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आपराधिक न्याय प्रशासन में पारदर्शिता

  • 07 Feb 2023
  • 14 min read

यह एडिटोरियल 04/02/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Charge sheet scrutiny is not a case of prying eyes” लेख पर आधारित है। इसमें चार्जशीट की सार्वजनिक संवीक्षा के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बारे में चर्चा की गई है जिसे आपराधिक न्याय प्रणाली में अधिक पारदर्शिता के लिये एक अघात के रूप में देखा जा रहा है।

आपराधिक न्याय प्रशासन में पारदर्शिता का तात्पर्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों और समग्र रूप से आपराधिक न्याय प्रणाली के खुलेपन एवं जवाबदेही से है। इसमें नीतियों, कार्यवाहियों और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के बारे में सार्वजनिक रूप से जानकारी उपलब्ध कराने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना शामिल है कि ये प्रक्रियाएँ उचित और निष्पक्ष हैं।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसकी कुछ सुनवाइयों का सीधा प्रसारण करने और सुनवाई को चार भाषाओं में अनुवादित करने (हिंदी, गुजराती, ओड़िया और तमिल में अनुवाद करने, क्योंकि ‘‘अंग्रेजी भाषा अपने ‘विधिक अवतार’ में 99.9% नागरिकों के लिये अबूझ है’’) का निर्णय न्यायिक प्रक्रियाओं को अधिक सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

इस पृष्ठभूमि में, चार्जशीट के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में दिया गया निर्णय आपराधिक न्याय प्रणाली में पारदर्शिता के लिये एक आघात प्रतीत होता है। न्यायालय ने हाल ही में एक निर्णय के दौरान कहा कि किसी आपराधिक मामले में चार्जशीट को सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act) या भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) के तहत एक सार्वजनिक दस्तावेज़ नहीं माना जा सकता और इसे सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिये।

यह निर्णय न्यायालय द्वारा पारित पूर्व के एक आदेश का खंडन करता प्रतीत होता है, जहाँ यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम भारत संघ (2016) में यह निर्देश दिया गया था कि किसी भी मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को इसे दर्ज कराये जाने के 24 घंटे के भीतर संबंधित जाँच एजेंसी की वेबसाइट पर उपलब्ध करा दिया जाना चाहिये।

न्यायालय के ताज़ा निर्णय को उन लोगों के लिये एक आघात के रूप में देखा जा सकता है जो आपराधिक न्याय प्रशासन में अधिक पारदर्शिता पर ज़ोर देते हैं, क्योंकि इसके जाँच अधिकारियों और अपराध के पीड़ितों के संबंध में कई निहितार्थ उत्पन्न होते हैं।

