भारत की देखभाल अर्थव्यवस्था | 02 May 2024

यह एडिटोरियल 30/04/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Mom, baby and us: Who takes care of the children?” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में अवैतनिक देखभाल कार्य के बहुआयामी पहलुओं और एक अधिक मूल्यवान, समावेशी एवं न्यायपूर्ण देखभाल अर्थव्यवस्था की आवश्यकता पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

चाइल्ड केयर अवकाश नीति, देखभाल अर्थव्यवस्था/केयर इकोनॉमी, वर्ष 1995 का ‘बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन’, मातृत्व लाभ अधिनियम, महिला श्रम बल भागीदारी दर, महिलाओं से संबंधित SDG।

मेन्स के लिये:

देखभाल अर्थव्यवस्था, भारत में देखभाल अर्थव्यवस्था से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

सर्वोच्च न्यायालय के हाल के एक निर्णय में हिमाचल प्रदेश में एक सरकारी महिला कर्मचारी को चाइल्ड केयर लीव (CCL) दिए जाने से इनकार को उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना गया।

इस निर्णय ने मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किये जाने वाले अवैतनिक देखभाल कार्य के प्रायः उपेक्षित कर दिए जाने मुद्दे की ओर पुनः ध्यान आकर्षित किया है। भारत में महिलाएँ अपने कुल समय का 84% अवैतनिक देखभाल कार्य पर खर्च करती हैं। अदृश्य, अप्रतिदेय, तुच्छ समझे जाते और गैर-चिह्नित श्रम का यह भारी बोझ देश की देखभाल अर्थव्यवस्था (care economy) की रीढ़ है।

इस लेख में बाल देखभाल और उत्तरदायित्व के अधिक समतामूलक वितरण की आवश्यकता पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए भारत में देखभाल अर्थव्यवस्था के बहुआयामी पहलुओं पर विचार किया गया है।

भारत में कार्यशील महिलाओं से संबंधित प्रमुख संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 14: यह विधि के समक्ष समता का अधिकार को सुनिश्चित करता है, जहाँ कहा गया है कि भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। यह कार्यशील/कामकाजी महिलाओं पर भी लागू होता है।
  • अनुच्छेद 15: यह धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध करता है।
    • इससे यह सुनिश्चित होता है कि महिलाओं को विभिन्न स्थानों पर प्रवेश, विभिन्न स्थानों के उपयोग आदि विषय में लैंगिक आधार पर भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बच्चों के लिये विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
  • अनुच्छेद 16: यह लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता की गारंटी देता है। यह महिलाओं को नियोजन से वंचित होने या उनके लिंग के कारण अलाभ का सामना करने से बचाता है।
  • अनुच्छेद 39: राज्य की नीति के निदेशक तत्व (DPSP) के अंतर्गत शामिल इस अनुच्छेद में राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्वों की चर्चा की गई है, जहाँ कहा गया है कि राज्य अपनी का नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से—
    • 39 (a): पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार 
    • 39 (d): पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिये समान कार्य के लिये समान वेतन हो
    • 39 (e): पुरुष और स्त्री कर्मकार के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोज़गार से संलग्न नहीं हो पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों।
  • अनुच्छेद 42: यह राज्य को कार्य की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिये और प्रसूति सहायता के लिये उपबंध करने का निर्देश देता है।
    • यह महिलाओं के लिये सुरक्षित कामकाजी माहौल और मातृत्व लाभ सुनिश्चित करने के रूप में व्यक्त होता है।
  • केंद्र सरकार की CCL नीति: यह महिला कर्मचारियों को उनके संपूर्ण सेवा काल के दौरान 18 वर्ष से कम आयु के अधिकतम दो बच्चों की देखभाल के लिये मातृत्व अवकाश के अलावा 730 दिनों के सवैतनिक अवकाश की अनुमति देती है।
    • लाभार्थियों के रूप में महिला कर्मचारियों के स्पष्ट उल्लेख को इस तथ्य की वैध मान्यता के रूप में देखा जा सकता है कि यह मुख्य रूप से माताएँ होती हैं जो बच्चों के पालन-पोषण का भारी बोझ उठाती हैं, जो जन्म के बाद पहले छह माह (मातृत्व अवकाश के तहत मानी जाने वाली अवधि) से लेकर आगे की अवधि तक जारी रहती है।
    • पुरुष CCL के लिये तभी पात्र हैं यदि वे एकल पिता (single father) हैं।
  • महिलाओं के लिये सतत विकास लक्ष्य: SDG 5 लैंगिक समता प्राप्त करने और महिलाओं एवं बालिकाओं को सशक्त करने पर लक्षित है
    • 5.1 सभी महिलाओं और बालिकाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव को हर जगह समाप्त करना
    • 5.4 सार्वजनिक सेवाओं, आधारभूत संरचना एवं सामाजिक सुरक्षा नीतियों के प्रावधान के माध्यम से अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्य को चिह्नित करना एवं महत्त्व देना तथा राष्ट्रीय स्तर पर उपयुक्त तरीके के रूप में घर एवं परिवार के भीतर साझा ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देना
    • 5.5 राजनीतिक, आर्थिक और सार्वजनिक जीवन में निर्णय लेने के सभी स्तरों पर महिलाओं की पूर्ण एवं प्रभावी भागीदारी और नेतृत्व के समान अवसर को सुनिश्चित करना
    • 5.c लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और सभी स्तरों पर सभी महिलाओं एवं बालिकाओं के सशक्तीकरण के लिये ठोस नीतियों एवं प्रवर्तनीय विधान को अपनाना और उन्हें सुदृढ़ करना।

