सौर ऊर्जा क्षेत्र में प्रभुत्व प्राप्त करने हेतु भारत के प्रयास | 21 Sep 2024

यह संपादकीय 20/09/2024 को द हिंदू बिजनेस लाइन में प्रकाशित "Solar Strategies" पर आधारित है। लेख में सौर ऊर्जा क्षेत्र में भारत की महत्त्वाकांक्षाओं पर प्रकाश डाला गया है, जिसके तहत वर्ष 2030 तक 570 गीगावॉट क्षमता प्राप्त की जाएगी, जो वैश्विक प्रतिबद्धताओं को अतिक्रमित करते हुए, महत्त्वपूर्ण निवेश और स्वदेशी विनिर्माण पहलों के साथ होगी। अपनी पूरी क्षमता को पूर्ण करने हेतु भारत को चीनी आयात पर निर्भरता कम करते हुए सौर क्षमता में वृद्धि करनी चाहिये।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के सौर क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, स्वच्छ ऊर्जा , उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान , भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना 

मेन्स के लिये:

भारत के लिये सौर ऊर्जा प्रभुत्व का महत्त्व, भारत में सौर क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे।   

गांधीनगर में हाल ही में हुए REINVEST सम्मेलन के साथ भारत की सौर ऊर्जा क्षेत्र में महत्त्वाकांक्षाएँ नई शिखर पर पहुँच गई हैं , जिसमें कुल 386 बिलियन अमेरिकी डॉलर के नवीकरणीय ऊर्जा निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए और वर्ष 2030 तक 570 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता बनाने का लक्ष्य है। यह महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य भारत को वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता की अपनी वैश्विक प्रतिबद्धता का अतिक्रमण करने के लिये पदांकित करता है। यद्यपि, भारत की अनुमानित 749 गीगावाट सौर क्षमता का अनुभव करने के लिये, देश को अपनी वर्तमान वार्षिक क्षमता वृद्धि 10-15 गीगावाट में उल्लेखनीय रूप से तेज़ी लानी होगी।

सौर ऊर्जा क्षेत्र में प्रभुत्व प्राप्त करने के लिये प्रयास केवल स्वच्छ ऊर्जा के विषय में नहीं है; यह भू-राजनीतिक निहितार्थों वाला एक सामरिक प्रयास है। भारत के हालिया नीतिगत परिवर्तनों में सौर सेल और मॉड्यूल के लिये उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन तथा मॉडल और निर्माताओं की अनुमोदित सूची (ALMM) की शुरूआत शामिल है, जिसका उद्देश्य चीनी आयात पर निर्भरता को कम करना एवं घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है। यद्यपि इस संरक्षणवादी उपागम से अल्पावधि में घरेलू बिजली की लागत बढ़ सकती है, परंतु यह भारत को सौर प्रौद्योगिकी उत्पादन के लिये एक संभावित वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करता है। 

भारत के सौर क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोग करने वाला देश है और सौर ऊर्जा क्षमता में भारत 5वें स्थान पर है ( REN21 नवीकरणीय ऊर्जा 2024 वैश्विक स्थिति रिपोर्ट)।
    • COP26 में, भारत ने वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा प्राप्त करने का संकल्प लिया, जो पंचामृत पहल का हिस्सा है - जो विश्व की सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार योजना है।
  • सौर ऊर्जा विकास:
    • विगत् 9 वर्षों में स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में 30 गुना वृद्धि हुई है, जो अगस्त 2024 में 89.4 गीगावाट तक पहुँच जाएगी।
    • भारत की सौर क्षमता 748 GWp (राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान, NISE) होने का अनुमान है।
  • निवेश और FDI:
    • विद्युत अधिनियम 2003 के अधीन, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन और वितरण परियोजनाओं के लिये स्वचालित मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है।

भारत के लिये सौर ऊर्जा प्रभुत्व का क्या महत्त्व है? 

