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भारतीय राजव्यवस्था

उभरती तकनीक एवं न्यायपालिका

  • 06 Apr 2023
  • 15 min read

यह एडिटोरियल 04/04/2023 को ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Doing Justice with AI” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि कैसे उभरती प्रौद्योगिकियों का अनुप्रयोग न्यायिक प्रणाली को रूपांतरित कर सकता है और इससे कौन-से लाभ प्राप्त हो सकते हैं।

संदर्भ

विश्व पिछले दो दशकों में एक महत्त्वपूर्ण रूपांतरण से होकर गुज़रा है, जिसके पीछे डिजिटलीकरण ने प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य किया है। नई प्रौद्योगिकियों के आगमन ने बैंकिंग से लेकर स्वास्थ्य सेवा तक सभी क्षेत्रों को, हमारे व्यापार करने के तरीके से लेकर सेवाओं की अभिगम्यता तक, रूपांतरित कर दिया है। दक्षता में सुधार और अनुभवों को समृद्ध करने की क्षमता के साथ डिजिटलीकरण वर्तमान समय का मूलमंत्र बन गया है।

  • इस संदर्भ में, न्यायपालिका एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ उभरती प्रौद्योगिकियों के लिये एक बड़ी भूमिका निभाने की उल्लेखनीय क्षमता मौजूद है।
  • इसमें कोई संदेह नहीं है कि उभरती प्रौद्योगिकियाँ राष्ट्र को सबल बनाने में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी। किसी भी परिवर्तन के साथ हमेशा कुछ चिंताएँ भी उत्पन्न होती हैं, लेकिन यह हमारे ऊपर है कि हम किस प्रकार क्षमता का लाभ उठाएँ, नियंत्रण के साथ जोखिमों को दूर करें और ऐसे समाधान प्रदान करें जो वास्तव में महत्त्वपूर्ण तरीके से बदलाव को प्रभावित कर सकें।

उभरती प्रौद्योगिकियाँ न्यायिक प्रणाली को कैसे रूपांतरित कर सकती हैं?

  • अदालती कार्यवाही का डिजिटलीकरण:
    • उभरती प्रौद्योगिकियों के सबसे महत्त्वपूर्ण लाभों में से एक है अदालती कार्यवाही का डिजिटलीकरण।
    • इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों का उपयोग काग़ज़ी कार्रवाई को कम करने, अभिगम्यता में सुधार लाने और मामलों के कुशल प्रबंधन को सुविधाजनक बनाने में मदद कर सकता है।
    • अदालती रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण उन्हें सुलभ बनाने, पारदर्शिता में सुधार लाने और न्यायिक प्रक्रिया को तेज़ करने में मदद कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये, ई-कोर्ट परियोजना (e-Courts project) का उद्देश्य देश में न्यायालयों के कार्यकरण को कम्प्यूटरीकृत करना और न्यायिक प्रणाली को अधिक कुशल बनाना है।
  • AI और मशीन लर्निंग का उपयोग:
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण करने, पैटर्न की पहचान करने और परिणामों का पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कई न्यायाधीशों ने इस मूल्य की पहचान की है और प्रस्तावित किया है कि न्याय वितरण प्रणाली की दक्षता बढ़ाने के लिये (गुणवत्ता और मात्रा दोनों के संदर्भ में) AI टूल्स या उपकरणों का प्रवेश कराया जाए।
  • मामलों की ई-फाइलिंग:
    • ई-फाइलिंग का उपयोग मामलों को दर्ज करने की प्रक्रिया को तीव्र, अधिक कुशल और लागत-प्रभावी बना सकता है। ई-फाइलिंग मामलों को दाखिल करने में लगने वाले समय को कम करने, डेटा शुद्धता में सुधार लाने और न्यायालय में भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता को समाप्त करने में मदद कर सकता है।
      • उदाहरण के लिये, भारत के सर्वोच्च न्यायालय का ई-फाइलिंग पोर्टल अधिवक्ताओं और वादियों को मामले दर्ज करने और मामले के रिकॉर्ड को ऑनलाइन एक्सेस करने में सक्षम बनाता है।
  • सुनवाई के लिये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग:
    • वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग दूरस्थ सुनवाई में मदद कर सकता है, जिससे अधिवक्ताओं और वादियों के लिये न्यायिक प्रक्रिया में भाग लेना आसान हो जाता है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से समय एवं धन की बचत हो सकती है, यात्रा का बोझ कम हो सकता है और सभी प्रतिभागियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है।
      • उदाहरण के लिये, कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय न्यायालयों ने आभासी सुनवाई (virtual hearings) हेतु वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करना शुरू किया था।
  • सुरक्षित रिकॉर्ड-कीपिंग के लिये ब्लॉकचेन :
    • ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी कोर्ट रिकॉर्ड की सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है। ब्लॉकचेन का उपयोग हेरफेर को रोकने, डेटा की अखंडता को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि कोर्ट रिकॉर्ड सुरक्षित हैं एवं केवल अधिकृत उपयोगकर्ताओं के लिये ही सुलभ हैं।
    • उदाहरण के लिये, तेलंगाना राज्य भूमि रिकॉर्ड को सुरक्षित रखने और धोखाधड़ी को रोकने के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहा है।

न्यायिक प्रणाली में उभरती प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग के साथ संबंद्ध चुनौतियाँ

