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भारत में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के लिये दवाओं की केंद्रीकृत खरीद

  • 21 Oct 2023
  • 18 min read

यह एडिटोरियल 18/10/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Centralised procurement as a powerful health idea” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के लिये दवाओं की केंद्रीकृत खरीद के लाभों के बारे में चर्चा की गई है और विचार किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा सामूहिक खरीद से किस प्रकार लागत कम हो सकती है, गुणवत्ता सुनिश्चित हो सकती है और जीवन रक्षक दवाओं का स्टॉक समाप्त होने से रोका जा सकता है। इसमें एक हालिया अध्ययन का भी हवाला दिया गया है जो इस विचार के लिये अनुभवजन्य साक्ष्य प्रदान करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

समुच्चय खरीद, केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (CGHS)प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY)कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ESI)

मेन्स के लिये:

भारत की स्वास्थ्य देखभाल खरीद से जुड़े मुद्दे तथा एकत्रित खरीद भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र की कैसे मदद कर सकती है।

कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अनुभव बताते हैं कि दवा खरीद के लिये समुच्चय विक्रेता मॉडल (pooled buyer model) मूल्य क्षमता, स्टॉकआउट और गुणवत्ता से जुड़ी विभिन्न चिंताओं को संबोधित कर सकता है। लेकिन दशकों से अज्ञात कारणों से केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (CGHS), प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) और कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ESI) जैसी योजनाओं के मामले में केंद्र सरकार समुच्चय खरीद या सामूहिक खरीद के लाभों की अनदेखी करती रही है। जब हमारे पास केंद्रीकृत खरीद के बहुत से सफल उदाहरण मौजूद हैं तो फिर दवा खरीद के मामलों में अस्पतालों द्वारा इस मॉडल का प्रयोग क्यों नहीं किया जा सकता?

समुच्चय खरीद (Pooled Procurement) का अभिप्राय

  • परिभाषा:
    • समुच्चय खरीद—जिसे सामूहिक खरीद (collective procurement) या समूह खरीद (group purchasing) के रूप में भी जाना जाता है, एक ऐसी खरीद रणनीति को संदर्भित करती है जिसमें कई संगठन (आमतौर पर सार्वजनिक या निजी क्षेत्र के) संयुक्त रूप से वस्तुओं या सेवाओं की खरीद के लिये एक साथ आते हैं।
  • लाभ:

    • प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार शर्तों और मूल्यों तक
    • खरीद में देरी का 
    • समयबद्ध अनुदान व्यय हेतु सहायता
    • बेहतर गुणवत्ता आश्वासन
    • खरीद संबंधी भ्रष्टाचार का न्यूनीकरण या उन्मूलन
    • बेहतर सूचना-संपन्न चयन के माध्यम से तर्कसंगत विकल्प
    • प्रौद्योगिकीय क्षमता और मानव संसाधनों की साझेदारी के माध्यम से खरीद दक्षता और गुणवत्ता मानकों में सुधार लाना
    • इकाई कीमतों, आपूर्ति शृंखला लागत और प्रशासनिक बोझ में कमी

‘वड़ा पाव’ उदाहरण

एक स्थिति की कल्पना कीजिये जहाँ एक उद्यमी भारतीय बाज़ार में मैकडॉनल्ड्स जैसी वैश्विक फास्ट-फूड दिग्गज कंपनी को टक्कर देने की योजना बना रहा है। उसका मानना है कि भारत का पसंदीदा स्ट्रीट फूड वड़ा पाव मैकडॉनल्ड्स के लोकप्रिय बर्गर को मात दे सकता है। इसके लिये वह देश भर में हज़ारों वड़ा पाव फ्रैंचाइज़ी स्थापित करने की रणनीति तैयार करता है। उसका लक्ष्य आने वाले वर्षों में लाखों लोगों को स्वच्छ और स्वादिष्ट वड़ा पाव परोसना है। यह एक शानदार विचार है और उसे उम्मीद है कि कोई इसे साकार करेगा।

लेकिन यहीं एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठता है:

  • क्या प्रत्येक फ्रैंचाइज़ी को स्वतंत्र रूप से अपना आलू खरीदना चाहिये या एक केंद्रीकृत खरीद प्रणाली स्थापित करना विवेकपूर्ण होगा?
    • यह परिदृश्य दो मूलभूत चुनौतियों—मूल्य और गुणवत्ता, को हल करने के इर्द-गिर्द घूमता है।
      • मूल्य: जब मूल्य की बात आती है तो यदि प्रत्येक फ्रैंचाइज़ी आलू आपूर्तिकर्ताओं के साथ व्यक्तिगत रूप से वार्तारत होता है तो इससे अक्षमताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। संपूर्ण व्यवसाय के लिये आलू की संयुक्त आवश्यकता प्रत्येक फ्रैंचाइज़ी की आवश्यकता से कहीं अधिक होगी। इसका अर्थ यह है कि एक केंद्रीकृत खरीद प्रणाली में सौदेबाजी की अधिक शक्ति होगी। इसके अलावा, केंद्रीकृत प्रणाली के माध्यम से खरीद में मूल्य की एकरूपता होगी।
      • गुणवत्ता: यदि प्रत्येक फ्रैंचाइज़ी अपनी आलू खरीद का प्रबंधन स्वयं करती है तो एक जोखिम है कि अलग-अलग फ्रैंचाइज़ी के पास स्वीकार्य गुणवत्ता के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण होंगे। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक फ्रैंचाइज़ी की अच्छे आलू के बारे में अलग-अलग प्राथमिकताएँ हो सकती हैं। गुणवत्ता और स्वाद में इस अंतर के परिणामस्वरूप पेश किये जाते वड़ा पाव में असंगतता प्रकट हो सकती है, जो फ्रैंचाइज़ी मॉडल के तहत कार्य करते समय समस्याजनक हो सकती है जहाँ ग्राहक एकरूपता की उम्मीद करते हैं। एक केंद्रीकृत खरीद प्रणाली आलू की गुणवत्ता में भी एकरूपता सुनिश्चित कर सकती है।

