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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा: महत्त्व

  • 30 May 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 26/05/2022 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “The Indo-Pacific Economic Bloc Offers India A New Opportunity” लेख पर आधारित है। इसमें हाल ही में लॉन्च किये गए ‘हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा’ (IPEF) के महत्त्व और इससे संबद्ध संभावित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

चीन द्वारा अपने रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिये संपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुदृढ़ व्यापार और निवेश साझेदारी के निर्माण के बीच अब अमेरिका भी इस दिशा में आगे बढ़ा है और हाल ही में टोक्यो में आयोजित ‘क्वाड शिखर सम्मेलन’ में इस भूभाग को अपने विकास लक्ष्यों की पूर्ति हेतु बेहतर विकल्प प्रदान करने के उद्देश्य से ‘हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा’ (Indo-Pacific Economic Framework- IPEF) की पेशकश की है।

  • IPEF क्वाड प्लस प्रारूप में आउटरीच को बढ़ावा देगा और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत एवं पारदर्शी मानदंड के आधार पर क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग हेतु एक नया मंच प्रदान करेगा।
  • भारत, जो न तो ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) का अंग है और न ही ‘ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी के लिये व्यापक और प्रगतिशील समझौता’ (Comprehensive and Progressive Agreement for Trans-Pacific Partnership- CPTPP) से संलग्न है, के लिये यह नवीन पहल इस भू-भाग में अपने व्यापार और आर्थिक संलग्नता को आगे बढ़ाने हेतु एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान कर रही है।

IPEF क्या है?

  • इसे अमेरिका के एक दशक पुराने ‘एशिया धुरी’ (pivot to Asia) रणनीति के एक अंग के रूप में एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह ढाँचा हिंद-प्रशांत क्षेत्र को वैश्विक आर्थिक विकास का इंजन बनाने की सामूहिक इच्छा की घोषणा है।
    • इसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रत्यास्थता, संवहनीयता, समावेशिता, आर्थिक विकास, निष्पक्षता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिये भागीदार देशों के बीच आर्थिक साझेदारी को मज़बूत करना है।
  • IPEF में क्वाड के सदस्य देशों भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के अलावा 10 आसियान देश, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड शामिल हुए हैं।
    • IPEF को एक दर्जन आरंभिक भागीदारों के साथ लॉन्च किया गया है जो संयुक्त रूप से वैश्विक जीडीपी के 40% का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • IPEF के चार स्तंभ हैं:
    • आपूर्ति-शृंखला प्रत्यास्थता/लचीलापन
    • स्वच्छ ऊर्जा, डीकार्बोनाइजेशन और आधारभूत संरचना
    • कराधान और भ्रष्टाचार विरोधी पहल
    • निष्पक्ष और लचीला व्यापार।

IPEF महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • चीन से मुकाबला हेतु: चीन का इसका सदस्य नहीं होना समूह को एक अलग भू-राजनीतिक स्थिति प्रदान करता है क्योंकि इसके सभी सदस्य चीन के आक्रामक राष्ट्रवाद और विस्तारवादी महत्त्वाकांक्षाओं को लेकर एक साझा विचार रखते हैं।
  • आर्थिक सहयोग और एकीकरण: निवेश में सहयोग और स्वच्छ ऊर्जा के लिये प्रौद्योगिकी विकास के संदर्भ में यह आर्थिक मोर्चे पर कई तात्कालिक लाभ उत्पन्न करेगा।
    • यह समान विचारधारा वाले देशों के दीर्घकालिक आर्थिक एकीकरण का आधार भी बन सकता है।
  • भारत के लिये अवसर: IPEF में भारत का शामिल होना हिंद-प्रशांत लक्ष्यों और क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को व्यापक बनाने के प्रति उसकी प्रतिबद्धता की सशक्त अभिव्यक्ति है, विशेष रूप से जबकि भारत ने 15 देशों के RCEP से बाहर रहने का निर्णय लिया था।

कौन-सी चुनौतियाँ उभर सकती हैं?

