कृषि जैव प्रौद्योगिकी : GM फसलें | 17 Aug 2021

यह एडिटोरियल दिनांक 15/08/2021 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित ‘‘Driving a 2nd green revolution via agri-biotech’’ लेख पर आधारित है। इसमें GM फसलों के उपयोग से संबद्ध समस्याओं और भविष्य के उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।

साठ के दशक के अंत में देश में ‘हरित क्रांति’ के आगमन ने खाद्य की कमी और गंभीर कृषि संकट से देश की रक्षा की तथा इसके बाद से भारतीय कृषि ने एक लंबा सफर तय कर लिया है। वह क्रांति के पीछे का विज्ञान था जिसने वस्तुस्थिति के परिवर्तन में योगदान किया।  

आज भारत फिर एक बार एक चौराहे पर खड़ा है, हालाँकि पाँच दशक पहले की तुलना में वह कहीं अधिक मज़बूत स्थिति में है। वर्तमान में भारत विभिन्न प्रकार की फसलों का एक प्रमुख उत्पादक देश है। इनमें चावल, गेहूँ, कपास, गन्ना और विभिन्न फल एवं सब्जियाँ शामिल हैं।

लेकिन, प्रति इकाई भूमि की उपज या उत्पादन के मामले में भारत उन देशों से पीछे है जो खाद्य फसलों के प्रमुख उत्पादक हैं। फसल की पैदावार को कई कारक प्रभावित करते हैं जिनमें जलवायु की स्थिति, उच्च गुणवत्तायुक्त कृषि आदानों तक पहुँच, मशीनीकरण, पूँजी तक पहुँच और नवीनतम कृषि तकनीकों का कुशल ज्ञान जैसे कारक शामिल हैं।

हालाँकि, इनमें से किसी भी कारक का अधिक लाभ नहीं मिलेगा यदि हमारी भूमि में बोए जाने वाले बीज सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता के नहीं होंगे या उनमें विभिन्न कीटों और रोगों के प्रति प्रतिरोध की क्षमता नहीं होगी।

GM प्रौद्योगिकी के लाभ

  • आयातक से शुद्ध-निर्यातक के रूप में भारत का उदय: भारत में GM प्रौद्योगिकी के लाभ तुरंत ही नज़र आए और ये बेहद प्रभावोत्पादक भी थे।   
    • जब से कृषि क्षेत्र को आनुवंशिक रूप से संशोधित कपास (बीटी कपास) के लिये खोला गया है, देश नकदी फसल कपास के प्रमुख उत्पादकों में से एक के रूप में उभरा है और चार-पाँच वर्षों से भी कम समय में ही इसका शुद्ध निर्यातक बन गया है। 
  • विभिन्न गुणों का योग: ट्रांसजेनिक या GM बीज ऐसे बीज होते हैं जिनमें अन्य प्रजातियों से निकाले गए जीन को शामिल करके कुछ गुणों का योग किया जाता है।  
    • बीज के स्वाद, रंग, गुणवत्ता, पोषण मूल्य में सुधार करने और उन्हें सामान्य पादप-रोगों के लिये प्रतिरोधी बनाने अथवा कपास के पौधों पर हमला करने वाले बोलवर्म जैसे कीटों को दूर करने के लिये इनमें कई विशेषताओं का योग किया जा सकता है।  
  • जलवायु अनुकूल फसलें: भविष्य के लिये एक अन्य महत्त्वपूर्ण आवश्यकता जलवायु अनुकूल फसलों (Climate Resilient Crops) की है और GM प्रौद्योगिकी के माध्यम से इसकी पूर्ति का भी प्रयास किया जा सकता है। 
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य (genetic engineered food) के अन्य संभावित लाभ:   
    • रोग और सूखा प्रतिरोधी पौधों का विकास जिन्हें पर्यावरणीय संसाधनों (जैसे जल और उर्वरक) की कम आवश्यकता होती है 
    • कीटनाशकों का कम प्रयोग
    • कम लागत और दीर्घ शेल्फ-लाइफ वाले खाद्य की आपूर्ति में वृद्धि
    • तेज़ी से विकास करने वाले पादप और जंतु 
    • अधिक वांछनीय लक्षणों वाले खाद्य (जैसे आलू), जो तले जाने पर कैंसरकारक पदार्थ का कम उत्पादन करते हैं
    • औषधीय खाद्य पदार्थ जिनका उपयोग टीकों या अन्य दवाओं के रूप में किया जा सकता है।