भारत की स्वास्थ्य देखभाल खरीद से संबंधित प्रमुख मुद्दे

  • सार्वजनिक खरीद के लिये एक व्यापक और समान कानून का अभाव: भारत में कोई केंद्रीय कानून मौजूद नहीं है जो सरकार द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद को नियंत्रित करता हो। इसके बजाय, विभिन्न प्रशासनिक नियम, दिशा-निर्देश, मैनुअल और राज्य-विशिष्ट कानून मौजूद हैं जो एक जटिल एवं खंडित खरीद ढाँचे का निर्माण करते हैं।
    • इससे खरीद प्रक्रिया में विसंगतियाँ, अक्षमताएँ, देरी और विवाद उत्पन्न होते हैं।
  • केंद्रीकृत और समुच्चय खरीद मॉडल का अभाव: कई अन्य देशों के विपरीत भारत ने दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की खरीद के लिये एक केंद्रीकृत या समुच्चय खरीद मॉडल को नहीं अपनाया है। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक सरकारी प्राधिकरण या अस्पताल को आपूर्तिकर्ताओं के साथ व्यक्तिगत रूप से वार्ता करनी होती है, जिसके परिणामस्वरूप कीमतें अधिक होती हैं, गुणवत्ता कम होती है और स्टॉक की समाप्ति की स्थिति बनती है।
    • दूसरी ओर, कॉर्पोरेट अस्पताल शृंखलाओं ने दवा कंपनियों से उल्लेखनीय छूट प्राप्त करने के लिये अपनी सौदेबाजी की शक्ति का लाभ उठाया है, लेकिन वे इस लाभ का प्रसार मरीजों तक नहीं करते हैं।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव: भारत की स्वास्थ्य देखभाल खरीद प्रायः भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, मिलीभगत और पक्षपात से प्रभावित होती है। खरीद निष्पादन, परिणाम और प्रभाव की निगरानी एवं मूल्यांकन के लिये कोई प्रभावी तंत्र मौजूद नहीं है।
    • आपूर्तिकर्ताओं और लाभार्थियों की शिकायतों एवं विवादों के समाधान के लिये कोई शिकायत निवारण प्रणाली या स्वतंत्र निरीक्षण निकाय भी मौजूद नहीं है।
  • असंगत कवरेज: केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (CGHS),  कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ESI)  और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) जैसी विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल योजनाएँ लाभार्थियों की विभिन्न श्रेणियों को कवर कर सकती हैं और कवरेज के विभिन्न स्तरों की पेशकश कर सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं और खरीद प्रक्रियाओं में जटिलताएँ पैदा होती हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (PSUs) का सीमित एकीकरण: भारत में फार्मा क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की कई इकाइयाँ सक्रिय हैं जो बेंचमार्क मूल्य निर्धारण और प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। हालाँकि, खरीद रणनीतियों में इन सार्वजनिक उपक्रमों का एकीकरण पूरी तरह से साकार नहीं हो सका है, जिसके परिणामस्वरूप लागत बचत के अवसर चूक सकते हैं।

क्या सरकार समुच्चय खरीद से अनभिज्ञ है?

  • ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार समुच्चय खरीद और मूल्य खोज के लाभों से अनभिज्ञ है।
  • जब सरकार पुरुष गर्भ निरोधकों की खरीद करती है (राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के माध्यम से) तो वह निजी निर्माताओं से निविदाएँ आमंत्रित करती है और फिर उन सभी से खरीद की पेशकश करती है जो सबसे कम कीमत पर आपूर्ति के लिये तैयार होते हैं।

सरकार आपूर्तिकर्ताओं को कीमतें बढ़ाने के लिये मिलीभगत करने से कैसे रोकती है?

  • भारत में सबसे अधिक विनिर्माण क्षमता वाली सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड (HLL Lifecare Ltd.) एक बेंचमार्क मूल्य प्रदान करती है। सभी बोलीकर्ताओं को पता होता है कि यदि वे मूल्य के मामले में प्रतिस्पर्द्धी नहीं होंगे तो सरकार अपनी सभी आवश्यकताओं की खरीद एचएलएल से कर लेगी और उनके पास अप्रयुक्त विनिर्माण क्षमता रह जाएगी (जिसके परिणामस्वरूप उन्हें भारी तय लागत और ‘ओवरहेड्स’ का सामना करना पड़ेगा)।

समुच्चय खरीद भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में किस प्रकार मदद कर सकता है?