देखभाल अर्थव्यवस्था (Care Economy):

  • परिचय: देखभाल अर्थव्यवस्था आर्थिक गतिविधि के उस क्षेत्र को संदर्भित करती है जिसमें देखभाल एवं सहायता सेवाओं का प्रावधान शामिल होता है, विशेष रूप से वे सेवाएँ जो स्वास्थ्य, शिक्षा, बच्चों की देखभाल, वृद्धजनों की देखभाल और सामाजिक देखभाल के अन्य रूपों से संबंधित होती हैं।
    • इसमें मानव अस्तित्व, कल्याण और श्रम शक्ति पुनरुत्पादन के लिये महत्त्वपूर्ण वैतनिक एवं अवैतनिक देखभाल कार्य शामिल हैं।
      • यह भौतिक, भावनात्मक और विकास संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति में योगदान देता है लेकिन प्रायः इसे चिह्नित नहीं किया जाता या इसे कम महत्त्व दिया जाता है, जिससे ‘प्रच्छन्न देखभाल अर्थव्यवस्था’ (hidden care economy) उत्पन्न होती है।
      • यह मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था (Monetized Economy) से अलग है, जो औपचारिक बाज़ार-आधारित प्रणाली है जहाँ धन का उपयोग कर वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय किया जाता है।
    • इसमें विनिर्माण, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा (औपचारिक क्षेत्र) और खुदरा/रिटेल जैसे उद्योग शामिल हैं।
    • मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था में कार्य का मूल्य प्रत्यक्ष रूप से उसके बाज़ार मूल्य से जुड़ा होता है।
  • इतिहास: ऐतिहासिक रूप से, नारीवादी अर्थशास्त्रियों ने अवैतनिक श्रम (विशेषकर घरों में महिलाओं द्वारा किये जाने वाले महत्त्वपूर्ण योगदान) को अपवर्जित करने के लिये ‘कार्य’ (work) की पारंपरिक परिभाषा की आलोचना की है।
  • संबंधित शब्दावलियाँ:
    • वैतनिक देखभाल कार्य (Paid Care Work): इसका तात्पर्य स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यक्तिगत देखभाल और घरेलू कार्य जैसे क्षेत्रों में देखभाल संबंधी ऐसी नौकरियों से है, जिनके लिये वेतन/पारिश्रमिक प्रदान किया जाता है।
      • नर्स, घरेलू सहायिका, व्यक्तिगत देखभालकर्ता, शिक्षिका और बाल देखभाल सहायिका जैसी देखभाल भूमिकाओं में महिलाएँ अधिक संख्या में नियोजित हैं।
    • अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्य (Unpaid Care and Domestic Work): इसमें घरेलू सेवाएँ (खाना पकाना, सफाई करना), देखभाल कार्य (बच्चों, वृद्धों, बीमारों की सेवा करना) और सामुदायिक/स्वैच्छिक सेवाएँ शामिल हैं।
      • इसके अंतर्गत प्रत्यक्ष देखभाल में आश्रितों की सेवा करना और अप्रत्यक्ष देखभाल में घरेलू कार्य करना शामिल होता है जहाँ बहु-कार्य या ‘मल्टीटास्किंग’ से प्रायः ये सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं।
    • केयर डायमंड (Care Diamond): यह देखभाल प्रावधान में चार मुख्य अभिकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करता है- राज्य, बाज़ार, घर/परिवार और समुदाय।

