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भारत की सामाजिक प्रगति का अवलोकन

  • 07 Nov 2017
  • 11 min read

भूमिका

स्वतंत्रता के पश्चात् से भारत में विकास एवं संवृद्धि का एक नया दौर प्रारंभ हुआ, जिसने एक ऐसे आधुनिक भारत को जन्म दिया, जो न केवल आज विश्व की सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था है बल्कि सामाजिक परिदृश में भी बहुत सी जड़ताओं को तोड़ते हुए विकास की एक नई कहानी लिख रहा है। आधुनिक भारत की उपलब्धियों को दुनिया भर में मान्यता प्रदान की गई है। एक ऐसा देश जो आज़ादी के समय केवल भूख और गरीबी का प्रतीक था, अब वह सबसे तेज़ी से विकसित अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है।

  • भारत की आर्थिक उपलब्धियाँ बेहद व्यापक हैं। विशेषकर यदि हम ब्रिटिश दमनकारी औपनिवेशिक शासन के दशकों के संदर्भ में विचार करते हैं तो पाते हैं कि लोकतांत्रिक शासन के उदय तथा एक बहु-धार्मिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के कारण भारत को भिन्न-भिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उसकी अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक संरचना पर परिलक्षित हुआ। हालाँकि, शुरुआती धीमेपन के बावजूद इसके विकास की नींव बहुत दृढ़ता के साथ निर्मित हुई है।

विकास की राह अभी भी दुर्गम बनी हुई है

  • हालाँकि, इस आर्थिक विकास की सामाजिक पहुँच अभी भी दुर्गम बनी हुई है। अभी भी भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा जैसे व्यक्तिगत सामाजिक परिणामों को प्राप्त करने की दिशा में प्रयास जारी हैं।
  • उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय शैक्षणिक नियोजन एवं प्रशासन तथा भारत सरकार (मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं शिक्षा और साक्षरता विभाग स्कूल) द्वारा शिक्षा के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर के लिये शैक्षिक विकास सूचकांक की गणना की जाती है। इसके अंतर्गत शैक्षिक सार्वभौमिकता के विभिन्न पहलुओं की तर्ज़ पर राज्यों की तुलना की जाती है। 
  • इसी तरह, नीति आयोग द्वारा भी स्वास्थ्य, शिक्षा और जल सूचकांक का विकास किया गया है। इन व्यक्तिगत सूचकांकों के अलावा मानव विकास सूचकांक के दृष्टिकोण के माध्यम से समाज की प्रगति को मापने का प्रयास किया जाता है। हालाँकि, इसके अंतर्गत आर्थिक विकास के प्रभावों को शामिल नहीं किया जाता है। 

भारत की वास्तविक स्थिति पर अंतर्दृष्टि डालें तो  

  • यदि भारत की सामाजिक स्थिति के संदर्भ में विचार करें तो हम पाएंगे कि इस स्थिति से उभरने के लिये सबसे प्रभावी उपाय यह हो सकता है कि इसके लिये एक सामाजिक प्रगति सूचकांक (Social Progress Index) विकसित किया जाए। 
  • इसका कारण यह है कि ऐसा करके हम पता लगा सकते हैं कि हमें किन-किन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • वस्तुतः सामाजिक प्रगति सूचकांक के तहत राज्यों को बुनियादी ज़रूरतों जैसे- आवास, पानी और स्वच्छता प्रदान करने की क्षमता आधारित सामाजिक और पर्यावरणीय संकेतकों का इस्तेमाल करते हुए श्रेणीबद्ध किया जा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त इसके अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य और संचार सुविधाओं द्वारा स्थापित सुदृढ़ नींव, लोगों को उनके निजी निर्णय लेने से रोक लगाने वाले प्रांतीय प्रभाव का विश्लेषण तथा इस बात का मूल्यांकन करना कि क्या नागरिकों के पास व्यक्तिगत अधिकार और स्वतंत्रता है या क्या वे बाल श्रम, मानव तस्करी, भ्रष्टाचार आदि के प्रति अतिसंवेदनशील हैं, आदि संकेतकों को इस सूचकांक के अंतर्गत शामिल किया गया है। 
  • वस्तुतः इन सभी का उद्देश्य नागरिकों के पूर्ण विकास के साथ-साथ बेहतर जीवन यापन हेतु आवश्यक सभी प्रकार की बुनियादी ज़रूरतों के संदर्भ में प्रभावी कार्यवाही करना एवं देश की सामाजिक उन्नति को सुदृढ़ करना है।
  • ध्यातव्य है कि इस संदर्भ में हुए एक अध्ययन (2005-2016) के अंतर्गत इस बात पर विशेष ज़ोर दिया गया है कि वे राज्य जिनके द्वारा सामाजिक और पर्यावरणीय संकेतकों का उपयोग किया गया उनकी विकास की दिशा विशेष रूप से सकारात्मक रही है। इतना ही नहीं अन्य राज्यों की तुलना में उन्होंने कहीं अधिक बेहतर प्रदर्शन भी किया।
  • यह सूचकांक न केवल सामाजिक उन्नति की राह में प्रभावकारी रहा है, बल्कि इससे विकास की राह में महत्त्वपूर्ण नीतियों को समायोजित करने के साथ-साथ सार्वजनिक और निजी निवेशों को प्राप्त करने में भी विशेष सहायता मिली है।

