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भारतीय अर्थव्यवस्था

कौशल भारत में तत्काल सुधारों की आवश्यकता

  • 11 Apr 2018
  • 13 min read

चर्चा में क्यों ?
ऐसा माना जा रहा है कि व्यावसायिक शिक्षा में सुधार किये बिना देश अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का समुचित दोहन नहीं कर सकता है, अतः भारतीय जनसांख्यिकीय लाभांश का समुचित उपयोग, भारत के विकास की कहानी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिये। इसी संदर्भ में वर्ष 2016 में भारत सरकार ने क्षेत्र कौशल परिषद (Sector Skill Councils -SSCs) को तर्कसंगत बनाने के लिये शारदा प्रसाद समिति का गठन किया था। ध्यातव्य है कि अब एक साल बाद, समिति के प्रमुख सुझावों और व्यावसायिक शिक्षा/प्रशिक्षण (vocational education/training - VET) प्रणाली में कार्रवाई करना विवेकपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

क्षेत्र कौशल परिषद (Sector Skill Councils - SSCs) क्या है ?

  • ये उद्योग की वास्तविक आवश्यकताओं के अनुरूप हैं तथा राष्ट्रीय पेशागत मानकों/सक्षमता मानकों और योग्यता को विकसित करते हैं।
  • राष्ट्रीय कौशल विकास एवं उद्यमशीलता नीति,  2015 के तहत दिये गए अधिदेश के अनुसार एसएससी का अभिसरण एवं इष्टतम कामकाज सुनिश्चित करने के लिये एक समिति के गठन का फैसला किया गया था।
  • इस समिति का कार्य एसएससी के कामकाज की समीक्षा करना तथा उनके समग्र विकास के लिये एक रोड मैप उपलब्ध कराना था, जिससे कि कौशल प्रणाली का कारगर विकास सुनिश्चित किया जा सके।

शारदा प्रसाद समिति 

  • इस समिति का गठन भारत सरकार के श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय के रोज़गार एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय के पूर्व महानिदेशक श्री शारदा प्रसाद की अध्यक्षता में 18 मई, 2016 को कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्रालय द्वारा किया गया था।
  • समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट तीन खंडों में उपलब्ध है। मुख्य रिपोर्ट पहले खंड में है, जो देश की व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रणाली के सामने आ रही बड़ी चुनौतियों तथा क्षेत्र कौशल परिषदों के संयोजन, समन्वय एवं विवेकीकरण से संबंधित है।
  • दूसरे खंड में अध्यायवार परिशिष्टों का संकलन किया गया है। तीसरे खंड में राष्ट्रीय औद्योगिक वर्गीकरण, 2008 के साथ राष्ट्रीय व्यवसाय वर्गीकरण के मानचित्र दिये गए हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • कौशल भारत योजना के दो प्रमुख लक्ष्य हैं - पहला, ऐसे नियोक्ता की तलाश करना जिसे कौशल की आवश्यकता है ।
  • दूसरा, एक सभ्य आजीविका के लिये श्रमिकों (युवा और बुज़ुर्ग) को  तैयार करना । 
  • रिपोर्ट में बार-बार युवाओं पर ध्यान केंद्रित करने की बात की गई है। साथ ही सिफारिश में इस बात पर जोर दिया गया है कि वीईटी केवल वंचित समुदायों के लिये ही नहीं है; यह उन लोगों के लिये भी है जो इसे औपचारिक शिक्षा के माध्यम से प्राप्त नहीं कर सकते (यह हम सभी के लिये है)।