  • ऊर्जा स्वतंत्रता : सौर ऊर्जा के लिये भारत का प्रयास, ऊर्जा स्वतंत्रता के उसके प्रयास और अनुसंधान का आधार है। 
    • यद्यपि देश अपनी तेल की ज़रूरतों का 80% से अधिक आयात करता है, इसलिये सौर ऊर्जा इस निर्भरता को कम करने का एक मार्ग प्रशस्त करती है। 
    • वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य, जिसमें सौर ऊर्जा की प्रमुख भूमिका होगी।
    • हाल ही में गांधीनगर में आयोजित रीइन्वेस्ट सम्मेलन, जिसमें 386 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए, इस परिवर्तन के पैमाने को रेखांकित करता है।
    • यह संक्रमण न केवल ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ करता है, बल्कि अर्थव्यवस्था को वैश्विक तेल मूल्य अस्थिरता से भी बचाता है, जैसा कि हाल के वैश्विक ऊर्जा संकटों के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा की कीमतों की सापेक्ष स्थिरता से स्पष्ट है।
  • आर्थिक उत्प्रेरक: सौर क्षेत्र भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक गुणक के रूप में उभर रहा है। 
    • सौर ऊर्जा क्षेत्र में वर्ष 2050 तक 3.26 मिलियन नौकरियाँ सृजित होने का अनुमान है। वर्ष 2021-22 तक, सौर क्षेत्र में 29,000 से अधिक लोग कार्यरत थे।
    • सौर विनिर्माण के लिये सरकार की उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, जिसका परिव्यय 24,000 करोड़ रुपये है, से पूर्ण और आंशिक रूप से एकीकृत सौर पीवी मॉड्यूल के लिये महत्त्वपूर्ण विनिर्माण क्षमता एकीकृत करने की उम्मीद है। 
    • इससे न केवल रोज़गार सृजन होगा बल्कि भारत एक संभावित वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में भी स्थापित होगा।
  • जलवायु परिवर्तन शमन: सौर ऊर्जा भारत के जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों में सबसे आगे है। 
    • सौर ऊर्जा स्थापित क्षमता मार्च 2014 में 2820 मेगावाट से बढ़कर अक्तूबर 2023 में 72002 मेगावाट हो गई है, अर्थात् लगभग 25.54 गुना वृद्धि, जिससे यह वैश्विक स्तर पर पाँचवां सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादक बन गया है। 
    • भारत की कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना की हाल ही में शुरूआत से सौर ऊर्जा अपनाने को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे संक्रमण में तेज़ी आएगी और विकासशील देशों के बीच जलवायु कार्रवाई में भारत अग्रणी बन जाएगा।
  • ग्रामीण विद्युतीकरण : सौर ऊर्जा भारत में ग्रामीण विद्युतीकरण में क्रांति ला रही है तथा देश के सबसे दूरदराज़ के क्षेत्रों तक विद्युत् की आपूर्ति कर रही है। 
    • प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) योजना का लक्ष्य वर्ष 2026 तक 30.8 गीगावॉट सौर क्षमता जोड़ना है। 
    • इसके अतिरिक्त, सौर चरखा मिशन जैसी पहल ग्रामीण कारीगरों को सशक्त बना रही है। ये कार्यक्रम न केवल स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करते हैं बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी प्रोत्साहित करते हैं, जिससे शहरी-ग्रामीण विभाजन को पाटने में सौर ऊर्जा की क्षमता का प्रदर्शन होता है।
  • प्रौद्योगिकी संबंधी नवाचार: भारत की सौर महत्त्वाकांक्षाएं महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी नवाचारों को प्रेरित कर रही हैं। 
    •  भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी रूप से उच्च स्थिर, कम लागत वाले कार्बन-आधारित पेरोवस्काइट सौर सेल विकसित किये हैं, जिनमें उत्कृष्ट तापीय और आर्द्रता स्थिरता है।
    • एक स्वायत्त अनुसंधान एवं विकास संस्थान के रूप में राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (NISE) की स्थापना इस प्रतिबद्धता को और अधिक रेखांकित करती है।
    • इन नवाचारों से न केवल कार्यकुशलता बढ़ती है बल्कि लागत भी कम होती है
      • वर्ष 2022 में सौर सेल और मॉड्यूल के मूल्यों में क्रमशः 65% और 50% की गिरावट देखी गई है, जिससे सौर ऊर्जा पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के साथ अधिक प्रतिस्पर्द्धी हो गई है।