  • डेटा सुरक्षा:
    • न्यायिक प्रणाली द्वारा एकत्र किये जाते संवेदनशील डेटा की बढ़ती मात्रा के साथ, यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि इस डेटा को सुरक्षित रखा जाए। कोई भी डेटा उल्लंघन न्याय प्रणाली की अखंडता को भंग कर सकता है और जनता के भरोसे को कम कर सकता है।
  • पक्षपात और भेदभाव:
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियाँ पूर्वाग्रह और भेदभाव को बनाये रख सकती हैं यदि उपयोग किये जाते एल्गोरिदम को सावधानी से डिज़ाइन नहीं किया जाए। यह जोखिम भी मौजूद है कि ये प्रौद्योगिकियाँ न्याय प्रणाली में मौजूदा पूर्वाग्रहों और असमानताओं को और बढ़ा सकती हैं।
  • समझ की कमी:
    • कई विधिक पेशेवरों में उभरती प्रौद्योगिकियों की क्षमताओं और सीमाओं को पूरी तरह से समझने के लिये आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता की कमी हो सकती है। इससे इन प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग के संबंध में भ्रम उत्पन्न हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप अप्रभावी या अनुचित उपयोग की स्थिति बन सकती है।
  • गोपनीयता संबंधी चिंताएँ:
    • उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग गोपनीयता संबंधी अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है।
      • उदाहरण के लिये, चेहरा पहचान तकनीक (facial recognition technology) का इस्तेमाल लोगों की सहमति के बिना उनकी पहचान करने के लिये किया जा सकता है और इस बात का जोखिम मौजूद है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों या अन्य संगठनों द्वारा इस तकनीक का दुरुपयोग किया जा सकता है।
  • लागत:
    • उभरती प्रौद्योगिकियों का क्रियान्वयन महंगा सिद्ध हो सकता है और न्यायिक प्रणाली के पास इन प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के लिये संसाधन की कमी हो सकती है।
    • यह उन संभावित लाभों को सीमित कर सकता है जो ये प्रौद्योगिकियाँ न्याय प्रणाली में ला सकती हैं।
  • नैतिकता का प्रश्न:
    • न्यायिक प्रणाली में उभरती प्रौद्योगिकियों को लागू करते समय विभिन्न नैतिक विषयों पर भी विचार किया जाना चाहिये।
    • न्याय कार्य में आवश्यक मानवीय तत्व (human element) या 'विवेक' की कमी को लेकर भी एक चिंता उत्पन्न होती है।
    • उदाहरण के लिये, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि ये प्रौद्योगिकियाँ व्यक्तियों के अधिकारों से समझौता न करें या न्याय प्रणाली की अखंडता को कमज़ोर न करें।

आगे की राह

  • नैतिकता का प्रश्न:
    • उभरती हुई प्रौद्योगिकियों के नैतिक निहितार्थ भी हो सकते हैं और न्यायिक प्रणाली को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग इस तरह से किया जा रहा है जो नैतिक मानकों के अनुरूप हो।
  • डेटा गोपनीयता और सुरक्षा:
    • AI और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियाँ डेटा संग्रह पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं और यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि इस डेटा का संग्रहण एवं उपयोग इस प्रकार किया जाए जो डेटा गोपनीयता और सुरक्षा नियमों के अनुरूप हो।
  • अभिगम्यता:
    • न्यायिक प्रणाली को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उभरती प्रौद्योगिकियाँ दिव्यांगजन या प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच रखने वाले लोगों के लिये अभिगम्यता संबंधी बाधाएँ पैदा न करें।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही:
    • उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग पारदर्शी होना चाहिये और यह जवाबदेही के अधीन हो ताकि सुनिश्चित हो सके कि उनका उचित एवं न्यायपूर्ण उपयोग किया जा रहा है।
  • प्रशिक्षण और शिक्षा:
    • न्यायिक प्रणाली को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग के संबंध में न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं और अन्य हितधारकों को उपयुक्त रूप से प्रशिक्षित एवं शिक्षित किया जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनका प्रभावी एवं उचित तरीके से उपयोग किया जा रहा है।

अभ्यास प्रश्न: न्यायिक प्रणाली में उभरती प्रौद्योगिकियों के प्रभावी अनुप्रयोग में बाधा उत्पन्न करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं और न्याय प्रणाली की दक्षता एवं निष्पक्षता में सुधार के लिये उन्हें कैसे संबोधित किया जा सकता है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त किसी न्यायधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु बुलाया जा सकता है।
  2. भारत में किसी भी उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पास है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/कौन से सही है/हैं?

 (A) केवल 1
 (B) केवल 2
 (C) 1 और 2 दोनों
 (D) न तो मैं और न ही 2

 उत्तर: (C)

 व्याख्या:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 128 के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, किसी भी व्यक्ति को जिसमें निम्नलिखित योग्यता हो, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकते हैं:
  • जिसने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद संभाला है। अतः कथन 1 सही है।
  • जिसने एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद संभाला है और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये विधिवत रूप से योग्य है।
  • अभिलेखीय न्यायालय होने के नाते, उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत अपने स्वयं के निर्णयों की समीक्षा कर सकता है। अतः कथन 2 सही है।
  • भारत का संविधान में इसी तरह, अनुच्छेद 137 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय के पास उसके द्वारा सुनाए गए किसी भी निर्णय या दिए गए आदेश की समीक्षा करने की शक्ति होगी।

अतः कथन 2 सही है।

अतः विकल्प (C) सही उत्तर है।

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