भूल जाने का अधिकार | 26 Jun 2021

यह एडिटोरियल दिनांक 24/06/2021 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित लेख “The fine line that separates judicial transparency and the right to be forgotten” पर आधारित है। यह भूल जाने के अधिकार से जुड़े मुद्दों से संबंधित है।

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 'भूलने के अधिकार (RTBF)' के प्रयोग की मांग करने वाले एक याचिकाकर्त्ता को राहत दी है। याचिकाकर्त्ता जो पहले एक नशीले पदार्थ के मामले में कारागार से बरी हो चुका था, ने उच्च न्यायालय के समक्ष ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से अपने मुक्त होने के निर्णय को हटाने के लिये प्रार्थना की।

किसी व्यक्ति के निजता के अधिकार की रक्षा करने और उसे जनता के सूचना के अधिकार के साथ संतुलित करने तथा न्यायिक रिकॉर्ड में पारदर्शिता बनाए रखने के लिये उपरोक्त जानकारी को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हटाने का अदालत का आदेश महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

भूल जाने का अधिकार

  1. 'भूल जाने का अधिकार' इंटरनेट, सर्च , डेटाबेस, वेबसाइटों या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत जानकारी को उस स्थिति में हटाने का अधिकार है जब यह व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह जाती है।
  2. गूगल स्पेन मामले में यूरोपीय संघ के न्यायालय ("CJEU") के वर्ष 2014 के निर्णय के बाद RTBF का प्रचलन हुआ।
  3. RTBF को सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (जीडीपीआर) के तहत यूरोपीय संघ में एक वैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है तथा यूनाइटेड किंगडम और यूरोप में कई अदालतों द्वारा इसे बरकरार रखा गया है।
  4. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो विशेष रूप से भूल जाने के अधिकार का प्रावधान करता हो। हालाँकि पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 इस अधिकार को मान्यता देता है।

गूगल स्पेन केस

  1. इस मामले में CJEU ने एक स्पेनिश नागरिक के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसने गूगल से अपने बारे में समाचार पत्रों के लेखों के दो लिंक हटाने का अनुरोध किया था।
  2. यह माना गया कि प्रोसेसिंग के उद्देश्यों के संबंध में अपर्याप्त, अप्रासंगिक या अत्यधिक पाई जाने वाली व्यक्तिगत जानकारी को मिटा दिया जाना चाहिये, भले ही इसे कानूनी रूप से प्रकाशित किया गया हो।

यूरोपीय न्यायालय (European Court)

  • यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस (European Court of Justice- ECJ) कानूनी मामलों के लिये वर्ष 1952 में स्थापित यूरोपीय संघ का सर्वोच्च न्यायालय है।
  • यूरोपीय संघीय न्यायालय, कोर्ट ऑफ जस्टिस एंड जनरल कोर्ट (Court of Justice and General Court) का संयुक्त रूप है तथा इसका मुख्यालय लक्ज़मबर्ग में है।
  • रोम संधि के अनुच्छेद 164 के अनुसार, यूरोपीय संघ के न्यायालय को वहाँ के कानून की व्याख्या करने और सभी सदस्य देशों की समान भागीदारी सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है।

