राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण | 19 Oct 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में वायु प्रदूषण खासतौर पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या, उसके कारणों और प्रभावों से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
हाल ही के कुछ वर्षों में राजधानी दिल्ली में सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषण का अपने चरम पर पहुँचना बहुत आम हो गया है। दिल्ली और यहाँ तक कि संपूर्ण सिंधु-गंगा के मैदानों में वायु प्रदूषण काफी जटिल घटना है, जो कि विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। इनमें पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारक प्रदूषकों की उपस्थिति है, इसके बाद मौसम और स्थानीय परिस्थितियाँ आती हैं। ध्यातव्य है कि प्रत्येक वर्ष अक्तूबर माह के आस-पास दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर तेज़ी से बढ़ने लगता है और प्रदूषण के कारणों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति भी शुरू हो जाती है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में बेहतर वायु गुणवत्ता सुनिश्चित करने के प्रयासों के तहत दिल्ली-एनसीआर (Delhi- NCR) के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा करने के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की 50 टीमें तैनात की गई हैं। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि पराली जलाने की समस्या का दिल्ली के वायु प्रदूषण में केवल 4 प्रतिशत का योगदान है।
अक्तूबर माह में प्रदूषण बढ़ने के कारण
- आमतौर पर अक्तूबर माह को उत्तर पश्चिम भारत में मानसून के निवर्तन के लिये जाना जाता है। मानसून के दौरान हवाओं के बहने की दिशा पूर्व की ओर होती है, बंगाल की खाड़ी की ओर से आने वाली ये हवाएँ अपने साथ नमी लेकर आती हैं, जिससे भारत के इस हिस्से में बारिश होती है।
- लेकिन जब यहाँ मानसून निवर्तन होता है तो हवाओं के बहने की दिशा पूर्व से बदलकर उत्तर-पश्चिम हो जाती है।
मानसून का निर्वतन: मानसून के पीछे हटने या लौट जाने को मानसून का निवर्तन कहा जाता है । सितंबर के आरंभ से उत्तर-पश्चिमी भारत से मानसून पीछे हटने लगता है और मध्य अक्तूबर तक यह दक्षिण भारत को छोड़ शेष समस्त भारत से निवर्तित हो जाता है । लौटती हुई मानसून पवनें बंगाल की खाड़ी से जलवाष्प ग्रहण करके उत्तर - पूर्वी मानसून के रूप में तमिलनाडु में वर्षा करती है ।
- एक अध्ययन के मुताबिक, सर्दियों में दिल्ली की 72 प्रतिशत हवा उत्तर पश्चिम से आती है, जबकि शेष 28 प्रतिशत सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों से आती है। उत्तर-पश्चिम से आने वाली इन हवाओं के साथ राजस्थान और यहाँ तक कि कभी-कभी पाकिस्तान और अफगानिस्तान की धूल-मिट्टी भी दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में पहुँच जाती है।
- यही कारण है कि वर्ष 2017 में इराक, सऊदी अरब और कुवैत में आए एक तूफान ने दिल्ली की वायु गुणवत्ता को काफी प्रभावित किया था।
- हवाओं की दिशा के साथ-साथ तापमान में गिरावट भी दिल्ली और इसके आस-पास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के स्तर को प्रभावित करती है। जैसे-जैसे तापमान में गिरावट आती है, तापीय व्युत्क्रमण के चलते एक परत बन जाती है, जिससे प्रदूषक वायुमंडल की ऊपरी परत में विस्तारित नहीं हो पाते हैं। ऐसा होने पर वायु में प्रदूषकों की सांद्रता बढ़ जाती है।
