स्टार्टअप इकोसिस्टम का विस्तार | 07 Dec 2024

यह संपादकीय 05/12/2024 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित “UAE galvanising start-ups” पर आधारित है। इस लेख में स्टार्टअप इकोसिस्टम के वैश्विक अग्रणी के रूप में उभरते भारत की छवि प्रस्तुत की गई है, जिसमें 140,000 से अधिक स्टार्टअप और 111 यूनिकॉर्न हैं, जिन्हें UAE के 20 बिलियन डॉलर के निवेश से समर्थन मिला है। हालाँकि, इस लेख में विकास को बनाए रखने के लिये फंडिंग, विनियमन और नवाचार में चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, फास्ट मूविंग कंज़्यूमर गुड्स (FMCG), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, भारतीय रिज़र्व बैंक, कॉर्पोरेट वेंचर कैपिटल, अटल इनोवेशन मिशन, स्टार्टअप के लिये फंड ऑफ फंड्स, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, 'उत्पाद नवाचार, विकास और वृद्धि (SAMRIDH)' कार्यक्रम के लिये MeitY के स्टार्ट-अप एक्सेलेरेटर्स 

मेन्स के लिये:

भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम के वर्तमान विकास चालक, भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा है, जिसमें 140,000 से अधिक मान्यता प्राप्त स्टार्टअप और 111 यूनिकॉर्न विविध क्षेत्रों में तकनीकी नवाचार को आगे बढ़ा रहे हैं। UAE एक महत्त्वपूर्ण सामरिक साझेदार बन गया है, जिसमें 20 बिलियन डॉलर से अधिक का महत्त्वपूर्ण निवेश है और अंतर्राष्ट्रीय विस्तार की तलाश कर रहे भारतीय उद्यमियों को महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान कर रहा है। दुबई के 30% से अधिक स्टार्टअप भारतीयों द्वारा स्थापित किये गए हैं, जो दोनों देशों के बीच गहन उद्यमशीलता तालमेल को दर्शाता है। हालाँकि, भारत को अपनी स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ाने, फंडिंग, विनियामक ढाँचे व अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त बनाए रखने के लिये निरंतर नवाचार में चुनौतियों का समाधान करने के लिये और अधिक काम करने की आवश्यकता है।

भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम के वर्तमान विकास चालक क्या हैं? 

  • सरकारी पहल और नीतिगत समर्थन: भारत सरकार ने स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसी नीतियों को लागू किया है, कर छूट, वित्त पोषण और इनक्यूबेटरों के लिये समर्थन की पेशकश की है, जिससे उद्यमशीलता गतिविधि को काफी बढ़ावा मिला है। 
    • जून 2023 तक, इस पहल के तहत 100,000 से अधिक स्टार्टअप को मान्यता दी गई है, जो इसके व्यापक प्रभाव को दर्शाता है।
  • डिजिटल अवसंरचना का विस्तार: स्मार्टफोन और किफायती इंटरनेट के प्रसार ने डिजिटल अभिगम का विस्तार किया है, जिससे स्टार्टअप्स को व्यापक ग्राहक आधार तक पहुँचने में मदद मिली है। 
    • मूल उपकरण निर्माताओं और मूल डिज़ाइन से भारी निवेश के कारण भारत अब मोबाइल फोन का दूसरा सबसे बड़ा विनिर्माण केंद्र है।
    • इसके अलावा, भारत में वर्तमान में 820 मिलियन से अधिक सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं, जो डिजिटल व्यवसायों के विकास में सहायक हैं।
  • बढ़ता निवेश पारिस्थितिकी तंत्र: उद्यम पूंजी और निजी इक्विटी निवेश में वृद्धि ने स्टार्टअप्स को आवश्यक वित्तपोषण उपलब्ध कराया है। 
