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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-चीन सैन्य वापसी समझौता

  • 18 Feb 2021
  • 9 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत और चीन द्वारा हालिया सीमा तनाव के बाद पैंगोंग झील के निकट तैनात अपने सैनिकों को वापस बुलाने को लेकर हुए समझौते व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

हाल ही में भारत और चीन पैंगोंग त्सो झील के निकट हालिया तनाव के दौरान तैनात की गई अपनी-अपनी सेनाओं को वापस बुलाने के लिये सहमत हो गए हैं। दोनों पक्षों ने सीमा बलों, बख़्तरबंद सैन्य संसाधनों की वापसी के लिये सहमति के साथ इस क्षेत्र में एक बफर ज़ोन के निर्माण का प्रस्ताव रखा है जो विवादित झील में गश्त पर अस्थायी रोक लगाएगा। चीन ने भारत से कैलाश पर्वतमाला में अपने कब्ज़े वाली ऊँचाई पर स्थित क्षेत्रों को खाली करने की मांग की है।

सैनिकों की वापसी की यह प्रक्रिया सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बहाली की दिशा में एक सकारात्मक शुरुआत है। हालाँकि इस क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित करने के लिये कई अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है।

सैन्य वापसी संबंधी मुद्दे: 

  • आंशिक सैन्य वापसी: वर्तमान सैन्य वापसी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर दो स्थानों (पैंगोंग झील का उत्तरी तट और पैंगोंग के दक्षिण में कैलाश पर्वतमाला) तक ही सीमित है।  
    • हालाँकि लद्दाख सीमा पर तीन अन्य विवादित स्थल (डेपसांग, गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स और डेमचोक) हैं जहाँ चीनी सेना ने नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया था। वर्तमान चरण की सैन्य वापसी के पूरा होने के बाद इन तीन स्थानों के मुद्दे को हल करने के लिये बातचीत की जाएगी।
  • डेपसांग मैदान का अनसुलझा मुद्दा: दरसुब-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड, डीबीओ हवाई पट्टी और काराकोरम दर्रे से  निकटता के कारण डेपसांग का मैदान चीन के साथ तनाव के संदर्भ में भारत के लिये रणनीतिक महत्त्व रखता है। 
    • इसके अतिरिक्त  दौलत बेग ओल्डी रोड सियाचिन ग्लेशियर पर भारत के नियंत्रण के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। 
    • सियाचिन ग्लेशियर भारतीय भू-भाग पर एकमात्र क्षेत्र है जहाँ चीन और पाकिस्तान भारत के खिलाफ सैन्य गठजोड़ कर सकते हैं।
    • ऐसे में डेपसांग पठार की वर्तमान स्थिति गंभीर चिंता का विषय है, जहाँ चीन ने सामरिक बढ़त प्राप्त कर ली है और वह दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) तथा उस क्षेत्र में हवाई संसाधनों तक भारत की पहुँच को प्रभावित कर सकता है।
  • बफर ज़ोन के निर्माण से जुड़े मुद्दे: ऐसी आशंकाएँ हैं कि प्रस्तावित बफर ज़ोन का अधिकांश हिस्सा LAC पर भारतीय सीमा की तरफ होगा, जो वर्तमान में भारत के नियंत्रण वाले क्षेत्र को एक तटस्थ क्षेत्र में परिवर्तित कर देगा।  
    • यह बफर ज़ोन सबसे सफल स्थिति में भी द्विपक्षीय तनाव पर एक अस्थायी विराम ही प्रदान कर सकता है परंतु यह दोनों पक्षों के आपसी सहमति में LAC के निर्धारण और भारत-चीन सीमा के अंतिम समाधान का विकल्प नहीं होगा।  
    • इसके अतिरिक्त पैंगोंग झील के उत्तरी तट से सैनिकों को वापस बुलाने के बदले चीन, भारत से कैलाश पर्वतमाला में कब्ज़े में ली गई महत्त्वपूर्ण पहाड़ियों से हटने की मांग कर रहा है। 
    • अतः यह लद्दाख में चीन के खिलाफ भारत की एकमात्र बढ़त को खोने के विचार पर प्रश्न खड़ा करता है।
  • भारत और चीन के बीच अविश्वास:  पिछले वर्ष की घटनाओं ने भारत और चीन के बीच अविश्वास पैदा किया है, जो अभी भी एक बड़ी बाधा बना हुआ है। इसके अतिरिक्त चीन की कार्रवाई हमेशा उसकी प्रतिबद्धताओं से मेल नहीं खाती है।
    • चीन,  संयुक्त राज्य अमेरिका और क्वाड (QUAD)के साथ भारत की बढ़ती निकटता को लेकर भी सतर्क है।
    • भारत और चीन की विवादित सीमा तथा दोनों पक्षों के बीच बढ़ते अविश्वास के बीच ‘नो पेट्रोल ज़ोन’ के किसी भी उल्लंघन के घातक परिणाम (वर्ष 2020 में गालवान घाटी की तरह) हो सकते हैं।

