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संपूर्ण देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन की कमी

  • 20 Apr 2018
  • 8 min read

भूमिका
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के क्रियान्वयन के विषय में मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय से लोकसभा में पूछे गए अतारांकित प्रश्नों (unstarred) के संबध में दिये गए लिखित उत्तर निश्चित ही, लगभग एक दशक से चले आ रहे इस अधिनियम के क्रियान्वयन की आपातकालीन स्थितियों को दर्शाते हैं । इस लेख के द्वारा RTE अधिनियम के क्रियान्वयन के संबंध में दिये गए उत्तरों के साथ संबंधित प्रयासों पर भी प्रकाश डालेंगे।

प्रमुख बिंदु

  • RTE अधिनियम की धारा 12 (1) (सी) के तहत निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को अनिवार्य रूप से  6 से 14 साल की आयु वर्ग के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के बच्चों के लिये 25% सीटों को आरक्षित रखने का प्रावधान किया गया है।
  • इस प्रकार इस अधिनियम ने आर्थिक रूप से हाशिये वाले समुदायों को राज्य द्वारा उठाए गए खर्चे पर उच्च गुणवत्ता वाले निजी स्कूलों में शिक्षा प्राप्ति हेतु सक्षम बनाया है ।
  • किंतु अभी तक पाँच राज्यों गोवा, मणिपुर, मिज़ोरम, सिक्किम और तेलंगाना ने आरटीई के तहत प्रवेश के संबंध में कोई अधिसूचना जारी नहीं की है।
  • हालिया गठित  तेलंगाना को यदि छोड़ दिया जाए, तब भी शेष राज्य आठ साल पहले पारित इस अधिनियम की धारा 12 (1) (सी) को लागू करने में असफल रहे हैं।
  • RTE अधिनियम के प्रावधानों के तहत राज्यों को निजी स्कूलों में भर्ती बच्चों के संबंध में, उनके भुगतान करने के लिये सूचित करना होता है ।
  • हालाँकि, 29 राज्यों और सात केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 14 ने प्रति बाल लागत (per-child costs) को अधिसूचित किया है (प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता) और लक्षद्वीप में कोई निजी स्कूल नहीं है, इसलिये प्राप्त आँकड़ों के मुताबिक 20 राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों ने अभी भी प्रति-बाल लागत (per-child costs) अधिसूचित नहीं किया है।
  • यह आश्चर्यजनक है कि 2017-18 में, 15 राज्यों ने केंद्र सरकार के सामने अपनी प्रतिपूर्ति के दावों को प्रस्तुत किया उनमें केवल छह को अनुमोदित किया गया।
  • राज्यों के कई दावों पर केंद्र द्वारा धन उपलब्ध नहीं कराया गया था,क्योंकि उन्होंने प्रति-बच्चा लागत (per-child costs) को अधिसूचित नहीं किया था। 
  • पिछले तीन वर्षों में धारा 12 (1) (सी) के तहत प्रत्येक राज्य के निजी स्कूलों में नामांकित हुए बच्चों की संख्या के मामले में केवल 18 राज्यों ने दावा किया है।
  • इसका मतलब यह है कि 18 राज्यों में, अधिकतम गरीब बच्चे इस अधिनियम के तहत लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
  • यदि भर्ती होने वाले छात्रों की संख्या को दर्ज करने के लिये कोई डेटा नहीं है, तो यह सवाल उठता है कि राज्य निजी स्कूलों की  प्रतिपूर्ति कैसे कर रहे हैं। संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र को इस विशिष्ट बिंदु को स्पष्ट करना चाहिये।

ऐसी खामियाँ जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है 

  • इंडस एक्शन (एक संगठन जो विशेष रूप से 10 राज्यों में इस प्रावधान पर काम करता है) के अनुसार, राज्यों द्वारा लागत की गणना (per-child costs) करने के लिये उपयोग की जाने वाली पद्धति की कमी और प्रतिपूर्ति में सहायक लागतों के कवरेज की कमी के कारण भी इस अधिनियम के क्रियान्वयन में बाधा है।
  • केंद्रीय और राज्य स्तरों पर एक सुव्यवस्थित वितरण ढाँचे की अनुपस्थिति से प्रतिपूर्ति जैसे गंभीर मुद्दों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी है।
  • यदि राज्यों को पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो निजी स्कूलों को बच्चों पर आने वाली लागतों को वहन करने के लिये मज़बूर किया जाएगा।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को सुरक्षित करने की बात निहित है और निःसंदेह इन तत्त्वों को सुरक्षित रखने के लिये शिक्षा सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है।
  • हालाँकि नीति निर्देशक सिद्धांत के तहत यह राज्यों की ज़िमेदारी है कि वे बच्चों की अनिवार्य शिक्षा तक पँहुच को सुनिश्चित करे और 86वां संविधान संशोधन तथा आरटीई इसके कार्यान्वयन को दर्शाता है।
  • RTE अधिनियम का लक्ष्य तभी पूरा होगा, जब प्रतिबद्ध केंद्र के मार्गदर्शन के तहत राज्यों द्वारा ईमानदार प्रयास किये जाएँ।
  • देश में RTE अधिनियम के क्रियान्वयन के लिये कार्यपालिका ज़िम्मेदार है, जबकि विधायिका का कर्त्तव्य है कि वह कार्यपालिका की जवाबदेही बनाए रखे ।

आगे की राह 
RTE अधिनियम के गैर-कार्यान्वयन को लेकर पूरे देश में शिथिलता का वातावरण है, इसलिये केंद्र सरकार को सभी राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के साथ बैठक आयोजित करनी चाहिये और आरटीई कानून के कार्यान्वयन की समीक्षा करनी चाहिये। आरटीई को निजी स्कूलों के लिये शिक्षा के माध्यम से समाज के वंचित वर्गों को ऊपर उठाने वाले राज्य के प्रयासों को पूरक बनाने के लिये एक ढाँचा उपलब्ध कराना चाहिये। इसके साथ ही कानून के क्रियान्वयन में अंतराल को दूर करने के लिये तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है। सबसे प्रमुख बात यह है कि हमारे बच्चों का भविष्य इन सभी सार्थक प्रयासों पर ही निर्भर करता है।

इस विषय के संबंध में और अधिक जानकारी के लिये नीचे दिये गये लिंकों पर क्लिक करें:

⇒ शिक्षा के अधिकार को विस्तृत करने की आवश्यकता

⇒ प्रश्न. शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act) के लागू होने के इतने वर्षों पश्चात् भी इसका कार्यान्वयन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा है। इसके कारणों को स्पष्ट करते हुए उपयुक्त सुझावों का वर्णन करें।

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