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भारतीय राजव्यवस्था

संघ बनाम दिल्ली सरकार

  • 23 Mar 2021
  • 11 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के मध्य संबंधों के समक्ष मौजूद चुनौतियों तथा इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2021 प्रस्तावित किया गया। केंद्र सरकार इस विधेयक के माध्यम से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के प्रशासन को चलाने से संबंधित कानून में संशोधन करना चाहती है जो दिल्ली के प्रशासनिक ढाँचे के क्रियान्वयन पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों द्वारा दी गई व्याख्या को प्रभावित करता है।

हालाँकि कई संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि प्रस्तावित विधेयक न्यायालय द्वारा दी गई व्याख्या के प्रतिकूल है। उनके अनुसार, यदि विधेयक कानून बन जाता है तो यह नियुक्त उपराज्यपाल (Lieutenant Governor- LG) की अपेक्षा चुनी हुई सरकार की स्थिति को अधिक मज़बूत करने के न्यायालय के प्रयासों को पूरी तरह से कमज़ोर कर देगा।

प्रमुख प्रस्तावित संशोधन 

  • सरकार की परिभाषा में बदलाव: प्रस्तावित विधेयक में ’सरकार’ के सभी संदर्भों का अर्थ कार्यकारी मंत्रिपरिषद के बजाय “उपराज्यपाल” में निहित होने को उल्लेखित किया गया है। 
  • LG की शक्तियों का विस्तार: यह विशिष्ट मामलों में निर्वाचित सरकार को LG से परामर्श लेने के लिये उपराज्यपाल की शक्तियों का विस्तार करता है। इसके अलावा इस प्रकार के "मामलों" को एक सामान्य या विशिष्ट आदेश के माध्यम से परिभाषित करने का उत्तरदायित्व उपराज्यपाल की शक्तियों में ही निहित किया गया है।
  • कमज़ोर विधानसभा: यह विधेयक विधानसभा को दिन-प्रतिदिन के प्रशासन हेतु अपनी समितियों के लिये नियम बनाने से रोककर उसकी शक्तियों को कमज़ोर करता है।

दिल्ली शासन संरचना पर सर्वोच्च न्यायालय

  • पृष्ठभूमि: भारत के संविधान में 69वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 239AA निर्दिष्ट किया गया, जिसमें दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश को LG द्वारा प्रशासित घोषित किया गया जो निर्वाचित विधानसभा की सहायता और परामर्श पर काम करता है।
    • हालाँकि 'सहायता और परामर्श' खंड केवल निर्वाचित विधानसभा के पास राज्य तथा समवर्ती सूचियों  के मामलों से संबंधित है और सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस तथा भूमि इसके अपवाद हैं।
    • इसके अलावा अनुच्छेद 239AA यह भी संदर्भित करता है कि LG को मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श पर कार्य करना होगा इसके अतिरिक्त वह राष्ट्रपति द्वारा द्वारा दिये गए निर्देशों को लागू करने के लिये बाध्य है।
    • साथ ही अनुच्छेद 239AA, LG को 23 विभिन्न मामलों पर राष्ट्रपति के साथ मंत्रिपरिषद के मतभेद का उल्लेख करने का अधिकार देता है।
    • इस प्रकार LG और निर्वाचित सरकार के बीच इस दोहरे नियंत्रण से सत्ता में तनाव पैदा होता है, जिसे वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के पास भेजा गया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 4 जुलाई, 2018 को संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में कहा कि संविधान में LG को स्वतंत्र निर्णय लेने की कोई शक्ति नहीं सौंपी गई है।
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति को "किसी भी मामले" को संदर्भित करने की शक्ति का तात्पर्य प्रत्येक मामले से नहीं था।
    • दूसरे शब्दों में LG, राष्ट्रपति के समक्ष किसी भी मामले का उल्लेख नहीं कर सकता है; उसे "संवैधानिक निष्पक्षता" को नियोजित करना होगा और इस शक्ति का प्रयोग दुर्लभ स्थितियों में वैध कारणों के आधार पर करना होगा।
    • इस प्रकार प्रत्येक मामले में राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता नहीं है और उससे परामर्श "नियमित या याँत्रिक तरीके" के बजाय केवल असाधारण परिस्थितियों में लिया जाना चाहिये।

नोट 

  • एनसीटी बनाम यूओआई (NCT vs UOI) मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने वर्ष 2018 में ‘संवैधानिक निष्पक्षता’ (Constitutional Objectivity) शब्द का उल्लेख किया जो विधायिका और कार्यकारी के बीच जाँच तथा संतुलन की कुंजी है।
  • संवैधानिक निष्पक्षता यह सुनिश्चित करती है कि दोनों स्तरों की सरकारें अपने आवंटित क्षेत्रों के भीतर काम करती रहें क्योंकि "वैध संवैधानिक विश्वास" किसी भी कार्य को अंतिम लक्ष्य प्राप्त करने के लिये शक्तियों के वितरण और पृथक्करण पर आधारित है।

