अत्यधिक हीट वेव एवं शमन प्रक्रिया | 19 Apr 2023

यह एडिटोरियल 18/04/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Dealing with extreme heat” लेख पर आधारित है। इसमें ग्रीष्म लहर की समस्या के व्यापक अवलोकन की आवश्यकता की चर्चा की गई है और नीतिनिर्माताओं के लिये विभिन्न स्तरों पर शमन रणनीतियों का सुझाव दिया गया है।

संदर्भ

पिछले कुछ वर्षों से ग्रीष्मकाल में ग्रीष्म लहर (Heat Wave) का प्रकोप देश में रुग्णता और मृत्यु दर को बढ़ावा दे रहा है। ग्रीष्म लहर भारत में आपदा प्रबंधन के लिये एक बढ़ती हुई चिंता का विषय है, जिससे व्यापक स्तर पर स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संबंधी प्रभाव उत्पन्न हो रहा है।

  • वैश्विक स्तर पर चरम मौसमी घटनाओं (Extreme Weather Events) की आवृत्ति बढ़ती जा रही है, जिसके प्रति समुदायों को जागरूक करने और इनसे निपटने में सक्षम बनाने की आवश्यकता है।
  • खतरनाक न्यूनीकरण या शमन (Hazard Mitigation) के दृष्टिकोण से, ग्रीष्म लहर से होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या को खतरे के संकेत के रूप में देखा जाना चाहिये और इन ग्रीष्मकालीन क्षतियों पर नियंत्रण के लिये नवोन्मेषी उपाय किये जाने चाहिये।

ग्रीष्म लहर क्या है?

  • ▪ खतरा या संकट उत्पन्न करने वाले एक आपदा परिदृश्य के रूप में ग्रीष्म लहर उच्च गर्मी या ताप दशा (High Heat Conditions) की भौतिक घटना में विस्तार की स्थिति है और इसे सामाजिक, व्यावसायिक एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों के साथ जलीय-जलवायु जोखिमों (Hydro-climatic Risks) के एक समुच्चय के रूप में देखा जाता है।
  • परिभाषा:
    • ग्रीष्म लहर की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं दी गई है।
    • इसे आमतौर पर अत्यधिक गर्मी की एक सुदीर्घ अवधि (Prolonged Period Of Excessive Heat) के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) का मानदंड:
    • जब तक किसी स्थान का अधिकतम तापमान, मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस तक नहीं पहुँच जाता, तब तक इसे ग्रीष्म लहर की स्थिति नहीं मानी जाती।
    • यदि किसी स्थन का सामान्य अधिकतम तापमान 40°C से कम या इसके बराबर होता है, तो सामान्य तापमान से 5°C से 6°C की वृद्धि को ग्रीष्म लहर की दशा माना जाता है।
      • इसके अलावा, सामान्य तापमान से 7 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक की वृद्धि को गंभीर ग्रीष्म लहर (Severe Heat Wave) की दशा माना जाता है।
    • यदि किसी स्थान का सामान्य अधिकतम तापमान 40°C से अधिक होता है, तो सामान्य तापमान से 4°C से 5°C की वृद्धि को ग्रीष्म लहर की दशा माना जाता है। इसके अलावा, 6 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक की वृद्धि को गंभीर ग्रीष्म लहर की दशा माना जाता है।
      • इसके अतिरिक्त, यदि सामान्य अधिकतम तापमान से विलग वास्तविक अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो जाता है, तो इसे ग्रीष्म लहर घोषित किया जाता है।

Temperature

ग्रीष्म लहर किस हद तक एक समस्या है?

  • हीट स्ट्रेस (Heat Stress):
    • अप्रैल और मई 2022 के बीच 350 मिलियन भारतीय भीषण हीट स्ट्रेस की चपेट में आए थे।
  • तापमान रुझान:
    • वर्ष 1990 से 2019 के बीच पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के कई ज़िलों में ग्रीष्मकालीन तापमान में 0.5-0.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई।
    • भारत के 54% ज़िलों में शीतकालीन तापमान में सदृश वृद्धि देखी गई है।
    • वर्ष 2021 से 2050 के बीच देश के 100 ज़िलों में अधिकतम तापमान 2 से 3.5 डिग्री सेल्सियस और लगभग 455 ज़िलों में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की उम्मीद है।
  • ‘अर्बन हीट आइलैंड’ प्रभाव:
    • बढ़ते तापमान से ‘अर्बन हीट आइलैंड’ प्रभाव (Urban Heat Island Effect) उत्पन्न होता है जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों 4-12 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान देखा जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन स्थानीय मौसम पैटर्न को बिगाड़ देता है, जिससे मौसम परिवर्तनीयता (weather variability) उत्पन्न होती है और कृषि में क्षति की स्थिति बनती है।