तापीय व्युत्क्रमण: सामान्य परिस्थितियों में ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटता जाता है। जिस दर से यह तापमान कम होता है, इसे सामान्य ह्रास दर कहते हैं। परंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटने की बजाय बढ़ने लगता है। इस प्रकार ऊँचाई के साथ ताप बढ़ने की प्रक्रिया को तापमान व्युत्क्रमण कहते हैं। तापमान व्युत्क्रमण की परिघटना के दौरान धरातल के समीप ठंडी वायु और उसके ऊपर गर्म वायु होती है।
- इसके अलावा, प्रदूषकों को फैलाने के लिये उच्च गति वाली हवाएँ बहुत प्रभावी होती हैं, लेकिन ग्रीष्म ऋतु की तुलना में शीत ऋतु में हवा की गति में कमी आती है। इन मौसम संबंधी कारकों के संयोजन से यह क्षेत्र प्रदूषण का शिकार हो जाता है। जब पराली के धुएँ और धूल भरी आंधी जैसे कारक शहर में पहले से व्याप्त प्रदूषण के स्तर में जुड़ जाते हैं, तो वायु की गुणवत्ता में ओर अधिक गिरावट आती है।
दिल्ली के वायु प्रदूषण में किसानों की भूमिका
- पराली, धान की फसल कटने के बाद बचा बाकी हिस्सा होता है, जिसकी जड़ें ज़मीन में होती हैं।
- किसान धान पकने के बाद फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं क्योंकि वही काम का होता है बाकी किसान के लिये बेकार होता है। उन्हें अगली फसल बोने के लिये खेत खाली करने होते हैं जिस वजह से पराली को जला दिया जाता है।
- आजकल पराली इसलिये भी अधिक होती है क्योंकि किसान अपना समय बचाने के लिये मशीनों से धान की कटाई करवाते हैं। मशीनें धान का केवल ऊपरी हिस्सा काटती हैं और नीचे का हिस्सा अब पहले से ज़्यादा बचता है। इसे हरियाणा तथा पंजाब में पराली कहा जाता है।
- इस प्रथा को व्यापक रूप से वर्ष 2009 से शुरू किया गया, जब पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने धान की बुआई में देरी करने वाले कानून पारित किये। इस कानून को पारित करने का उद्देश्य भूजल संरक्षण करना था क्योंकि नया बुवाई चक्र मानसून के साथ सुमेलित था। हालाँकि, इससे किसानों के पास धान की कटाई, साफ खेतों और अगले चक्र के लिये गेहूँ बोने के लिये बहुत कम समय बचता है। धान के पुआल और डंठल में सिलिका की मात्रा अधिक होती है और इसका इस्तेमाल पशुओं को खिलाने के लिये नहीं किया जाता है।
क्या पराली दहन वायु प्रदूषण का एकमात्र प्रबल कारक है?
- आईआईटी-कानपुर द्वारा वर्ष 2015 में दिल्ली के वायु प्रदूषण पर आयोजित एक अध्ययन में यह भी कहा गया है कि सर्दियों में दिल्ली में पर्टिकुलर मैटर में 17-26% की वृद्धि बायोमास के जलने के कारण होती है। पिछले कुछ वर्षों में, वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली (SAFAR) ने दिल्ली के वायु प्रदूषण में वृद्धि हेतु पराली के योगदान की गणना करने के लिये एक प्रणाली विकसित की है।
- पराली दहन के चरम समय में वायु प्रदूषण में इसका योगदान 40% तक बढ़ गया था। पिछले कुछ दिनों में यह 2%-4% हो गया है, यह दर्शाता है कि वायु की गुणवत्ता में गिरावट के हेतु केवल पराली दहन ज़िम्मेदार नहीं है बल्कि अन्य कारक भी इसमें शामिल हैं।
- पराली दहन का समय सामान्यतः लगभग 45 दिनों का होता है किंतु दिल्ली में वायु, फरवरी तक प्रदूषित रहती है।
दिल्ली में प्रदूषण के अन्य बड़े स्रोत क्या हैं?