भारत में देखभाल अर्थव्यवस्था से संबंधित प्रमुख मुद्दे: 

  • सीमित नीति कवरेज: देखभाल अर्थव्यवस्था से संबंधित मौजूदा नीतियाँ (जैसे मातृत्व लाभ एवं शिशु देखभाल अवकाश) विशेष रूप से छोटे पैमाने के उद्यमों और अनौपचारिक क्षेत्र प्रायः सीमित कवरेज एवं प्रयोज्यता रखती हैं।
    • मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 केवल 10 से अधिक कामगारों वाले प्रतिष्ठानों पर लागू है।
      • आर्थिक जनगणना के आँकड़ों के अनुसार 98% भारतीय उद्यम 10 से कम कामगारों के साथ सूक्ष्म (micro) उद्यम श्रेणी के हैं।
      • पंजीकृत विनिर्माण में भी 30% प्रतिष्ठानों में 10 से कम कामगार पाए जाते हैं।
    • इससे कई महिलाओं को कार्य और देखभाल की ज़िम्मेदारियों के बीच संतुलन के निर्माण में पर्याप्त समर्थन या सुरक्षा नहीं मिल पाती है।
  • सीमित कार्यबल भागीदारी: देखभाल कार्य का असमान बोझ प्रायः महिलाओं की कार्यबल भागीदारी और करियर उन्नति के अवसरों में बाधा डालता है।
    • PLFS 2022-23 के अनुसार, भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर वर्ष 2023 में 37% थी। पूर्व की तुलना में इस प्रगति के बावजूद यह अभी भी वांछित स्तर से नीचे है।
    • कई महिलाओं को वैतनिक रोज़गार की तुलना में देखभाल को प्राथमिकता देने के लिये विवश किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप औपचारिक क्षेत्रों और निर्णय लेने वाली भूमिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम हो जाता है।
  • देखभाल सेवाओं की अभिगम्यता का अभाव: भारत के कई हिस्सों में वहनीय एवं गुणवत्तापूर्ण देखभाल सेवाओं—जैसे कि बाल देखभाल सुविधा और वृद्ध देखभाल सहायता, तक पहुँच एक चुनौती बनी हुई है।
    • देखभाल सेवाओं की सीमित उपलब्धता तथा उच्च लागत के कारण परिवारों पर, विशेष रूप से निम्न आय वाले परिवारों पर, देखभाल का बोझ और अधिक बढ़ जाता है।
    • अनुमान है कि महिलाओं द्वारा अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्य भारत की GDP के लगभग 15-17% के बराबर है।
  • सामाजिक कलंक और सांस्कृतिक मानदंड: सामाजिक अपेक्षाएँ और सांस्कृतिक मानदंड प्रायः इस धारणा को मज़बूत करते हैं कि देखभाल करना मुख्य रूप से महिला की ज़िम्मेदारी है।
    • यह कलंक पुरुषों को देखभाल संबंधी कर्तव्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने से रोकता है और घरों के भीतर देखभाल कार्य के असमान वितरण के चक्र को निरंतर बनाए रखता है।