  • देशों के लिये सामान्य आधार: अमेरिका ने यह स्पष्ट कर दिया है कि IPEF कोई मुक्त व्यापार समझौता नहीं है; न ही यह टैरिफ में कटौती या बाजार पहुँच बढ़ाने पर कोई चर्चा करेगा। इससे इस ढाँचे की उपयोगिता के बारे में सवाल उठते हैं।
    • इसके चार स्तंभ भी भ्रम की स्थिति पैदा करते हैं, जिससे फिर यह प्रश्न उठता है कि क्या इसके 13 सदस्य देशों (जो बेहद अलग-अलग आर्थिक व्यवस्था के अंग हैं) के मध्य साथ मिलकर एक समान मानकों को तय करने के लिये पर्याप्त साझा आधार मौजूद है या वे उन मुद्दों पर विचार करने के लिये तैयार हैं जो प्रत्येक देश के लिये भिन्न-भिन्न हैं।
  • भारत का पारंपरिक रुख: IPEF के तहत चिह्नित किये गए कुछ क्षेत्रों में प्रगति के मामले में भारत के पारंपरिक रुख से बार-बार विचलन की स्थिति बन सकती है।
    • ऐसा नहीं होना चाहिये कि भारत के वार्ताकार विकसित देशों के प्रतिभागियों की किसी भी मांग को सरलता से स्वीकार कर लें।
  • कराधान: कर प्रावधान एक अन्य विषय है जो समस्या पैदा कर सकता है। कराधान को एक संप्रभु कार्य के रूप में देखने की प्रवृत्ति रही है और इसलिये इसे समझौता वार्ता के अधीन नहीं किया जाता है।
  • व्यवसायों के अनसुने विचार: उन भारतीय व्यवसायों के विचार प्रायः नहीं सुने जाते हैं जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनने की क्षमता रखते हैं। उन व्यवसायों की बात सुनी जाती है जो प्रतिस्पर्द्धा से भयभीत हैं और अस्तित्व बनाए रखने के लिये संरक्षणवाद के पक्ष में पैरवी करते हैं।
    • नए एकीकरण के समर्थन में भारतीय व्यवसाय को गतिशील बनाने की भी आवश्यकता है।
  • जटिल वार्ता प्रक्रिया: व्यापार वार्ता में कई मंत्रालय शामिल होते हैं, जो फिर बोझिल अंतर-मंत्रालयी परामर्श में संलग्न होते हैं। वार्ताओं में नेगोशिएशन इतनी जटिल प्रक्रिया होती है कि अकेले किसी मंत्रालय द्वारा प्रबंधित नहीं की जा सकती क्योंकि उनके ऊपर पूर्व के कार्यों का भी भर रहता है।
  • IPEF की विश्वसनीयता: इस तथ्य को देखते हुए कि अमेरिका की पिछली पहलों—ब्लू डॉट नेटवर्क और बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) ने इस भूभाग की ढाँचागत आवश्यकताओं की पूर्ति के मामले में बहुत कम प्रगति की है, IPEF को विश्वसनीयता की चुनौती का सामना करना पड़ेगा।

आगे की राह

  • साझा मानकों की स्थापना: तात्कालिक ध्यान साझा मानकों को स्थापित करने पर होना चाहिये, जो भविष्य में गहन एकीकरण का आधार बन सकते हैं।
    • इस तरह के मानकों में श्रम अधिकार, पर्यावरण मानक, बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण और डिजिटल अर्थव्यवस्था को दायरे में लेने वाले नियम शामिल होंगे।
  • आत्मनिर्भरता और वैश्वीकरण को संतुलित करना: सरकार ने बार-बार स्पष्ट किया है कि ‘आत्मनिर्भरता’ का आशय अलगाव और संरक्षणवाद नहीं है।
    • इसके साथ ही, भारत ने हमेशा विदेशी निवेश को आकर्षित करने और वैश्विक आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनने की इच्छा व्यक्त की है।
    • यह सही दृष्टिकोण है और विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला का निर्माण IPEF एजेंडा का एक स्पष्ट अंग है।
  • कराधान के मुद्दे का प्रबंधन: भारत को विशेषज्ञों और राजस्व विभाग को संलग्न करते हुए अपने कर प्रशासन की आंतरिक समीक्षा शुरू करनी चाहिये ताकि आवश्यक बदलाव लाए जा सकें।
    • यह एक व्यापारिक भागीदार के रूप में और विशेष रूप से नई आपूर्ति शृंखलाओं में निवेश हेतु एक गंतव्य के रूप में भारत के आकर्षण को बढ़ाएगा।
  • प्रौद्योगिकी संबंधी मुद्दों को संबोधित करना: डिजिटल व्यापार एवं ई-कॉमर्स IPEF के तहत शामिल एक अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। सॉफ्टवेयर विकास और अनुप्रयोग में भारत के तुलनात्मक लाभ को देखते हुए वांछनीय होगा कि नियमों की एक सहमत शृंखला विकसित की जाए जिसे समान विचारधारा वाले देशों में लागू किया जा सकता है।
    • पारदर्शिता, निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा की आवश्यकताएँ और व्यक्तिगत डेटा का स्वामित्व एवं स्थानीयकरण जैसे कई विवादास्पद मुद्दे भी मौजूद हैं।
    • एक वैश्विक सर्वसम्मति के निर्माण के लिये रचनात्मक भूमिका निभाई जानी चाहिये।
  • व्यापार वार्ता को सरल बनाना: जटिल व्यापार वार्ता प्रक्रिया को देखते हुए, संबंधित मंत्रालयों के साथ परामर्श करने और गुण-दोषों के मूल्यांकन के साथ प्रधानमंत्री एवं प्रमुख मंत्रियों को रिपोर्ट करने के लिये एक सशक्त व्यापार वार्ताकार की आवश्यकता है।
    • नीति आयोग को व्यापक विचार-विमर्श करने और राज्य सरकारों सहित हितधारकों की राय जानने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत, जो न तो RCEP का अंग है और न ही CPTPP से संलग्न है, के लिये IPEF का शुभारंभ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने व्यापार और आर्थिक संलग्नता को बढ़ाने हेतु एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। टिप्पणी कीजिये।

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