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लैंगिक उत्तरदायी शहरी नियोजन

  • 11 Aug 2023
  • 16 min read

यह एडिटोरियल 09/08/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Ensuring women’s right to the city’’ लेख पर आधारित है। इसमें लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन और उससे संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

ऑक्सफैम रिपोर्ट, शहरीकरण

मेन्स के लिये:

भारत में लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन का महत्त्व।

लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन (Gender Responsive Urban Planning) एक ऐसा दृष्टिकोण है जो शहरी क्षेत्रों में महिलाओं और पुरुषों की विभिन्न आवश्यकताओं, प्राथमिकताओं और अनुभवों को चिह्नित करता है तथा उनका समाधान करता है। इसका लक्ष्य ऐसे शहरों का निर्माण करना है जो सभी लिंगों के लिये समावेशी, सुरक्षित, सुलभ और संवहनीय हों। लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन इस बात पर विचार करता है कि शहर में अवसरों और संसाधनों तक लोगों की पहुँच को आकार देने के लिये लिंग, आयु, वर्ग, जाति, नृजातीयता, विकलांगता और यौन उन्मुखता जैसे अन्य कारकों के साथ कैसे अंतःक्रिया करता है।  

भारत में—जहाँ शहरीकरण सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को नया आकार दे रहा है, लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन की अवधारणा और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है। इस दृष्टिकोण में लिंग-विशिष्ट चुनौतियों (gender-specific challenges) का समाधान करने और घरेलू एवं व्यावसायिक उत्तरदायित्वों के संतुलन के लिये पारंपरिक शहरी डिज़ाइन रणनीतियों एवं नीतियों पर पुनर्विचार करना शामिल है। शहरी नियोजन में लैंगिक दृष्टिकोण को एकीकृत करके, भारत ऐसे वातावरण का निर्माण कर सकता है जो महिलाओं को सशक्त बनाता है, शहरी कार्यबल में उनकी भागीदारी बढ़ाता है और उनके समग्र कल्याण में योगदान देता है। 

भारत के लिये लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन की महत्ता: 

  • हिंसा और भय की उपस्थिति: 
    • महिलाएँ सड़कों, बाज़ारों, पार्कों, बसों, ट्रेनों जैसे सार्वजनिक स्थलों/सुविधाओं में विभिन्न प्रकार की हिंसा और उत्पीड़न का अनुभव करती हैं। 
      • इससे शहर में उनकी गतिशीलता, स्वतंत्रता और भागीदारी प्रभावित होती है। 
    • ORF द्वारा 140 भारतीय शहरों में आयोजित किये गए वर्ष 2021 के एक अध्ययन के अनुसार 52% महिलाओं ने सुरक्षा की कमी के कारण शिक्षा और रोज़गार के अवसरों को ठुकरा दिया। 
    • Ola द्वारा वर्ष 2019 में आयोजित एक अध्ययन से खुलासा हुआ कि 11 शहरों की केवल 9% महिलाएँ मानती थीं कि सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना सुरक्षित है। 
  • अवैतनिक देखभाल कार्य: 
    • महिलाएँ घरेलू कामकाज, बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों की देखभाल जैसे अवैतनिक देखभाल कार्यों का असंगत बोझ उठाती हैं। 
    • यह शिक्षा, अवकाश और नागरिक सहभागिता के लिये उनके समय एवं ऊर्जा को सीमित करता है। 
    • वर्ष 2018 का ILO का शोध बताता है कि भारतीय महिलाएँ घरेलू कार्य पर प्रतिदिन 297 मिनट खर्च करती हैं, जबकि पुरुष मात्र 31 मिनट खर्च करते हैं। 
    • वर्ष 2021 की ऑक्सफैम (Oxfam) रिपोर्ट से पता चलता है कि भारतीय महिलाएँ और बालिकाएँ संयुक्त रूप से प्रतिदिन 3.26 बिलियन घंटे अवैतनिक देखभाल कार्य करती हैं। 
  • लैंगिक नीतियों और अभ्यासों का अभाव: 
    • शहरी नियोजन और प्रबंधन प्रायः शहर में महिलाओं और पुरुषों की विविध वास्तविकताओं एवं आवश्यकताओं को ध्यान में नहीं रखता है। 
    • उदाहरण के लिये, संभव है कि सार्वजनिक परिवहन प्रणालियाँ महिलाओं के लिये सस्ती, सुलभ या सुरक्षित नहीं हों। 
      • संभव है कि महिलाओं के लिये सार्वजनिक शौचालय पर्याप्त संख्या में या पर्याप्त साफ-सुथरे नहीं हों।  
      • संभव है कि सार्वजनिक स्थानों को महिलाओं के आराम और सुरक्षा के अनुरूप अभिकल्पित या व्यवस्थित नहीं किया गया हो। 
    • इन लैंगिक असमानताओं का महिलाओं के हित या सेहत, सशक्तीकरण और मानवाधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
    • वे शहर और देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में भी बाधा डालते हैं। 
      • इस प्रकार शहरी नियोजन में लैंगिक रूप से उत्तरदायी दृष्टिकोण अपनाना अत्यंत आवश्यक है जो सभी लिंग वर्गों के लिये समान अवसर एवं परिणाम सुनिश्चित करे। 