आगे की राह 

  • 3R (Recognize, Reduce, Redistribute) फ्रेमवर्क:
    • वर्तमान में माताओं द्वारा वहन की जाने वाली व्यापक बाल देखभाल ज़िम्मेदारियों को चिह्नित करना (Recognize)।
    • शिशु देखभाल के पुनर्वितरण के माध्यम से माताओं पर भार कम करना (Reduce):
      • घरों में पिता की अधिक भागीदारी से
      • घरों से बाहर वहनीय, गुणवत्तापूर्ण पड़ोसी शिशु देखभाल विकल्पों के माध्यम
    • बच्चों की देखभाल को एक सामाजिक उत्तरदायित्व के रूप में पुनर्वितरित करना (Redistribute), न कि केवल माताओं पर एक व्यक्तिगत बोझ के रूप में बनाए रखना।
  • कौशल पहचान और माइक्रो-क्रेडेंशियल: अवैतनिक देखभाल कार्य के माध्यम से प्राप्त कौशल की पहचान करने के लिये एक राष्ट्रीय ढाँचे का निर्माण किया जाए।
    • इसमें माइक्रो-क्रेडेंशियल (micro-credentials) जारी करना शामिल हो सकता है जो बच्चों की देखभाल, वृद्धों की देखभाल या घरेलू प्रबंधन में दक्षताओं को मान्यता प्रदान करता है। ये प्रमाण-पत्र उन देखभालकर्ताओं की रोज़गार-योग्यता को बढ़ा सकते हैं जो वैतनिक कार्यबल में पुनः प्रवेश करते हैं।
    • देखभालकर्ताओं द्वारा अपने कौशल को बेहतर बनाने और संभावित रूप से वैतनिक देखभाल भूमिकाओं में आगे बढ़ सकने में मदद करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम पेश करें।
  • देखभाल अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ाना: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का मानना है कि देखभाल सेवा क्षेत्र में निवेश की वृद्धि वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 475 मिलियन नौकरियाँ सृजित कर सकने की क्षमता रखती है।
    • वर्तमान में देखभाल अर्थव्यवस्था पर भारत का सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद के 1% से भी कम है, जो अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है।
    • सकल घरेलू उत्पाद के 2% के बराबर प्रत्यक्ष सार्वजनिक निवेश से भारत में संभावित रूप से 11 मिलियन नौकरियाँ सृजित हो सकती हैं, जिनमें से लगभग 70% महिलाओं को प्राप्त होंगी।
    • भारत जापान के ‘वीमनोमिक्स’ (womenomics) सुधारों से भी प्रेरणा ग्रहण कर सकता है।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: देखभालकर्ताओं को संसाधनों एवं सहायता सेवाओं से जोड़ने वाले ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के निर्माण के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया जाए। ये प्लेटफॉर्म बाल देखभाल विकल्पों, वृद्धजन देखभाल सुविधाओं या प्रशिक्षण कार्यक्रमों के बारे में सूचना प्रदान कर सकते हैं।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): सस्ती एवं सुलभ देखभाल सेवाओं के लिये नवीन समाधान विकसित करने हेतु सरकार, निजी क्षेत्र और गैर-सरकारी संगठनों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित किया जाए।
    • इसमें उन कंपनियों के लिये कर छूट देना शामिल हो सकता है जो अपने कर्मचारियों के लिये बाल देखभाल सुविधाएँ प्रदान करती हैं या देखभाल क्षेत्र में कार्यरत सामाजिक उद्यमों को सहायता प्रदान करती हैं।
    • देखभाल अर्थव्यवस्था का समर्थन करने वाली कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहलों को बढ़ावा दिया जाए। इसमें निम्न-आय समुदायों में बाल देखभाल केंद्रों को प्रायोजित करने वाली कंपनियाँ या देखभाल उत्तरदायित्व रखने वाले कर्मचारियों को लचीली कार्य व्यवस्था की पेशकश करने वाली कंपनियाँ शामिल हो सकती हैं।

अभ्यास प्रश्न:

लैंगिक समानता और महिलाओं की कार्यबल भागीदारी पर अवैतनिक देखभाल कार्य के प्रभाव पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत में देखभाल अर्थव्यवस्था से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों की चर्चा कीजिये।

प्रश्न : ‘देखभाल अर्थव्यवस्था’ और ‘मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था’ के बीच अंतर कीजिये। महिला सशक्तीकरण के द्वारा देखभाल अर्थव्यवस्था को मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था में कैसे लाया जा सकता है? ( 250 शब्द)