चार्जशीट को सार्वजनिक करने के लाभ 

  • पारदर्शिता और जवाबदेही में वृद्धि:
    • चार्जशीट को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने से आम लोगों को अभियुक्तों के विरुद्ध साक्ष्यों एवं आरोपों तक पहुँच प्राप्त हो सकती है। यह कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा देती है, क्योंकि आम लोग आरोपों की संवीक्षा कर सकते हैं और प्राधिकारों को उनके कार्यों के लिये ज़िम्मेदार ठहरा सकते हैं।
  • निष्पक्षता और सम्यक प्रक्रिया को बढ़ावा:
    • चार्जशीट के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होने से वृहत सार्वजनिक संवीक्षा को अवसर मिलेगा, जो यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है कि अभियोजन निष्पक्ष एवं उचित प्रक्रिया (due process) का पालन कर रहा है।
    • यह अधिकारियों द्वारा सबूतों में हेरफेर करने या उन्हें दबाने पर अंकुश लगा सकता है, जो यह सुनिश्चित कर सकता है कि आरोपित को निष्पक्ष सुनवाई का अवसर मिले।
  • पूर्ण और निष्पक्ष जाँच:
    • चार्जशीट को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि अभियोजन एक पूर्ण और निष्पक्ष जाँच आगे बढ़ा रहा है । यह न्याय प्रणाली में जनता के भरोसे को बढ़ा सकता है और गवाहों तथ अन्य संबंधित पक्षों को सूचना के साथ आगे आने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
  • न्याय प्रणाली में जनता के भरोसे की वृद्धि:
    • चार्जशीट की सार्वजनिक उपलब्धता से न्याय प्रणाली में जनता के भरोसे की वृद्धि हो सकती है।
    • आम लोग नज़र रख सकते हैं कि अधिकारी कानून का पालन कर रहे हैं और उचित एवं निष्पक्ष जाँच को आगे बढ़ा रहे हैं। इससे कानूनी प्रक्रिया में जनता का विश्वास बहाल करने में मदद मिल सकती है।
  • आपराधिक व्यवहार को भय दिखाकर रोकना:
    • चार्जशीट को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने से अधिकारी यह संदेश दे सकते हैं कि वे यह सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्ध हैं कि आपराधिक व्यवहार को दंडित किया जाए।
    • यह संभावित अपराधियों के लिये एक निवारक (deterrent) के रूप में कार्य कर सकता है क्योंकि उन्हें भय रहेगा कि उनके कृत्यों पर अधिकारियों की गहरी नज़र होगी और वे दंड से बच नहीं सकेंगे।

आपराधिक न्याय प्रशासन में सुधार से संबद्ध अन्य चुनौतियाँ

  • जेलों में क्षमता से अधिक भीड़:
    • भारत की जेलों में अत्यधिक भीड़ की स्थिति है, जिससे कैदियों के लिये बदतर जीवन दशाओं का निर्माण होता है और सुविधाओं के प्रबंधन में कठिनाइयाँ होती हैं।
  • न्याय में देरी:
    • भारत में न्यायिक प्रक्रिया प्रायः धीमी या सुस्त है, जिससे आपराधिक मामलों के समाधान में व्यापक देरी होती है।
  • भ्रष्टाचार:
    • आपराधिक न्याय प्रणाली में भ्रष्टाचार एक बड़ी चुनौती है और यह पुलिस, न्यायपालिका तथा न्याय से संबंधित अन्य संस्थानों की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।
  • संसाधनों की कमी:
    • भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली वित्तीय संसाधनों, जनशक्ति और प्रौद्योगिकी सहित विभिन्न संसाधनों की कमी का सामना कर रही है जो इसकी प्रभावशीलता के लिये बाधाकारी है।

पक्षपात और भेदभाव:

आपराधिक न्याय प्रणाली में पक्षपात और भेदभाव (विशेष रूप से हाशिये पर स्थित समुदायों और महिलाओं के प्रति) को लेकर भी चिंताएँ मौजूद हैं।

आधुनिक प्रौद्योगिकी का अभाव:

भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ तालमेल नहीं रख पाई है, जिससे प्रक्रिया में अक्षमता आ गई है।

सरकार द्वारा किये गए संबंधित उपाय 

  • दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन:
    • निष्पक्ष और त्वरित परीक्षण, मानवाधिकारों की सुरक्षा और आपराधिक न्याय प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये दंड प्रक्रिया संहिता में कई बार संशोधन किया गया है।
  • फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना:
    • आपराधिक न्याय प्रणाली में लंबित मामलों को कम करने के उद्देश्य से आपराधिक मामलों को शीघ्रता से निपटाने के लिये फास्ट-ट्रैक कोर्ट (Fast Track Courts- FTCs) स्थापित किये गए।
  • प्रौद्योगिकी का प्रवेश:
    • प्रक्रिया को अधिक कुशल बनाने के लिये ई-फाइलिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और साक्ष्य के डिजिटल भंडारण जैसी प्रौद्योगिकी को अपनाया गया है।
  • जमानत प्रणाली में सुधार:
    • जमानत प्रणाली में यह सुनिश्चित करने के लिये सुधार किया गया है कि केवल उपयुक्त मामलों में ही अभियुक्तों को जमानत दी जाए, जबकि सुनिश्चित रहे कि न्याय संबंधी हित खतरे में न पड़ें।
  • पुलिस सुधार:

आगे की राह 

  • चार्जशीट को सार्वजनिक दस्तावेज़ बनाना:
    • चार्जशीट को सार्वजनिक दस्तावेज बनाने से निर्दोष व्यक्तियों के विरुद्ध झूठे मुकदमे को रोकने में मदद मिलेगी और भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली की गुणवत्ता में सुधार होगा तथा इससे पारदर्शिता भी आएगी।
    • परीक्षण या सुनवाई शुरू होने से पहले जनता को महत्त्वपूर्ण मामलों में चार्जशीट की समीक्षा करने का अवसर से खराब तरीके से तैयार चार्जशीट की संख्या में कमी आएगी।
  • पुलिस सुधारों को बेहतर बनाना:
    • पुलिस सुधारों में पुलिस प्रक्रियाओं में पारदर्शिता एवं जवाबदेही बढ़ाना, पुलिस बल का आधुनिकीकरण करना और पुलिसकर्मियों के लिये कार्य दशाओं में सुधार करना शामिल है।
  • न्यायिक प्रणाली को सशक्त बनाना:
    • इसमें लंबित मामलों को कम करना, सुनवाई की गति तेज़ करना और न्यायालयों की कार्यक्षमता को बढ़ाना शामिल है। इसमें न्यायपालिका में मौजूद रिक्तियों को भरना और न्यायाधीशों को मानवाधिकारों एवं सम्यक प्रक्रिया पर प्रशिक्षित करना भी शामिल है।
  • जेल की स्थिति में सुधार करना:
    • इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि जेल अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप हैं, वहाँ भीड़ कम की जाए और कैदियों के लिये पुनर्वास कार्यक्रम उपलब्ध हों।
  • भ्रष्टाचार को संबोधित करना:
    • भ्रष्टाचार आपराधिक न्याय प्रणाली को कमज़ोर करता है और इससे प्रभावी ढंग से निपटा जाना चाहिये। भ्रष्टाचार से निपटने के उपायों में भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को लागू करना, पारदर्शिता बढ़ाना और जवाबदेही तंत्र में सुधार लाना शामिल हैं।
  • हाशिये पर स्थित या वंचित समूहों के अधिकारों की रक्षा करना:
    • महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों सहित सभी वंचित समूहों के अधिकारों की रक्षा के लिये आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार किया जाना चाहिये। इसमें न्याय तक पहुँच की स्थिति में सुधार करना और भेदभाव एवं दुर्व्यवहार को संबोधित करना भी शामिल है।
  • प्रौद्योगिकी की भूमिका का विस्तार करना:
    • प्रौद्योगिकी का उपयोग आपराधिक न्याय प्रणाली की दक्षता के आधुनिकीकरण और इसमें सुधार के लिये किया जा सकता है। इसमें न्याय प्रदान करने में सुधार के लिये इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और प्रौद्योगिकी के अन्य रूपों का उपयोग करना शामिल है।
  • कानूनी सहायता तक पहुँच की स्थिति में सुधार लाना:
    • व्यक्तियों के लिये निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिये कानूनी सहायता तक पहुँच (Access to legal aid) महत्त्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करने के लिये सुधार किये जाने चाहिये कि किसी व्यक्ति की कैसी भी वित्तीय स्थिति हो, उसकी कानूनी प्रतिनिधित्व तक पहुँच हो।

अभ्यास प्रश्न: व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा तथा विधि के शासन को बढ़ावा देने के लिये भारत में आपराधिक न्याय प्रशासन को और अधिक पारदर्शी एवं जवाबदेह कैसे बनाया जा सकता है?

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