- दिल्ली में हवा की निम्न गुणवत्ता के लिये धूल और वाहनों का प्रदूषण दो सबसे बड़े कारण हैं। अक्तूबर और जून के बीच वर्षा की अनुपस्थिति के चलते शुष्क ठंड का मौसम होता है जिससे पूरे क्षेत्र में धूल का प्रकोप बढ़ जाता है। आईआईटी कानपुर के एक अध्ययन में कहा गया है कि धूल PM 10 में 56% और PM 2.5 में 38% की वृद्धि हेतु ज़िम्मेदार है।
- सर्दियों में प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा कारण वाहनों का प्रदूषण है। IIT कानपुर के अध्ययन के अनुसार, सर्दियों में PM 2.5 का 20% वाहन प्रदूषण से आता है।
- सामान्यतः वायु प्रदूषण प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों कारकों द्वारा होता है। प्राकृतिक कारकों में ज्वालामुखी क्रिया, वनाग्नि, कोहरा, परागकण, उल्कापात आदि हैं। परंतु प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न वायु प्रदूषण कम खतरनाक होता है क्योंकि प्रकृति में स्व-नियंत्रण की क्षमता होती है।
- मानवीय क्रियाकलापों में वनोन्मूलन, कारखाने, परिवहन, ताप विद्युत गृह, कृषि कार्य, खनन, रासायनिक पदार्थ, अग्नि शस्त्रें का प्रयोग तथा आतिशबाजी द्वारा वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।
वायु प्रदूषण के प्रभाव
- हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पक्षियों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे दमा, सर्दी, अंधापन, श्रवण शक्ति कमज़ोर होना, त्वचा रोग आदि बीमारियाँ पैदा होती हैं।
- वायु प्रदूषण के कारण अम्लीय वर्षा का खतरा बढ़ा है क्योंकि वर्षा के पानी में सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड आदि ज़हरीली गैसों के घुलने की संभावना बढ़ी है जिससे पेड़-पौधे, भवनों व ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुँचा है।
- बढ़ते हुए वायु प्रदूषण को देखते हुए वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा के दोगुनी होने की संभावना है। CO2 में हुई इस वृद्धि से पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धि होगी जिसके परिणामस्वरूप ध्रुवीय बर्फ, ग्लेशियर आदि पिघलेंगे। परिणामस्वरूप यह तटीय क्षेत्रों में बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि होगी, इससे कई तटीय देशों और राज्यों के डूबने की संभावनाएँ हैं। यदि वर्षा के पैटर्न (Pattern) में बदलाव हुआ तो इससे कृषि उत्पादन प्रभावित होगा।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत, साँस की बीमारियों और अस्थमा से होने वाली मौतों के मामले में दुनिया में अग्रणी है। कम दृश्यता, अम्ल वर्षा और ट्रोपोस्फेरिक स्तर पर ओज़ोन की उपस्थिति के माध्यम से भी वायु प्रदूषण पर्यावरण को प्रभावित करता है।
वायु प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय
- वायु प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये कारखानों को शहरी क्षेत्र से दूर स्थापित किया जाना तथा कारखानों की चिमनियों की अधिक ऊँचाई व इनमें फिल्टरों के उपयोग की अनिवार्यता आवश्यक है।
- जनसंख्या की वृद्धि को स्थिर करने की आवश्यकता है जिससे खाद्य व आवास के लिये पेड़ों व वनों को न काटना पड़े। साथ ही आम जनता को वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों का ज्ञान कराना भी ज़रूरी है जिससे वे स्वयं प्रदूषण नियंत्रण के सार्थक उपायों को अपनाकर इसे नियंत्रित करने में योगदान दे सकें। इसके लिये सभी प्रकार के प्रचार माध्यमों का उपयोग करना चाहिये।
- गाडि़यों एवं दुपहिया वाहनों की ट्यूनिंग (Tuning) की जानी आवश्यक है ताकि अधजला धुआँ बाहर आकर पर्यावरण को दूषित न करे। साथ ही सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है। निर्धूम चूल्हा व सौर ऊर्जा की तकनीक को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- इसको पाठ्यक्रम में शामिल करके बच्चों में इसके प्रति चेतना जागृत की जानी चाहिये।
दिल्ली सरकार का प्रदूषण विरोधी अभियान
दिल्ली सरकार ने हाल ही में वृहद् स्तर का एक प्रदूषण विरोधी अभियान शुरू किया है, जिसे ‘युद्ध प्रदूषण के विरुद्ध’ (Yuddh Pradushan Ke Viruddh) नाम दिया गया है। इसके अंतर्गत पेड़ों के प्रत्यारोपण की नीति, कनॉट प्लेस (दिल्ली) में एक स्मॉग टॉवर का निर्माण, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना और पराली को जलाने से रोकना जैसी मुहिम शामिल हैं।