भारत में RTBF और इसकी ज़रूरत

  1. भारत में RTBF को भी विधायी मंज़ूरी प्राप्त नहीं है। हालाँकि पुट्टस्वामी निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।
  2. पुट्टस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "किसी व्यक्ति के अपने व्यक्तिगत डेटा पर नियंत्रण रखने और स्वयं के जीवन को नियंत्रित करने में सक्षम होने का अधिकार भी इंटरनेट पर अपने अस्तित्व को नियंत्रित करने के उसके अधिकार को शामिल करेगा"।
  3. वर्तमान में कई उच्च न्यायालयों ने इस अधिकार पर अंतर्राष्ट्रीय न्याय प्रणाली को ध्यान में रखते हुए अपने निर्णयों में भूल जाने के अधिकार को स्पष्ट रूप से मान्यता दी है। उदाहरण के लिये:
    1. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महिला के अधिकार को यह कहते हुए भुला दिया कि यह अधिकार पश्चिमी देशों की प्रवृत्ति के अनुरूप है। महिलाओं से जुड़े सामान्य और अति संवेदनशील मामले जो संबंधित व्यक्ति की शालीनता तथा प्रतिष्ठा को प्रभावित करते है, में भूल जाने के अधिकार का पालन किया जाना चाहिये।
    2. इसी प्रकार एक अन्य मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र और गूगल से पूछा था कि क्या निजता के अधिकार में इंटरनेट से अप्रासंगिक सूचनाओं को हटाने का अधिकार शामिल है?
  4. प्रौद्योगिकी के गहन एकीकरण और डेटा के डिजिटलीकरण के साथ एक साधारण गूगल सर्च से किसी व्यक्ति के बारे में ढेर सारी जानकारी मिल सकती है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत व्यक्ति की प्रतिष्ठा और गरिमा को ठेस पहुँचा सकती है।
  5. ऐसे समय में जब न्यायपालिका अपनी महत्त्वाकांक्षी ई-न्यायालय परियोजना के तीसरे चरण में प्रवेश कर रही है, RTBF जैसे अधिकारों को न्यायिक डेटा भंडारण और प्रबंधन के लिये विकसित किसी भी तकनीकी समाधान में कोडित करना होगा।

भूल जाने के अधिकार से जुड़ी चुनौतियाँ

  1. कानूनी चुनौती: भूल जाने के अधिकार पर सार्वजनिक रिकॉर्ड से जुड़े मामलों के मध्य विरोध की स्थिति उत्पन्न हों सकती है।  
    1. उदाहरण के लिये निर्णयों को हमेशा सार्वजनिक रिकॉर्ड के रूप में माना गया है और ये भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 74 के अनुसार सार्वजनिक दस्तावेज़ की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं।
    2. विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, RTBF को आधिकारिक सार्वजनिक रिकॉर्ड, विशेष रूप से न्यायिक रिकॉर्ड तक विस्तारित नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे लंबे समय में न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास कमज़ोर होगा।
  2. सार्वजनिक डोमेन में सूचना टूथपेस्ट की तरह : जैसे एक बार टूथपेस्ट ट्यूब से बाहर हो जाता है तो उसे ट्यूब में वापस नहीं लाया जा सकता है, उसी तरह एक बार जानकारी सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध होने के बाद डिजिटल युग में इसके मिटने की संभावना अत्यंत काम हो जाती है। 
  3. व्यक्ति बनाम समाज: भूलने का अधिकार व्यक्तियों की निजता के अधिकार तथा समाज के सूचना के अधिकार और प्रेस की स्वतंत्रता के बीच एक दुविधा पैदा करता है।

आगे की राह 

  1. गोपनीयता को उचित प्रतिबंध बनाना: भूल जाने के अधिकार को लागू करने के लिये संविधान में एक बड़े संशोधन द्वारा अनुच्छेद 19 (2) के तहत गोपनीयता को उचित प्रतिबंध के आधार के रूप में जोड़ा जाना चाहिये।
  2. गोपनीयता और सूचना संतुलन: इसके लिये एक फ्रेमवर्क के विकास की आवश्यकता है, जिसकी सहायता से कुछ मामलों में भूल जाने के अधिकार को प्रतिबंधित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये :
    • अभिव्यक्ति और सूचना की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करने में;
    • कानूनी दायित्वों के अनुपालन में;
    • सार्वजनिक हित या सार्वजनिक स्वास्थ्य में किये गए कार्य के प्रदर्शन में;
    • जनहित की प्राप्ति हेतु ;
    • वैज्ञानिक या ऐतिहासिक अनुसंधान उद्देश्य या सांख्यिकीय उद्देश्य;
    • कानूनी दावों की स्थापना, अभ्यास या बचाव।

निष्कर्ष

यह देखते हुए कि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019 पहले ही संसद में पेश किया जा चुका है, भूलने के अधिकार पर व्यापक बहस की आवश्यकता है। ताकि भारतीय संविधान की स्वर्णिम त्रिमूर्ति (अनुच्छेद 14,19 और 21) का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनने वाले दो मौलिक अधिकारों के बीच संघर्ष को कम किया जा सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: व्यक्ति की निजता के अधिकार और समाज के सूचना के अधिकार के बीच सही संतुलन बनाना ही भारत में “भूल जाने के अधिकार” के विकास की कुंजी होगी। चर्चा कीजिये।