    • वर्ष 2014 से 2024 की पहली छमाही के दौरान, भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम ने 150 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश आकर्षित किया, जिसमें ई-कॉमर्स, फिनटेक और एंटरप्राइज टेक सबसे आगे रहे, जिन्होंने कुल फंडिंग में 52% का योगदान दिया।
    • गूगल के लॉन्चपैड और माइक्रोसॉफ्ट फॉर स्टार्टअप्स जैसे कार्यक्रम वित्तपोषण, मार्गदर्शन एवं बाज़ार अभिगम प्रदान करते हैं। 
  • विकासशील उपभोक्ता बाज़ार: बढ़ती प्रयोज्य आय के साथ बढ़ते मध्यम वर्ग ने नए उत्पादों और सेवाओं के लिये एक सुद्रढ़ घरेलू बाज़ार का निर्माण किया है। 
    • भारत के फास्ट मूविंग कंज़्यूमर गुड्स (FMCG) क्षेत्र में जुलाई-सितंबर 2024 में ग्रामीण मांग के कारण मूल्य के हिसाब से 5.7% और मात्रा के हिसाब से 4.1% की वृद्धि हुई।
    • अनुमानों से पता चलता है कि भारत का समृद्ध वर्ग वर्ष 2027 तक 100 मिलियन तक पहुँच जाएगा, जिससे स्टार्टअप के लिये पर्याप्त अवसर उपलब्ध होंगे।
  • सहायक विनियामक वातावरण: हाल ही में किये गए विनियामक सुधारों ने व्यवसाय संचालन को सुव्यवस्थित किया है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी भारतीय सहायक कंपनियों के साथ ‘रिवर्स फ्लिप’ विलय से गुजरने वाली विदेशी कंपनियों के लिये अनुपालन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया है, जिससे समयसीमा 12-18 महीने से घटकर केवल 3-4 महीने रह गई है। 
    • इस कदम से कार्यकुशलता बढ़ेगी और स्टार्टअप्स को भारत में सूचीबद्ध होने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
  • बढ़ते इनक्यूबेशन और त्वरण कार्यक्रम: IIM बैंगलोर के NSRCEL जैसे संस्थान मार्गदर्शन, वित्त पोषण और संसाधन उपलब्ध कराते हैं, प्रारंभिक चरण के स्टार्टअप का पोषण करते हैं तथा नवाचार को बढ़ावा देते हैं। 
    • महिला उद्यमिता कार्यक्रम जैसे कार्यक्रम गोताखोरी को समर्थन देने में सहायक रहे हैं
  • डीप-टेक और AI स्टार्टअप्स का उदय: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और IoT जैसी अत्याधुनिक तकनीकों की मांग डीप-टेक स्टार्टअप्स के विकास को बढ़ावा दे रही है। 
    • बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (BCG) की रिपोर्ट के अनुसार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की तैयारी में भारत शीर्ष दावेदार के रूप में उभरा है, तथा विश्व स्तर पर शीर्ष 10 देशों में शामिल है।
    • नैसकॉम के अनुसार, भारत का डीपटेक क्षेत्र में 3,000 से अधिक स्टार्टअप्स हैं और पिछले एक दशक में इसकी वृद्धि दर 53% रही है।
  •  D2C (डायरेक्ट-टू-कंज़्यूमर) मॉडल का विस्तार: डायरेक्ट-टू-कंज़्यूमर मॉडल ने गति पकड़ी है, जिसमें स्टार्टअप्स बिचौलियों को दरकिनार कर डिजिटल रूप से उपभोक्ताओं से जुड़ रहे हैं। 
    • भारतीय D2C बाज़ार के वर्ष 2025 तक 100 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और व्यक्तिगत मार्केटिंग टूल को अपनाने से यह प्रवृत्ति बढ़ रही है।
  • टियर-2 और टियर-3 शहरों में उद्यमिता का उदय: उद्यमिता अब केवल महानगरों तक सीमित नहीं रह गई है; छोटे शहर भी स्टार्टअप केंद्र के रूप में उभर रहे हैं। 
    • अटल इनोवेशन मिशन जैसी पहल इनक्यूबेटर और फंडिंग के माध्यम से टियर-2 और टियर-3 शहरों में उद्यमियों को सक्षम बना रही हैं। 
    • वर्ष 2023 में DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त 50% से अधिक स्टार्टअप गैर-मेट्रो क्षेत्रों से उत्पन्न होंगे, जो इस विकेंद्रीकृत विकास को प्रदर्शित करता है।
