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भारतीय राजनीति

भारत निर्वाचन आयोग: कितना स्वतंत्र एवं प्रभावी?

  • 20 Apr 2021
  • 10 min read

यह एडिटोरियल 19/04/2021 को द हिंदू में प्रकाशित लेख “The Election Commission of India cannot be a super-government” पर आधारित है। इसमें भारत निर्वाचन आयोग से जुड़े विभिन्न पक्षों, जैसे- इसकी स्वतंत्रता एवं कामकाज को प्रभावित करने वाले अस्पष्ट प्रावधानों, पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

भारत निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है। अनुच्छेद 324 के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति संसद एवं राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण भारत निर्वाचन आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है।

इस अनुच्छेद की व्याख्या कई बार न्यायालय एवं भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) के आदेशों द्वारा की जाती रही है। इन व्याखायों के अनुसार, ECI में निहित शक्ति प्रकृति में पूर्ण है। भारत में होने वाले चुनावों के मामले में इसके अधिकार असीमित है। हालाॅंकि, कई ऐसे मुद्दे और प्रावधान हैं, जो अस्पष्ट हैं एवं ECI के कामकाज को प्रभावित करते हैं।

ECI की शक्ति का स्रोत

  • संविधान: ECI को संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत शक्ति प्राप्त है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त (1978) में कहा था कि अनुच्छेद 324 के तहत स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने का दायित्व ECI का है एवं इस कार्य को पूरा करने के लिये ECI सभी आवश्यक कदम उठा सकती है।
  • आदर्श आचार संहिता: ECI द्वारा जारी की जाने वाली आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct- MCC) राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और सरकारों के लिये एक दिशा-निर्देश है, जिसका पालन उन्हें चुनाव के दौरान करना होता है। यह आचार संहिता राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति पर आधारित है। वर्ष 1960 में केरल सरकार द्वारा विधानसभा चुनाव के लिये जारी किये गए आचार संहिता को इसकी पूर्वपीठिका कहा जा सकता है। बाद में ECI द्वारा इसे अपनाया गया एवं परिष्कृत किया गया। वर्ष 1991 के बाद इसे सख्ती से लागू किया गया।
  • ECI की स्वतंत्रता: ECI की स्वतंत्रता को संविधान द्वारा संरक्षित किया गया है। मुख्य चुनाव आयुक्त को उसके पद से हटाए जाने का प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाए जाने वाले प्रावधान के समान है। साथ ही, नियुक्ति के पश्चात् उनकी सेवा की शर्तों को नकारात्मक रूप से परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।

निर्वाचन आयोग की संरचना

  • निर्वाचन आयोग में मूलतः केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था, लेकिन राष्ट्रपति की एक अधिसूचना के ज़रिये 16 अक्तूबर, 1989 को इसे तीन सदस्यीय बना दिया गया।
  • इसके बाद कुछ समय के लिये इसे एक सदस्यीय आयोग बना दिया गया और 1 अक्तूबर, 1993 को इसका तीन सदस्यीय आयोग वाला स्वरूप फिर से बहाल कर दिया गया, तब से निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं।
  • निर्वाचन आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • मुख्य निर्वाचन अधिकारी IAS रैंक का अधिकारी होता है, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति ही करता है।
  • इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (दोनों में से जो भी पहले हो) तक होता है।
  • इन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है और उनके समान ही वेतन एवं भत्ते मिलते हैं।
  • मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान ही पद से हटाया जा सकता है।