ग्रीष्म लहर के प्रमुख कारण

  • विरल पूर्व-मानसून वर्षा:
    • कई क्षेत्रों में नमी की कमी भारत के बड़े हिस्से को सूखाग्रस्त और शुष्क बना रही है।
    • पूर्व-मानसून वर्षा के अप्रत्याशित अंत (जो भारत के लिये एक असामान्य प्रवृत्ति है) ने ग्रीष्म लहरों में योगदान दिया है।
  • अल नीनो प्रभाव:
    • अल नीनो (El Nino) प्रायः एशिया में तापमान को बढ़ाता है जो मौसम पैटर्न के साथ संयुक्त होकर रिकॉर्ड उच्च तापमान का सृजन करता है।
    • दक्षिण अमेरिका से आने वाली व्यापारिक पवनें (Trade Winds) सामान्यतः दक्षिण-पश्चिम मानसून (Southwest Monsoon) के दौरान पश्चिम दिशा में एशिया की ओर बहती हैं और प्रशांत महासागर के गर्म होने से ये पवनें कमज़ोर हो जाती हैं।
      • इस प्रकार, नमी एवं ऊष्मा की मात्रा सीमित हो जाती है और इसके परिणामस्वरूप भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा में कमी एवं उनके असमान वितरण की स्थिति बनती है।

ग्रीष्म लहर के प्रमुख प्रभाव

  • स्वास्थ्य प्रभाव:
    • हीट रैश (Heat rash):
      • इसे त्वचा के गुलाबी होने के साथ ‘सनबर्न’ घटना (sunburn phenomenon) के रूप में भी जाना जाता है जिसके परिणामस्वरूप त्वचा में जलन और पीड़ा का अनुभव होता है।
    • हीट सिंकोप (Heat syncope):
      • चक्कर आना (Giddiness), वर्टिगो सिरदर्द (vertigo headach) और अचानक शुरू होने वाली तंद्रा या बेहोशी।
    • हीट क्रैम्प्स (Heat Cramps):
      • एडिमा (सूजन) और सिंकोप (बेहोशी) के साथ ही आमतौर पर 39 डिग्री सेल्सियस (102 डिग्री फारेनहाइट) से कम बुखार।
    • गर्मी संबंधी थकावट (Heat Exhaustion):
      • थकान, कमज़ोरी, चक्कर आना, सिरदर्द, मतली, उल्टी, मांसपेशियों में ऐंठन और पसीना आना।
    • हीट स्ट्रोक (Heat Stroke):
      • उन्माद (delirium), दौरा पड़ने या कोमा में जाने के साथ शरीर का तापमान 40°C (104°F) या इससे अधिक होना। यह एक संभावित प्राणघातक स्थिति है।
  • श्रम और उत्पादकता पर प्रभाव:
    • हीट एक्सपोजर (Heat exposure) से भारी कार्य से संलग्न श्रमिकों के लिये प्रति वर्ष प्रति श्रमिक 162 कार्य-घंटे की हानि होती है, जिससे उत्पादकता प्रभावित होती है।
    • अनुमान है कि भारत के लगभग 50% कार्यबल (जिसमें सीमांत किसान, निर्माण श्रमिक और स्ट्रीट वेंडर्स आदि शामिल हैं) को उनके कार्य घंटों के दौरान हीट एक्सपोजर का सामना करना पड़ता है।
  • कृषि क्षेत्र पर प्रभाव: तापमान के आदर्श सीमा से अधिक होने पर फसल की पैदावार प्रभावित होती है।
    • हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसानों ने पिछले रबी मौसम में अपनी गेहूँ की फसल में क्षति होने की सूचना दी है।
    • पशुधन भी ग्रीष्म लहर की चपेट में आते हैं।
  • खाद्य असुरक्षा:
    • अधिक ताप और सूखे की घटनाओं के मेल से फसल उत्पादन का नुकसान हो रहा है और वृक्ष सूख रहे हैं।
    • गर्मी-प्रेरित श्रम उत्पादकता की हानि से खाद्य उत्पादन हानियों में अचानक वृद्धि से स्वास्थ्य और खाद्य उत्पादन के समक्ष विद्यमान जोखिम और अधिक गंभीर हो जाएँगे।
    • इन अंतःक्रियात्मक प्रभावों से खाद्य कीमतों में वृद्धि होगी, घरेलू आय में कमी आएगी और कुपोषण एवं जलवायु संबंधी मौतों के मामले में वृद्धि होगी (विशेषकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में)।
  • ऊर्जा मांग पर प्रभाव:
    • बढ़ी हुई गर्मी के कारण औसत दैनिक ‘पीक डिमांड’ बढ़ जाती है।

शमन रणनीतियाँ (Urban Greening) क्या होनी चाहिये?

