पर्यावरण और हम | 15 Jun 2022
यह एडिटोरियल 08/06/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित ‘‘Climate and Us | A movement that puts a spotlight on West's wasteful consumption’’ लेख पर आधारित है। इसमें पश्चिमी देशों के अपव्ययी उपभोग को उजागर करने के लिये और जलवायु परिवर्तन से संबंधित भारत की समस्याओं के समाधान के लिये भारत द्वारा की गई एक विशेष पहल के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
हाल ही में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री द्वारा ‘पर्यावरण के लिये जीवनशैली आंदोलन’ [Lifestyle for the Environment (LiFE) Movement] वैश्विक पहल लॉन्च की गई। यह आंदोलन विकसित और विकासशील देशों के उपभोग पैटर्न के साथ ही जलवायु परिवर्तन से संबंधित ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी, प्रति व्यक्ति CO2 उत्सर्जन और कार्बन स्पेस जैसे पहलुओं को वैश्विक ध्यान के केंद्र में लाने का एक प्रयास है।
वैश्विक जीवनशैली आंदोलन के उद्देश्य क्या हैं?
- यह पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली पर शिक्षाविदों, विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों से विचारों एवं सुझावों को आमंत्रित करने के लिये एक वैश्विक आह्वान की शुरूआत करेगा और इस क्रम में व्यक्तियों, समुदायों और संगठनों को जीने के तरीके में रूपांतरण के लिये प्रेरित करेगा।
- इनमें जल, परिवहन, आहार, बिजली, पुनर्चक्रण और पुन:उपयोग के संबंध में व्यक्तियों, घरों और समुदायों पर लक्षित व्यवहार-परिवर्तन समाधान भी शामिल हैं।
- यह जलवायु संकट के संबंध में स्थानीय सामाजिक समाधानों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिये सोशल मीडिया नेटवर्क की शक्ति का लाभ उठाएगा।
- ऐसे नवोन्मेषी समाधानों पर भी विचार आमंत्रित किए जाएँगे जो पारंपरिक, जलवायु-अनुकूल अभ्यासों को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देते हैं और/या उन समुदायों के लिये आजीविका विकल्प का निर्माण करते हैं जो जलवायु-अनुकूल उत्पादन की ओर संक्रमण के साथ अपनी आजीविका खोने का खतरा रखते हैं।
- किसी भी ऐसे अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और/या स्थानीय सर्वोत्तम अभ्यासों का पालन करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जिन्हें जलवायु कार्रवाई से संबंधित व्यवहार परिवर्तन को प्रेरित करने के लिये व्यावहारिक रूप से संवर्द्धित किया जा सकता है।
हमें इस प्रकार के आंदोलन की आवश्यकता क्यों है?
- COP26 ग्लासगो जलवायु सम्मेलन के ग्लासगो संधि के प्रारूपण के दौरान विकसित और विकासशील देशों के बीच निम्नलिखित कुछ विषयों पर संघर्ष की स्थिति बनी थी-
- ऐतिहासिक उत्तरदायित्व: यह औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से विकसित विश्व द्वारा किये गए ऐतिहासिक उत्सर्जन को संबोधित करने का प्रयास करता है,
- कार्बन उपनिवेशवाद: ‘समान विचारधारा वाले विकासशील देश’ (LMDC)—जिसमें भारत और चीन भी शामिल हैं, के अनुसार विकसित देश ‘कार्बन उपनिवेशवाद’ (Carbon Colonialism) का प्रदर्शन कर रहे हैं।
- इसका आशय यह है कि जलवायु परिवर्तन के प्रति ‘साझा किंतु विभेदित उत्तरदायित्व’ (Common But Differentiated Responsibility- CBDR) के सिद्धांत का पालन करने के बजाय विकसित देश विकासशील देशों पर तत्काल शुद्ध-शून्य लक्ष्यों की घोषणा करने का दबाव डाल रहे हैं अथवा5 डिग्री वैश्विक तापमान लक्ष्य प्राप्ति के संबंध में अपने पक्ष में झुकी वार्ता को आगे बढ़ा रहे हैं, जबकि विश्व के एक बड़े हिस्से की विकासगत आवश्यकताओं की पूरी तरह से उपेक्षा कर रहे हैं।
- हाल ही में स्टॉकहोम +50 सम्मेलन (जो ऐतिहासिक स्टॉकहोम सम्मेलन के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था) में प्रमुख अनुशंसाओं के वक्तव्य में भी उपभोग और अपव्ययी दोहन के महत्त्वपूर्ण विषय पर कुछ भी नहीं कहा गया।
- इसके कारण, ऐतिहासिक उपभोग पैटर्न के प्रति जवाबदेही का अभाव है।
CBDR क्या है?