  • लागत बचत: समुच्चय खरीद विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों को एक साथ आने और दवा एवं चिकित्सा आपूर्ति की थोक खरीद पर सौदेबाजी करने का अवसर देती है। यह सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति उन्हें आपूर्तिकर्ताओं से पर्याप्त छूट प्राप्त करने में सक्षम बनाती है। इस लागत बचत का प्रसार फिर मरीजों की ओर किया जा सकता है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल अधिक वहनीय हो जाएगी।
  • कुशल संसाधन उपयोग: स्वास्थ्य सेवा संगठन खरीद प्रयासों को केंद्रीकृत कर अतिरेक (redundancy) को कम कर सकते हैं और खरीद प्रक्रिया को सुव्यवस्थित बना सकते हैं। संसाधन आवंटन में यह दक्षता सुनिश्चित करती है कि धन का उपयोग अधिक प्रभावी ढंग से किया जाए और इसे स्वास्थ्य देखभाल के अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों, जैसे अवसंरचना, कर्मचारी प्रशिक्षण या स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करने के लिये पुनर्निर्देशित किया जा सके।
  • दवाओं की उपलब्धता में वृद्धि: समुच्चय खरीद से प्राप्त लागत बचत दवाओं और चिकित्सा आपूर्ति की अधिक स्थिर आपूर्ति में योगदान कर सकती है। जब स्वास्थ्य सेवा संस्थान कम कीमत पर आवश्यक दवाएँ खरीदने में सक्षम होंगे तो उनके पास पर्याप्त स्टॉक बनाए रखने की अधिक क्षमता होगी। इससे दवाओं की कमी होने का खतरा घटेगा जो कई बार प्राणघातक सिद्ध होता है।
  • बेहतर गुणवत्ता आश्वासन: समुच्चय खरीद स्वास्थ्य सेवा संगठनों को केवल सरकारी दवा नियामकों पर निर्भर रहने के बजाय स्वतंत्र रूप से आपूर्ति का परीक्षण करने की अनुमति देती है। गुणवत्ता आश्वासन की यह अतिरिक्त परत यह सुनिश्चित करती है कि मरीजों को सुरक्षित एवं प्रभावशील दवाएँ प्राप्त हों, जिससे समग्र स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
    • मानकीकृत अनुबंध: समुच्चय खरीद में प्रायः आपूर्ति के लिये मानकीकृत अनुबंध शामिल होते हैं। ये अनुबंध अस्पष्टताओं को समाप्त करने में मदद करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों को नियमित रूप से और उच्च गुणवत्तायुक्त उत्पाद प्राप्त हों। इससे नकली या घटिया दवाओं के बाज़ार में प्रवेश का खतरा कम हो जाता है।
    • प्रशासनिक बोझ में कमी: केंद्रीकृत खरीद खरीद से जुड़ी प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाती है। इससे व्यक्तिगत स्वास्थ्य सुविधाओं पर प्रशासनिक बोझ कम हो जाता है, जिससे उन्हें रोगी देखभाल एवं स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की अनुमति मिलती है।
  • समानता और निरंतरता: समुच्चय खरीद विभिन्न क्षेत्रों और विभिन्न लाभार्थी श्रेणियों के लिये स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में समानता एवं स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है। यह आवश्यक दवाओं और आपूर्ति तक निरंतर पहुँच प्रदान कर स्वास्थ्य देखभाल कवरेज में मौजूदा असमानताओं को दूर कर सकता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को सशक्त बनाना: सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को बेंचमार्क मूल्य निर्धारण और प्रतिस्पर्द्धा में शामिल कर इन्हें सुदृढ़ कर सकती है, जिससे वे अधिक प्रतिस्पर्द्धी और लागत प्रभावी बन सकते हैं। यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि निजी निर्माताओं को प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़े, जिसके परिणामस्वरूप सरकार के लिये बेहतर मूल्य निर्धारण का परिणाम प्राप्त हो सकता है।

निष्कर्ष

केंद्रीकृत खरीद या समुच्चय खरीद एक सरल लेकिन प्रभावशाली विचार है जिसमें लागत कम करने, स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित अन्य क्षेत्रों में धन का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने और देश में जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने की शक्ति एवं क्षमता मौजूद है। यह सैद्धांतिक समर्थन और अनुभवजन्य सत्यापन दोनों से समर्थित विचार है। यह एक ऐसा विचार है जिसे भारत को बड़े पैमाने पर और शीघ्रातिशीघ्र लागू करना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत की स्वास्थ्य देखभाल खरीद प्रणाली को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस संदर्भ में, एक केंद्रीकृत खरीद प्रणाली के लाभों की चर्चा कीजिये और विचार कीजिये कि यह स्वास्थ्य देखभाल खरीद परिदृश्य में मौजूदा समस्याओं को किस प्रकार संबोधित कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

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