  • शहरी हरियाली (Urban Greening):
    • हरित और अधिक पारगम्य शहरी सतहें शहरी गर्मी को कम करने में मदद कर सकती हैं।
    • टीयर 2 और टीयर 3 शहरों के लिये विकास योजनाएँ शहरी वनों के घनत्व एवं क्षेत्र का विस्तार करने के लिये एक अधिदेश स्थापित कर सकती हैं।
    • शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक परिदृश्य, जैसे पेड़, पार्क और वनस्पति का विकास शीतलन में मदद कर सकता है।
  • आधारभूत संरचना:
    • नागरिक अवसंरचना और आवासीय निर्माण में पारगम्य सामग्रियों का अधिक उपयोग अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव को कम कर सकता है।
    • बायोगैस, संपीड़ित प्राकृतिक गैस, तरलीकृत पेट्रोलियम गैस जैसे स्वच्छ रसोई ईंधन को प्रोत्साहित करने से इनडोर वायु प्रदूषण और अर्बन हीट में कमी आएगी।
    • सार्वजनिक परिवहन में सुधार और निजी वाहन के उपयोग को कम करने से चरम ग्रीष्म लहरों को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन:
    • लैंडफिल के आकार को कम करने, अपशिष्ट पृथक्करण और स्रोत पर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से मीथेन उत्पादन एवं आगजनी को कम किया जा सकता है जो अर्बन हीट को बढ़ाते हैं।
  • नीतियाँ और दिशानिर्देश:
    • मौसम परिवर्तनीयता और शहरी ताप प्रबंधन पर विभिन्न स्तरों पर नीतियों एवं दिशानिर्देशों की आवश्यकता है।
    • आर्द्रभूमियों का विस्तार करने और तालाबों एवं झीलों के जीर्णोद्धार से भी मदद मिल सकती है।
  • भवन डिज़ाइन:
    • भवनों में हरित छतों (Green Roofs) और ठंडी छतों (cool roofs) के उपयोग को बढ़ावा देना, वातायन/वेंटिलेशन बढ़ाना और हरित स्थानों का निर्माण करना।
    • प्राकृतिक वेंटिलेशन, शेडिंग और थर्मल इन्सुलेशन जैसी निष्क्रिय शीतलन तकनीकें भी इनडोर तापमान और ऊर्जा खपत को पर्याप्त कम कर सकती हैं।
    • इमारतों में हाई-अल्बिडो छतें और पेवमेंट भी सहायक सिद्ध होंगे।
  • नवीकरणीय ऊर्जा:
    • शीतलन और बिजली की ज़रूरतों के लिये सौर एवं पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • जन जागरण:
    • जनता को ग्रीष्म लहर के जोखिमों, शीतल रहने के उपायों और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के महत्त्व के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये।
  • कृषि अनुकूलन:
    • कृषकों को प्रत्यास्थी खेती अभ्यासों के साथ समर्थन देना जो ग्रीष्म लहर, सूखे और जल की कमी के जोखिमों को संबोधित करते हों।
    • फसल विविधीकरण, कृषि-वानिकी, पलवार करना (Mulching), फसल चक्रण, कवर क्रॉपिंग, ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
  • आपदा प्रबंधन:
    • ग्रीष्म लहर के लिये आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना विकसित करना आवश्यक है, जिसमें शीत आश्रय (cool shelters) और पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करना शामिल है।
    • अल्पावधि में आवश्यक कदम:
      • एक प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करना आवश्यक है जो जोखिम रखने वाले लोगों को समयबद्ध और सटीक जानकारी प्रदान कर सके।
      • इस प्रणाली को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं और स्थानीय सरकारों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये और ग्रीष्म लहर पर प्रतिक्रिया में संसाधनों को तेज़ी से जुटाने में सक्षम होना चाहिये।
    • दीर्घावधि में आवश्यक कदम:
      • भारतीयों को अत्यधिक गर्मी के अनुकूल बनाने में मदद करने के लिये संरचनात्मक अवसंरचना उपायों की आवश्यकता है।
  • हरित परिवहन:
    • वाहन उत्सर्जन और यातायात भीड़ को कम करने के लिये सार्वजनिक परिवहन एवं साइकिल के उपयोग को प्रोत्साहित करना।
    • साइकिल, इलेक्ट्रिक वाहन आदि सहायक हो सकते हैं।

ग्रीष्म लहर के संबंध में प्रमुख सरकारी पहलें

  • जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना (National action Plan for Climate Change- NAPCC):
  • इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP):
    • ICAP सभी क्षेत्रों में शीतलन की आवश्यकता को पूरा करने के लिये एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण है। वर्ष 2037 तक कूलिंग डिमांड को 20-25% और रेफ्रिजरेशन डिमांड को 25-30% तक कम करना इस योजना का लक्ष्य है।
  • NDMA दिशानिर्देश:
    • वर्ष 2016 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) ने ग्रीष्म लहर के प्रभाव को कम करने के लिये राष्ट्रीय स्तर की प्रमुख रणनीतियाँ तैयार करने के लिये व्यापक दिशानिर्देश जारी किये।

अभ्यास प्रश्न: भारत पर बढ़ते तापमान के प्रभाव की चर्चा करें और समस्या को कम करने के उपायों के सुझाव दें। (150 शब्द)

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मुख्य परीक्षा

प्रश्न: विश्व के नगरीय आवास में उष्मीय द्वीपों के निर्माण के कारणों पर प्रकाश डालिये।