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NPA पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के निहितार्थ

  • 04 Apr 2019
  • 12 min read

संदर्भ

2 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने रिज़र्व बैंक (RBI) के उस सर्कुलर को रद्द कर दिया, जिसमें 2000 करोड़ रुपए से ज्यादा बड़े लोन अकाउंट्स का समाधान डिफॉल्ट के 180 दिनों के भीतर न किये जाने पर इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के तहत लाए जाने का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सर्कुलर जारी कर RBI ने अपने कानूनी अधिकारों का अतिक्रमण किया है। RBI के इस सर्कुलर को एस्सार पावर, जीएमआर एनर्जी, केएसके एनर्जी, रतन इंडिया पावर और एसोसिएशन ऑफ पावर प्रोड्यूसर्स जैसी बड़ी बिजली कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उनका कहना था कि 5.65 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ (मार्च 2018 की स्थिति अनुसार) उन कारकों के कारण है जो उनके नियंत्रण से बाहर हैं। जैसे ईंधन की उपलब्धता और कोयला ब्लाक का आवंटन रद्द होना।

क्या था रिज़र्व बैंक का सर्कुलर?

पिछले वर्ष 12 फरवरी को RBI ने एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें कहा गया था कि जो कंपनियाँ तय समय सीमा (180 दिन) के भीतर कर्ज़ का समाधान नहीं कर पाएंगी, उन्हें इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत लाया जाएगा और ऐसे मामलों को राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) के पास अनिवार्य रूप से भेजना होगा। अपने इस सर्कुलर में RBI ने यह भी कहा था कि एक दिन का भी डिफॉल्ट करने पर कंपनी के कर्ज़ को NPA में डाल दिया जाएगा। बैंक को तय समय सीमा खत्म होने के 15 दिन के भीतर IBC के तहत कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की अर्ज़ी देने का निर्देश भी दिया गया था।

2000 करोड़ रुपए या उससे अधिक की NPA निस्तारण योजना को एक निश्चित समय-सीमा के भीतर पेश करना इस सर्कुलर का केवल एक हिस्सा था। इसके कई अन्य पहलू भी थे। जैसे कि संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के निस्तारण के कॉर्पोरेट डेट रिस्ट्रक्चरिंग, स्ट्रैटेजिक डेट रिस्ट्रक्चरिंग और संकटग्रस्त परिसंपत्तियों का स्थायी पुनर्गठन जैसे तमाम अन्य ढाँचों को वापस ले लिया गया और ऋणदाताओं के संयुक्त मंच को खत्म कर दिया गया था।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

  • सुप्रीम कोर्ट ने RBI के 12 फरवरी, 2018 के उस सर्कुलर को रद्द कर दिया जिसमें बैंकों से कहा गया था कि वे बिजली, चीनी, नौवहन क्षेत्र की डिफॉल्ट करने वाली कंपनियों को ऋणशोधन प्रक्रिया से गुज़ारें।
  • अगस्त 2018 में बिजली क्षेत्र की कंपनियाँ और औद्योगिक समूह इस परिपत्र की संवैधानिक वैधता को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गए थे। 
  • इस मामले में न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने पाया कि RBI के सर्कुलर से मई 2017 में संशोधित बैंकिंग अधिनियम की धारा 35एए का उल्लंघन हुआ था।
  • अधिनियम के तहत किसी एक डिफॉल्ट मामले में निर्देश दिया जा सकता था, लेकिन इस मामले में नियामक ने डिफॉल्ट के कई मामलों को इकठ्ठा किया था।
  • अगस्त 2018 में RBI को पहले चरण में जीत मिली जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि बिजली कंपनियों को कोई राहत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने सुझाव दिया कि सरकार रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 7 का प्रयोग करके निर्देश जारी कर सकती है।
  • सरकार ने ऐसा करने की बात भी कही थी। इस निर्णय के बाद कंपनियों ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने सभी मामलों को चेन्नई और दिल्ली के उच्च न्यायालयों में भेज दिया। उसने इन कंपनियों के खिलाफ ऋणशोधन की प्रक्रिया पर रोक भी लगा दी।

RBI का AQR

RBI द्वारा फंसे हुए कर्ज़ की पहचान के लिये AQR यानी ऐसेट क्वालिटी रिव्यू के तहत बैंकों के एकाउंट्स की पड़ताल करने के लिये कहा गया कि मार्च 2017 तक NPA चिह्नित करें। 2017 में एक अध्यादेश लाकर बैंकिंग नियमन अधिनियम 1949 में संशोधन किया गया। केंद्रीय बैंक को यह अधिकार दिया गया कि वह फँसे कर्ज़ से निपटने हेतु बैंको पर दबाव बनाएं। इससे RBI को यह अधिकार मिला कि वह बैंकों की देनदारी में चूक करने वालों के खिलाफ IBC के तहत प्रक्रिया शुरू कर सके।

क्या है इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड?