  • डिजिटल भुगतान क्रांति और फिनटेक बूम: UPI के अंगीकरण और डिजिटल भुगतान के विकास ने फिनटेक परिदृश्य को बदल दिया है, जिससे स्टार्टअप्स के लिये अवसर उत्पन्न हुए हैं। 
    • अकेले अक्तूबर 2023 में 1.1 बिलियन से अधिक UPI  लेनदेन किये गए, जिससे फोनपे और रेज़रपे जैसे स्टार्टअप को तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद मिली। 
    • वैश्विक स्तर पर फिनटेक हब के रूप में प्रचारित भारतीय फिनटेक बाज़ार का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक इसकी प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियाँ (AUM) 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगी, जो वर्ष 2021 के इसके लगभग 100 बिलियन डॉलर के आकार से 10 गुना अधिक है।
  • स्थिरता और हरित स्टार्टअप को बढ़ावा देना: भारत के नेट ज़ीरो एमिशन टारगेट- 2070 जैसी सरकारी प्रतिबद्धताओं से स्थिरता-केंद्रित स्टार्टअप लोकप्रिय हो रहे हैं।
    • इलेक्ट्रिकपे और ज़िप इलेक्ट्रिक जैसे स्टार्टअप EV और स्वच्छ ऊर्जा बाज़ारों का लाभ उठा रहे हैं। भारत में UNDP एक्सेलेरेटर लैब्स ने हरित नवाचार को और बढ़ावा दिया है।
  • कॉर्पोरेट वेंचर कैपिटल (CVC) का उदय: बड़ी कंपनियाँ कॉर्पोरेट वेंचर कैपिटल के माध्यम से स्टार्टअप्स में निवेश कर रही हैं, न केवल वित्तपोषण की पेशकश कर रही हैं, बल्कि बाज़ार विशेषज्ञता भी प्रदान कर रही हैं। 
    • रिलायंस, टाटा और इंफोसिस जैसी कंपनियों के पास सक्रिय CVC शाखाएँ हैं। यह एकीकरण स्टार्टअप्स को विस्तार और नवाचार के लिये संसाधन प्रदान करता है।
  • उद्यमिता की ओर सांस्कृतिक बदलाव: भारत में बढ़ते सांस्कृतिक बदलाव के तहत स्टार्टअप को आकांक्षापूर्ण करियर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें जोखिम उठाना सामाजिक रूप से अधिक स्वीकार्य होता जा रहा है। 
    • शार्क टैंक इंडिया जैसे मीडिया कार्यक्रमों और स्टार्टअप की सफलता की कहानियों ने उद्यमशीलता को लोकप्रिय बनाया है। 
    • सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 77% भारतीय युवाओं ने अपना स्वयं का उद्यम शुरू करने में रुचि व्यक्त की।

भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • चलनिधि और वित्तपोषण की चुनौतियों में कमी: भारत के स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को वित्तपोषण में भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, जो वैश्विक स्तर पर सतर्क निवेश प्रथाओं की ओर बदलाव को दर्शाता है।
    • निवेशकों में जोखिम लेने की क्षमता कम होने के कारण वे विकास की तुलना में लाभप्रदता को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे स्टार्टअप्स को विस्तार के लिये बाह्य पूंजी पर निर्भर रहना पड़ रहा है। 
    • भारतीय स्टार्टअप्स ने वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में फंडिंग में लगभग 73% की गिरावट दर्ज की है, बढ़ती परिचालन लागत के बीच स्टार्टअप स्थिरता से जूझ रहे हैं।
  • नीतिगत अस्थिरता और कराधान संबंधी समस्याएँ: कराधान नीतियों में लगातार परिवर्तन और नियामक अस्पष्टता निवेशकों के विश्वास तथा स्टार्टअप्स के लिये परिचालन संबंधी सुविधा को कमज़ोर करती है।
    • वर्ष 2023 में विदेशी निवेशकों पर एंजल टैक्स लगाने का उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग पर अंकुश लगाना है, लेकिन इससे शुरुआती चरण के स्टार्टअप्स में वैध विदेशी निवेश में बाधा उत्पन्न होगी। 
