भारतीय अर्थव्यवस्था
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP)
- 17 Dec 2021
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यह एडिटोरियल 14/12/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The NMP is Hardly the Panacea for Growth in India” लेख पर आधारित है। इसमें राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) और उससे संबंद्ध मुद्दों पर चर्चा की गई है।
संदर्भ
लगभग सात दशक पूर्व यह तर्क देते हुए कि सामाजिक रूप से महत्त्वपूर्ण परिसंपत्तियों को निजी क्षेत्र के हवाले नही किया जा सकता, सरकार ने सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों, बिजली, तेल और गैस पाइपलाइनों आदि जैसी संपत्तियों को राज्य के स्वामित्व वाले सार्वजनिक उद्यमों (PSEs) के नियंत्रण में कर दिया था।
हालाँकि, बाद के वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के प्रदर्शन ने इसके समर्थन को निराश किया है। कुछ अपवादों को छोड़कर वे अपने वित्तीय एवं सामाजिक उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहे हैं।
अगस्त 2021 में शुरू की गई राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) को संस्थागत और दीर्घकालिक पूंजी का दोहन करके ब्राउनफील्ड सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति में निवेश के मूल्य का अधिक-से-अधिक लाभ सुनिश्चित करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
यद्यपि कम उपयोग की गई सार्वजनिक संपत्तियों से अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करने हेतु ‘संरचित सार्वजनिक-निजी भागीदारी’ बनाने का विचार सहरानीय है, परंतु इसमें कई अंतर्निहित मुद्दे भी मौजूद हैं।
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन
- परिचय: राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) चार वर्ष की अवधि (वित्त वर्ष 2022-25) में सड़कों, रेलवे, बिजली, तेल और गैस पाइपलाइन, दूरसंचार, नागरिक उड्डयन जैसे क्षेत्रों में केंद्र सरकार की मुख्य संपत्तियों को पट्टे पर देकर 6 लाख करोड़ रुपए की कुल मुद्रीकरण क्षमता की परिकल्पना करता है।
- NMP की आवश्यकता - सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की विफलता:
- लागत में वृद्धि: कुछ मामलों में, परियोजना का कार्य पूरा होने में अधिक समय लग जाता है, जिससे परियोजना की लागत इतनी बढ़ जाती है कि यह परियोजना शुरू होने के समय ही अव्यवहार्य हो जाती है।
- ओवरकैपिटलाइज़ेशन: अधिकांश सरकारी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में इष्टतम इनपुट-आउटपुट अनुपात शायद ही कभी देखा जाता है, जिससे उनका ओवरकैपिटलाइज़ेशन होता है।
- सार्वजनिक उपक्रमों की विफलता के अन्य कारण: श्रम सुधारों को लागू करने में अनिच्छा, अंतर-मंत्रालयी/विभागीय समन्वय की कमी, खराब निर्णय लेने, अप्रभावी शासन और अत्यधिक सरकारी नियंत्रण सार्वजनिक उपक्रमों की संपत्ति की विफलता अन्य कारण हैं।
- NMP का महत्त्व:
- अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: यह अपनी तरह की पहली पहल है जो बेहतर रोज़गार के अवसर पैदा करने के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था तथा इसकी प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देगी।
- कम उपयोग की गई सार्वजनिक संपत्तियों का उपयोग: NMP गैर-रणनीतिक अंडरपरफॉर्मिंग सरकारी स्वामित्त्व वाली संपत्तियों से निष्क्रिय पूंजी को निर्धारित करने की वकालत करता है।
- यह इस प्रकार प्राप्त धन को नई बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में पुनर्निवेश करने और ग्रीनफील्ड बुनियादी ढाँचे के निर्माण जैसी परिसंपत्तियों के संवर्द्धन की भी परिकल्पना करता है।
- आठ प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों (कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, स्टील, सीमेंट और बिजली) में बुनियादी ढाँचे का समर्थन करने वाले औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में लगभग 40% का कुल भार है।
NMP से जुड़ी चुनौतियाँ
- करदाताओं के पैसे का मुद्दा: करदाताओं ने इन सार्वजनिक संपत्तियों के लिये पहले ही भुगतान कर दिया है इसलिये एक निजी पार्टी द्वारा इसका उपयोग करने पर पुनः भुगतान करना तर्कसंगत नहीं है।
- संपत्ति और मुद्रीकरण का चक्र: NMP द्वारा नई संपत्ति सर्जित होने तथा बाद में सरकार के लिये देनदारी हेतु उसका मुद्रीकरण करने संबंधी एक दुष्चक्र निर्मित होने की काफी संभावना है।.