GM फसलों से संबद्ध चुनौतियाँ

  • अन्य GM फसलों की आवश्यकता: कपास किसानों को प्राप्त लाभ सदृश अवसर अन्य फसल उत्पादकों को नहीं मिल सका है।  
    • चीन के मक्के के आयात का एक बड़ा हिस्सा उत्तर और दक्षिण अमेरिकी देशों से प्राप्त होता है।
    • इधर चीन के पड़ोसी के रूप में भारत इन अवसरों से लाभ उठाने में असमर्थ है अथवा उत्पादकता के मौजूदा स्तरों के कारण प्रतिस्पर्द्धी मूल्य रखता है।
  • प्रौद्योगिकीय उन्नति के साथ तालमेल की कमी: भारतीय कृषि विज्ञान के विरुद्ध नहीं है, लेकिन कृषि के क्षेत्र में विज्ञान के इस्तेमाल में तालमेल नहीं रख सका है।  
    • उदाहरण के लिये, जीन संपादित फसलों ने अच्छे लाभ के अवसर उत्पन्न किये हैं और उत्पादन की गुणवत्ता जैसे लाभों के लिये दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इनकी खेती की जा रही है।
  • अज्ञात परिणाम: बाह्य जीन अभिव्यक्ति (foreign gene expression) के माध्यम से किसी फसल प्रजाति की प्राकृतिक अवस्था को बदलने के अज्ञात परिणाम भी सामने आ सकते हैं। 
    • इस तरह के परिवर्तन फसल प्रजाति के चयापचय, विकास दर और/अथवा बाहरी पर्यावरणीय कारकों के प्रति अनुक्रिया को परिवर्तित कर सकते हैं।
  • स्वास्थ्य जोखिम: आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थों में मौजूद नए एलर्जेंस (allergens) के संपर्क में आने की संभावना और साथ ही एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीन का जठरांत्र वनस्पति (gut flora) में स्थानांतरण मानव के लिये संभावित स्वास्थ्य जोखिमों में प्रमुख हैं। 
  • पारिस्थितिक असंतुलन: उत्पन्न परिणाम न केवल स्वयं GMO को प्रभावित करते हैं, बल्कि उस प्राकृतिक वातावरण को भी प्रभावित करते हैं जिसमें उस जीव को बढ़ने दिया जाता है।  
    • अन्य जीवों में कीटनाशक, शाकनाशी का जीन स्थानांतरण अथवा एंटीबायोटिक प्रतिरोध का स्थानांतरण न केवल मनुष्यों के लिये जोखिम उत्पन्न करेगा, बल्कि यह पारिस्थितिक असंतुलन भी पैदा कर सकता है, जिससे पहले कभी अहानिकर रहे पादप अनियंत्रित विकास कर सकते हैं, और इस प्रकार पादपों और जंतुओं दोनों के बीच रोग के प्रसार को बढ़ावा दे सकते हैं।

आगे की राह

  • एग्री-बायोटेक के साथ तालमेल बनाए रखना: बीटी बैंगन, DMH -11 सरसों आदि अन्य GMO फसलों को पर्याप्त पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental impact assessment) के बाद ही अनुमति दी जानी चाहिये।     
    • भारत में GM बीजों के व्यावसायीकरण की दीर्घकालिक संभावनाओं और लाभों पर मूल और गहन शोध के बाद ही सरकार को GM बीजों के व्यावसायीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिये।
  • स्वदेशी प्रौद्योगिकी: किसानों की आय को दोगुना करने के लिये विज्ञान और सुरक्षा से कोई समझौता किये बिना घरेलू प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना और आवश्यक नियामक कदमों के साथ उनका समर्थन करना महत्त्वपूर्ण है।  
    • निवेश को बढ़ावा देने से टेक्नोलॉजी डेवलपर्स को उन फसलों में रुचि लेने के लिये प्रेरित किया जा सकेगा जो भारत के लिये प्रासंगिक हैं और वे उन प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करेंगे जिनके लिये एक स्पष्ट नियामक ढाँचा मौजूद है।
  • ‘गुड साइंस’ पर भरोसा: GM फसल प्रौद्योगिकियों को उनके गुण प्रभावकारिता, सुरक्षा और फसल के समग्र प्रदर्शन वृद्धि के लिये कई वर्षों के परीक्षण से गुजरना पड़ता है।  
    • हमें इन प्रौद्योगिकियों के मूल्यांकन के लिये मौजूद सभी ‘गुड साइंस’ पर भरोसा होना चाहिये और फसल के लिये जो भी सुरक्षित और अच्छा साबित होता है, उसे कृषक समुदाय को उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
  • अन्य उपाय: 
    • GM बीजों की अवैध खेती पर अंकुश लगाने के लिये जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC) को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिये: 
      • राज्य सरकारों के साथ सहयोग करें और एक राष्ट्रव्यापी जाँच अभियान शुरू करें।
      • मनमाने GM फसल उत्पादन के खतरे पर कार्रवाई करें।
      • GM बीजों की अवैध आपूर्ति में शामिल लोगों की जाँच करें और उन पर मुकदमा चलाएँ।
    • GM फसलों के साथ-साथ जैविक खेती (organic farming) को प्रोत्साहित करें।

निष्कर्ष

दीर्घावधि में जब तक किसान लाभान्वित नहीं होंगे, तब तक इसे किसी के लिये भी लाभ का सौदा नहीं माना जा सकता। निःसंदेह यही वह परम लक्ष्य है जो नियामकों, किसानों की लॉबी, कार्यकर्ताओं और निवेशकों सहित सभी हितधारकों को भरोसे के माहौल का निर्माण करने के लिये एक साथ ला सकता है।

अभ्यास प्रश्न: GM फसलों को बढ़ावा देना किसानों की आय को दोगुना करने और ग्रामीण संकट को कम करने का सफल दाँव है। इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।