संसद ने भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड यानी दिवालिया कानून (Insolvency & Bankruptcy Code-IBC) 2016 में पारित किया था। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के NPA की बढ़ती चिंताओं को दूर करने के लिये यह कानून बनाया और लागू किया। इस कानून ने 1909 के 'प्रेसीडेंसी टाउन इन्सॉल्वेन्सी एक्ट’ और 'प्रोवेंशियल इन्सॉल्वेन्सी एक्ट 1920’ को रद्द कर दिया तथा कंपनीज़ एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और सेक्यूटाईज़ेशन एक्ट समेत कई कानूनों में संशोधन किया। इस कोड के कार्यान्‍वयन की प्रक्रिया कुछ निश्चित शर्तों और नियमों द्वारा संचालित है। इस कानून की तीन धाराओं- 7, 12 और 29 में इसकी प्रक्रिया के प्रमुख प्रावधान हैं। इन धाराओं को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई थी, लेकिन कोर्ट ने 'संपूर्णता' में इस कोड की संवैधानिक वैधता को मान्यता दी।

  • इस कोड की धारा 7 किसी कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया की शुरुआत से जुड़ी है अर्थात् जब कोई कर्ज़ देने वाला व्यक्ति, संस्था या कंपनी द्वारा कर्ज़ नहीं चुकाने वाली कंपनी के खिलाफ दिवालिया कोर्ट में अपील दायर की जाती है।
  • धारा 12 दिवालिया प्रक्रिया को पूरी किये जाने की समयसीमा को तय करती है। इस धारा के तहत यह पूरी प्रक्रिया 180 दिनों के भीतर पूरी करना अनिवार्य है।
  • धारा 29 में संबंधित व्यक्ति और कंपनी को पारिभाषित किया गया है। सरकार ने इस कोड में संशोधन कर यह तय कर दिया था कि किसी दिवालिया हो रही कंपनी की नीलामी में इसके तहत आने वाले व्यक्ति भाग नहीं ले पाएंगे।

NCLT और NCLAT

1 जून 2016 को सरकार ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal-NCLT) और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील प्राधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal-NCLAT) का गठन किया। इनका गठन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 408 के तहत किया गया। NCLAT की 11 पीठ हैं, जिनमें से इसकी मुख्य शाखा सहित दो पीठ नई दिल्ली में और अहमदाबाद, इलाहाबाद, बेंगलुरु, चंडीगढ़, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता तथा मुंबई में एक-एक पीठ है। NCLAT के गठन के बाद कंपनी कानून 1956 के तहत गठित कंपनी कानून बोर्ड भंग हो गया। गौरतलब है कि कंपनी कानून 1956 के स्थान पर कंपनी अधिनियम, 2013 लाया गया है।

आगे की राह

  • सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार के सामने एक उपाय यह है कि RBI को कहे कि वह अलग-अलग मामलों के आधार पर कंपनियों को IBC में भेजे। 
  • वैसे भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने वसूली प्रक्रिया शुरू करने के लिये RBI को निर्देश देने की सरकार की शक्तियों को कम नहीं किया है।
  • कोर्ट का फैसला इस बात पर केंद्रित था कि धारा 35एए के मुताबिक RBI को कंपनियों को IBC में भेजने से पहले सरकार से अनुमति लेनी चाहिये थी।
  • सरकार इस फैसले का असर कम करने के लिये बैंकिंग नियमन अधिनियम की धारा 35एए का सहारा ले सकती है। यह बैंकिंग नियमन अधिनियम के तहत निर्धारित नियमों के दायरे में होगा।
  • इस कानून की धारा 35एए के तहत केंद्र सरकार RBI को चूककर्त्ता कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दे सकती है। 
  • केंद्र सरकार की अनुमति के बिना इस तरह का निर्देश जारी नहीं किया जा सकता और यह अनुमति अलग-अलग मामलों के आधार पर होगी।

नीति आयोग ने बताई नए नियमों की ज़रूरत

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने कहा कि समय पर कर्ज़ लौटाने संबंधी भारतीय रिज़र्व बैंक के एक नियम को निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद केंद्र सरकार और रिज़र्व बैंक को कुछ नए नियम लाने चाहिये, ताकि कर्ज़दारों द्वारा कर्ज़ की किस्तें समय पर चुकाना सुनिश्चित किया जा सके। RBI और सरकार को नए नियम तय करने होंगे, ताकि कर्ज़दारों के मामले में वित्तीय अनुशासन बनाए रखा जा सके। अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक वृद्धि की राह पर बनाए रखने के लिये यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि दिये गए कर्ज़ की समय पर वसूली होती रहे और संकट में फँसे ऋणों का समाधान होता रहे।

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