- ‘साझा किंतु विभेदित उत्तरदायित्व’ (कभी-कभी ‘और संबंधित क्षमताओं’ वाक्यांश के साथ) अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक सिद्धांत है जिसका आशय है कि विभिन्न देशों के पास जलवायु परिवर्तन जैसे सीमा-पारीय पर्यावरणीय मुद्दों को संबोधित करने की अलग-अलग क्षमताएँ और उत्तरदायित्व हैं। यह सिद्धांत निम्नलिखित दो आवश्यकताओं में संतुलन का प्रयास करता है:
- पर्यावरणीय विनाश और इसके शमन के लिये सभी राज्यों द्वारा व्यक्तिगत उत्तरदायित्व ग्रहण करने की आवश्यकता; और
- यह चिह्नित करने की आवश्यकता कि समस्या के लिये सभी राज्य एकसमान रूप से ज़िम्मेदार नहीं हैं, न ही कार्रवाई में एकसमान रूप से सक्षम हैं।
अनुलग्नक-1 और गैर-अनुलग्नक-1 देश
- अनुलग्नक-1 पक्षकारों में वे औद्योगिक देश शामिल हैं जो वर्ष 1992 में ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ (OECD) के सदस्य थे और वे देश जो EIT (Economies in Transition) पक्षकार थे। इनमें रूसी संघ, विभिन्न बाल्टिक राज्य और विभिन्न मध्य एवं पूर्वी यूरोपीय राज्य शामिल हैं।
- गैर-अनुलग्नक-1 पक्षकार अधिकांशतः विकासशील देश हैं। विकासशील देशों के कुछ समूहों को विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील माना गया है, जिनमें निचले तटीय क्षेत्रों वाले देश और मरुस्थलीकरण एवं सूखा-प्रवण देश शामिल हैं।
- अन्य अल्पविकसित देश (LDC), जो जीवाश्म ईंधन उत्पादन और वाणिज्य से प्राप्त आय पर अत्यधिक निर्भर हैं, जलवायु परिवर्तन प्रतिक्रिया उपायों के संभावित आर्थिक प्रभावों के प्रति अधिक भेद्यता रखते हैं। जलवायु परिवर्तन कन्वेंशन उन गतिविधियों पर बल देता है जो इन संवेदनशील देशों की विशेष आवश्यकताओं और चिंताओं के समाधान का वादा करती हैं, जैसे निवेश, बीमा और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण।
भारत द्वारा उजागर की गई विभिन्न असमानताएँ
- प्रति व्यक्ति उत्सर्जन और संसाधन उपभोग में व्यापक अंतर है।
- ‘क्लाइमेट इक्विटी मॉनिटर’ (जलवायु कार्रवाई में इक्विटी का आकलन करने के लिये एक ऑनलाइन डैशबोर्ड) के अनुसार विभिन्न देशों का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन इस प्रकार है-
- ऑस्ट्रेलिया – प्रति व्यक्ति 22tco2eq (tonne of CO2 equivalent) या CO2 उत्सर्जन प्रति व्यक्ति मीट्रिक टन
- संयुक्त राज्य अमेरिका - 20.2 tco2eq प्रति व्यक्ति
- भारत - 2.4 tco2eq प्रति व्यक्ति
- ब्राज़ील - 5.3 tco2eq प्रति व्यक्ति
- विभिन्न देशों के प्रति व्यक्ति संसाधन उपभोग से यह भी पता चलता है कि कि वर्ष 2019 में अमेरिका और अन्य विकसित देशों में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत सबसे अधिक थी।
- क्लाइमेट इक्विटी मॉनिटर द्वारा वैश्विक कार्बन बजट का एक इंटरेक्टिव मैपिंग भी प्रस्तुत किया गया है जिसमें विभिन्न देशों द्वारा वैश्विक बजट में अब तक उपयोग किये जा चुके उनके हिस्से के अनुरूप उनका वर्गीकरण किया गया है।