    • स्टार्टअप इंडिया जैसी पहल के बावजूद, अधिकांश भारतीय स्टार्टअप अभी भी अपने संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा अनुपालन पर खर्च करते हैं, जिससे नवाचार पर उनका ध्यान सीमित हो जाता है।
  • प्रतिभा प्रतिधारण और कौशल असंतुलन: जबकि भारत प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में कुशल स्नातक तैयार करता है, स्टार्टअप्स को वैश्विक अवसरों और घरेलू वेतन असमानताओं के कारण शीर्ष प्रतिभाओं को बनाए रखने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 
    • विदेश में या स्थापित बहुराष्ट्रीय कंपनियों में स्थायी नौकरियों के आकर्षण ने AI व मशीन लर्निंग जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में ‘प्रतिभा पलायन’ को और बदतर बना दिया है।
    • वर्ष 2015 और 2022 के दौरान 1.3 मिलियन भारतीयों ने देश छोड़ दिया, जिनमें से कई उच्च शिक्षित पेशेवर थे, जिससे नवाचार करने वाले भारतीय स्टार्टअप के लिये प्रतिभा की कमी उत्पन्न हो गई।
  • शहरी बाज़ारों पर अत्यधिक निर्भरता: स्टार्टअप्स मुख्यतः शहर-केंद्रित व्यवसाय मॉडल पर ध्यान केंद्रित करते हैं तथा ग्रामीण भारत की विशाल संभावनाओं की उपेक्षा करते हैं। 
    • यह अतिनिर्भरता उनकी स्केलेबिलिटी को सीमित करती है और भारत की 65% से अधिक आबादी वाले बाज़ार से चूक जाती है तथा स्टार्टअप अभी भी रसद एवं बुनियादी अवसंरचना की चुनौतियों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश करने के लिये संघर्ष करते हैं।
  • प्रमुख क्षेत्रों में बाज़ार संतृप्ति और विखंडन: कुछ उद्योग, जैसे एडटेक और फिनटेक, संतृप्त बिंदु पर पहुँच रहे हैं, जिससे तीव्र प्रतिस्पर्द्धा एवं घटते मार्जिन हो रहे हैं। 
    • प्रमुख अभिकर्त्ताओं का पतन यह दर्शाता है कि किस प्रकार अति विस्तार और अनियमित प्रतिस्पर्द्धा ने इन क्षेत्रों को अस्थिर कर दिया है। 
    • इस संतृप्ति के परिणामस्वरूप छँटनी और वित्त पोषण में कमी आई है, जिससे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ा है।
  • शैक्षणिक संस्थानों और स्टार्टअप्स के बीच अपर्याप्त सहयोग: भारत के शैक्षणिक संस्थान स्टार्टअप्स के लिये नवाचार के इंजन के रूप में अभी भी कम उपयोग में हैं। 
    • सिलिकॉन वैली के विपरीत, जहाँ शिक्षा व्यावसायीकरण को बढ़ावा देती है, भारतीय स्टार्टअप शायद ही कभी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग करते हैं।
    • वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत भर के 500 औद्योगिक समूहों में से 30-35% के आसपास कोई शोध संस्थान या विश्वविद्यालय नहीं है।
  • डिजिटल डिवाइड और बुनियादी अवसंरचना का अंतर: डिजिटल उपकरणों के प्रसार के बावजूद, स्टार्टअप्स को असंगत बुनियादी अवसंरचना के कारण बाधा आ रही है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में। 
    • ग्रामीण क्षेत्रों में हाई-स्पीड इंटरनेट की अनुपस्थिति अप्रयुक्त बाज़ारों तक पहुँच को सीमित करती है, जिससे कृषि प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों का विकास धीमा हो जाता है। 
    • वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट से पता चला है कि लगभग 60% ग्रामीण आबादी अभी भी सक्रिय रूप से इंटरनेट का उपयोग नहीं कर रही है, स्टार्टअप वंचित आबादी को स्केलेबल, तकनीक-संचालित समाधान देने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
