भारत की जनसांख्यिकी | 16 Aug 2022
यह एडिटोरियल 13/08/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Moving Policy Away from Population Control” लेख पर आधारित है। इसमें स्वतंत्रता के बाद से भारत की जनसांख्यिकी में आए परिवर्तन और उन परिवर्तनों का पूर्ण लाभ उठाने के लिये किये जा सकने वाले उपायों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
अपनी स्वतंत्रता के बाद से भारत ने अपनी जनसांख्यिकीय संरचना में भारी परिवर्तन है। यह जनसंख्या विस्फोट से गुज़रा है (जनगणना, 1951) और कुल प्रजनन दर में गिरावट भी देखी है।
- साकारात्मक पक्ष की ओर देखें तो मृत्यु दर संबंधी विभिन्न संकेतकों में सुधार आया है, लेकिन जीवन स्तर में सुधार, कौशल एवं प्रशिक्षण प्रदान करने और रोज़गार सृजन के मामले में जनसांख्यिकीय लाभांश के दोहन में कुछ बाधाएँ भी मौजूद हैं।
- भारत की बड़ी आबादी विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत के लिये एक लाभ की स्थिति हो सकती है। आवश्यकता इस बात की है कि जनसांख्यिकीय लाभांश की क्षमता का पूरा दोहन करने के लिये सही दिशा में कदम उठाए जाएँ।
भारत समय के साथ किन जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से गुज़रा है?
- जनसंख्या वृद्धि: संयुक्त राष्ट्र विश्व जनसंख्या संभावना (WPP), 2022 ने पूर्वानुमान किया है कि भारत वर्ष 2023 तक 140 करोड़ की आबादी के साथ चीन को पीछे छोड़कर विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। भारत में वर्तमान में विश्व की कुल आबादी का 17.5% मौजूद है।
- यह वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के समय भारत की जनसंख्या (34 करोड़) की चार गुनी है।
- भारत की जनसंख्या के वर्ष 2030 तक 150 करोड़ और वर्ष 2050 तक 166 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है।
- भारत के TFR में गिरावट: वर्ष 2021 में भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन क्षमता (जो प्रति महिला 2.1 बच्चे है) से नीचे गिरकर 2.0 हो गई। स्वतंत्रता के बाद 1950 के दशक में भारत का कुल प्रजनन दर 6 रहा था।
- बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मणिपुर और मेघालय को छोड़कर कई राज्य 2 के TFR तक पहुँच गए हैं।
- उच्च कुल प्रजनन दर के मुख्य कारणों में उच्च निरक्षरता स्तर, बड़े पैमाने पर बाल विवाह, 5 वर्ष से कम आयु के मृत्यु दर का उच्च स्तर, महिलाओं की कम कार्यबल भागीदारी, गर्भनिरोधक का कम उपयोग और महिलाओं में आर्थिक और निर्णयन क्षमता की कमी शामिल हैं।
- बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मणिपुर और मेघालय को छोड़कर कई राज्य 2 के TFR तक पहुँच गए हैं।
- मृत्यु दर संकेतकों में सुधार: जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में वर्ष 1947 में 32 वर्ष से वर्ष 2019 में 70 वर्ष की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- शिशु मृत्यु दर वर्ष 1951 में 133 (बड़े राज्यों के लिये) से घटकर वर्ष 2020 में 27 हो गई।
- 5 वर्ष से कम आयु की मृत्यु दर 250 से घटकर 41 रह गई है और मातृ मृत्यु अनुपात वर्ष 1940 के 2,000 से घटकर वर्ष 2019 में 103 हो गया।
जनसंख्या वृद्धि का महत्त्व
- एक बड़ी जनसंख्या को बृहत मानव पूंजी, उच्च आर्थिक विकास और जीवन स्तर में सुधार के अर्थ में देखा जाता है।