- इससे दिल्ली की खराब वायु गुणवत्ता का मुकाबला करने में मदद मिलेगी जो सर्दियों के मौसम में और भी अधिक खराब हो जाती है।
वृक्ष प्रत्यारोपण नीति (Tree Transplantation)
- ट्री ट्रांसप्लांटेशन से तात्पर्य किसी विशेष स्थान से किसी पेड़ को उखाड़ना और उसे दूसरे स्थान पर लगाना है।
- इस नीति के तहत किसी भी विकासात्मक परियोजना से प्रभावित होने वाले कम-से-कम 80% पेड़ों को प्रत्यारोपित किया जाएगा। इसके अलावा प्रत्यारोपित पेड़ों के न्यूनतम 80% को अच्छी तरह से विकसित होना चाहिये और यह सुनिश्चित करना उन एजेंसियों की ज़िम्मेदारी होगी जो सरकार से इस विकासात्मक परियोजना हेतु अनुमति लेंगे।
- यह प्रत्यारोपण, प्रत्येक काटे गए वृक्ष के लिये 10 पौधे लगाने के मौजूदा प्रतिपूरक वनीकरण के अतिरिक्त होगा।
- सरकार द्वारा एक समर्पित ट्री ट्रांसप्लांटेशन सेल का गठन किया जाएगा।
स्मॉग टॉवर (Smog Tower):
- एक स्मॉग टॉवर, जो एक मेगा एयर प्यूरीफायर के रूप में काम करेगा, को दिल्ली सरकार और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दिये गए सर्वोच्च न्यायालय के नवंबर 2019 के आदेश के अनुसार स्थापित किया जाएगा।
- दिल्ली में स्थापित किये जाने वाले टॉवर आईआईटी मुंबई, आईआईटी दिल्ली और मिनेसोटा विश्वविद्यालय के बीच सहयोग का परिणाम होंगे।
- नीदरलैंड, चीन, दक्षिण कोरिया और पोलैंड के शहरों में हाल के वर्षों में स्मॉग टावरों का प्रयोग किया गया है। नीदरलैंड के रॉटरडैम में वर्ष 2015 में ऐसा पहला टॉवर बनाया गया था।
- दुनिया का सबसे बड़ा एयर-प्यूरिफाइंग टॉवर शीआन, चीन में है।
- टॉवर प्रदूषित वायु के प्रदूषकों को ऊपर से सोख लेगा और नीचे की तरफ से स्वच्छ वायु छोड़ेगा।
इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicles )
- सरकार का लक्ष्य वर्ष 2024 तक राजधानी में पंजीकृत कुल नए वाहनों में से एक-चौथाई वाहनों के लिये ईवीएस खाता बनाना है।
- इलेक्ट्रिक वाहन के लक्ष्य को इन वाहनों की खरीद हेतु प्रोत्साहन द्वारा, पुराने वाहनों पर मार्जिन लाभ देने, अनुकूल ब्याज पर ऋण देने और सड़क करों में छूट देने आदि के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा।
- हाल ही में दिल्ली सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2020 को अधिसूचित किया जो ईवीएस के साथ निजी चार पहिया वाहनों के बजाय दोपहिया वाहन, सार्वजनिक परिवहन, साझा वाहनों और माल-वाहक द्वारा प्रतिस्थापन पर सबसे अधिक ज़ोर देती है।
इन कदमों के अलावा सरकार दिल्ली में थर्मल प्लांटों और ईंट भट्टों के साथ-साथ आस-पास के राज्यों में जलने वाली पराली से उत्पन्न प्रदूषण के रासायनिक उपचार पर भी ध्यान केंद्रित करती है। साथ ही बीएस VI (क्लीनर) ईंधन की शुरूआत, इलेक्ट्रिक वाहनों हेतु प्रोत्साहन, आपातकालीन उपाय के रूप में ऑड-ईवन का प्रयोग दिल्ली सरकार द्वारा वायु प्रदूषण हेतु उठाए गए अन्य कदम हैं।
आगे की राह:
लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक गतिविधियों और वाहनों के न चलने से प्रदूषण में भारी कमी आई और इस वर्ष दिल्ली में वायु गुणवत्ता में काफी सुधार देखा गया। किंतु पुनः वाहनों के चलने, तापमान में गिरावट और पराली जलाने के साथ, दिल्ली में वायु की गुणवत्ता खराब होने लगी है। COVID-19 महामारी परिदृश्य में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण की आवश्यकता अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि वायु प्रदूषण के कारण श्वसन संबंधी बीमारियाँ COVID-19 से प्रभावित लोगों की स्थिति को और खराब कर सकती हैं। चूँकि अनुच्छेद 21 में दिये गए ‘जीवन जीने के अधिकार’ में स्वच्छ पर्यावरण का भी अधिकार निहित है, अतः सरकार और नागरिक दोनों को बेहतर समन्वय स्थापित करते हुए प्रदूषण के विरुद्ध मुहिम छेड़ने की आवश्यकता है।
अभ्यास प्रश्न: वायु प्रदूषण, मौसम और अन्य स्थानीय घटनाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली एक जटिल घटना है। इसे स्पष्ट करते हुए बताइये कि दिल्ली सरकार का प्रदूषण विरोधी अभियान वायु प्रदूषण के नियंत्रण में कहाँ तक कारगर सिद्ध होगा?