खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का समय | 10 Jun 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में खाद्य सुरक्षा व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
मार्च, 2020 में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO), विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) और विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) के अधिकारियों द्वारा साझा बयान में आने वाले दिनों में वैश्विक बाज़ार में खाद्य पदार्थों की उपलब्धता के संदर्भ में चिंता व्यक्त की गई थी। वर्तमान में अधिकारियों द्वारा व्यक्त की गई चिंता सत्य प्रतीत हो रही है क्योंकि लॉकडाउन के कारण विश्व के सभी देशों में कृषि गतिविधियाँ नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई।
इसके साथ ही लॉकडाउन के दौरान आर्थिक गतिविधियों के सीमित होने के कारण बड़ी संख्या में लोगों को पूर्व में संग्रहित खाद्यान्न द्वारा भोजन भी उपलब्ध कराया गया। इस महामारी से उत्पन्न होने वाले खाद्य संकट से निपटने के लिये घरेलू स्तर पर ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रयास करने की आवश्यकता है। भारत के लिये मानसून की बेहतर स्थिति खाद्यान्न संकट को दूर करने में सहायक हो सकती है बशर्ते हमें बेहतर सहायक उपाय करने की ज़रुरत है।
इस आलेख में खाद्य संकट व उसके प्रकार, वैश्विक महामारी से पूर्व व बाद में भारत की खाद्यान्न स्थिति, खाद्य संकट को दूर करने में त्रिविमीय अवधारणा के साथ अन्य उपायों पर विमर्श किया जाएगा।
खाद्य संकट क्या है?
- खाद्य संकट को धन अथवा अन्य संसाधनों के अभाव में पौष्टिक और पर्याप्त भोजन तक अनियमित पहुँच के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- खाद्य संकट के दौरान लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ता है।
खाद्य संकट के प्रकार
- खाद्य संकट को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
- मध्यम स्तरीय खाद्य संकट: मध्यम स्तरीय खाद्य संकट से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें लोगों को कभी-कभी खाद्य की अनियमित उपलब्धता का सामना करना पड़ता है और उन्हें भोजन की मात्रा एवं गुणवत्ता के साथ भी समझौता करना पड़ता है।
- गंभीर खाद्य संकट: गंभीर खाद्य संकट का अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें लोग कई दिनों तक भोजन से वंचित रहते हैं और उन्हें पौष्टिक एवं पर्याप्त आहार उपलब्ध नहीं हो पाता है। लंबे समय तक यथावत बने रहने पर यह स्थिति भूख की समस्या का रूप धारण कर लेती है।
भारत में खाद्य संकट का ऐतिहासिक विवरण
- स्वतंत्रता के बाद से ही खाद्यान्न उत्पादन और खाद्य सुरक्षा देश के लिये बड़ी चुनौती रही है।
- भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित चिंताओं का इतिहास वर्ष 1943 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान हुए बंगाल अकाल में देखा जा सकता है, जिसके दौरान भुखमरी के कारण लगभग 2 मिलियन से 3 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गई थी।
- भारत में 1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत में हरित क्रांति ने दस्तक दी, जिससे देश के खाद्यान्न उत्पादन में काफी सुधार आया। हरित क्रांति की सफलता के बावजूद भी इसकी यह कहकर आलोचना की गई कि इसमें केवल गेहूँ और चावल पर अधिक ध्यान दिया गया था।
- आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2019 में सबसे अधिक कुपोषित लोग मौजूद थे।
- खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation-FAO) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की तकरीबन 14.8 प्रतिशत जनसंख्या कुपोषित है।
COVID-19 और खाद्य संकट
- संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने आगाह किया कि विश्व की 7 अरब 80 करोड़ आबादी का पेट भरने के लिये दुनिया में पर्याप्त भोजन उपलब्ध है लेकिन इसके बावजूद 82 करोड़ से अधिक लोग भुखमरी का शिकार हैं।