- उच्च कार्यशील जनसंख्या और कम आश्रित जनसंख्या के कारण बढ़ी हुई आर्थिक गतिविधियों से बेहतर आर्थिक विकास की स्थिति बनती है।
- पिछले सात दशकों में कामकाजी आबादी की हिस्सेदारी 50% से बढ़कर 65% हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप निर्भरता अनुपात (प्रति कामकाजी आबादी में बच्चों और वृद्धों की संख्या) में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
- WPP, 2022 के अनुसार, भारत में विश्व स्तर पर सबसे बड़े कार्यबल में से एक होगा।
- अगले 25 वर्षों में कामकाजी आयु समूह के प्रत्येक पाँच व्यक्ति में से एक भारत में रह रहा होगा।
जनसांख्यिकीय लाभांश के दोहन में व्याप्त बाधाएँ
- श्रम शक्ति संबंधी चिंताएँ: भारत की श्रम शक्ति कार्यबल से महिलाओं की अनुपस्थिति के कारण निरुद्ध है; केवल एक चौथाई महिलाएँ ही कार्यरत हैं।
- शैक्षिक उपलब्धियों की गुणवत्ता सही नहीं है और देश के कार्यबल में आधुनिक रोज़गार बाजार के अनुरूप आवश्यक बुनियादी कौशल का अभाव है।
- भारत में विश्व की सबसे बड़ी आबादी होगी लेकिन इसकी रोज़गार दर अभी भी न्यूनतम में से एक है।
- लिंगानुपात की स्थिति निराशाजनक: स्वतंत्र भारत की एक अन्य जनसांख्यिकीय चिंता पुरुष प्रधान लिंगानुपात से संबद्ध है।
- वर्ष 1951 में देश का लिंगानुपात 946 महिला प्रति 1,000 पुरुष था।
- वर्ष 2011 में देश का लिंगानुपात 943 महिला प्रति 1,000 पुरुष दर्ज किया गया, जबकि वर्ष 2022 तक इसके 950 महिला प्रति 1,000 पुरुष होने की उम्मीद है।
- अभी भी लिंग चयन (प्रसव-पूर्व और प्रसवोत्तर दोनों) के कारण विश्व स्तर पर लापता प्रत्येक तीन बालिकाओं में से एक भारत से है।
- भुखमरी: भारत में प्रजनन आयु वर्ग की प्रत्येक दूसरी महिला एनीमिक है और पाँच वर्ष से कम उम्र का हर तीसरा बच्चा स्टंटिंग से ग्रस्त है।
- वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत 116 देशों के बीच 101वें स्थान पर है, जो एक ऐसे देश के लिये पर्याप्त चुनौतीपूर्ण है जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मध्याह्न भोजन योजना के माध्यम से खाद्य सुरक्षा हेतु सबसे व्यापक कल्याणकारी कार्यक्रमों में से एक का कार्यान्वयन करता है।
- रोगों का बोझ: पिछले 75 वर्षों में देश के रोगों के पैटर्न में भी व्यापक बदलाव आया है; जबकि भारत स्वतंत्रता के बाद संचारी रोगों से संघर्ष कर रहा था, अब उसका मुक़ाबला गैर-संचारी रोगों (NCDs) से हो रहा है जो कुल मौतों के 62% से अधिक के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- रोग बोझ के मामले में भारत विश्व का अग्रणी देश है जहाँ 1990 के दशक से NCDs की हिस्सेदारी लगभग दोगुनी हो गई है।
- भारत में आठ करोड़ से अधिक लोग मधुमेह से पीड़ित हैं।
- वायु प्रदूषण के कारण वैश्विक स्तर पर होने वाली मौतों में से एक चौथाई से अधिक अकेले भारत में होती हैं।
- भारत का स्वास्थ्य देखभाल ढाँचा भी अपर्याप्त और अक्षम है। इसके अतिरिक्त, भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य वित्तपोषण भी कम है (सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 1-1.5%) जो विश्व में न्यूनतम प्रतिशत में से एक है।
- रोग बोझ के मामले में भारत विश्व का अग्रणी देश है जहाँ 1990 के दशक से NCDs की हिस्सेदारी लगभग दोगुनी हो गई है।
आगे की राह
- वृद्ध आबादी पर ध्यान देना: भारत वर्तमान में एक युवा राष्ट्र है लेकिन इसकी वृद्ध आबादी की हिस्सेदारी बढ़ रही है और यह वर्ष 2050 तक 12% होने की उम्मीद है।
