भारतीय अर्थव्यवस्था
GST क्षतिपूर्ति के मुद्दे
- 05 Sep 2020
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यह एडिटोरियल 3 सितंबर 2020 को द हिंदू में प्रकाशित “Grim Sovereign Tangle: On GST compensation standoff” नामक लेख पर आधारित है। इस लेख में GST परिषद की 41वीं बैठक के समापन के बाद राज्यों को वस्तु एवं सेवा कर (Goods And Services Tax- GST) के मुआवज़े और उससे संबंधित विवाद के मुद्दे का विश्लेषण किया गया है।
संदर्भ
भारत देश की नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था GST के लागू होने के 3 वर्ष के बाद ही देश के सामने महामारी संकट के चलते स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। GST से मिलने वाला लाभ अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण तेज़ी से कम होना शुरू हो गया है क्योंकि COVID-19 लॉकडाउन ने राजस्व गणनाओं को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाया है। GST के अंतर्गत कर संग्रह में भारी कमी आने के कारण राज्य सरकारों को राजस्व हानि हुई है क्योंकि केंद्र ने राज्यों को GST अधिनियम 2017 (GST Act 2017) के अंतर्गत वादे के अनुसार क्षतिपूर्ति करने में असमर्थता दिखाई है।
वस्तु एवं बिक्री कर (GST)
- GST के रूप में देश को एक ऐसी एकीकृत अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था प्राप्त हुई है, जो न केवल संपूर्ण भारत को एकल बाज़ार के रूप में प्रस्तुत करती है बल्कि समानता भी प्रदान करती है।
- GST के अंतर्गत जहाँ एक ओर केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, सेवा कर, काउंटरवेलिंग ड्यूटी जैसे अप्रत्यक्ष करों को शामिल किया गया हैं वहीं दूसरी ओर राज्यों में लगाए जाने वाले मूल्यवर्द्धन कर, मनोरंजन कर, चुंगी तथा प्रवेश कर, विलासिता कर आदि भी इसमें सम्मिलित किये गए हैं।
- देश में मौजूदा कर व्यवस्था दो प्रकार की है- पहला प्रत्यक्ष कर व्यवस्था, जिसके तहत आयकर, निगमकर एवं संपत्ति कर आदि आते हैं। दूसरा अप्रत्यक्ष कर जिसमें सीमा शुल्क, बिक्री कर, सेवा कर, मनोरंजन कर इत्यादि शामिल हैं और वर्तमान में लगभग सभी को वस्तु एवं सेवा कर (GST) के अतंर्गत शामिल कर लिया गया है।
- यह अब तक का सबसे बड़ा सुधार है, जिसे 1 जुलाई, 2017 से लागू किया गया है। ‘‘वन नेशन, वन मार्केट, वन टैक्स’’ की अवधारणा पर आधारित यह गंतव्य आधारित कर प्रणाली है।
GST मुआवज़ा
- GST लागू होने के बाद अधिकांश करों के रूप में राज्यों के पास बहुत सीमित कर अधिकार हैं क्योंकि पेट्रोलियम, शराब और स्टांप ड्यूटी पर रोक लगा दी गई थी जिन्हें GST के अंतर्गत शामिल किया गया था।
- GST (राज्यों के लिये मुआवजा) अधिनियम, 2017 [GST (Compensation to States) Act, 2017] के अंतर्गत राज्यों को पाँच वर्षों (2017-2022) की अवधि के लिये GST के कार्यान्वयन के कारण हुए राजस्व के नुकसान की भरपाई की गारंटी दी गई है।
- मुआवज़े की गणना राज्यों के वर्तमान GST राजस्व और 2015-16 को आधार वर्ष मानकर 14% वार्षिक वृद्धि दर के आकलन के बाद संरक्षित राजस्व के बीच अंतर के आधार पर की जाती है।
GST के मुआवज़े के पीछे के तर्क
- सर्वप्रथम GST से पिछले कर शासन के समान अधिक राजस्व उत्पन्न होने का अनुमान व्यक्त किया गया था।
- हालाँकि नई कर व्यवस्था में उपभोग पर कर लगाया जाता है न कि विनिर्माण पर।
- इसका अर्थ यह है कि उत्पादन के स्थान पर कर नहीं लगाया जाएगा, जिसका अर्थ यह भी है कि विनिर्माण क्षेत्र कर संग्रहण से वंचित रह जाएंगे, यही कारण है कि कई राज्यों ने GST के विचार का कड़ा विरोध किया।
मुद्दे
- हाल ही में हुई GST परिषद की 41वीं बैठक में केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि केंद्र राज्यों को मुआवजा नहीं दे सकेगा।