- संपत्ति-विशिष्ट चुनौतियांँ: इसमें गैस और पेट्रोलियम पाइपलाइन नेटवर्क में क्षमता उपयोग का निम्न स्तर, बिजली क्षेत्र की परिसंपत्तियों में विनियमित टैरिफ, चार लेन से नीचे के राष्ट्रीय राजमार्गों में निवेशकों के बीच कम रुचि और इकाई हिस्सेदारी रखने वाले कई हितधारक शामिल हैं।
- एकाधिकार: NMP की एक महत्त्वपूर्ण आलोचना यह है कि हस्तांतरण से एकाधिकार उत्पन्न होगा, जिससे कीमत में वृद्धि होगी।
- राजमार्गों और रेलवे लाइनों के मामले में एकाधिकार अपरिहार्य है।
- समसामयिक दबावों के साथ तालमेल का अभाव: विश्व अस्तित्वगत चुनौतियों, ग्लोबल वार्मिंग, महामारी, भू-राजनीतिक अराजकता और कट्टरवाद जैसी चुनोतियों के लगभग दायरे में है।
- भारत को अतिरिक्त रूप से स्थानिक गरीबी, निराश उम्मीदों, सामाजिक ध्रुवीकरण और लोकतांत्रिक संस्थाओं के क्षरण से निपटना होगा।
- इस संदर्भ में इस योजना को बहुत ही संकीर्ण दायरे में रखा गया है।
आगे की राह
- सार्वजनिक उद्यमों को सुदृढ़ बनाना: चूँकि भारत को वर्ष 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास पर लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता है, इसलिये सार्वजनिक उद्यमों को ध्यान में रखना चाहिये।
- अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही के लिये स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने सहित मज़बूत शासन प्रथाओं के साथ संवर्द्धित परिचालन स्वायत्तता को बढ़ाने के लिये उनकी कॉर्पोरेट प्रशासन संरचना को पूरी तरह से नया रूप देना एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
- वैकल्पिक विवाद-समाधान तंत्र: न्यायिक प्रक्रियाओं को मज़बूत करने पर ज्यादा ज़ोर नहीं दिया जा सकता है।
- कुशल और प्रभावी विवाद समाधान तंत्र स्वाभाविक रूप से और स्वचालित रूप से NMP के डिज़ाइन और निष्पादन के लिये भी अर्जित किये जाएंगे।
- बहु-हितधारक दृष्टिकोण: बुनियादी ढाँचे के विस्तार योजना की सफलता अन्य हितधारकों द्वारा उनकी उचित भूमिका निभाने पर निर्भर करेगी, इसमें राज्य सरकारें और उनके सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम और निजी क्षेत्र शामिल हैं।
- इस संदर्भ में पंद्रहवें वित्त आयोग ने केंद्र और राज्यों के वित्तीय उत्तरदायित्व कानून की फिर से जांच करने के लिये एक उच्च अधिकार प्राप्त अंतर सरकारी समूह की स्थापना की सिफारिश की है।
- हालाँकि परियोजना की उच्च पूंजी तीव्रता सभी के लिये बोली लगाना मुश्किल बनाती है लेकिन सरकार की ओर से पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
- प्रणालीगत समस्याओं का समाधान और सामाजिक मूल्यों का निर्माण: जब तक प्रणालीगत समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता है, तब तक निजी क्षेत्र को सार्वजनिक संपत्ति के पूर्ण मूल्य का उपयोग करना मुश्किल होगा और उन्हें संचालन का हस्तांतरण आंशिक रूप से उपशामक की पेशकश करेगा।
- निजी-सार्वजनिक निवेश संरचनाएँ ठीक हैं, लेकिन उन्हें सामाजिक मूल्य उत्पन्न करने के लिये भी तैयार किया जाना चाहिये। सतत् विकास का कोई शॉर्टकट नहीं है।
अभ्यास प्रश्न:
"हालाँकि राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) के माध्यम से "संरचित सार्वजनिक-निजी भागीदारी" निर्मित करने का विचार, कम उपयोग की गई सार्वजनिक संपत्तियों के मूल्य निर्धारण की ओर एक सहरानीय कदम है,यद्पि इसमें कई अंतर्निहित मुद्दे भी मौजूद हैं।" टिप्पणी कीजिये।