आगे की राह:

  • डेपसांग मुद्दे को वर्तमान वार्ताओं में शामिल करना: चीन का यह कहना कि डेपसांग समस्या LAC पर मौजूदा संकट से पहले का मुद्दा है और इसलिये इसे अलग से सुलझाया जाना चाहिये, यह तर्क भारत के हित में नहीं है।
    • अतः भारत को इन दोनों मुद्दों को एक साथ जोड़कर एक समग्र समाधान खोजने पर विशेष ज़ोर देना चाहिये।
  • प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई का विस्तार: भारत को अपनी प्रतिक्रिया को सीमा विवाद के प्रबंधन तक ही सीमित नहीं रखना चाहिये बल्कि इसे अपने देश में चीनी वाणिज्यिक हितों पर हमला करने हेतु अपनी प्रतिक्रिया का विस्तार करने के अलावा क्वाड भागीदारों के साथ समन्वय (विशेष रूप से समुद्री डोमेन में) बढ़ाना चाहिये।   
  • ताइवान कार्ड का उपयोग: विदेश नीति के मोर्चे पर भारत को चीन का मुकाबला करने के लिये  राजनयिक और सैन्यवादी मार्ग तलाशने चाहिये। क्वाड देशों के साथ समन्वय स्थापित करने के अलावा ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित करना इसका एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है।   
  • सैन्य सुधार: भारत को लद्दाख संकट को काफी समय से लंबित रक्षा सुधारों को पूरा करने के अवसर के रूप में देखना चाहिये। 
    • ऐसा ही एक बहुत ही आवश्यक सुधार सेना के आंतरिक संगठन से जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लिये भारतीय सेना का पेंशन बिल एक बड़ी  चिंता का विषय रहा है। 
    • पेंशन व्यय में इस वृद्धि का सेना की संसाधन क्षमता और आधुनिकीकरण पर व्यापक ‘क्राउडिंग आउट’ प्रभाव पड़ता है, गौरतलब है कि ये दो प्रमुख घटक देश के युद्ध-लड़ने की क्षमता को निर्धारित करते हैं।
    • इस चुनौती से निपटने के लिये वर्तमान में सरकार द्वारा एक दोहरी रणनीति अपनाई जा रही है जिसके तहत युवाओं को आकर्षित करने के लिये तीन वर्षीय ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ कार्यक्रम को बढ़ावा और पेंशन योग्य सैनिकों को सेना छोड़ने से रोकने का प्रयास शामिल है।

निष्कर्ष:  

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वर्तमान में भारत और चीन के सैनिकों को पीछे ले जाने की प्रक्रिया एक स्वागत योग्य कदम है क्योंकि दो परमाणु संपन्न एशियाई शक्तियों के बीच तनाव किसी के हित में नहीं है। हालाँकि सैन्य वापसी की इस योजना की सफलता अंततः इस बात पर निर्भर करेगी कि इसे ज़मीनी स्तर पर पूर्ण रूप से  लागू किया जाता है या नहीं।

अभ्यास प्रश्न:  वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के सैनिकों की वापसी सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बहाली की दिशा में एक सकारात्मक शुरुआत है। हालाँकि इस क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित करने के लिये कई अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।

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