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दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक, 2021

  • 18 Mar 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम, 1991 में संशोधन के लिये दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक, 2021 को लोकसभा में पेश किया।

  • इसका उद्देश्य दिल्ली में निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल के दायित्त्वों को और अधिक स्पष्ट करना है।

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प्रमुख बिंदु

विधेयक के प्रावधान

  • ‘सरकार’ का अर्थ ‘उपराज्यपाल’: विधानसभा द्वारा बनाए जाने वाले किसी भी कानून में संदर्भित 'सरकार' का अर्थ उपराज्यपाल (LG) से होगा।
  • उपराज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का विस्तार: यह विधेयक उपराज्यपाल को उन मामलों में भी विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान करता है, जहाँ कानून बनाने का अधिकार दिल्ली विधानसभा को दिया गया है।
  • उपराज्यपाल से विमर्श: यह विधेयक सुनिश्चित करता है कि मंत्रिपरिषद (अथवा दिल्ली मंत्रिमंडल) द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय को लागू करने से पूर्व उपराज्यपाल को अपनी ‘राय देने हेतु उपयुक्त अवसर प्रदान किया जाए।
  • प्रशासनिक निर्णयों के संबंध में: संशोधन के मुताबिक, दिल्ली विधानसभा राजधानी के दैनिक प्रशासन के मामलों पर विचार करने अथवा प्रशासनिक निर्णयों के संबंध में स्वयं को सक्षम करने के लिये कोई नियम नहीं बनाएगी।

संशोधन की आवश्यकता

  • संरचनात्मक स्पष्टता के लिये: विधेयक के ‘उद्देश्य और कारणों’ को लेकर गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक, वर्ष 1991 के अधिनियम में प्रक्रिया और व्यवसाय के संचालन से संबंधित प्रावधान किये गए हैं, हालाँकि उक्त खंड के प्रभावी समयबद्ध कार्यान्वयन के लिये कोई संरचनात्मक तंत्र स्थापित नहीं किया गया है।
    • इसके अलावा इस बारे में भी स्पष्टता नहीं है कि आदेश जारी करने से पूर्व किस प्रकार के प्रस्ताव अथवा मामलों को उपराज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक है।
    • 1991 के अधिनियम की धारा 44 में कहा गया है कि उपराज्यपाल की सभी कार्यकारी कार्रवाइयाँ, चाहे वे मंत्रिपरिषद की सलाह पर हों अथवा नहीं, उपराज्यपाल के नाम पर ही की जाएंगी।

घटनाओं की पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की एक खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा था कि पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि के अलावा अन्य किसी भी मुद्दे पर उपराज्यपाल की सहमति की आवश्यकता नहीं है।
    • हालाँकि न्यायालय ने कहा था कि मंत्रिपरिषद के निर्णयों के बारे में उपराज्यपाल को सूचित करना आवश्यक होगा।
    • मंत्रिपरिषद की सलाह उपराज्यपाल के लिये बाध्यकारी है। 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि दिल्ली के उपराज्यपाल की स्थिति किसी अन्य राज्य के राज्यपाल जैसी नहीं है, बल्कि सीमित अर्थ में वह केवल एक प्रशासक है।
    • खंडपीठ ने यह भी कहा था कि निर्वाचित सरकार को यह ध्यान में रखना होगा कि दिल्ली एक राज्य नहीं है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद दिल्ली सरकार ने किसी भी निर्णय के लागू होने से पूर्व उपराज्यपाल के पास कार्यकारी मामलों की फाइलें भेजना बंद कर दिया था।
    • दिल्ली सरकार उपराज्यपाल को सभी प्रशासनिक घटनाक्रमों से अवगत तो करा रही थी, किंतु यह कार्य किसी भी निर्णय को लागू करने या निष्पादित करने के बाद किया जा रहा था, न कि उससे पूर्व। 
    • यदि केंद्र सरकार हालिया संशोधन को मंज़ूरी दे देती है, तो निर्वाचित सरकार के लिये मंत्रिमंडल के किसी भी फैसले पर कोई कार्रवाई करने से पूर्व उपराज्यपाल की सलाह लेना आवश्यक हो जाएगा।

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम, 1991

  • एक विधानसभा के साथ केंद्रशासित प्रदेश के रूप में दिल्ली की वर्तमान स्थिति 69वें संविधान संशोधन अधिनियम का परिणाम है, जिसके माध्यम से संविधान में अनुच्छेद 239AA और 239BB शामिल किये गए थे।
  • दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम को राष्ट्रीय राजधानी में विधानसभा और मंत्रिपरिषद से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों के पूरक के रूप में पारित किया गया था।
  • सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिये यह अधिनियम दिल्ली विधानसभा की शक्तियों, उपराज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों और उपराज्यपाल को जानकारी देने से संबंधित मुख्यमंत्री के कर्तव्यों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।

स्रोत: द हिंदू

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