- यह दर्शाता है कि अधिकांश अनुलग्नक-1 देशों ने अपने उचित हिस्से से अधिक का उपभोग कर लिया है और ऋण में हैं जबकि गैर-अनुलग्नक 1 देशों ने अभी तक अपने हिस्से का उपभोग नहीं किया है और क्रेडिट की स्थिति रखते हैं।
- यह विकसित देशों में निर्णय लेने की कमी या कार्रवाई करने की अनिच्छा और नीति गतिहीनता की स्थिति की पुष्टि करता है।
आगे की राह
- नीति आयोग तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की देखरेख में कार्यान्वित LiFE आंदोलन को वैश्विक स्तर पर भागीदारी और समर्थन प्राप्त हो रहा है। नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र, विश्व संसाधन संस्थान (WRI), सेंटर फॉर सोशल एंड बिहेवियर चेंज (CSBC) और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (BMGF) की भागीदारी के साथ विभिन्न अनुसंधान क्षेत्रों के लिये दुनिया भर से विचार आमंत्रित किये हैं।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस पहल की वर्चुअल लॉन्चिंग के अवसर पर बिल गेट्स (बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सह-अध्यक्ष), लॉर्ड निकोलस स्टर्न (ग्रांथम रिसर्च इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष), प्रो. कैस सनस्टीन (हार्वर्ड में रॉबर्ट वाल्म्सली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक), इंगर एंडरसन (UNEP के विश्व प्रमुख); डेविड मलपास (विश्व बैंक के अध्यक्ष) जैसे गणमान्य लोग उपस्थित थे जो व्यक्तियों के साथ ही विभिन्न समुदायों एवं समाजों पर एक बड़ा प्रभाव रखते हैं और निश्चय ही इससे लोगों से संलग्नता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- असमानताओं को उजागर करने और नवोन्मेषी समाधानों के साथ बदलाव लाने की ज़रूरत है।
- यह आंदोलन भारत के अंदर असमानताओं को उजागर करने और उन्हें संबोधित करने का भी एक अवसर प्रदान कर सकता है
- सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक अध्ययन के अनुसार 71 प्रतिशत भारतीय स्वस्थ आहार ग्रहण कर सकने का सामर्थ्य नहीं रखते।
- इसके अनुसार एक औसत भारतीय व्यक्ति के आहार में पर्याप्त फल, सब्जियाँ, फलियाँ, मेवे और साबुत अनाज का अभाव होता है;
- देश के अधिकांश भागों में स्वच्छ जल और पर्यावरण तक पहुँच का भी संकट मौजूद है।
- भारत में लाखों गरीब लोगों की सेहत और आजीविका को संबोधित करने की आवश्यकता है।
- कोयले पर निर्भर राज्यों के उपयुक्त संक्रमण पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये, जो जल्द ही उद्योग और नौकरियों में एक बड़े संक्रमण से गुज़र सकते हैं।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत के नेतृत्व में शुरू हुए वैश्विक जीवनशैली आंदोलन द्वारा उठाए गए मुद्दों पर प्रकाश डालें और आपके अनुसार इन समस्याओं के क्या समाधान हो सकते हैं?