भारत में सौर क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • भूमि अधिग्रहण की चुनौतियाँ : भारत में बड़े पैमाने पर सौर परियोजनाओं के लिये भूमि की कमी एक बड़ी बाधा है। 
    • सौर ऊर्जा संयंत्रों को 1 मेगावाट उत्पादन के लिये कम से कम 5 एकड़ भूमि की आवश्यकता होती है; वर्ष 2030 तक देश के 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य के लिये केवल सौर ऊर्जा के लिये 1.5 मिलियन एकड़ से अधिक भूमि की आवश्यकता हो सकती है। 
    • यह मांग प्रायः कृषि और आवास संबंधी आवश्यकताओं के साथ टकराती है, जिससे सामाजिक तनाव उत्पन्न होता है और परियोजना में देरी होती है। 
    • उदाहरण के लिये, गुजरात में 5000 मेगावाट के धोलेरा सौर पार्क को स्थानीय किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा, जिसके कारण इसके कार्यान्वयन में देरी हुई। 
    • भारत के जटिल भूमि स्वामित्व कानूनों के कारण भूमि का मुद्दा और भी जटिल हो गया है।
  • ग्रिड एकीकरण और बुनियादी ढाँचा संबंधी बाधाएँ: सौर ऊर्जा की अस्थायी प्रकृति ग्रिड स्थिरता और प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न करती है। 
    • भारत का ग्रिड बुनियादी ढाँचा, जो मुख्य रूप से पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के लिये अभिकल्पित है, सौर उत्पादन की परिवर्तनशीलता को समायोजित करने में संघर्ष करता है। 
      • वर्ष 2021-22 तक देश का ट्रांसमिशन घाटा लगभग 16.4% है, जो वैश्विक औसत से काफी अधिक है।
    • हाल ही में हुई ग्रिड विफलताएँ, जैसे कि अक्तूबर 2020 में मुंबई में हुई, प्रणाली की कमज़ोरी को प्रकट करती हैं। 
  • निधियन एवं निवेश संबंधी बाधाएँ: हाल ही में निवेश प्रस्तावों की आमद के बावजूद, सौर परियोजनाओं के लिये निरंतर निधियन सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। 
    • जून 2022 में विलंब भुगतान अधिभार (LPS) नियमों के कार्यान्वयन के बाद मई 2023 तक बिजली डिस्कॉम का बकाया एक तिहाई घटकर 93,000 करोड़ रुपये रह जाएगा, परंतु यह अभी भी महत्त्वपूर्ण है, जिससे चलनिधि संबंधी दबाव उत्पन्न हो रहा है और निवेशक जोखिम धारणा बढ़ रही है। 
    • जबकि हरित बांड और विशेष वित्तीय उपकरण उभर रहे हैं, भारत के पहले सॉवरेन ग्रीन बांड से वर्ष 2023 में 16,000 करोड़ रुपये जुटाएं गए, जो इस क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये इन वित्तपोषण तंत्रों को बढ़ाना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
  • तकनीकी निर्भरता और विनिर्माण अंतराल: भारत का सौर क्षेत्र मुख्य रूप से आयातित प्रौद्योगिकी पर निर्भर है, विशेष रूप से चीन से। 
    • आयात शुल्क में वृद्धि और उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी हालिया नीतिगत पहलों के बावजूद स्वदेशी विनिर्माण क्षमता सीमित बनी हुई है। 
    • वेफर्स और सिल्लियों जैसे महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये सुदृढ़ घरेलू आपूर्ति शृंखला की कमी से वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान की संभावना बढ़ जाती है।
    • जुलाई 2020 के बाद, वैश्विक बाज़ारों में पॉलीसिलिकॉन की कीमत नवंबर 2021 में 6.8 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम से बढ़कर 43 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम हो गई (~ 6 गुना वृद्धि)। 
  • भंडारण और चौबीसों घंटे बिजली: लागत प्रभावी ऊर्जा भंडारण समाधानों की कमी भारत में सौर ऊर्जा की पूर्ण क्षमता को बाधित करती है। 
    • भारत में वर्तमान बैटरी भंडारण क्षमता मात्र 20 मेगावाट घंटा है, जबकि वर्ष 2032 तक 74 गीगावाट की अनुमानित आवश्यकता है। 
      • बैटरी भंडारण की उच्च लागत के कारण चौबीसों घंटे सौर ऊर्जा कई अनुप्रयोगों के लिये आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो जाती है। 
  • पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव: यद्यपि सौर ऊर्जा स्वच्छ है, परंतु इसका बड़े पैमाने पर उपयोग पर्यावरणीय चिंताओं से रहित नहीं है। 
    • सौर पार्कों के कारण पर्यावास ह्रास और जैव विविधता की हानि हो सकती है। 
    • राजस्थान में 2245 मेगावाट क्षमता वाले विश्व के सबसे बड़े सौर पार्कों में से एक भड़ला सौर पार्क ने स्थानीय वनस्पतियों और जीव-जंतुओं पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। 
      • इसके अतिरिक्त, सौर पैनलों का जीवन-अंत प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। 
    • भारत में वर्ष 2030 तक 34,600 टन सौर पैनल अपशिष्ट उत्पन्न होने की उम्मीद है, फिर भी यहाँ व्यापक पुनर्चक्रण नीति का अभाव है। 

सौर ऊर्जा की व्यवहार्यता और दक्षता बढ़ाने के लिये भारत क्या कदम उठा सकता है?