- इस वर्ष COVID-19 संकट के कारण 4 करोड़ 90 लाख अतिरिक्त लोग अत्यधिक गरीबी का शिकार हो सकते हैं और पोषणयुक्त भोजन की कमी के शिकार लोगों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोत्तरी होने की आशंका है।
- यहाँ तक कि जिन देशों में प्रचुर मात्रा में भोजन उपलब्ध है, वहाँ भी खाद्य आपूर्ति शृंखला में व्यवधान पैदा होने का जोखिम दिखाई दे रहा है।
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की त्रिविमीय अवधारणा
- बाज़ार में खाद्यान्न की उपलब्धता
- सर्वप्रथम बाज़ार में खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। इसके लिये कृषि विपणन स्थलों में सुधार करने की आवश्यकता है। सरकार द्वारा पूर्व में कई महत्त्वपूर्ण सुधार किये गए हैं, जो इस प्रकार हैं-
- मॉडल एग्रीकल्चर लैंड लीसिंग एक्ट (Model Agricultural Land Leasing Act) 2016 राज्यों को जारी किया गया, जो कृषि सुधारों के संदर्भ में अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण कदम है जिसके माध्यम से न सिर्फ भू-धारकों वरन् लीज़ प्राप्तकर्त्ता की ज़रूरतों का भी ख्याल रखा गया है।
- राष्ट्रीय कृषि मंडी स्कीम (ई-नाम) के तहत बेहतर मूल्य सुनिश्चित करके, पारदर्शिता और प्रतियोगिता के माध्यम से कृषि मंडियों में क्रांति लाने की एक नवाचारी मंडी प्रक्रिया प्रारंभ की गई।
- सरकार ने मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एंड सर्विसेज एक्ट (Model Contract Farming and Services Act), 2018 जारी किया है जिसमें पहली बार देश के अन्नदाता किसानों तथा कृषि आधारित उद्योगों को जोड़ा गया है।
- सर्वप्रथम बाज़ार में खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। इसके लिये कृषि विपणन स्थलों में सुधार करने की आवश्यकता है। सरकार द्वारा पूर्व में कई महत्त्वपूर्ण सुधार किये गए हैं, जो इस प्रकार हैं-
- लोगों की खाद्यान्न तक पहुँच सुनिश्चित करना
- खाद्यान्न तक पहुँच बेहतर क्रय शक्ति पर निर्भर करती है। कृषक के अतिरिक्त प्रत्येक को बाज़ार से खाद्यान्न क्रय करना पड़ता है। इस वैश्विक महामारी के दौरान आर्थिक गतिविधियाँ बाधित होने से लोगों की पास धन का संकट है, परंतु मनरेगा जैसी योजना के कारण लाखों लोगों को रोज़गार प्राप्त हुआ है जिससे उनकी पहुँच खाद्यान्न तक सुनिश्चित हो पाई है।
- इसके अतिरक्त सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को सरकार द्वारा दी गई प्रोत्साहन राशि से पुनर्जीवित किया जा सकता है, जो व्यापक पैमाने पर रोज़गार का सृजन करेगा।
- इस संकट के दौरान सरकार के द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act-NFSA) और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System-PDS) के माध्यम से ज़रूरतमंद प्रत्येक व्यक्ति को अतिरिक्त राशन भी उपलब्ध कराया गया है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम व सार्वजनिक वितरण प्रणाली में निर्धारित खाद्य उत्पादों के अतिरिक्त बाजरा, दाल व तेल जैसे अन्य खाद्य उत्पादों को भी शामिल करना चाहिये।
- भोज्य पदार्थों का अवशोषण
- खाद्य सुरक्षा का तीसरा आयाम है शरीर में भोजन का अवशोषण तथा उसका समुचित उपयोग।
- भोजन का अवशोषण और उपयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं सहित स्वच्छता, पीने योग्य जल और अन्य गैर-खाद्य कारकों पर महत्त्वपूर्ण ढंग से निर्भर है।
- COVID-19 संक्रमण के कारण बार-बार हाथों को धुलने से ग्रामीण व शहरी दोनों ही क्षेत्रों में स्वच्छ पीने योग्य जल की कमी महसूस की जा रही है।
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु सरकार के अन्य प्रयास