विधेयक के खिलाफ तर्क

  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ: विधेयक का सार दिल्ली विधानसभा द्वारा पारित कानून के संदर्भ में ’सरकार’ के सभी संदर्भों का अर्थ “उपराज्यपाल” में निहित होने से है।
    • इस निर्णय के पीछे मार्गदर्शक सिद्धांत का तर्क यह था कि निर्वाचित सरकार की शक्तियों का सीमांकन नियुक्त प्रशासक द्वारा कम नहीं किया जाना चाहिये। विधेयक निर्वाचित प्रतिनिधियों की लगभग सभी शक्तियों का उन्मूलन करता है।
    • इस विधेयक में वर्ष 2018 के निर्णय का खंडन किया गया है, जो स्पष्ट करता है कि LG के बजाय मुख्यमंत्री सहित मंत्रिपरिषद दिल्ली सरकार की कार्यकारी प्रमुख हैं।
  • प्रतिनिधि सरकार का रोलबैक: विधेयक में शासनिक शक्ति उपराज्यपाल में निहित कर चुनी हुई सरकार और LG के बीच उत्तरदायित्त्व के असामंजस्य को समाप्त करता है।
    • इसके अलावा चुनी हुई सरकार के लिये कार्यकारी कार्रवाई करने से पहले LG की राय की आवश्यकता प्रभावी रूप से निर्वाचित सरकार को शक्तिहीन बना सकती है।
    • इसके अलावा यह विधेयक विधानसभा या उसकी समितियों को दिन-प्रतिदिन के प्रशासन के किसी भी मामले पर चर्चा करने या प्रतिनिधि सरकार के रोलबैक के लिये पूछताछ करने के अधिकार को शून्य घोषित करता है।
  • संघीय राजनीति की केंद्रीयता: हाल ही में केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं जो कि संघवाद (कृषि विधेयक, धारा 370 के निरसन आदि) की भावना को कम करती है। यह विधेयक भारत की संघीय राजनीति को केंद्रीयकृत करने की दिशा में एक और उचित कदम है।
    • हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि इस तरह के विधेयक भारत की चुनावी निरंकुशता की अंतर्राष्ट्रीय धारणा को मज़बूत कर सकते हैं।

आगे की राह  

  • संवैधानिक विश्वास (Constitutional Trust) के माध्यम से कार्य करना: शीर्ष न्यायालय द्वारा निर्णय में उल्लेख किया गया था कि संविधान में निहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम, 1991 एक सहयोगात्मक संरचना की परिकल्पना करता है जिसमें केवल संवैधानिक विश्वास के माध्यम से ही काम किया जा सकता है।
    • इस प्रकार इस विधेयक को एक प्रवर समिति के पास भेजा जाना चाहिये और कृषि विधेयकों की तरह ज़ल्दबाजी में पारित नहीं किया जाना चाहिये।
    • ऐसे मामलों में सर्वसम्मति सुनिश्चित की जानी चाहिये जो संघवाद के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित उच्च सिद्धांतों के अनुरूप हो।
  • सब्सिडियरी का सिद्धांत (Principle of Subsidiarity) सुनिश्चित करना: सब्सिडियरी (राजकोषीय संघवाद का संस्थापक) सिद्धांत आवश्यक रूप से उपराष्ट्रीय सरकारों को सशक्त बनाता है।
    • इससे केंद्र सरकार को उपराष्ट्रीय सरकारों को अधिक-से-अधिक शक्तियाँ आवंटित करने की दिशा में बढ़ना चाहिये।
    • इस संदर्भ में भारत को दुनिया भर के जकार्ता और सियोल से लेकर लंदन व पेरिस जैसे बड़े मेगापोलिस का अनुसरण करना चाहिये जहाँ  मज़बूत उप-राष्ट्रीय सरकारें कार्यरत हैं।

निष्कर्ष

संवैधानिकता का मूल सिद्धांत सीमित शक्तियों की अवधारणा को केंद्रीय मानता है     । इन लोकाचारों को बनाए रखने के लिये सबसे ज़्यादा महत्त्व उन लोगों को दिया जाना चाहिये जो वास्तविक संप्रभु हैं और अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के रूप में कार्य करते हैं।

प्रश्न. "उपराज्यपाल का शासन” शासन की कैबिनेट प्रणाली का मूल सिद्धांत नहीं है"। हाल ही में दिल्ली सरकार के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (संशोधन) विधेयक, 2021 के संदर्भ में कथन का विश्लेषण कीजिये।

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