ECI से संबंधित मुद्दे

  • शक्तियों का अपरिभाषित होना: आदर्श आचार संहिता के अलावा ECI समय-समय पर उन मुद्दों पर दिशा-निर्देश, निर्देश एवं स्पष्टीकरण देता रहता है जो चुनाव के दौरान उठते हैं। इस संहिता में यह निहित नहीं है कि ECI क्या कर सकता है; इसमें केवल उम्मीदवारों, राजनीतिक दलों एवं सरकारों के लिये दिशा-निर्देश शामिल हैं। इस प्रकार ECI के पास चुनाव से जुड़ी शक्तियों की प्रकृति और विस्तार को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। 
  • आदर्श आचार संहिता को लेकर कोई कानूनी प्रावधान नहीं: ज्ञातव्य है कि आदर्श आचार संहिता राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति पर आधारित है। इसके लिये कोई भी कानूनी प्रावधान नहीं किया गया है। इसके पालन हेतु कोई वैधानिक व्यवस्था नहीं है और इसे निर्वाचन आयोग द्वारा केवल नैतिक एवं संवैधानिक अधिकारों के तहत लागू किया जाता है।

नोट: चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा 16A के अनुसार, यदि कोई मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल आदर्श आचार संहिता का पालन करने से मना करता है तो आयोग उसकी मान्यता निलंबित कर सकता है या वापस ले सकता है। इस पर कुछ बुद्धिजीवी तर्क देते हैं कि जब MCCकानूनी रूप से लागू नहीं है, तो ECI मान्यता को वापस लेने जैसी दंडात्मक कार्रवाई का सहारा कैसे ले सकता है।

  • अधिकारियों का स्थानांतरण: राज्य सरकारों के अधीन ऐसे अधिकारी, जो चुनाव के दौरान ECI के कार्य से संबंधित होते हैं, का अचानक स्थानांतरण भी आयोग के कामकाज को बाधित करता है। 
  • मोहिंदर सिंह गिल मामले में, न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया था कि ECI अनुच्छेद 324 से तभी शक्ति प्राप्त कर सकता है जब उस विशेष विषय से जुड़ा कोई अन्य कानून मौजूद न हो। (हालाँकि, अधिकारियों का स्थानांतरण इत्यादि संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत बनाए गए नियमों द्वारा नियंत्रित होता है तथा निर्वाचन आयोग अनुच्छेद 324 द्वारा प्राप्त शक्ति के तहत  इसकी उपेक्षा नहीं कर सकता।)
  • अन्य कानूनों के साथ टकराव:  MCC की घोषणा के पश्चात मंत्री किसी भी रूप में वित्तीय अनुदान, जैसे- सड़कों के निर्माण, पेयजल सुविधाओं का प्रावधान या सरकार में किसी भी पद पर तदर्थ नियुक्ति आदि की घोषणा नहीं कर सकते हैं। 
    • जबकि, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 (2) (b) के अनुसार, किसी भी सार्वजनिक नीति की घोषणा या कानूनी अधिकार के प्रयोग को मुक्त एवं निष्पक्ष चुनाव में हस्तक्षेप नहीं माना जाएगा। इसके अलावा, चुनाव की प्रक्रिया को बाधित करने वाले उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने की शक्ति नहीं है। अधिक-से-अधिक यह संबंधित मामले को पंजीकृत करने के लिये निर्देश कर सकता है।
  • साथ ही, चुनाव प्रचार के दौरान राजनेताओं के भड़काऊ या विभाजनकारी भाषणों से निपटने के लिये पर्याप्त अधिकार भी इसके पास नहीं हैं। इसी कारण वर्ष 2019 के आम चुनावों के दौरान में ECI ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह स्वीकार किया कि इसके पास पर्याप्त शक्तियाँ नहीं है। 

निष्कर्ष

ECI ने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता से भारतीय जनमानस के बीच लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक संस्थाओं के प्रति एक विश्वास पैदा किया है। यद्यपि कानूनी मापदंडों के अस्पष्ट क्षेत्रों में संशोधन किया जाने की आवश्यकता है ताकि ECI मुक्त और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुनिश्चित कर सके।

अभ्यास प्रश्न: भारत में निर्वाचन आयोग न केवल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करता है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था भी सुनिश्चित करता है। टिप्पणी कीजिये।

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