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भारत के फास्ट ट्रैक कोर्ट की वास्तविकता

  • 10 Aug 2019
  • 4 min read

संदर्भ

सरकार द्वारा पोक्सो अधिनियम (POCSO Act) के अंतर्गत लंबित मामलों की सुनवाई के लिये 1023 फास्ट ट्रैक कोर्ट के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी आदेश दिया है कि जिन ज़िलों में 100 से अधिक (पोक्सो अधिनियम के अंतर्गत आने वाले) मामले लंबित हैं, वहाँ इनके निपटान हेतु विशेष न्यायालयों की स्थापना की जाए।

प्रमुख बिंदु

  • फास्ट ट्रैक कोर्ट (Fast-track courts-FTCs) लंबे समय से अस्तित्व में हैं, पहली बार इनकी स्थापना वर्ष 2000 में की गई थी।
  • कानून और न्याय मंत्रालय के अनुसार, मार्च 2019 के अंत तक देश भर में कुल 581 FTCs कार्यरत थे, जिनमें लगभग 5.9 लाख मामले लंबित थे।
  • 56 प्रतिशत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों जिनमें कर्नाटक, मध्यप्रदेश, गुजरात जैसे राज्य शामिल है, में एक भी FTC नहीं हैं।
  • केंद्र द्वारा वर्ष 2000-2001 और वर्ष 2010-2011 के बीच FTCs के लिये 870 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की गई।

FTCs से संबंधित चिंताएँ

  • मौजूदा तंत्र के अनुकूलन और समस्याओं के समाधान के बिना न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने से ऐच्छिक परिणाम प्राप्त नहीं होंगे।
  • नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, विभिन्न राज्यों में FTCs द्वारा मामलों को हल किये जाने के तरीकों में काफी विविधता है।
  • कुछ राज्यों द्वारा FTCs को बलात्कार और यौन अपराधों से संबंधित मामले सौंपे जाते हैं जबकि कुछ राज्यों द्वारा FTCs को अन्य मामले भी सौंपे जाते हैं।
  • बहुत से FTCs तकनीकी साधनों की कमी के चलते गवाहों की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं कर पाते हैं तथा इनके पास नियमित कर्मचारी भी नहीं होते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय की कोर्ट न्यूज़ से मिले एक डाटा के अनुसार, कर्नाटक में वर्ष 2012 से 2017 के बीच जजों की संख्या में वृद्धि तो हुई किंतु लंबित मामलों में कोई विशेष कमी देखने को नहीं मिली।

आगे की राह

  • कर्मचारियों की संख्या और आई. टी. अवसंरचना, फोरेंसिक विज्ञान से संबंधित प्रयोगशालाओं से मिलने वाली रिपोर्ट में देरी, तुच्छ विज्ञापन और बढ़ते हुए मामलों की सूची आदि कुछ ऐसी समस्याएँ हैं, जिनका जल्द-से-जल्द निवारण किया जाना चाहिये।
  • मामलों के समय पर निपटान के लिये मुद्दों की सटीक तरीके से पहचान की जानी चाहिये।
  • राज्यों को उच्च ज़िला न्यायधीशों के साथ मिलकर इस दिशा में कार्य करना चाहिये ताकि विभिन्न ज़िला न्यायालयों द्वारा सामना किये जा रहे मामलों की जानकारी प्राप्त की जा सकें।
  • महानगरों और गैर-महानगरों दोनों के संदर्भ में लंबित मामलों की सुनवाई हेतु पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • FTCs की रोज़ाना कार्यवाही को प्रभावित करने वाले कुछ जटिल मुद्दों जैसे- अनियमित कर्मचारी, भौतिक अवसंरचना की कमी, फोरेंसिक प्रयोगशालाओं में स्टाफ की कमी, आदि को गंभीरता से लेते हुए आवश्यक कार्यवाही की जानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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