रिपोर्ट संबंधित आवश्यक दिशा-निर्देश 

छात्रों के लिये स्ट्रीमिंग

  • यह रिपोर्ट मानसिक परिवर्तन को सुनिश्चित करने के लिये ठोस कदमों का सुझाव देता है, जैसे व्यावसायिक शिक्षा (माध्यमिक शिक्षा में) के लिये एक अलग विभाग, व्यावसायिक स्कूलों और व्यावसायिक कॉलेजों को ऊपर की ओर गतिशील बनाने के लिये तथा डिग्री प्राप्त करने के लिये एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना।
  • स्ट्रीमिंग का आशय 'डिप्लोमा बीमारी (diploma disease) से है , जिसके परिणामस्वरूप शिक्षितों के बीच बढ़ती बेरोज़गारी के साथ ही तृतीयक नामांकन दर में भी वृद्धि हो रही है। 
  • उदाहरण के लिये चीन में नौ साल की अनिवार्य स्कूली शिक्षा के बाद एक अलग विभाग है और आधे छात्रों ने उच्च माध्यमिक स्तर (9 वीं के बाद) में वीईटी का चयन किया है। 
  • वीईटी पारिस्थितिकी तंत्र के प्रत्येक स्तंभ के लिये निजी व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदाताओं (vocational training providers - VTPs), निजी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (industrial training institutes - ITIs) और राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (National Skill Development Corporation - NSDC) के रूप में उभर रहे हैं। 
  • इसके लिये छोटे-समय के प्रशिक्षण प्रदाता और उद्योग-नियोक्ताओं के मध्य मज़बूत गठजोड़ की आवश्यकता है।

एक वैश्विक संरेखण (A global alignment)

  • एक मुख्य विषय मानव क्षमता का अहसास करना है अर्थात् अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रमों को संरेखित करना, 3 आर का बुनियादी आधार सुनिश्चित करना और जीवनभर सीखने की क्षमता। 
  • यह एक मांग आधारित कौशल सेट के लिये राष्ट्रीय मानकों को दर्शाता है जो राष्ट्रीय/वैश्विक गतिशीलता के साथ बेहतर नौकरियों में रूपांतरित होती हैं। 
  • मुख्य ध्यान पढ़ने, लिखने और अंकगणित कौशल को मज़बूत करने में होना चाहिये। यदि देश का अधिकांश कार्यबल फास्ट-चेंजिंग दुनिया के अनुकूल कौशल का निर्माण नहीं कर पाता, तो कोई भी कौशल विकास सफल नहीं हो सकता है।
  •  वोकेशनल ट्रेनिंग को न्यूनतम एक साल के लिये परिभाषित करना चाहिये, जिसमें इंटर्नशिप शामिल हो (जिसके बिना प्रमाणीकरण संभव नहीं है)। 
  • अल्पकालिक प्रशिक्षण को पहले से ही काम कर रहे अनौपचारिक रूप से प्रशिक्षित श्रमिकों के रूप में पहचानने तक ही सीमित रखा जाना चाहिये। 
  • दूसरा विषय ऐसे समय में सही कार्य करना है, जब कोई नियामक संस्था आपको नहीं देख रही होती है, क्योंकि अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में नियामक ने विनियमित करने की सीमित क्षमता ही प्रदर्शित की है। ऐसे में हितों के संघर्ष और पेपर पर आयोजित होने वाले प्रशिक्षण के मामले भी नए नहीं हैं।
  • निजी आईटीआई पर हालिया संसदीय रिपोर्ट ने एक और घोटाले का खुलासा किया है जिसमें हज़ारों निजी आईटीआई के लिये भारत की गुणवत्ता परिषद ने मंजूरी दी। यह इस तरह के आईटीआई में गुणवत्ता के प्रशिक्षण की कमी के साथ विनियमन की भारी विफलता को इंगित करता है।
  • क्षेत्रीय कौशल परिषदों की अधिकता और एक विश्वसनीय मूल्यांकन बोर्ड की अनुपस्थिति से एक बड़ी नैतिकता और जवाबदेहिता का संकट उत्पन्न होता है, ऐसे में प्रत्येक अपने व्यवसाय को अधिकतम लाभ पहुँचाने की कोशिश करता है। 