तथ्यात्मक दृष्टिकोण से विचार करें तो 

  • सर्वप्रथम, भारत की समग्र सामाजिक प्रगति का स्कोर वर्तमान में 57.03 (0-100 पैमाने पर) है, जो वर्ष 2005 की तुलना में लगभग आठ अंक अधिक है। 
  • भारत ने अपने नागरिकों के लिये अधिक से अधिक अवसरों का सृजन करने की बजाय मूलभूत मानवीय ज़रूरतों के प्रावधान के संदर्भ में अधिक बेहतर प्रदर्शन किया है। 
  • हालाँकि, इतने प्रयासों के बावजूद सभी के लिये एक समान अवसर वाले समाज का सृजन करना अभी भी एक मायावी स्वप्न ही बना हुआ है। 
  • तथापि, गौर करने वाली बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में आधारभूत मानवीय ज़रूरतों और बेहतर जीवन हेतु आवश्यक अवसरों के संदर्भ में भले ही छोटे-छोटे परन्तु महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी कदम उठाए गए हैं। 
  • इन प्रयासों का ही परिणाम है कि भारत न केवल आर्थिक परिदृश्य में सशक्त बना है बल्कि इसके साथ-साथ इसकी सामाजिक स्थिति में भी सुधार हुआ है। 
  • दूसरा, यदि भारत की सामाजिक स्थिति के संदर्भ में गंभीरता से विचार करें तो हम पाएंगे कि वर्ष 2005 के बाद से देश के लगभग सभी राज्यों ने इस दिशा में सराहनीय प्रयास किया है। 
  • त्रिपुरा, मेघालय, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, झारखंड और बिहार जैसे राज्य जिन्होंने 2005 में सबसे खराब प्रदर्शन किया था, इनके प्रदर्शन में भी बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है। 
  • इससे पता चलता है कि पिछले कुछ समय से ऐसे राज्य जिनकी सामाजिक प्रगति दर अपेक्षाकृत कम रही उनकी स्थिति में सुधार हुआ है। 
  • तीसरी सबसे अहम् बात यह है कि किसी क्षेत्र की सामाजिक प्रगति का अर्थ केवल उसकी सामाजिक स्थिति से नहीं होता है, बल्कि इससे उस क्षेत्र विशेष की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। यही कारण है कि ऐसे राज्य जिनकी सामाजिक प्रगति में उन्नति हुई है उनकी आर्थिक समृद्धि भी उल्लेखनीय रही है। 
  • दूसरी ओर, ऐसे राज्य जिनका सामाजिक प्रगति सूचकांक में प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है उनकी आर्थिक विकास दर में कमी आई है। उदाहरण के लिये, "सूचना एवं संचार तथा समावेशन तक पहुँच" का प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ एक मज़बूत संबंध है, जिसमें पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय विकास हुआ है। 
  • इतना ही नहीं बल्कि "स्वास्थ्य एवं कल्याण तथा पर्यावरण गुणवत्ता" जिनका आर्थिक विकास से सबसे कम संबंध होता है, में भी वृद्धि दर्ज़ की गई है। इससे पता चलता है कि राज्यों को उन नीतियों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिये जिनका लक्ष्य सामाजिक मुद्दों को साधना है। 

निष्कर्ष

यदि उक्त विवरण के समग्र निष्कर्ष के संदर्भ में विचार करें तो ज्ञात होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था सही गति एवं मार्ग पर आगे बढ़ रही है। यदि किसी दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है तो वह है तो सामाजिक  क्षेत्र, इसके लिये ज़रुरी है कि सामाजिक मानदंडों की पहचान करते हुए इस संदर्भ में कुछ गंभीर कदम उठाए जाएँ। कहा जाता है कि किसी क्षेत्र का आर्थिक विकास स्वतः ही उस क्षेत्र की सामाजिक स्थितियों को बदल देता है। आर्थिक विकास से न केवल उस क्षेत्र विशेष के लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता है बल्कि इससे उस क्षेत्र की समग्र स्थिति में भी बदलाव होता है। इसके लिये आवश्यक है कि सामाजिक मुद्दों को लक्षित करने हेतु सरकारी नीतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सामाजिक प्रगति को प्रेरित किया जाना चाहिये।

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