  • सुव्यवस्थित भूमि अधिग्रहण और नवीन भूमि उपयोग नीतियाँ: सौर परियोजनाओं के लिये एक केंद्रीकृत भूमि बैंक प्रणाली का कार्यान्वयन, उपयुक्त गैर-कृषि भूमि की पहचान और पूर्व-समाशोधन किया जा सकता है। 
    • एग्रीवोल्टाइक पर एक राष्ट्रीय नीति प्रस्तुत करना, कृषि और सौर ऊर्जा उत्पादन के लिये भूमि के दोहरे उपयोग को प्रोत्साहित किया जा सकता है। 
    • सौर परियोजनाओं के लिये भूमि पट्टे के नियमों को सरल बनाया जा सकता है, जिससे 40 वर्ष तक की दीर्घ पट्टा अवधि की अनुमति मिल सके। 
    • सौर ऊर्जा संयंत्रों के लिये ब्राउनफील्ड स्थलों, जैसे कि बंद भराव क्षेत्र और परित्यक्त खदानों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • ग्रिड आधुनिकीकरण और स्मार्ट एकीकरण प्रौद्योगिकियाँ: सौर ऊर्जा की परिवर्तनशीलता को संभालने के लिये स्मार्ट ग्रिड प्रौद्योगिकियों और ऊर्जा प्रबंधन प्रणालियों में भारी निवेश करने की आवश्यकता है।
    • सौर उत्पादन के बेहतर पूर्वानुमान और प्रबंधन के लिये उन्नत पूर्वानुमान उपकरण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता को कार्यान्वित किया जा सकता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा के लिये समर्पित उच्च क्षमता वाली अंतर्राज्यीय ट्रांसमिशन लाइनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए ट्रांसमिशन बुनियादी ढाँचे को उन्नत किया जा सकता है।
    • संचरण हानियों को कम करने और ग्रिड समुत्थानशीलता में सुधार करने के लिये वितरित ऊर्जा संसाधनों (DER) और माइक्रोग्रिड के परिनियोजन को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • नवीन वित्तपोषण प्रणाली और जोखिम न्यूनीकरण उपकरण: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये एक समर्पित ग्रीन बैंक की स्थापना की जा सकती है, जो कम ब्याज दर पर ऋण और ऋण वृद्धि उपकरण प्रदान करेगा। 
    • वैश्विक संवहनीय वित्त बाज़ारों में प्रवेश के लिये सौर-विशिष्ट हरित बांड और जलवायु बांड की शुरुआत करना।
    • डिस्कॉम से भुगतान में देरी के जोखिम को दूर करने के लिये राष्ट्रीय भुगतान सुरक्षा प्रणाली का कार्यान्वयन।
    • डेवलपर्स के लिये चलनिधि में सुधार के लिये एक मानकीकृत सौर परिसंपत्ति-समर्थित प्रतिभूति बाज़ार का निर्माण।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से घरेलू विनिर्माण का अभिवर्द्धन: पॉलीसिलिकॉन से लेकर मॉड्यूल तक संपूर्ण सौर मूल्य शृंखला के लिये चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम का कार्यान्वयन।
    • ज्ञान हस्तांतरण और क्षमता निर्माण के लिये वैश्विक प्रौद्योगिकी अभिकर्त्ताओं के साथ संयुक्त उद्यम स्थापित करना। 
    • पेरोवस्काइट सेल और टेंडेम मॉड्यूल जैसी अगली पीढ़ी की सौर प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान एवं विकास निधि में वृद्धि करना । 
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) बॉम्बे को 26% से अधिक दक्षता वाले 4T-सिलिकॉन-पेरोवस्काइट टेंडम सौर सेल विकसित करने में हाल में मिली सफलता स्वदेशी नवाचार की क्षमता को प्रदर्शित करती है, जिसे लक्षित समर्थन के साथ बढ़ाया जा सकता है।
  • व्यापक ऊर्जा भंडारण नीति और अवसंरचना: विभिन्न भंडारण प्रौद्योगिकियों के लिये स्पष्ट लक्ष्यों और प्रोत्साहनों के साथ एक राष्ट्रीय ऊर्जा भंडारण मिशन का विकास किया जा सकता है।
    • एक विनियामक ढाँचा कार्यान्वित किया जा सकता है जो ग्रिड स्थिरीकरण में भंडारण के मूल्य को मान्यता प्रदान करे तथा उसका मुआवज़ा दे। 
    • अतिरिक्त टैरिफ या क्षमता भुगतान के माध्यम से सौर संयंत्रों के साथ भंडारण सुविधाओं के सह-स्थान को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