- केंद्र सरकार इस बात पर विशेष बल दे रही है कि इस वर्ष COVID-19 महामारी के कारण GST संग्रहण में तेज़ी से कमी आई है।
- इस वर्ष GST मुआवज़े के लिये अनुमानत: लगभग 3 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता है, जबकि उपकर संग्रह लगभग 65,000 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। इस प्रकार 2.35 लाख करोड़ रुप के अनुमानित मुआवज़े की कमी है।
केंद्र की सिफारिशें
- राज्यों को इस स्थिति के उपाय के तौर पर दो विकल्प दिये गए हैं और दोनों में बाज़ार से उधार लेने की आवश्यकता है।
- केंद्र का तर्क है कि GST के कार्यान्वयन में केवल 97,000 करोड़ रुपए के राजस्व की कमी है जबकि 1.38 लाख करोड़ रुपए का नुकसान ‘एक्ट ऑफ गॉड’ (COVID-19 महामारी) द्वारा उत्पन्न असाधारण परिस्थितियों के कारण हुआ है।
- राज्य या तो 97,000 करोड़ रुपए का उधार ले सकते हैं, इसे अपने ऋण और मूलधन और भविष्य में उपकर संग्रह से ब्याज के भुगतान को जोड़े बिना ऐसा किया जा सकता है या पूर्ण 2.35 लाख करोड़ रुपए उधार ले सकते हैं, लेकिन इस स्थिति में उन्हें ब्याज का भुगतान स्वयं करना पड़ेगा।
- वित्त मंत्रालय ने तर्क दिया है कि केंद्र द्वारा अधिक उधार लेने से ब्याज दरों में वृद्धि होगी और भारत के राजकोषीय मापदंडों को पूरा किया जा सकेगा।
राज्यों का प्रतिरोध
- केरल, पंजाब, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी और दिल्ली जैसे पाँच राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इन प्रस्तावों पर अपनी चिंता व्यक्त की है।
- उनका कहना है कि राज्यों की वित्तीय स्थिति गंभीर दबाव में है, जिसके परिणामस्वरूप वेतन-भुगतान में देरी और महामारी के कारण लॉकडाउन के बीच पूंजीगत व्यय में भारी कटौती हुई है।
- चूँकि देश के सभी राज्य इस समय वायरस से जूझ रहे हैं इसलिये उन्हें स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं पर खर्च करने के लिये भी वित्त की आवश्यकता है।
- इन परिस्थितियों के आलोक में कई राज्यों ने दोनों विकल्पों को खारिज कर दिया है और केंद्र से पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।
- वास्तव में केंद्र ने सितंबर 2019 में गोवा में आयोजित GST परिषद की 37वीं बैठक में मुआवज़े के भुगतान पर दर्ज की गई समस्याओं को स्वीकार किया था।
आगे की राह
- महामारी के इस दौर में समय यही है कि राज्य वास्तविकता को स्वीकार करें और मुआवज़े के निम्न स्तर पर सहमति व्यक्त करें, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर बहुत धीमी गति से बढ़ रही है। राज्य महामारी की इस स्थिति में स्थिति को अनदेखा नहीं कर सकते हैं।
- केंद्र सरकार को वित्तीय बाज़ारों या सीधे RBI से अधिक उधार लेकर GST गतिरोध को समाप्त करने पर ध्यान देना चाहिये।
- केंद्र को यह समझना चाहिये कि यह उसका वैधानिक दायित्त्व है और वे इससे इनकार नहीं कर सकते हैं।
- राज्यों को केंद्र द्वारा सुझाए गए विकल्पों पर समय रहते ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि अधिक यथार्थवादी मुआवज़े के लिये समझौता करके जल्द ही कोई समाधान निकाला जा सके।
निष्कर्ष
- इस विषय में इस बात पर विशेष रूप से ध्यान देने की ज़रूरत है कि महज़ GST के रूप में देश का भव्य संघीय ढाँचा इस सीमा तक कमज़ोर नहीं पड़ना चाहिये कि राष्ट्रीय कर का विचार ही खतरे में आ जाए।
- केंद्र और राज्यों के बीच उत्पन्न हुए इस गतिरोध के कारण GST सुधारों के अनुपालन में कमी नहीं आनी चाहिये।
- इस समय केंद्र और राज्य दोनों को आपसी हित में सहयोग और समन्वय बनाए रखते हुए कार्य करना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: GST सुधार केंद्र और राज्यों के बीच मुआवज़े के गतिरोध का शिकार नहीं होने चाहिये। चर्चा करें।