एकीकरण के लिये प्रयास

  • पहला नीतिगत कदम पूरे वीईटी सिस्टम के एकीकरण की दिशा में होना चाहिये। 'स्किल इंडिया'  केवल तब प्रभावकारी हो सकता है जब इसके सभी स्तंभ एक साथ मिलकर काम करें और एक-दूसरे से सीखें।
  • एसएससी जिसे उद्योग के प्रतिनिधि संस्था के रूप में माना जाता है, को सिस्टम के प्रत्येक स्तंभ के साथ सामंजस्य बनाना चाहिये, न केवल एनएसडीसी द्वारा वित्तपोषित वीटीपी के साथ ।
  • दूसरा कदम नियोक्ता के स्वामित्व, ज़िम्मेदारी और प्राप्त परिणामों में उनके स्वयं की लाभ प्राप्ति (‘skin in the game’) को बढ़ाने के लिये है।
  • मीडिया रिपोर्टों में अक्सर "बेरोज़गार युवाओं" की ओर कॉर्पोरेट क्षेत्र का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की गई है, (निजी क्षेत्र इसे सरकार की ज़िम्मेदारी समझता है, जबकि सरकार निजी क्षेत्र की और देखती है)।
  • इसका नतीजा यह है कि भारत की संगठित क्षेत्र की कंपनियाँ केवल 36% फर्म प्रशिक्षण आयोजित करती हैं (इसमें ज़्यादातर बड़े फर्म हैं, जो कि केवल भारत सरकार अधिनियम के तहत शिक्षुओं को लेते हैं)। 
  • इसके लिये समिति की सिफारिश के अनुसार एक प्रतिपूर्ति योग्य उद्योग योगदान मॉडल (केवल संगठित क्षेत्र पर लागू) की व्यवस्था द्वारा एक सामान्य स्तर का क्षेत्र प्रदान करते हुए इस समस्या का समाधान किया जाना चाहिये।
  • तीसरा नीतिगत कदम यह समझने में है कि सरकार को वित्तपोषण और प्रबंधन करने में दशकों बीत चुके हैं और अब सरकार को आपूर्ति-चालित प्रणाली की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।

क्षेत्र द्वारा डेटा एकत्र करना

  • सरकार, जो सार्वजनिक क्षेत्र में न तो ज्यादा रोज़गार पैदा कर रही है और न ही निजी क्षेत्र में उद्योग के लिये कौशल की आवश्यकताओं को समझ पा रही है। ऐसे में सरकार को स्वयं को कल्याणकारी भूमिकाओं तक सीमित रखने की ज़रूरत है।
  • हालाँकि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के माध्यम से प्रत्येक पाँच वर्षों में एक बार, कौशल प्रदाताओं के विभिन्न क्षेत्रों द्वारा कौशल प्रदान करने और कौशल अंतराल के आँकड़ों को एकत्रित करने जैसे डेटा साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण को सरकार मार्गदर्शन दे सकती है।

निष्कर्ष
अंततः, हमें स्किलिंग पहल द्वारा वास्तविक मूल्य में हितधारकों से अधिक भागीदारी किये जाने की आवश्यकता है। एनएसडीसी, जिसे सार्वजनिक-निजी साझेदारी के रूप में देखा गया था, अपने धन का 99% सरकार से प्राप्त करता है, लेकिन इसकी प्रमुख योजना में प्रशिक्षुओं के लिये नियुक्ति 12% से भी कम रिकॉर्ड है। भारत निश्चित रूप से दुनिया की कौशल पूंजी बन सकता है और इस दिशा में  समिति द्वारा सुझाए गए सुधारों को  एक अच्छा प्रारंभिक बिंदु माना जा सकता है।

प्रश्न: अधिकांश देशों में कार्यबल फ़ास्ट चेजिंग दुनिया के अनुकूल न होने के कारण उन देशों में कौशल विकास की सफलता संदेहास्पद बनी रहती है। इसी संदर्भ में शारदा प्रसाद समिति द्वारा सुझाई गई अनुशंसाओं पर टिप्पणी करें।

इससे संबंधित अधिक जानकारी के लिये इन लिंक्स का प्रयोग करें -

⇒ ्षेत्र कौशल परिषदों (Sector Skill Councils) की स्थापना का उद्देश्य क्या है? इस संबंध में शारदा प्रसाद समिति की अनुशंसाओं का उल्लेख करते हुए इसके महत्त्व पर चर्चा करें।

⇒ कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय की वार्षिक समीक्षा

⇒ प्रश्न. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, भारत को जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसके समक्ष मौजूद चुनौतियों का उल्लेख करें तथा उनसे निपटने के लिये उपाय भी सुझाएँ।

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