  • संधारणीयता और ESG संरेखण पर ध्यान का अभाव: पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) मानकों के साथ संरेखित करने में विफल रहने के कारण स्टार्टअप्स की लगातार जाँच की जा रही है, जिससे प्रतिष्ठा संबंधी जोखिम एवं नियामक चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। 
    • स्विगी और ज़ोमैटो जैसे खाद्य वितरण प्लेटफॉर्मों को प्लास्टिक पर अत्यधिक निर्भरता के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा। 
    • चूँकि भारत एक चक्रीय अर्थव्यवस्था और नेट-शून्य प्रतिबद्धताओं पर ज़ोर दे रहा है, इसलिये संधारणीय प्रथाओं को अपनाने में विफल रहने वाले स्टार्टअप्स के लिये बाज़ार का विश्वास एवं वित्तपोषण खोने का जोखिम है।
  • बढ़ता संरक्षणवाद और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: भारत के स्टार्टअप्स को फिनटेक, गेमिंग और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिद्वंद्वियों से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ अंतर्राष्ट्रीय अभिकर्त्ता हावी हैं। 
    • साथ ही, स्थानीय संरक्षणवादी नीतियाँ, जैसे अनिवार्य डेटा स्थानीयकरण, वैश्विक स्केलेबिलिटी का लक्ष्य रखने वाले स्टार्टअप्स के लिये अनुपालन संबंधी बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
    • उदाहरण के लिये, जबकि भारतीय स्टार्टअप कम्पनियाँ अनुपालन लागतों से जूझ रही हैं, वहीं अमेज़न जैसी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धियों ने भारत में आक्रामक बाज़ार विस्तार जारी रखा है। 

भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम को सुदृढ़ करने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • विनियामक और अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल बनाना: नौकरशाही की अक्षमताओं को कम करने के लिये स्टार्टअप पंजीकरण, कराधान और अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल बनाना महत्त्वपूर्ण है। 
    • एक एकीकृत, समयबद्ध एकल खिड़की अनुमोदन प्रणाली विलंब और अस्पष्टता को दूर कर सकती है। 
    • उदाहरण के लिये, व्यवसाय करने में आसानी के लिये सुधार 2.0 के दायरे का विस्तार करने के साथ-साथ DPIIT की स्टार्टअप इंडिया पहल के तहत अनुपालन लागत को कम करने से स्टार्टअप्स को सालाना सैकड़ों परिचालन घंटे की बचत हो सकती है और तेज़ी से विस्तार को बढ़ावा मिल सकता है।
  • वित्तपोषण तंत्र तक पहुँच का विस्तार: भारत को क्षेत्र-विशिष्ट उद्यम निधि को बढ़ावा देना चाहिये और स्टार्टअप के लिये फंड ऑफ फंड्स (FFS) कार्यक्रम के दायरे को व्यापक बनाना चाहिये।
    • प्रारंभिक चरण के स्टार्टअप के लिये राजस्व-आधारित वित्तपोषण जैसे नवीन वित्तपोषण मॉडल को शुरू करने से इक्विटी कमज़ोर पड़ने का बोझ कम हो सकता है। 
    • सिडबी स्टार्टअप फंड का विस्तार करना तथा इसे हरित ऊर्जा और डीप-टेक जैसे उभरते क्षेत्रों से जोड़ना, वित्तपोषण संबंधी अंतराल को प्रभावी ढंग से कम कर सकता है।
  • शिक्षा जगत और स्टार्टअप के बीच सहयोग बढ़ाना: संरचित उद्योग-अकादमिक सहयोग नवाचार को बढ़ावा दे सकता है, विशेष रूप से डीप-टेक और बायोटेक स्टार्टअप में। 
    • नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (NRF) के तहत विश्वविद्यालयों में नवाचार क्षेत्र स्थापित करने से स्टार्टअप्स को अत्याधुनिक अनुसंधान और तकनीकी विशेषज्ञता तक पहुँच प्रदान की जा सकती है। 