    • लागत प्रभावी बड़े पैमाने पर भंडारण समाधान के रूप में उपयुक्त भौगोलिक स्थानों में पंपयुक्त जल भंडारण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • कौशल विकास और कार्यबल प्रशिक्षण कार्यक्रम: देश भर में सौर कौशल विकास केंद्रों का एक नेटवर्क की स्थापना के साथ  ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है, जहाँ आमतौर पर बड़ी सौर परियोजनाएँ स्थित होती हैं। 
    • कुशल तकनीशियनों की एक श्रेणी तैयार करने के लिये IIT और पॉलीटेक्निक पाठ्यक्रमों में सौर प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रमों को एकीकृत किया जा सकता है।
    • गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने के लिये  सौर ऊर्जा संस्थापित करने वालों और संभारण कर्मियों के लिये राष्ट्रीय प्रमाणन कार्यक्रम कार्यान्वित किया जा सकता है।
    • व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये सौर कंपनियों के साथ सहयोग करके प्रशिक्षुता कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है। 
    • सूर्यमित्र कौशल विकास कार्यक्रम का विस्तार और आधुनिकीकरण किया जा सकता है ताकि इसमें उन्नत प्रौद्योगिकियाँ और सॉफ्ट स्किल प्रशिक्षण शामिल किया जा सके।
  • जल-कुशल सफाई प्रौद्योगिकियाँ और प्रथाएँ: जल-तनावग्रस्त क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सौर प्रतिष्ठानों के लिये रोबोटिक ड्राई-क्लीनिंग प्रणालियों के उपयोग को अनिवार्य बनाया जा सकता है।
    • धूल के संचयन को कम करने के लिये  सौर पैनलों हेतु हाइड्रोफोबिक कोटिंग्स के अनुसंधान और विकास में निवेश किया जा सकता है।
    • स्वच्छता के प्रयोजनों के लिये सौर पार्कों में वर्षा जल संचयन प्रणाली का कार्यान्वयन किया जा सकता है ।
    • शहरी केंद्रों के निकटवर्ती क्षेत्रों में पैनल की सफाई के लिये उपचारित अपशिष्ट जल के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा सकता है। 
  • छत पर सौर ऊर्जा परिग्रहण में त्वरण : सभी राज्यों में सुसंगत विनियमनों के साथ एक एकीकृत, राष्ट्रव्यापी नेट मीटरिंग नीति को  कार्यान्वित करके छत पर सौर ऊर्जा पारिस्थितिकी प्रणाली को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
    • उपभोक्ताओं के लिये प्रारंभिक लागत कम करने हेतु सौर लीजिंग और ऑन-बिल फाइनेंसिंग जैसे नवीन वित्तपोषण मॉडल को प्रस्तुत किया जा सकता है।
    • प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना का लक्ष्य 10 मिलियन घरों को छतों पर सौर पैनल को परिनियोजित करना है। 
      • इसके लिये एकल खिड़की मंजूरी प्रणाली और मानकीकृत उपकरण रेटिंग के माध्यम से अनुमोदन तथा परिनियोजन प्रक्रिया को सरल बनाना आवश्यक है। 

निष्कर्ष: 

भारत के महत्त्वाकांक्षी सौर लक्ष्य न केवल ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि आर्थिक विकास, जलवायु कार्रवाई और तकनीकी नवाचार को आगे बढ़ाने के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं। ग्रिड आधुनिकीकरण, अभिनव वित्तपोषण, घरेलू विनिर्माण और संवहनीय प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करके, भारत अपने सौर ऊर्जा क्षेत्र की पूरी क्षमता को प्रकट कर सकता है और अक्षय ऊर्जा उत्पादन में वैश्विक नेता बन सकता है। सौर क्षेत्र में दीर्घकालिक व्यवहार्यता और दक्षता सुनिश्चित करने के लिये एक व्यापक और संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

Q. ऊर्जा स्वतंत्रता की दिशा में भारत की यात्रा में सौर ऊर्जा की भूमिका पर चर्चा कीजिये। भारत अपनी सौर ऊर्जा क्षमता का प्रभावी ढंग से अनुकूलन कैसे कर सकता है?

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये :

  1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) को 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रारम्भ किया गया था।
  2. इस गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश सम्मिलित हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (a)


मेन्स

Q. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (2020)