- इसलिये वृद्ध लोगों के लिये एक सुदृढ़ सामाजिक, वित्तीय और स्वास्थ्य देखभाल सहायता प्रणाली के विकास में अग्रिम निवेश करना समय की मांग है।
- कार्रवाई का मुख्य ध्यान मानव पूंजी में व्यापक निवेश, वृद्धों के लिये गरिमापूर्ण जीवन और स्वस्थ जनसंख्या आयु-वृद्धि पर होना चाहिये।
- वृद्ध व्यक्तियों के बढ़ते अनुपात के लिये सार्वजनिक कार्यक्रमों को अनुकूलित करने हेतु (जैसे सामाजिक सुरक्षा और पेंशन प्रणालियों की संवहनीयता में सुधार लाना) कदम उठाए जाने चाहिये।
- बेहतर जीवन स्तर के लिये प्रयास: उपयुक्त आधारभूत संरचना, अनुकूल सामाजिक कल्याण योजनाओं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं स्वास्थ्य में वृहत निवेश के साथ तैयारी करने की आवश्यकता है।
- अनुकूल आयु वितरण के संभावित लाभों को अधिकतम करने के लिये विश्व के देशों को अपनी मानव पूंजी के आगे और विकास में निवेश करने और उत्पादक रोज़गार तथा उपयुक्त कार्य अवसरों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह अभी कोई गंभीर समस्या नहीं है। इसके बजाय जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिये।
- कौशल विकास: 25-64 आयु वर्ग में शामिल जनसंख्या के कौशल निर्माण की आवश्यकता है, जो यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है कि वे अधिक उत्पादक होंगे और बेहतर आय प्राप्त करेंगे।
- ग्रामीण या शहरी परिवेश से परे पब्लिक स्कूल प्रणाली को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक बच्चा हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करे और उन्हें बाज़ार की मांग के अनुरूप उपयुक्त कौशल, प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा की ओर धकेला जाए।
- कार्यबल में लैंगिक अंतर को दूर करना: महिलाओं और बालिकाओं के लिये 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी के लिये नए कौशल और अवसरों की तत्काल आवश्यकता है। इसके लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं:
- लैंगिक विपुंजित डेटा और नीतियों पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करने के लिये कानूनी रूप से अनिवार्य ‘जेंडर बजटिंग’
- बाल देखभाल लाभ को बढ़ाना
- अंशकालिक कार्य के लिये कर प्रोत्साहन को बढ़ावा देना
अभ्यास प्रश्न: भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के दोहन में व्याप्त प्रमुख चुनौतियों की चर्चा करें और इस संबंध में उचित उपायों के सुझाव दें।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रारंभिक परीक्षाकिसी भी देश के संदर्भ में, निम्नलिखित में से किसे उसकी सामाजिक पूंजी का हिस्सा माना जाएगा? (वर्ष 2019) (A) जनसंख्या में साक्षर का अनुपात उत्तर: (D) भारत को "जनसांख्यिकीय लाभांश" वाला देश माना जाता है। यह निम्न में से किसके कारण है: (वर्ष 2011) (A) 15 वर्ष से कम आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या उत्तर: (B) मुख्य परीक्षाप्र. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तार से बताइए। (वर्ष 2021) प्र. ''महिलाओं का सशक्तिकरण जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।'' विवेचना कीजिये। (वर्ष 2019) प्र. समालोचनात्मक परीक्षण करें कि क्या बढ़ती जनसंख्या गरीबी का कारण है या गरीबी भारत में जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है। (वर्ष 2015) |