    • इन क्षेत्रों को अनुसंधान को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य प्रौद्योगिकियों में परिवर्तित करने तथा बौद्धिक संपदा केंद्रों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • ग्रामीण डिजिटल अवसंरचना को मज़बूत करना: 100% ग्रामीण ब्रॉडबैंड कवरेज सुनिश्चित करने के लिये भारतनेट कार्यक्रम का विस्तार करना ग्रामीण स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को खोलने की कुंजी है। 
    • कृषि प्रौद्योगिकी, एडटेक और ई-कॉमर्स क्षेत्र में स्टार्टअप्स इंटरनेट की बढ़ती पहुँच के साथ फल-फूल सकते हैं। 
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत अंतिम-मील कनेक्टिविटी के लिये निजी अभिकर्त्ताओं के साथ साझेदारी करने से तेज़ी से क्रियान्वयन सुनिश्चित हो सकता है और लागत कम हो सकती है, जिससे ग्रामीण समावेशिता को बढ़ावा मिलेगा।
  • स्थिरता-केंद्रित स्टार्टअप को बढ़ावा देना: कर लाभ और सब्सिडी के माध्यम से हरित स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने से पारिस्थितिकी तंत्र को भारत के जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखित किया जा सकता है। 
    • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन और नवीकरणीय ऊर्जा सब्सिडी जैसी स्थिरता पहलों को EVS, स्वच्छ प्रौद्योगिकी एवं अपशिष्ट प्रबंधन में स्टार्टअप्स से जोड़ने से इस क्षेत्र में नवाचार में तेज़ी आ सकती है। 
    • उदाहरण के लिये, बैटरी रीसाइक्लिंग स्टार्टअप के लिये अनुदान, पर्यावरणीय लक्ष्यों को स्टार्टअप विकास के साथ संरेखित कर सकता है।
  • वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच में सुधार: सरकार समर्थित निर्यात योजनाओं के माध्यम से स्टार्टअप्स को वैश्विक स्तर पर विस्तार करने के लिये प्रोत्साहित करने से उनके बाज़ार का आकार बढ़ सकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों और व्यापार मिशनों में भागीदारी के लिये वित्तपोषण को शामिल करने के लिये MADE (मेंटरिंग, एक्सेस, डेवलपमेंट और एक्सपोर्ट) जैसे कार्यक्रम शुरू किये जाने चाहिये।
    • वैश्विक स्तर पर वाणिज्य मंडलों के साथ साझेदारी करने से भारतीय स्टार्टअप्स को सीमा पार नेटवर्क बनाने में भी मदद मिल सकती है।
  • उच्च ग्राहक अधिग्रहण लागत (CAC) से निपटना: CAC को कम करने के लिये, सरकार डिजिटल कॉमर्स के लिये ओपन नेटवर्क (ONDC) जैसे डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी अवसंरचना को बढ़ावा दे सकती है ताकि समान अवसर उपलब्ध कराया जा सके। 
    • ONDC छोटे स्टार्टअप्स को साझा संसाधनों का लाभ उठाने में सक्षम बना सकता है तथा भारी विपणन व्यय पर निर्भरता कम कर सकता है। 
    • इसके अतिरिक्त, ग्राहक प्रतिधारण के लिये डेटा एनालिटिक्स का लाभ उठाने वाले स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देने से ग्राहक कमी की दर कम हो सकती है, जिससे लाभप्रदता में सुधार हो सकता है।
  • महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप को बढ़ावा देना: महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिये लक्षित पहल, जैसे स्टैंड-अप इंडिया योजना के तहत तरजीही ऋण, लैंगिक असमानताओं को दूर कर सकते हैं। 
    • विशेष रूप से महिला संस्थापकों के लिये मेंटरशिप नेटवर्क का विस्तार करना तथा सब्सिडीयुक्त सहकार्य स्थान उपलब्ध कराना, अधिक समावेशी स्टार्टअप वातावरण का निर्माण कर सकता है।
  • डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं (DPG) का लाभ उठाना: स्टार्टअप्स स्केलेबल समाधान विकसित करने के लिये भारत के सुदृढ़ डिजिटल बुनियादी अवसंरचना, जैसे डिजिलॉकर का उपयोग कर सकते हैं। 
    • स्टार्टअप्स के लिये इन प्लेटफॉर्मों पर ओपन-सोर्स API को बढ़ावा देने से नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
    • उदाहरण के लिये, फिनटेक स्टार्टअप व्यक्तिगत वित्तीय उत्पाद बनाने, बाज़ार में लाने के समय को कम करने और दक्षता बढ़ाने के लिये अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क का उपयोग कर सकते हैं।
  • मजबूत मेंटरशिप नेटवर्क का निर्माण: राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मेंटरशिप नेटवर्क बनाने से संस्थापकों के बीच ज्ञान के अंतर को कम किया जा सकता है। 
  • गिग इकॉनमी स्टार्टअप्स को समर्थन देने के लिये श्रम कानूनों में सुधार: गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को समायोजित करने के लिये श्रम सुधार पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता को बढ़ा सकते हैं।
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 जैसे कार्यक्रमों के तहत गिग श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा फ्रेमवर्क और स्वास्थ्य लाभ का निर्माण करके कार्यबल की अस्थिरता को कम किया जा सकता है।
    • इससे विशेष रूप से खाद्य वितरण, राइड-हेलिंग और लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्रों के स्टार्टअप्स को लाभ होगा।
  • उभरते क्षेत्रों में सीमा पार सहयोग को बढ़ावा देना: AI, ब्लॉकचेन और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने से भारतीय स्टार्टअप वैश्विक नवाचार में अग्रणी स्थान पर आ सकते हैं। 
    • अमेरिका और जापान जैसे देशों के साथ स्टार्टअप एक्सचेंज कार्यक्रमों पर केंद्रित द्विपक्षीय समझौते ज्ञान अंतरण को सक्षम कर सकते हैं। 
    • इन्हें स्टार्टअप इंडिया अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलनों के साथ एकीकृत करने से भारत की वैश्विक स्टार्टअप उपस्थिति बढ़ सकती है।

निष्कर्ष: 

भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम ने सरकारी नीतियों, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार और उभरते निवेश परिदृश्य के कारण उल्लेखनीय वृद्धि और वैश्विक क्षमता का प्रदर्शन किया है। हालाँकि, फंडिंग की कमी, नीतिगत अस्थिरता और प्रतिभा प्रतिधारण जैसी चुनौतियाँ महत्त्वपूर्ण बाधाएँ बनी हुई हैं। इस इकोसिस्टम को सुदृढ़ करने के लिये, भारत को विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना चाहिये ग्रामीण डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार करना चाहिये और अकादमिक-स्टार्टअप सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम को वैश्विक मान्यता प्राप्त हो गई है, फिर भी फंडिंग की कमी, विनियामक बाधाएँ और सीमित नवाचार जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. जोखिम पूँजी से क्या तात्पर्य है? (2014)

(a) उद्योगों को उपलब्ध कराई गई अल्पकालीन पूँजी
(b) नये उदयमियों को उपलब्ध कराई गई दीर्घकालीन प्रारंभिक पूँजी
(c) उद्योगों को हानि उठाते समय उपलब्ध कराई गई निधियाँ
(d) उद्योगों के प्रतिस्थापन एवं नवीकरण के लिये उपलब्ध कराई गई निधियाँ

उत्तर: (b)