- राष्ट्रीय कृषक नीति- खाद्य सुरक्षा के स्तर को बनाए रखने के लिये राष्ट्रीय कृषक नीति को लागू किया गया। इस नीति के अंतर्गत न्यूनतम समर्थन मूल्य कार्यप्रणाली को प्रभावी रूप से क्रियान्वित करना, कृषि उत्पादों को लाभकारी मूल्य प्रदान करना, किसानों को वित्तीय सहायता उचित ब्याज दर पर उपलब्ध कराना, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की सहायता से ग्राम-स्तर पर चौपाल और फर्म, स्कूल स्थापित करना तथा यह सुनिश्चित करना कि किसानों के पास उत्पादन के लिये साधन उपलब्ध है कि नहीं, अच्छी गुणवत्ता के बीज का प्रयोग बढ़ाना आदि क्रियाएँ भी क्रियान्वित करना इस नीति में शामिल हैं।
- खाद्य सब्सिडी योजना- खाद्य सुरक्षा के लिये सरकार समय-समय पर खाद्य सब्सिडी जारी करती है ताकि खाद्य संकट पैदा न हो।
- राष्ट्रीय वर्षापोषित क्षेत्र प्राधिकरण की स्थापना- खाद्य सुरक्षा की कल्पना को साकार करने के लिये राष्ट्रीय वर्षा पोषित क्षेत्र प्राधिकरण की स्थापना की गई। इस प्राधिकरण का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा की स्थिति बरकरार रखने के लिये वर्षा पोषित क्षेत्रों की समस्या पर पूरा ध्यान देना तथा भूमिहीन और छोटे किसानों से संबंधित समस्याओं पर भी ध्यान केन्द्रित करना है जिससे खाद्यान्न उत्पादन में कमी न हो।
खाद्य सुरक्षा की वैकल्पिक विधियाँ
- खाद्यान्न कूपन प्रणाली- सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के लिये निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले प्रत्येक परिवार को खाद्यान्न कूपन देकर उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों पर मुद्रा के स्थान पर स्वीकार किया जाना चाहिये। ऐसी दुकानों पर गेंहूँ-चावल की बिक्री प्रचलित बाज़ार मूल्य पर होनी चाहिये, परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार की संभावना कम होगी। इस कूपन प्रणाली में सही सफलता तभी प्राप्त होगी जबकि निर्धनों की पहचान के लिये विशिष्ट पहचान संख्या लागू की जाए।
- बहु-उपयोगी स्मार्ट कार्ड- प्रौद्योगिकी विकास के साथ-साथ बहु-उपयोगी स्मार्ट कार्ड व्यवस्था अस्तित्व में आई है। इन कार्डों के माध्यम से विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन को सरल बनाया जा सकता है। इस प्रकार यदि सभी अर्ह परिवारों की पहचान, अधिकृत लेन-देन की जानकारी तथा प्राप्त खाद्यान्न की मात्रा आदि का विवरण ऑन-लाइन उपलब्ध हो तो खाद्यान्न के निर्गम के समय इसकी पुष्टि की जा सकती है। विवरण की जानकारी भी ऑन-लाइन हो जाने से कार्यक्रम की प्रगति भी आसान हो जाएगी।
- वेब आधारित प्रणाली- सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत एक ऐसी वेबसाइट विकसित की जा सकती है जिस पर प्रत्येक लाभार्थी परिवार जो भोजन पाने का अधिकार कानून के तहत खाद्यान्न की एक निर्धारित मात्रा रियायती मूल्य पर पाने का हकदार है, का विवरण उपलब्ध हो। इसके अलावा इसकी जाँच वितरण केंद्र पर अधिकारियों एवं लाभार्थी परिवार के मुखिया द्वारा कभी भी की जा सकती है।
- बफर स्टॉक बढ़ाना अत्यावश्यक- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में खाद्यान्नों, दालों, चीनी इत्यादि वस्तुओं के भंडारण व आयात का पूर्वानुमान लगाकर बफर स्टॉक बनाए जाने की रणनीति तैयार की जानी चाहिये जिससे भ्रष्टाचार और जमाखोरी को रोका जा सके।
निष्कर्ष: COVID-19 संक्रमण के दौरान भारत स्वास्थ्य चुनौतियों के अतिरिक्त जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, उनमें से खाद्य सुरक्षा की चुनौती सबसे प्रमुख चुनौतियों में से एक है। तेज़ी से बढ़ती हुई जनसंख्या, बढ़ते खाद्य मूल्य और जलवायु परिवर्तन का खतरा ऐसी चुनौतियाँ है जिनसे युद्ध स्तर पर निपटे जाने की आवश्यकता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ‘‘जो व्यक्ति अपना पेट भरने के लिये जूझ रहा हो उसे दर्शनवाद नहीं समझाया जा सकता है।” यदि भारत को विकसित राष्ट्रों की सूची में शामिल होना है, तो उसे अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
प्रश्न- खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में त्रिविमीय अवधारणा का उल्लेख करते हुए अन्य वैकल्पिक विधियों पर विस्तृत चर्चा कीजिये।