संबंधित पहलें: 

लैंगिक रूप से उत्तरदायी नियोजन की चुनौतियाँ:  

  • लिंग-विघटित डेटा (Gender-Disaggregated Data) का अभाव: 
    • कई शहरी योजनाकारों और निर्णय-निर्माताओं के पास ऐसे विश्वसनीय एवं प्रासंगिक डेटा तक पहुँच नहीं होती जो शहर में महिलाओं और पुरुषों की विभिन्न आवश्यकताओं, प्राथमिकताओं एवं अनुभवों को परिलक्षित करते हों। 
      • इससे शहरी अवसरों और संसाधनों तक महिलाओं की पहुँच को प्रभावित करने वाले अंतराल और असमानताओं की पहचान करना तथा उनका समाधान करना कठिन हो जाता है। 
  • विविधतापूर्ण भागीदारी का अभाव: 
    • शहरी नियोजन और डिज़ाइन प्रक्रियाओं से महिलाओं तथा हाशिये पर स्थित अन्य समूहों को प्रायः बाहर रखा जाता है या उन्हें कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है। 
    • शहर को आकार देने में उनकी आवाज़ और दृष्टिकोण को सुना या महत्त्व नहीं दिया जाता है। 
    • इससे ऐसी शहरी नीतियों और कार्यक्रमों का निर्माण होता है जो उनकी वास्तविकताओं एवं आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित नहीं करते या उन पर ध्यान नहीं देते। 
  • लैंगिक जागरूकता और क्षमता का अभाव: 
    • कई सरकारी प्राधिकरणों और समुदायों में शहरी नियोजन एवं डिज़ाइन में लैंगिक समावेशन के महत्त्व के बारे में जागरूकता का अभाव पाया जाता है। 
    • उनके पास लैंगिक रूप से उत्तरदायी रणनीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये कौशल, उपकरण और संसाधनों का भी अभाव होता है। 
      • इसके परिणामस्वरूप ऐसे शहरी हस्तक्षेप उत्पन्न होते हैं जो लैंगिकता की अनदेखी करने वाले (gender-blind) या यहाँ तक कि लैंगिक रूप से पूर्वाग्रहपूर्ण (gender-biased) होते हैं।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता का अभाव: 
    • लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन के लिये शासन और नेतृत्व के सभी स्तरों से मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। 
    • इसके कार्यान्वयन और प्रभाव को सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त धन, समन्वय, निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र की भी आवश्यकता है। 
      • हालाँकि कई संदर्भों में इनकी प्रायः कमी या अपर्याप्तता की स्थिति पाई जाती है, विशेषकर वहाँ जहाँ लैंगिक समानता एक प्राथमिकता नहीं है या जहाँ इसे प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। 

भारत में लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन लागू करने के उपाय:

  • लिंग-विघटित डेटा का सृजन करना: 
    • शहर में विभिन्न समूहों के लोगों की स्थिति और आवश्यकताओं को समझने के लिये डेटा आवश्यक है। 
    • हालाँकि, अधिकांश शहरी डेटा लिंग या अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर विघटित/विभाजित नहीं है। 
      • इस प्रकार, ऐसा डेटा एकत्र करना और उसका विश्लेषण करना महत्त्वपूर्ण है जो शहरी आबादी और उनके अनुभवों की विविधता को दर्शाता हो। इससे लैंगिक रूप से उत्तरदायी हस्तक्षेपों के लिये अंतराल, चुनौतियों, प्राथमिकताओं और अवसरों की पहचान करने में मदद मिल सकती है। 
  • विविध हितधारकों को शामिल करना: 
    • लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन सहभागितापूर्ण होना चाहिये और इसमें सभी हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिये, विशेषकर उन लोगों को जिन्हें प्रायः निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से वंचित या बाहर रखा जाता है। 
    • इसमें विभिन्न पृष्ठभूमि, आयु, योग्यता और पहचान का प्रतिनिधित्व करने वाले महिला-पुरुष शामिल हैं। 
    • उनकी आवाज़ और दृष्टिकोण को शहरी नीतियों और कार्यक्रमों के डिज़ाइन निर्माण, कार्यान्वयन, मूल्यांकन और निगरानी में शामिल किया जाना चाहिये। 
  • लैंगिक असमानता के विभिन्न आयामों को संबोधित करना: 
    • लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन में न केवल शहर के भौतिक पहलुओं बल्कि लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिये। 
      • इसका अभिप्राय है पितृसत्तात्मक मानदंडों, रूढ़िवादिता, भेदभाव और हिंसा जैसे लैंगिक असमानता के मूल कारणों से निपटना। 
    • इसका अभिप्राय शहरी समुदायों के बीच लैंगिक जागरूकता, सशक्तीकरण और एकजुटता जैसे सकारात्मक बदलावों को बढ़ावा देना भी है। 
  • रूपांतरणकारी नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करना: 
    • लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन का लक्ष्य शहर में ऐसे ठोस बदलाव लाना होना चाहिये जिससे सभी लिंग के लोगों के लिये जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो। 
    • इसमें निम्नलिखित नीतियाँ और कार्यक्रम शामिल हो सकते हैं: 
      • महिलाओं के लिये सुरक्षित, सस्ती, सुलभ और विश्वसनीय सार्वजनिक परिवहन प्रणाली प्रदान करना। 
      • महिलाओं के लिये पर्याप्त, स्वच्छ और लैंगिक रूप से अनुकूल (gender-sensitive) सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण करना। 
      • महिलाओं के लिये सुरक्षित, समावेशी और जीवंत सार्वजनिक स्थान का निर्माण करना। 
      • रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा तक महिलाओं की पहुँच बढ़ाना। 
      • शहरी शासन, नेतृत्व और नागरिक सहभागिता में महिलाओं की भागीदारी का समर्थन करना। 
      • सार्वजनिक स्थानों पर लिंग आधारित हिंसा को रोकना और उस पर प्रतिक्रिया देना। 
      • अवैतनिक देखभाल कार्य को चिह्नित करना, उन्हें कम करना और पुरस्कृत करना। 
  • कुछ अच्छे अभ्यासों को अपनाना: 
    • भोपाल में ‘पिंक बस’ पहल, जो महिलाओं और बालिकाओं के लिये मुफ्त और सुरक्षित बस सेवा प्रदान करती है। 
    • जेंडर इनक्लूसिव सिटीज़ प्रोग्राम (GICP), जो महिलाओं के लिये सार्वजनिक स्थानों को सुरक्षित और अधिक समावेशी बनाने के लिये दिल्ली, दार अस सलाम (तंज़ानिया), पेट्रोज़ावोस्क (रूस) और रोज़ारियो (अर्जेंटीना) में स्थानीय सरकारों एवं नागरिक समाज संगठनों के साथ मिलकर कार्य करता है। 
    • सियोल (दक्षिण कोरिया) में वुमन-फ्रेंडली सिटी प्रोजेक्ट’ जो जेंडर बजटिंग, लैंगिक प्रभाव मूल्यांकन, लैंगिक रूप से अनुकूल डिज़ाइन और लैंगिक शिक्षा जैसे विभिन्न उपायों के माध्यम से महिलाओं के लिये आरामदायक, सुरक्षित और सुविधाजनक शहर का निर्माण करने का लक्ष्य रखता है। 

अभ्यास प्रश्न: भारत में लैंगिक रूप से उत्तरदायी शहरी नियोजन के महत्त्व और चुनौतियों की चर्चा कीजिये। भारतीय शहरों को सभी लिंग के लोगों के लिये अधिक समावेशी, सुरक्षित और संवहनीय बनाने के लिये कुछ उपाय सुझाइये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौमिक लैंगिक अंतराल सूचकांक' का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
(c) संयुक्त राष्ट्र महिला आयोग
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न: पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण, भारत में मध्यम वर्ग की कामकाजी महिलाओं की स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करता है? (2014)

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