधान आवश्यकताओं के लिये उधारदाताओं को प्रोत्साहित करना उन्हें इसके त्वरित पहचान के लिये प्रेरित करेगा।  
      • NPA वर्गीकरण पर नियामक मानदंडों से भी पहले व्यावसायिक तनाव और/या वित्तीय तनाव की पहचान किये जाने की ज़रूरत है।  
  • ‘एंकर बाएज़’ को कम करना: नोबेल पुरस्कार विजेता डैनियल कैनेमैन (Daniel Kahneman) का मानना है कि ‘एंकरिंग इफेक्ट प्रयोगशाला जिज्ञासा भर नहीं है और वास्तविक दुनिया में भी उतना ही प्रभावशील हो सकता है।’ 
    • उनके अनुसार, ‘जब लोगों को एक कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ता है तो वे प्रायः आसान विकल्प खोजने लगते हैं और ‘एंकर बाएज़’ इसी विकल्प के रूप में कार्य करता है।’ इसे ‘विपरीत दृष्टिकोण’ से कम किया जा सकता है। 
    • उन्होंने ‘एंकर बाएज़’ को कम करने के लिये तीन-चरणीय प्रक्रिया का सुझाव दिया है:
      • पूर्वाग्रह को स्वीकार करना।
      • सूचना के अधिक-से-अधिक नए स्रोतों की तलाश करना। 
      • नई सूचना के आधार पर निर्णय लेना। 
        • बेहतर बाह्य मूल्य खोज द्वारा एंकर बाएज़ के शमन की आवश्यकता है। 
  • नए ARC के लिये उपाय: IBC ने विलफुल डिफॉल्टरों द्वारा संकटग्रस्त संपत्ति को वापस ग्रहण करने पर रोक लगा उनके व्यवहार में बदलाव लाने में काफी प्रगति की है। 
    • NARC को इस सिद्धांत को प्रभावित किये बिना इसे बनाए रखना चाहिये, अन्यथा इससे ‘क्रेडिट संस्कृति’ प्रभावित होगी।  
    • इसके साथ ही, नैतिक खतरे के स्थायीकरण से बचने और शीघ्र समाधान को प्रोत्साहित करने के लिये इसमें तीन से पाँच वर्ष की अवधि का ‘सनसेट क्लॉज़’ (Sunset Clause) शामिल होना चाहिये।  
      • इसे अन्य ARCs को बिक्री किये जाने से भी बचना चाहिये। 
  • NPAs के संचय को सीमित करना: NARCL एक स्वागतयोग्य पहल है, लेकिन समाधान और पुनर्प्राप्ति के उपाय और ढाँचों से ही उच्च और आवर्ती NPA निर्माण के संचय की मूलभूत समस्या का समाधान नहीं पाया जा सकता। 
    • इसलिये, NPA के संचय को 2% से कम रखना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

अभ्यास प्रश्न: ‘बैड लोन्स’ के कारण बैंकिंग क्षेत्र के समक्ष विद्यमान समस्याओं की चर्चा कीजिये और विचार कीजिये कि परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों (ARCs) का बेहतर कार्यकरण किस प्रकार ‘बैड लोन्स’ के तनाव को कम करने में मदद कर सकता है।

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